Speeches

July 16, 2018

Speaking at Launch of Chhattisgarh Railway Booklet, in Raipur, Chhattisgarh

मेरे बड़े भाई छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय मुख्यमंत्री और मैं समझता हूँ छत्तीसगढ़ नहीं पूरा, भारत नहीं, शायद विश्व में जो जाने जाते हैं – चावल वाला बाबा, और यह मैं इसलिए याद दिलाना चाह रहा हूँ कि वर्ल्ड बैंक के लोगों तक ने कहा कि अगर आपको किधर भी भारत में ही नहीं, विश्व में किधर भी सही मायने में गरीब तक फूड सिक्योरिटी पहुंचानी है, लोगों के पेट भरने हैं, गरीब के लिए काम करना है तो उसका छत्तीसगढ़ से अच्छा मॉडल और कोई विश्व में नहीं है|

मैं आपको बधाई दूँगा रमन सिंह जी आपने जिस संवेदनशील तरीके से छत्तीसगढ़ नया राज्य बना था, कठिनाइयाँ थी, गरीबी थी, लोगों में चिंता थी क्या होगा लेकिन ऐसी परिस्थिति में जैसे आपने नेतृत्व किया छत्तीसगढ़ का और जो प्रोग्रेस छत्तीसगढ़ में आपके समय में देखा है सबने वह शायद ही कोई जो नए राज्य में बने हैं उन सब में किसी में देखने को मिला हो| आपके नेतृत्व को जनता ने स्वीकार किया है और मैं समझता हूँ इस नेतृत्व के कारण छत्तीसगढ़ में हर एक वर्ग चाहे वह गरीब वर्ग हो, चाहे वह शोषित वंचित लोग हों जिन्होंने सदियों तक सुधार नहीं देखा, जीवन में विकास नहीं देखा चाहे उद्योग हो चाहे व्यापार जगत हो, सभी के लिए आपने जो चिंता की आपने जिस प्रकार से प्रदेश में विकास की लहर ओझाई है आपको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ|

मुझे पूरा विश्वास है कि छत्तीसगढ़ के लोग, छत्तीसगढ़ के मेरे व्यापारी और उद्योग जगत के सभी लोग एक स्टैंडिंग ओवेशन देंगे रमन सिंह जी के नेतृत्व के लिए| सभी हमारे मित्र मंत्री छत्तीसगढ़ सरकार के अमर जी, अग्रवाल जी, मनोज जी सभी मंत्रीगण, हमारे प्रदेश अध्यक्ष कौशिक जी, सभी सांसदगण, रमेश जी हमारे सीनियर नेता हैं और मैं समझता हूँ सभी सम्मानीय मंच सभी अधिकारीगण, अलग-अलग विभाग से यहां आए हुए अलग-अलग चेंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रतिनिधि, नेतागण, ऑफिस बियरर और उद्योग और व्यापार जगत से जुड़े हुए मेरे सभी भाईयों-बहनों जिनके साथ में अपने आप को भी जोड़ता हूँ क्योंकि मैं भी मंत्री बनने के पहले आपकी तरह ही बाहर बैठता था सामने और नेताओं को सुनता था|

और वास्तव में गत 4 वर्षों में जो मौका मिला उसमें लगभग मेरे काम में मैंने यही कोशिश की कि जो हमने पीड़ा वहां बैठकर महसूस की थी कैसे उसको कम किया जाए यहां बैठने का जो आपने यह मौका दिया, आपने आशीर्वाद दिया उसको इस्तेमाल करें| संसाधनों से आपका प्रदेश समृद्ध है लेकिन जैसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने हमें जो दृष्टिकोण दिया था कि इन संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार समाज में गरीब से गरीब व्यक्ति का है जो अंत्योदय की कल्पना थी जो एकात्म मानववाद की कल्पना थी अगर वास्तव में उसका कोई सही मायने में किसी ने सरकार ने उसको धरातल पर काम किया है तो वह छत्तीसगढ़ की सरकार ने संसाधनों को गरीब तक पहुंचाया है|

और तेज गति से विकास भी हुआ है| मैं अभी-अभी आंकड़े देख रहा था रेलवे के, अभी जो किताब हमने रिलीज़ की है 2014 के पहले और रेलवे केंद्र सरकार के हाथ में है उसमें छत्तीसगढ़ कुछ नहीं कर सकता| 2014 के पहले अगर 4 वर्ष देखें – 2010 से 2014, तो जो माल लोड होता था रेलवे में वह 141 मिलियन टन से 151 मिलियन टन, 10 मिलियन टन बढ़ा मात्र 4 वर्षों में| जो अभी-अभी अमर भाई बोल रहे थे पॉलिसी पैरालिसिस| चार वर्ष में 10 मिलियन टन बढ़ा 141 to 151|

प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार आपने चुनकर भेजी, आपने यहां से 10 सांसद दिए भारतीय जनता पार्टी को, ग्यारहवीं भी सीट शायद बहुत छोटी भूल-चूक रह गई, हमारे कार्यकर्ताओं ने थोड़ा और उत्साह और जनता ने थोड़ा और वोट डाल दिया होता तो यह भी रिकॉर्ड 11 में से 11 होता| तो आप देखिए 2014 से 2018 के बीच 151 से बढ़कर 180 मिलियन टन, लगभग 30 मिलियन टन बढ़ा| आखिर यह ध्यान में नहीं आता लेकिन इसका लाभ सीधा हम सबको मिलता है| इससे तो काम करने के लिए मौके पैदा होते हैं, नौकरियाँ पैदा होती हैं, रोज़गार पैदा होता है|

