Panelist: ऐतिहासिक होगा, नहीं होगा इसे लेकर ही बहस छिड़ गई है पहले तो। हमने आपसे कहा कि उस घंटे के साथ हम शुरुआत करेंगे तो हम उस घंटे के साथ ही आपसे जानना चाहेंगे जीएसटी ऐतिहासिक, पर ऐतिहासिक क्यों?
Answer: निसंकोच ऐतिहासिक। मैं समझता हूं कभी भी इस देश ने कल्पना नहीं की थी 17 टैक्स, 33 सेसेस मिलकर सिर्फ एक टैक्स। कभी इस देश ने कल्पना नहीं की थी कि देश के 29 राज्य और केंद्र सरकार सर्वसम्मति से इतना बड़ा परिवर्तन, एक साथ मिलकर Unanimous Decision ले के 17 मीटिंग्स हो चुकी थीं अभी तक । 17 मीटिंग्स में हर एक निर्णय पूर्ण रूप से सर्वसम्मति से लिया गया। ऐसा हमने तो कभी मेरे खयाल से इस देश में कभी देखा ही नहीं 70 वर्षों की राजनीति में। जो जीएसटी का नेटवर्क बना है, जो पूरी टेक्नॉलॉजी बैकबोन है, उसमें जिस प्रकार से उन्होंने सरल सिस्टम बनाया है, जिसमें कोई भी सामान्य से सामान्य आदमी को भी सरलता से अपना डेटा बनाना, रिकॉर्ड रखना, टैक्स भरने की व्यवस्था की है, मैं कहूँ मैं तो खुद चार्टर्ड एकाउंटेंट होने के बावजूद मेरी कल्पना के एकदम बाहर था कि इतना सरल सिस्टम और ऐसा सिस्टम जिसमें ईमानदारी के अलावा कोई रास्ता ही नहीं है। आपको ईमानदार व्यवस्था से ही जुड़ना पड़ेगा।
इसमें इतने सारे पहलू हैं जिससे मैं समझता हूं, आगे चलकर टैक्सेज भी कम होंगे। जब टैक्स कलेक्शन Revenue-buoyancy आएगी तो टैक्स के रेट भी कम हो सकते हैं, tax revenue भी बढ़ेगा। जब सभी लोगों को ईमानदार टैक्स व्यवस्था में हम ला पाएंगे तो जो व्यापार होगा, जो कॉम्पीटीशन होगा वो इस आधार पर नहीं होगा कि आप टैक्स की कितनी चोरी कर सकते हो, वो आपके सामान की गुणवत्ता, आपकी सेवा की प्रणाली इसपर व्यस्था में कॉम्पीटीशन आगे की व्यवस्था में मैं देख रहा हूं। और एक देश जिसका एक प्रकार से सोच ऐसी सी हो गई थी कि यहां बिना चोरी करे, बिना टैक्स को अवॉइड करे व्यापार नहीं हो सकता है, एक देश जहाँ पर लोग परेशान – मैं स्वयं एक उद्योग चलाता था, उद्योग में हमारे सेल्स टैक्स, उस ज़माने में सेल्स टैक्स था फिर वैट हुआ उसके रिकॉर्ड्स अलग बनते थे, एक्साइज ड्यूटी के रिकॉर्ड्स अलग बनते थे, सर्विस टैक्स के रिकॉर्ड्स अलग बनते थे | मैं नवी मुम्बई में था तो वहां पर तो एक एंट्री टैक्स भी लगता था। वैसे अन्य अन्य रिकॉर्ड्स अलग अलग होने के कारण इतनी परेशानी होती थी उद्योग चलाने में, व्यापार करने में, इन सबसे व्यापारी को, उद्योगपति को, उद्यमी को, एक परमानेंट रिलीफ देने का यह एक ऐताहिसक निर्णय मैं पूरे जीएसटी काउंसिल – प्रधानमंत्री, केंद्र सरकार, वित्त मंत्री और सभी राज्यों की सरकारों को, उनके मुख्यमंत्री और वित्त मंत्रियों को बधाई दूंगा कि उन्होंने इतना एकजुट होकर, जो इस परिवर्तन में सबलोग सम्मिलित हुए हैं ये वास्तव में ऐतिहासिक है।
Panelist: लेकिन ऐसा क्या हो गया कि परिवर्तन में तो सब सम्मिलित रहे लेकिन आज आपके साथ उस कथित इतिहास का हिस्सा बनने के लिए कोई तैयार नहीं है?