आखिर यह अगर लोड हुआ तो माल बना होगा या माइनिंग हुई होगी, प्रोडक्शन हुई होगी, लोडिंग करके यहां से भेजा गया होगा| अलग-अलग प्रकार से व्यापार को यह प्रोत्साहन देता है और हर एक मापदंड में – मैं अभी-अभी देख रहा था 2009 से 2014 के बीच औसतन हर वर्ष रेलवे में 311 करोड़ रुपए कैपेक्स में – कैपिटल एक्सपेंडिचर में – निवेश किया छत्तीसगढ़ में, 5 वर्ष में औसतन 311 करोड रुपए| 5 वर्ष में 1500 करोड़ रुपए हुए, पूरे 5 वर्ष मिलाकर 1500 करोड़ रुपए| और छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां पर मिनरल वेल्थ है इतना सब व्यवस्था है जिससे हम रेलवे को बहुत तेज गति से बढ़ावा दे सकें और ऐसा राज्य है जहां कई इलाके ऐसे हैं जहां रेल पहुंची भी नहीं है अभी तक|

तो मोदी जी ने इसपर चिंता की, गौर किया और एवरेज इन्वेस्टमेंट, औसतन जो निवेश छत्तीसगढ़ में पिछले 4 वर्षों में हुआ है, छत्तीसगढ़ में, वह हैं 1,854 रुपए प्रति वर्ष| यानी 4 वर्षों में करीब-करीब 7,200 और 5 वर्ष लेंगे तो यह बढ़कर इस साल तो हमने और बढ़ा दिया है लगभग 10000 करोड़ रुपये हो जाएगा| कहां 1500 करोड़ रुपए 5 वर्ष में, कहां छत्तीसगढ़ में लगभग 9.5-10000 करोड रुपये|

यह है चिंता छत्तीसगढ़ के लिए, यह है विश्वास कि छत्तीसगढ़ में एक अच्छी सरकार है, छत्तीसगढ़ के लोग अच्छे हैं, छत्तीसगढ़ में व्यापार की बहुत बड़ी संभावनाएं हैं, उद्योग की बहुत बड़ी संभावनाएं हैं, बस उनको मौका मिलना चाहिए| और मैं समझता हूँ कि कई ग़लतफ़हमियां लोग फैलाने की कोशिश करते हैं, जैसे कोई व्यापार या उद्योग जगत के लोगों के बारे में जैसे कोई हम सब गलत काम करना चाहते हैं या हम सब गलत लोग हैं| मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, रमन सिंह जी हों, अरुण जेटली जी हों, अमित शाह जी हमारे अध्यक्ष हों पूरी आपकी चुनी हुई सरकार शत-प्रतिशत मानती है कि भारत का उद्योगपति, भारत का उद्यमी, भारत के व्यापारी और वास्तव में देखे तो भारत का हर व्यक्ति 125 करोड़ जनता ईमानदार है, ईमानदार व्यवस्था चाहती है और ईमानदारी के साथ जुड़ना चाहती है|

ऐसे तो आप हर वर्ग के बारे में कुछ उदाहरण ढूंढ सकते हैं जहां गलत काम होता है| राजनीति में क्या कम गलत काम हुए हैं, अधिकारियों में क्या कम गलत काम हुए हैं, व्यापारियों में भी कुछ गलत लोग आ जाते हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जी ने 4 वर्ष लगातार यह प्रयास किया कि देश की सोच बदली जाए| The mindset of the nation has to change… कैसे देश में मौका मिले कि ईमानदार व्यवस्थाओँ को लोग अपना सकें और ईमानदार व्यवस्था से जुड़कर अपना व्यापार equal opportunity के साथ सबको करने का मौका मिले|

मैं कई बार यह उदाहरण देता हूँ खासतौर पर जीएसटी के संबंध में जैसा अमर भाई ने बताया कि लगभग तय सा था कि जीएसटी इस देश में आ ही नहीं सकती है| आखिर 29 अलग-अलग राज्य सरकारें, 7 यूनियन टेरिटरी, केंद्र सरकार सबको अपने-अपने जो पावर्स थे वह एक काउंसिल, जीएसटी काउंसिल को छोड़ने पड़े| राज्यों ने भी अपने पावर छोड़े पर केंद्र सरकार ने सबसे ज्यादा अपने पावर छोड़े| सर्विस टेक्स हो, एक्साइज हो, अलग-अलग टाइप के सेस हों| आखिर 40 टैक्स और सेसिज़ को – 17 टैक्स 23 सेसिज़ को मिलाकर एक जीएसटी बना, एक देश में एक टैक्स लगना चाहिए|

आसान काम नहीं था, जब यह काम शुरू किया 2014 में भाजपा की तो सिर्फ, एनडीए की सिर्फ 6 सरकारें थी, only six governments जिसमें दो मित्र दलों की थी, चार हमारी थी| तो 29 में सिर्फ 6 सरकारें हमारी, 23 सरकारें अलग-अलग दलों की| अच्छा, दलों की सोच भी देखिए कितनी अलग-अलग थी, कुछ कम्युनिस्ट की सरकारें थी, आम आदमी पार्टी तक की सरकार एक है देश में, उनसे भी निपटना पड़ेगा| तृणमूल कांग्रेस आपके नज़दीक ही है सोचो मेरी बहन वहां से जो बोलती है उसको भी सम्मिलित करके जीएसटी में आपको लागू करना है| सबको साथ में लेकर तेलुगू देशम है, टीआरएस है – तेलंगाना राष्ट्रीय समिति, अन्ना डीएमके| अलग-अलग देश में अलग-अलग पार्टियों, उसमें भी कई कोएलिशन पार्टीज की सरकारें थी तो लगभग देश की हर विचारधारा की कांग्रेस की भी कुछ सरकारें हैं ना?