Answer: नहीं, मुझे लगता है आज भी जीएसटी काउंसिल की मीटिंग हुई है। अभी अभी वित्त मंत्री आए होंगे, उन्होंने बताया होगा। तो मेरे खयाल से ऐसा कुछ नहीं है यह एक दुर्भाग्य से, on a few occasions politics overtakes economics.
Panelist: सांकेतिक विरोध है?
Answer: मुझे लगता है ये विरोध नहीं है, शायद कुछ गलतफहमियां और शायद पूरी पार्टी में भी नहीं होगी । कुछ एकाध, दो लोगों में कुछ गलतफहमियों के कारण वो लोग निर्णय ठीक से नहीं ले पा रहे हैं। पर वैसे तो पहले जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को आमंत्रण दिया गया तो उन्होंने तो बहुत खुशी जाहिर की थी और कहा था मैं जरूर आऊंगा। मुझे लगता है देवगौड़ा जी तो आ ही रहे हैं। कई दल के नेताओं ने कंफर्म किया है कि वे आने वाले हैं, कुछ दो चार दल के नेता नहीं आएंगे तो उससे कोई कार्यक्रम की गरिमा या कार्यक्रम की शोभा या जो एक पूरे देश में आज हर्ष और उल्लास से देश की नई आर्थिक आजादी का जश्न मनाया जा रहा है उसमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा । ज़रूर लोगों में यह संकेत जायेगा कि पता नहीं ये दोहरे मापदंड कैसे हैं कि भाई जीएसटी काउंसिल में तो सब सर्वसम्मति से फैसले हो रहे हैं।
छह-छह सरकारें तो कांग्रेस की हैं। हमारे तो, केंद्र सरकार का एक प्रतिनिधि है, छह प्रतिनिधि कांग्रेस की सरकारों के हैं । तो मैं समझता हूं ये देश हित में निर्णय लिया गया है। वो मुख्यमंत्री और उनके प्रतिनिधि भी समझते हैं ये देश हित में लिया गया है। और हम तो बड़े खुले दिल से इसमें सभी को सम्मिलित कर रहे हैं कि इसकी कोई हम राजनीतिकरण नहीं करना चाह रहे हैं। एक ऐतिहासक फैसला जो गरीब और सामान्य उपभोक्ताओं के लाभ के लिए किया जा रहा है – मल्टीपल टैक्सेस, कैस्केडिंग इफेक्ट ऑफ टैक्सेज से बचेंगे। उद्योग करने के लोग टैक्स डिपार्टमेंट के हैरेसमेंट छोडक़र उद्योग में समय ज्यादा दे पाएंगे। हर एक प्रकार से ये देश हित में है। दुर्भाग्य है कुछ लोग नहीं आ रहे हैं पर जैसे वैट में हुआ था शुरू में कुछ लोगों को लगता था कि ये होगा, वो होगा बाद में सभी ने स्वागत किया, सभी जुड़ गए। ऐसे ही ये भी ऐसी चीज है जिसमें राज्य सरकारें तो सब लगी हैं इस काम को करने में, कुछ नेता शायद अभी तक गलतफहमियों में हैं।
Panelist: थोड़ी सी दिक्कत क्या होती है पीयूष जी कि जैसे आपसे बातचीत कर रहे हैं तो लगता है कि सबकुछ अच्छा है, सबकुछ सुनहरा है और कल जब सोकर उठेंगे तो एक ऐसे दिन से मुलाक़ात होगी जिसकी कल्पना नहीं की थी किसी ने, और जब किसी विरोधी दल से बात करते हैं तो वह एक ऐसी तस्वीर सामने रखते हैं जिससे डर लगता है कि अरे कल से सब कुछ महंगा हो जाएगा? तो ये बीच की लकीर कहां से जा रही है?