तो अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टीज़ को लेते हुए, साथ लेते हुए, जीएसटी को बनाना, उसका कानून बनाना, उसके प्रोसीजर बनाना, पॉलिसी बनाना, 1200 से अधिक आइटम्स के रेट्स बनाना, और सबको विश्वास में लेना कि इससे किसी राज्य का, किसी व्यक्ति का नुकसान नहीं होने देंगे.. It was a herculean task… और जैसे अमर ने कहा मैं भी वास्तव में उसी प्रकार से सोचता था कि भारत में जीएसटी लाना असंभव है|

पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का जो निर्णायक नेतृत्व है, अरुण जेटली जी ने जो क्षमता दिखाई और जो शांत स्वभाव से हर जीएसटी काउंसिल की मीटिंग में लोगों को साथ चलाकर, लेकर, बात को आगे बढ़ाते गए हर मीटिंग में इसके फलस्वरूप आज इतने कम समय में, मात्र एक वर्ष हुआ है, एक वर्ष कुछ लंबा समय नहीं होता है| विश्व में पहली बार इतने बड़े देश ने साहस किया है जीएसटी जैसा कानून लाने का और कोई पैरलल नहीं है अमेरिका, चीन में करने की हिम्मत नहीं हुई है| छोटे-छोटे कुछ देशों में है, कनाडा में है, फ्रांस में है, कनाडा की तो पूरी पॉपुलेशन शायद महाराष्ट्र जितनी भी नहीं होगी उससे भी कम होगी|

कुछ छोटे देशों में लागू हो पाया और वह भी बड़ी कठिनाइयों के साथ| कुछ देशों ने लागू किया, फिर वापिस ले लिया| इतने बड़े देश जिसमें इतनी सारी फेडरल स्ट्रक्चर में काम करने का, तकलीफों के बावजूद भारत पहला देश है और मैं आप सबको बधाई दूँगा और वास्तव में एक बार ताली आप सबके लिए होनी चाहिए जिन्होंने इसको एक वर्ष में सफल बनाया| बड़ी फीकी तालियां बज रही हैं, अपने आप को भी नहीं प्रोत्साहन करना चाहते हैं|

यह तो आपका ही है| आपने सफल बनाया है, नहीं तो एक वर्ष में सफल बनाना कोई अधिकारी और हमारे बस की बात नहीं थी लेकिन सरकार संवेदना रखती थी, समय-समय पर आपके साथ चर्चा करती थी, जहां-जहां जरूरत पड़ी उसमें सुधार लाया गया, लोगों ने रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म में तकलीफें पाई, उसको रोक दिया गया| कंपोजीशन स्कीम की सीमा एक करोड़ है इस सेशन में, हम बढ़ाकर उसको डेढ़ करोड़ कर देंगे| कंपोजीशन स्कीम डेढ़ करोड़ तक हो जाएगी|

अभी तक जो-जो चीजें सामने आई उसमें 328 आइटम पर जीएसटी के रेट्स कम किए गए हैं, 328 आइटम्स, 1200 में से आप सोचिए एक-चौथाई आइटम रेट भी कम किए गए जबकि ओरिजिनल रेट कोई ज्यादा नहीं थी ओरिजिनल रेट कैसे बने थे? एक फिटमेंट कमेटी जिसमें पूरे 29 राज्य अपने-अपने पक्ष और अपना-अपना डेटा रखते थे और देश में वेटेड एवरेज कितना टैक्स लगता है एक-एक वस्तु पर वह लेकर वह टैक्स की सीमा बनायी गयी|

ऐसा नहीं है कि किसी के ऊपर बहुत अधिक भोज थोप दिया गया हो| थोड़ा बहुत फिटमेंट में एक-दो परसेंट आगे पीछे हो सकता है उसको भी सुधार कर दिया 328 आइटम के रेट कम करके और कोई समय ख़त्म नहीं हुआ है, आगे चलकर यह सिलसिला और करेंगे| जितना ज़्यादा टैक्स कंप्लायंस होगा, जितना ज़्यादा और लोग जुड़ेंगे जीएसटी से| अब ई-वे बिल नयी-नयी व्यवस्था है अभी शुरू हुई है एक-दो महीने पहले लगभग, इसका भी लाभ मिलेगा जो थोड़े बहुत गलत काम होते थे और गलत काम की जानकारी मुझे आपको देने की ज़रूरत नहीं है, आप मुझे ज़्यादा दे सकते हैं|

आपको ध्यान होगा जब बिलासपुर से या रायपुर से गाड़ी निकलती थी मुंबई के लिए अगर मुंबई पहुंच जाये बिना कोई चेकपोस्ट पर रिकॉर्ड हुए तो क्या फ़ोन जाता था मुंबई? और खुलासा करने की ज़रूरत नहीं है ना? नहीं है? मतलब यह कोई बिलासपुर या मुंबई का फेनोमिना नहीं था कई लोग ऐसे इस प्रकार के भी काम करते थे उसके लिए ई-वे बिल लाया गया|

तो मैं समझता हूँ बड़े सोच समझकर एक सिस्टम आप सबके प्रतिनिधियों ने ही तय किया है और यह सिस्टम एक वर्ष में सफलतापूर्वक चला है| रेवेन्यू पर्याप्त मात्रा में दे रहा है मेरा अनुमान है इस साल रेवेन्यू की कोई शॉटेज नहीं होगी अगर इसी श्रेणी में सब लोग इस व्यवस्था के साथ जुड़ते हैं अपना-अपना टैक्स का भुगतान करते हैं| और जैसे-जैसे ज़्यादा लोग टैक्स में अपना पूरा सेल टैक्स भरते हैं वैसे-वैसे सरकार की भी हिम्मत जुटेगी कि रेट्स को और कम किया जाए, और सरल किया जाए मेकेनिज़्म को|

अमर भाई एक चीज़ बताना भूल गए कि जीएसटी लागू करने के पीछे इस सफलता के पीछे एक बहुत बड़ी महत्वपूर्ण बात क्या थी| मुझे याद है 2014 के पहले जब भी जीएसटी की बात होती थी तो राज्य सरकारें कहती थी हमको केंद्र पर भरोसा नहीं है| हमें विश्वास नहीं है केंद्र सरकार हमारी चिंता करेगी और हमारे हितों को ध्यान रखेगी और वह ऐसे ही नहीं था उसके पीछे एक मूल कारण था|

आपमें से कई व्यापारी उद्योग के मेरे भाईयों-बहनों को याद होगा यह सीएसटी होता था – सेंट्रल सेल टैक्स, जो चार प्रतिशत पहले लगता था| पिछली सरकार ने, कांग्रेस की सरकार ने उसको चार प्रतिशत से घटाकर तीन, फिर घटाकर दो करने का निर्णय लिया और कहा कि तीन वर्ष के लिए यह जो सीएसटी हम कम कर रहे हैं हम इसका कॉम्पन्सेशन हर एक राज्य को देंगे और तीन वर्ष के भीतर ही हम जीएसटी को लागू कर देंगे| तो जो कॉन्ट्रैक्ट समझते हैं या जो एग्रीमेंट समझते हैं दो अंश थे इस कॉन्ट्रैक्ट के, एक – तीन वर्ष तक हम आपको कॉम्पन्सेशन देंगे सीएसटी घटने का जो लॉस ऑफ़ रेवेन्यू है और तीन वर्ष के अंदर ही जीएसटी आ जाएगा| कानूनी भाषा में इसको कंडीशन्स प्रिसिडेंट बोलते हैं| दो CPs थे – दो कंडीशन्स प्रिसिडेंट थे|

सीएसटी कम हुआ, चार से तीन, तीन से दो, उसका कॉम्पन्सेशन तीन वर्ष तक दिया गया लेकिन जीएसटी लागू नहीं किया तो राज्य सरकारों ने कहा भाई जीएसटी तो आई नहीं| आपने जो प्रॉमिस किया था उसका आधा अंश हो गया आधा तो किया नहीं तो आप कॉम्पन्सेशन आगे भी चालू रखिए, हमें तो नुकसान हो रहा है सीएसटी कम होने का| केंद्र सरकार ने कहा नहीं, कांग्रेस की सरकार ने कह दिया तीन वर्ष हो गए अब कोई कॉम्पन्सेशन नहीं, अब तुम जानो तुम्हारा काम जाने|

इन्होंने कहा जीएसटी तो लागू नहीं हुई हमारे लिए तो नुकसान हो गया| बोला वह तुम भुगतो हमारे को कोई लेना देना नहीं| अब ऐसे में कौन राज्य सरकार विश्वास कर सकती है केंद्र सरकार के ऊपर कि वास्तव में कल जीएसटी आ जाएगी| It was an unknown animal. किसी को पता नहीं था जीएसटी आने के बाद टैक्स में क्या घाटा होगा क्या फायदा होगा नुकसान होगा| सबको चिंता थी, कोई राज्य कांग्रेस के राज्य भी तैयार नहीं थे जीएसटी लाने के लिए| आखिर अधिकांश राज्य तो उन्हीं के थे उस समय, वह भी तैयार नहीं थे जीएसटी के लिए क्योंकि उनको भी विश्वास नहीं था खुद की कांग्रेस की केंद्र सरकार के ऊपर|

जब मोदी जी आए और मैंने कई बार यह बात रखी है कि मोदी जी का जो काम करने का ढंग है वह राजनीति से उठकर सोचते हैं| उन्होंने कहा इसकी रूट कॉज़ एनैलिसिज़ की जाए, इसको जड़ से इसका समाधान निकाला जाए कि इसकी समस्या क्या थी, क्यों जीएसटी लागू नहीं हो पाया? और समस्या में सबसे पहली समस्या निकली विश्वास की कमी| राज्य सरकार जब तक केंद्र पर विश्वास नहीं कर पाएंगी तब तक कैसे इनको सहमति की जा सकती है तो मोदी जी ने यह निर्णय लिया कि जो सीएसटी कॉम्पन्सेशन कांग्रेस के समय का था 2014 के पहले का था हम पूर्ण रूप से उसको राज्य सरकारों को देंगे और 37000 करोड़ रुपये का सीएसटी का पुराना कॉम्पन्सेशन का भुगतान करके देश की हर राज्य सरकार का विश्वास जीता मोदी जी ने|