Answer: देखिए, आप लॉजिकली सोचिए, अगर सब कुछ महंगा होने वाला होता और यही विरोधी दल के नेता भी उस जीएसटी काउंसिल में बैठे हैं और उन्होंने सर्वसम्मति से यह सब निर्णय लिया है तो क्या वह ये मैसेज दे रहे हैं कि उनकी जितनी राज्य सरकारें हैं और उनके प्रतिनिधि हैं वो बेवकूफ हैं या नासमझ हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा है ये क्या लॉजिकल उनका क्या थिंकिंग है । अच्छा महंगाई का कुछ विदेश के देशों में यह संकेत मिला कि वहां पर महंगाई शुरू में हुई उसके लिए भी इस जीएसटी काउंसिल ने और उसमें कांग्रेस के भी प्रतिनिधि हर निर्णय में शामिल हैं। ये एंटी-प्रोफिटेरींग के प्रावधान लगाए कि इनपुट क्रेडिट ईमानदारी से आगे पासऑन हो उपभोक्ताओं को । स्वाभाविक है कि जब मल्टीपल टैक्सेज हर स्टेट पर लगते थे पहले और उसका रिफंड पूरी तरीके से नहीं मिलता था, अब वो सब आपको पासथ्रू होगा, आपको इनपुट क्रेडिट मिलेगा तो बड़ा लॉजिकल और स्वाभाविक है कि दाम तो उल्टे कम होने चाहिए, बढऩे नहीं चाहिए।
Panelist: लेकिन क्या शुरुआत में एक आशंका है ऐसी?
Answer: अगर शुरुआत में ऐसी कुछ गलत खबरें आईं तो एक तो कंप्यूटर सिस्टम ऐसा बढ़िया बनाया हुआ है कि उसमें भी ट्रिगर्स होंगे जो बताएंगे कि अगर कोई चीज़ की महंगाई बढ़ रही है, अनाप-शनाप कोई गलत काम हो रहा है। आप मीडिया के हमारे भाई-बहन भी ज़रूर सतर्क रहेंगे हमारे ऊपर निगरानी रखेंगे, व्यस्था पर निगरानी रखेंगे। और मेरे खयाल से जब भी कोई इतना बड़ा परिवर्तन होता है तो उसमें थोड़ी बहुत तकलीफें शुरू में तो हम सब सहन करते हैं। मैं इसके बारे में कई बार एक उदाहरण से समझाता हूं लोगों को कि जब तैरना सीखना हो, तो हम कितना भी तट के ऊपर खड़े होकर बटरफ्लाई स्ट्रोक, फ्री स्ट्रोक, यह-वह कोई हमें सिखा दे, कितनी ट्रेनिंग ले ले, कितनी उसके लिए परफेक्ट अपना पोस्चर बना ले, सब कर ले, पर जब तक पानी में एक बार कूदेंगे नहीं तब तक तैरना नहीं सीख सकते हैं। और एक बार कूदने के बाद यह न किये कि एक-आद दो बार तो पानी नाक में जाएगा ही लेकिन क्या उससे लोगों ने तैरना बंद कर दिया?
Panelist: लेकिन कितना पानी नाक में जाने वाला है अभी?
Answer: मेरे खयाल से यही इस जीएसटी काउंसिल ने सुनिश्चित किया है कि लोगों को तकलीफ नहीं आए, जीएसटी काउंसिल का लाभ ये है कि इसमें सबका इक्वल वोट है। लगभग देश के सभी राजनीतिक दल किधर न किधर राज्य में हैं या पहले राज्य में रहे। आखिर यह जीएसटी काउंसिल की प्रक्रिया तो कई वर्षों से चल रही है। साथ ही साथ आप जब असेंबलीज़ और सेंट्रल लोक सभा, राज्य सभा देखें तो कोई पार्टी राज्य में सरकार में न भी हो तो भी उनके प्रतिनिधि किधर न किधर तो शायद एमपी, एमएलए हैं। जो इतने भी नहीं हैं, तो उनकी तो आवाज की वैसे भी कोई वैल्यू नहीं है। और उन सबने भी सर्वसम्मति से इनके सब कानून को पारित किया है तो मैं समझता हूं यह अपने आप में जब इतिहास भारत का कोई पढ़ेगा तो ये देखेगा कि यह एक ऐसा निर्णय था जो इस देश ने मिलजुलकर, समझकर कि जनता का हित है इसमें, देश का हित है, देश को एक ईमानदार व्यवस्था की तरह लेके जाने का भारी-भरकम कदम है। तो उस इतिहास में इसका तो बहुत प्रमुख रोल रहेगा।
Panelist: सर अगर सब कुछ अच्छा है और सब कुछ सरल है उससे भी बढक़र तो यह प्रोटेस्ट हम क्यों देख रहे हैं? क्यों कारोबारी कुछ हैं, आशंकित हैं? कपड़ा वालों को क्या दिक्कत है, आप मिले भी थे उन लोगों से … क्या एड्रेस हो पाई हैं उनकी दिक्कतें?