यह नहीं कहा कि यह तो पुरानी सरकार का है मैं क्यों भरूँ| उन्होंने कहा नहीं मैं भरूंगा, सरकार आएगी, जाएगी, सरकार के दिए हुए वादे की एक कीमत होती है और वादा पूरा करना केंद्र सरकार का धर्म है| उन्होंने पूरा वह जब कॉम्पन्सेशन दिया सीएसटी लॉस को तब राज्य सरकारों में उत्साह बना, विश्वास आया केंद्र सरकार पर और आज आप सबके लिए एक सरल टैक्स जिसको हम और सरल बनाने की अलग-अलग तरीके से चेष्ठा कर रहे हैं, कोशिश कर रहे हैं वह आज इस देश को जोड़ रहा है| जो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देश को राजनीतिक रूप से जोड़ा था वास्तव में आज आर्थिक जगत को जोड़ने का काम प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया है|

और इसका सबसे बड़ा लाभ अगर जीएसटी का किसी को होगा तो भारत के उपभोक्ताओं को होगा और भारत के व्यापारियों और उद्यमियों को होगा, उद्योग जगत को होगा| और यह मैं क्यों कहता हूँ| अगर उपभोक्ता की बात ले लें तो पहले उपभोक्ता को पता नहीं था कि मैं यह पानी की बोतल ले रहा हूँ तो इसमें कितना-कितना टैक्स है| अगर 10 रुपये की बोतल खरीदी, मुझे नहीं मालूम था कि इसके अंदर कितने रुपये तो टैक्स हैं अलग-अलग प्रकार के| शायद फैक्ट्री से बनकर आयी होगी, तब कोई एक टैक्स लगा होगा| रास्ते में ट्रांसपोर्ट हुआ होगा तब कोई दूसरा टैक्स लगा होगा|

मुझे पता नहीं छत्तीसगढ़ में एंट्री टैक्स या ओक्ट्रोई था कि नहीं, था! मुंबई में तो ओक्ट्रोई ने हैरान कर दिया था हम सबको| It was one of the worst taxes. ज़्यादा भ्रष्टाचार और कम टैक्स और असहूलियत तो इतनी ज़्यादा थी, परेशानी कि ट्रांसपोर्ट वाले दुखी, उद्योग वाले दुखी, व्यापारी दुखी| ऐसे चेक पोस्टस में क्या होता था हम सब जानते हैं| रात को दो-दो, तीन-तीन बजे फ़ोन आता था साहब माल पकड़ लिया है इतने पैसे मांग रहे हैं या यह वो फलाना ढिमकाना जो भी होता था, इस सबसे राहत पहुंची|

और जो consumer है उसको आज पता है कि जो भी वस्तु मैं खरीदता हूँ उसमें कितना टैक्स है कोई छुपे हुए टैक्सेज नहीं रहे, शीशा दिखाया गया हर एक consumer को, उपभोक्ता को आज पता है कि अगर मैं कोई चीज़ खरीदता हूँ उसमें टैक्स कितना जाता हैं राज्य सरकार को, कितना जाता है केंद्र सरकार को| तो एक प्रकार से शीशा दिखाया कि आप इतनी कॉन्ट्रिब्यूशन दे रहे हो इस वस्तु को खरीदते हुए केंद्र और राज्य सरकार को|

और मैं समझता हूँ यह ज़रूरी था यह हिडन टैक्सेज से हमें बचने की आवश्यकता थी और उसका जो कैस्केडिंग इफ़ेक्ट था, मल्टीप्ल टैक्सेज – टैक्स के ऊपर टैक्स जो लगता था आज उसको बड़े पैमाने पर ख़त्म करने का जीएसटी ने काम किया है| इसी तरीके से व्यापारी के लिए देखिए मैं आपके एग्जाम्पल नहीं लूँगा कोई गलतफेहमी न हो जाए| समझो हम यह दस लोग, यहाँ पर लोहे का व्यापार बहुत है छत्तीसगढ़ में तो लोहे के कारोबार में हम दस लोग लगे हुए हैं| दस में से कोई दो व्यक्ति या एक व्यक्ति टैक्स पूरी तरीके से नहीं भरता है, समझो एक व्यक्ति नहीं भरता है, एक व्यापारी नहीं भरता है| स्वाभाविक है उसका सामान सस्ता हो जाता है, टैक्स की चोरी करके वह सामान सस्ता करके मार्किट में जो खरीदार है वह तो वहां ही पहुचेंगा भाई उसको क्या पता कि कौन टैक्स दे रहा है या नहीं दे रहा है| तो कहेगा वहाँ तो सस्ता माल मिलता है, मैं तो उसी दुकान के पास जाऊँगा| अब बाकी नौ क्या करेंगे? बाकी नौ या तो खुद भी टैक्स की चोरी करें तो कम्पटीशन में खड़े हो सकेंगे या अपना कारोबार बंद करके गाँव चले जाएं या और कोई धंधा ढूँढे, उस धंधे में जायेंगे उसमें भी यही समस्या आएगी|