Answer: देखिए, कुछ लोग मेरे पास भी आए हैं, अधिकांश लोगों ने वित्त मंत्री जी से भी बात की है। इसमें दो-तीन प्रकार की चीजें हैं। और ये आप अगर पुरानी व्यवस्था देखें, तो थोड़ा मैं इतिहास में जाना चाहूंगा। पुरानी व्यवस्था में तीन प्रकार के लोग थे। एक थे जिनको इच्छा नहीं थी गलत काम करने की, लेकिन वो हालात के मारे थे क्योंकि भ्रष्टाचार था, कुछ हैरसमेंट होता था, किधर न किधर खर्चे ऐसे अनाप-शनाप होते थे जिसकी वजह से लोगों को हालात के कारण गलत काम करना पड़ता था।
कभी ऐसा होता था कि 10 दुकानें हैं, 2 दुकानें चोरी करती हैं टैक्स की, 8 ईमानदार हैं। लेकिन क्योंकि वो दो चोरी करती हैं, इनको 8 को या तो चोरी करनी पड़ती थी उनके साथ compete करने के लिए या दुकान बंद करनी पड़ती थी। आखिर जो चोरी करता है उसका सामान सस्ता हो जाता था। अनफेयर काम्पीटीशन थी, तो ये यह हालात के मारे लोग थे। एक दूसरे लोग थे जिनके खून में ही था कि हमको तो चोरी करनी है, हमको टैक्स नहीं भरना है। एक है ऐसा बड़ा वर्ग जो सोचता है हमारी कमाई है, हम टैक्स क्यों भरें?
और एक तीसरा वर्ग था शायद ignorant था कई कानूनी प्रावधान वगैरा के, समझो सेल्स टैक्स में साढ़े सात या दस लाख तक टैक्स नहीं लगना है। उसको ध्यान नहीं आया कि मेरा टर्नओवर 11 लाख हो गया है। जैसे एक मुंबई का एग्जाम्पल देता हूं। एक डोसे वाला था जिसने ठेला लगाया डोसे का। बड़ा स्वादिष्ट था घाटकोपर में, आहिस्ते-आहिस्ते, बढ़ते-बढ़ते व्यापार बढ़ गया। पीछे इनकम टैक्स ने जब चेकिंग की उसके यहाँ, एक महिना वाच किया तो कैल्कुलेट किया 200 रुपए के रोज ढाई सौ या तीन सौ डोसे बेचता है। जब मल्टीप्लाई किया तो पता चला दो करोड़ रुपये का टर्नओवर है। हो सकता है ignorant होगा कि अभी इतनी कमाई कर रहा हूं मेरे ऊपर कोई टैक्स …… । अब इन सब लोगों को एक मौका मिला है कि अब पुरानी व्यवस्था से खत्म करें। ईमानदार व्यवस्था में आएं। जो अनफेयर कॉम्पीटीशन होता था उनको इसलिए राहत मिलेगी कि यह एक नेटवर्क इतना बढ़िया बना है कि आप किधर न किधर पकड़े जाओगे।
पहले क्या था, एक्साइज में पकड़े गए, आप सुलटा-पुल्टा कर अपना खत्म करो और आगे काम करते रहो | सेल्स टैक्स में पकड़े गए उससे सॉर्ट आउट कर लो। ओक्ट्रोई नाका पर पकड़े गए सॉर्ट आउट कर लो। अब ये सिस्टम सब जगह से एक ही नेटवर्क में जा रहा है। तो अगर आपने किधर भी चेन को ब्रेक किया तो ट्रिगर आ जायेगा और पता चल जायेगा कि यहां पर गुड्स बिके हैं पर उसपर टैक्स नहीं भरा गया। ये आहिस्ते-आहिस्ते शायद कई लोगों के ध्यान में आ रहा है कि अब चोरी करने का साधन लगभग असंभव होता जायेगा। तो ये एक बड़ा परिवर्तन है जिसके कारण थोड़े लोग, कुछ लोग इसके कारण भी अस्वस्थ हैं। जिन लोगों की इच्छा ही थी कि हमको तो चोरी करनी है वो तो ज्यादा अस्वस्थ हैं। क्योंकि अब उनको ध्यान में आ रहा है कि यह व्यवस्था क्योंकि एक नेटवर्क में ट्रांसपोर्टर भी, सर्विस प्रोवाइडर भी…आखिर एक ट्रक अगर रोज डीजल खरीदकर चार बार ऊपर नीचे हो रहा है तो पहले की तरह नहीं होगा कि आप ट्रक की रिसीप्ट बनाओ, डेस्टिनेशन पहुंच जाओ किधर किसी ने चेक नहीं किया तो फाडक़र फेंक दो। नंबर दो की ट्रांजैक्शन हो गई।