तो थोड़े लोगों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था भी नहीं मज़बूत हो पा रही थी और व्यापारी जगत ईमानदार होने के बावजूद अपने ईमानदार कारोबार को नहीं कर पा रहा था| अब जीएसटी आने के बाद हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी बन गयी है कि हम पर्दाफ़ाश करें अगर कोई एक व्यक्ति हमारे व्यापार को, हमारे उद्योग को ख़राब कर रहा है| अगर हम सब यह ज़िम्मेदारी ले लें कि हम नौ बिगड़ने के बदले हम उस एक का पर्दाफ़ाश करेंगे, और आप लोग नहीं साहस करोगे तो हमारे जीएसटी नेटवर्क में अब डेटा माइनिंग के माध्यम से भी काफी कुछ जानकारी आ जाएगी|

जैसे मुंबई में एक डोसा वाला था घाटकोपर स्टेशन के बाहर, इनकम टैक्स के अधिकारियों ने एक महीने भर वहाँ पर खड़े होकर कैलकुलेट किया कितने डोसे बेचता है वह| डोसा तो हम सब खाते हैं, आजकल तो दक्षिण भारत नहीं पूरे भारत का बन गया है स्टेपल फ़ूड| मैं तो हर रविवार जाकर इडली वड़ा, डोसा खाता हूँ| उस डोसे वाले की सेल्स टर्नओवर जब उन्होंने अनुमान लगाया एक महीना ऑब्ज़र्व करके – दो करोड़ रुपये….Two crores.. ठेले पर बेचता था स्टेशन के बाहर|

भारत में इतनी क्षमता है इतने अलग-अलग प्रकार के काम करते हैं लोग| अब वह अलग बात है कि कुछ हमारे विपक्षी दल के साथी सोचते हैं कि सिर्फ सरकारी नौकरी ही शान की नौकरी होती है| उनको लगता है कि जो लोग अपने entrepreneurship करते हैं, जो अपना खुद का व्यापार करते हैं, खुद का काम करते हैं उनको तो वह इज़्ज़तदार काम दीखता नहीं है – दुर्भाग्य की बात है| पर मैं समझता हूँ कि हर एक व्यक्ति अपने-आने तरीके से देश की उन्नति के लिए योगदान दे रहा है| पर अगर हम सबको मौका मिले कि हम सभी ईमानदार व्यवस्था से जुड़ सकें तो कम्पटीशन इक्वल होगी, कम्पटीशन हमारी गुणवत्ता पर होगी, हमारे सामान की गुणवत्ता कितनी है, हमारा कस्टमर सर्विस कितना अच्छा है|

तो क्या कम्पटीशन टैक्स चोरी करने की क्षमता पर होना चाहिए या कम्पटीशन होना चाहिए हमारी क्वालिटी ऑफ़ गुड पर, क्वालिटी ऑफ़ सर्विस पर? और मैं समझता हूँ इस रूम में जितने लोग बैठे हैं हम सब चाहेंगे कि भाई दिन में व्यापार करें, उद्योग चलाएँ, शाम को मौज से खाना-पीना करें| अब पीने की बात मैं नहीं सुझाव दे रहा हूँ पर वह आपकी मर्ज़ी है| हम लोग तो लस्सी और चाय से ही खुश हो जाते हैं बाकी आपको जो करना हो| पार्टी करे हमारे जो युवा बैठे हैं यहाँ पर, रात को पार्टी में जाएँ, पार्टी करें, चैन की नींद सोए और सुबह उठकर जब अपनी दुकान जाए, अपनी फैक्ट्री पर जाए तो हमको यह टेंशन नहीं हो कि फ़ैक्टरी पहुंचते हुए बाहर कोई सफ़ेद अम्बैसेडर खड़ी होगी और उसपर बड़ा गोल बोर्ड होगा पीछे| क्या इससे सबको छुटकारा चाहिए था या नहीं?

और यह जीएसटी में क्षमता है आपको इस सब से पूरी तरीके से छुटकारा देने का और वास्तव में यह तभी संभव है जब हम सब मिलकर तय कर लें कि हमको अब इस ईमानदार व्यवस्था के साथ पुर्णतः जुड़ना है और अगर कोई गलत करता है उसको हमने कंप्लेंट करनी है, उसका पर्दाफाश करना है और किसी प्रकार के दबाव में नहीं आना है| अगर मैं भी कुछ गलत काम करूँ तो मैं आपसे अनुरोध करूँगा आप सीधा प्रधानमंत्री को पत्र लिखें|

और वास्तव में मेरा अनुभव है रमन सिंह की, जहाँ-जहाँ भी मैं गया हूँ| मुझे याद है जब सोने के ऊपर हमने एक्साइज लगाया था, सोने-चाँदी पर तब बहुत प्रतिक्रिया हुई थी, बहुत ज़्यादा उत्तेजना थी|  तब मैं देश भर में कई जगह गया उस व्यापार से जुड़े हुए लोगों से मिलने| जब जीएसटी लागू हुआ तब भी मुझे देश में कई जगह भ्रमण करने का मौका मिला| मेरा लगभग जो रीडिंग है, जो अनुमान है मैं आपसे शेयर करूँगा| हमारी एज ग्रुप के जो लोग हैं जिन्होंने 25-30 साल एक प्रकार के व्यापार किये हैं, दो-दो बहीखाते हैं – एक कच्चा है एक पक्का है, यह बिल्टी का काम वाम होते रहा है हमको थोड़ा समय लगता है इसको ग्रहण करने को, इसको स्वीकार करने में| लेकिन जितने युवा-युवती रहते थे चाहे वह सुनार का काम करते हैं, गोल्ड ज्वेलरी वगैरा उनके बच्चे रहते थे या जो युवा-युवती हमारे हम सबके बच्चे आते थे उनमें उत्साह रहता था| वह कहते थे हमको यह सब लफड़ा नहीं करना, हमको यह सब गलत काम नहीं करना है हमको तो चैन से जीवन बिताना है, ईमानदार उद्योग से जुड़ना है|

और वास्तव में हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि दस साल-बीस साल बाद जब अगली पीढ़ी पीछे देखे और हमारे कार्यकाल को देखे तो उसको ऐसा नहीं लगना चाहिए कि क्या बाप-दादा छोड़कर गए हैं| उनको हम ऐसी व्यवस्था छोड़कर जाएँ जो पूर्ण रूप से ईमानदार हो, सरल हो काम करने में लोगों को अच्छा लगे, मज़ा आये और जो अफसरशाही बहुत बढ़ गयी है उसको कैसे कम करके सब कुछ डिजिटालाइज़ हो, सब कुछ ऑटोमेट हो और कम से कम इंटरफेरेंस हमारे जीवन में, हमारे व्यापार में सरकार की हो या सरकार की व्यवस्था की हो|

मैंने अभी-अभी एक निर्णय लिया इनकम टैक्स,  कस्टम, एक्साइज, सर्विस टैक्स इसके हज़ारों केस देश भर में फाइल हुए हैं, शायद लाखों होंगे सरकार द्वारा| उसको जब स्टडी किया तो ख्याल आया कि इसकी सीमा बहुत छोटी है| अब सुप्रीम कोर्ट में सरकार अपील फाइल कर रही है, ट्रिब्यूनल में हार गयी, नहीं पहले तो अप्पेलेन्ट कमिशनर पर हारी, फिर ट्रिब्यूनल में हारी, फिर हाई कोर्ट में हारी, फिर भी 25-30-40 लाख रुपये के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी कर रही है|

हमने निर्णय लिया कि अब सुप्रीम कोर्ट जाना है तो 25 लाख नहीं, कम से कम एक करोड़ रुपये होगा मामला तभी आप सुप्रीम कोर्ट जा सकोगे| हाई कोर्ट में जाना है कम से कम 50 लाख का मामला हो| ट्रिब्यूनल में जाना है कम से कम 20 लाख का मामला हो और आपको जानकर ख़ुशी होगी सुप्रीम कोर्ट देख लो तो इनकम टैक्स के 54% केसेस अब मैं विड्रा करने जा रहा हूँ, खुद सरकार विड्रा करेगी| ओवरआल इनकम टैक्स के जितने केस हैं – ट्रिब्यूनल में, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट – 41% केसेस सरकार चिट्ठी लिखकर उसको विड्रा करेगी और लगभग ऐसे हज़ारो केस देश भर में हैं – ट्रिब्यूनल में, हाई कोर्ट में, सुप्रीम कोर्ट में और यह सब किसके हैं इतने छोटे केसेस? छोटे लघु उद्योग के हैं, मध्यम वर्गीय उद्योग के हैं| यह कोई बड़े लोगों के केस नहीं हैं जो 25 लाख, 50 लाख के|

तो क्या छोटे लोगों को परेशानी करनी चाहिए और आज कल तो, मतलब ऐसा नहीं हो जाए मैं कुछ गलत बोल दूँ और वकील हमें वोट न दें आजकल तो खर्चा इतना हो जाता है कोर्ट कचहरी के मामले में, तो शायद जितना टैक्स बचाने के लिए हम निकले थे उससे ज़्यादा तो कोर्ट कचहरी में खर्च हो जाएगा| हाँ, कोई substantial point of law हो तो शायद हम नहीं विड्रा कर पाएँगे क्यूंकि वैसे केस फिर हज़ारों और केस को इम्पैक्ट करते हैं| Except those where there is a substantial legal provision.

और अगर यह सफल हुआ तो हम इसको और आगे बढ़ाएंगे पर मेरी तो कोशिश है कि आप सबको इतना सरल सिस्टम हो टैक्सेशन का कि कोर्ट कचहरी तक जाना ही ना पड़े| तो मैंने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है की चाहे वह इनकम टैक्स हो, चाहे कंपनी लॉ हो, जीएसटी हो, पुराना एक्साइज सर्विस टैक्स हो, सब स्टडी करो और स्टडी करके जितनी discretionary provisions हैं इसके बारे में चिंता करते हैं, इसको हटाने की कोशिश करते हैं| जब discretion आपका भी नहीं रहेगा, अधिकारी का भी नहीं रहेगा, तो झगडे भी कम हो जायेंगे, विवाद भी कम हो जाएंगे|

आपको एक उदाहरण देता हूँ 2013 में, रमन सिंह जी यह सुनने लायक है| 2013 में कांग्रेस ने एक संशोदन किया और नया कंपनीज़ एक्ट लेके आये| आप सबमें से जो कंपनियां चलाते हैं, आप जानते होंगे| 2013 में एक नया कंपनीज़ एक्ट आया, मुझे अभी भी याद है मैं पार्लियामेंट में था, मैंने तभी भी कहा मेरे मित्रों को कांग्रेस के कि यह हर प्रावधान में आपने कोर्ट कचहरी को क्यों रखा है, prosecution का प्रावधान क्यों रखा है|  आपको जानकर हैरानी होगी आज जो-जो आप लोग कंपनीज़ चलाते हो, पता नहीं आपने गौर किया है या नहीं| 118 provisions हैं कंपनीज़ एक्ट में, 118 जिसमें prosecution की प्रावधान है – 118 provisions हैं|

और जब मैंने अधिकारियों को कहा मेरे समक्ष रखो, तो पहली मीटिंग में 40 ऐसे निकले जिसका कोई prosecution की आवश्यकता नहीं है| भाई किसी के घर में दुर्घटना हो गयी, समय पर annual return नहीं भर पाया 20 दिन लेट भर दिया तो ले लो कुछ टैक्स| टैक्स पर निर्धारित कर दो हर दिन का कितना टैक्स होगा, कंप्यूटर तय कर लेगा कितना टैक्स होगा| क्यों discretion रखना अधिकारी का या किसी का भी| क्यों किसी के आगे पीछे हमें घूमना पड़े?

तो अभी मैंने एक छोटे ग्रुप को बिठाया है और कोशिश करूँगा जल्द से जल्द उनकी रिपोर्ट मिले और यह 118 में से जितने बेबुनियाद जगहों पर prosecution है इसको हटाया जाए जहाँ तक फ्रॉड है, किसी ने कोई बेईमानी की है सिर्फ उसी पर prosecution हो| पर इस सब पर आपका आशीर्वाद चाहिए आपका समर्थन चाहिए क्योंकि अगर हम सब कोई गलत काम करते हैं तो फिर यह सब सरलता लाना, यह सब बदलाव लाने में हमारे भी हाथ बंध जाते हैं|

तो मेरा तो आप सब से अनुरोध होगा कि इस काम में अगर हम मिलकर करें और जैसा आज संवाद हुआ, बहुत अच्छा संवाद हुआ| मैं आपसे शेयर करना चाहूँगा| वैसे तो मैं अलग-अलग जगह पर जा रहा हूँ पर सिर्फ कल और आज का मैं डिटेल्स दो-तीन दिन की डिटेल्स आपसे शेयर करूँगा|

चार-पांच दिन पहले भोपाल गया, 37 associations ने मेरे समक्ष अपने-अपने विषय रखे, 61 विषय रखे| जयपुर में 33 associations ने 104 विषय रखे, मुंबई में आज सुबह 26 associations ने लगभग 65 विषय रखे| आज भी मुझे लगता है 30-32 associations ने अपनी-अपनी बात रखी 57 विषय रखे, लेकिन अगर मैं इन सबको जोड़ लूँ, तो एक भी ऐसा विषय नहीं है, एक भी और यही हुआ कोलकाता में, अलग-अलग जगह जहाँ-जहाँ मैं जा रहा हूँ, एक भी ऐसा विषय नहीं निकला है जो ऐसा कमर तोड़ हो जिसकी वजह से पूरा व्यापार ही बंद हो गया हो या पूरा कोई अर्थव्यवस्था डगमगा गयी हो|

ज़रूर विषय है – सरलता है, किसी की टैक्स रेट्स कम करने की इच्छा है, classification issues हैं, छोटे-छोटे issues हैं| और मैंने हर एक को सुनकर, हर एक को लिखा है जो रमन सिंह जी कह रहे थे| यह सब डायरी में एक-एक विषय है यह जयपुर के विषय हैं, पुरानी डायरी ख़त्म हो गयी थी, पुरानी भोपाल वगैरह की| फिर यह मुंबई के शुरू हुए काले पेन से छत्तीसगढ़ भी काले पेन से है सर, मैं मुंबई का रहने वाला हूँ| मेरा झगड़ा मत लगवा दो, मुझे घर मुंबई वापिस भी जाना होता है|

यह छत्तीसगढ़ के सब विषय हैं और वास्तव में आनंद आया कि लोगों ने दिल खोलकर बात की, किधर हमने जल्दबाज़ी नहीं की| कल जयपुर में तो तीन घंटे था व्यापारियों के साथ| आज भी लगभग तीन घंटे हो जायेंगे जब तक आप मुझे रवाना करोगे यहाँ से, तीन तो हो ही गए होंगे आलरेडी| तो मतलब सिग्नल भी है कि मुझे अभी ख़त्म करना चाहिए|

पर इतना अच्छा लगता है आप सबसे मिलकर, इतनी नयी-नयी चीज़ें आती हैं, इतने नये-नये सुझाव आते हैं और अच्छे सुझाव क्योंकि आपको तो दिनो दिन यह काम करना है तो इन सुझाओं का मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ पूरी तरीके से इसकी गहराई में जायेंगे| वैसे तो 21 तारीख को भी एक जीएसटी काउंसिल है पर समय कम है क्योंकि बहुत सारी चीज़ें डिस्कस करनी पड़ती हैं, फिटमेंट कमेटी, लॉ कमेटी| पर अगर कुछ इस में से समाधान 21 को हो सके तो अमर जी इसको उठाएं वहाँ पर, इसमें भी कोशिश करेंगे पर आगे चलकर इन सब विषयों को गहराई से देखकर समाधान करने के लिए मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ और पूरी तरीके से इसकी सफलता पीछे जो आपका सहयोग, समर्थन, आशीर्वाद रहा है उसके लिए आपका धन्यवाद करते हुए मैं आज आपसे विदा लेता हूँ|

बहुत-बहुत धन्यवाद|

 

 

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