आखिर वो डीजल खरीदेगा तो भी सामने आ जाएगा कि कोई मूर्ख तो नहीं हो सकता है अप एंड डाउन ट्रक कर रहा है बिना कोई माल के । तो ध्यान में आएगा कि कुछ गड़बड़ है। तो अब ये लोगों के ध्यान में आ गया है कि अब यह गड़बड़ करने की संभावना ख़त्म हो गई है। तो एक तो ये वर्ग है जो कुछ अस्वस्थ होने के कारण ..जैसे कपड़ा बाजार में कुछ लोग तो यह कह रहे थे बस हमारे को सेल्स रिकॉर्ड रखना ही न पड़े। अरे…रिकॉर्ड रखने में क्या है? ज्वैलर्स ने भी किया था एक साल पहले, बहुत कोशिश की एक्साइज ड्यूटी न लगे। तब भी मैंने काफी चर्चा, विचार-विमर्श किया था। सरकार डट कर खड़ी रही। सब लोग यह कहते थे हम टैक्स देने को तैयार हैं पर रिकॉर्ड नहीं रखेंगे, हमारे को हैरेसमेंट का डर है । मैंने अपना मोबाइल नंबर दिया कि किसी को हैरेसमेंट होगी मुझे डायरेक्ट फोन करना। सब एसोसिएशन्ज़ को दिया। एक वर्ष हो गया, एक फोन नहीं आया, एक वर्ष में एक फ़ोन नहीं आया।
तो मेरे खयाल से लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। कोई हैरेसमेंट की कल्पना भी नहीं है। होगी भी नहीं और होगी तो अपने लोकल जनप्रतिनिधि को पकडि़ए, हमें कॉन्टैक्ट करिए, अधिकारियों में सीनियर लोगों के पास जाइए। हम चाहते हैं कि ईमानदार व्यवस्था हो। कपड़ा बाजार में एक-दो ऐसे ईश्यूज हैं जिसमें मैं समझता हूँ विचार किया भी जा सकता है। एक था कि शायद कुछ इम्पोर्ट गुड्स पर सहूलियत ज्यादा हो जाएगी वो सस्ते हो सकते हैं। तो ऐसी बात पर चर्चा करी जा सकती है, मेरे साथ चर्चा की मैंने कहा कि इस बात में मुझे prima facie कुछ दम लगता है पर यह निर्णय मैं नहीं ले सकता हूं। वित्त मंत्री, प्रधानंमंत्री नहीं ले सकते हैं । सिर्फ जीएसटी काउंसिल, हमने हमारे पूरे अधिकारी जीएसटी काउंसिल को दे दिए हैं।
तो जीएसटी काउंसिल की एक फिटमेंट कमेटी है। उसके समक्ष आपकी मीटिंग करा देंगे। जीएसटी काउंसिल आपकी इस चीज को पूरी अच्छी तरीके से देख लेगा। ज़रूरत पड़ेगी इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ सकती है, so that competition में फिर एक बार इम्पोर्ट नहीं है आपको कोई तकलीफ दे सके। कुछ लोगों को था कि हमारा इनपुट क्रेडिट हम पूरा यूज नहीं कर पाएंगे, छोटे व्यापारी, ये तो चर्चा विचार-विमर्श करके जीएसटी काउंसिल कभी भी इसपर.. आखिर हम भी तो इसी देश के लोग हैं, आप ही लोगों के जनप्रतिनिधि हैं। तो विचार विमर्श करके उसको सुधारा जा सकता है अगर कोई तत्व निकला…अगर निकला कि पहले भी ऐसी व्यस्था थी आज भी same है, कोई फरक नहीं पड़ा, नुकसान नेट-नेट आपके बोझ के ऊपर नहीं आया है तो फिर हम आपको समझा देंगे। आप समझना, अगर आप हमें समझा पाए तो ज़रूर जीएसटी काउंसिल उसपर पर्याप्त निर्णय लेगी।
तो ऐसे विषय तो आते रहेंगे, मैंने पावर सेक्टर से भी चर्चा की। चार घंटे की मीटिंग पूरे पावर, रिन्यूवल एनर्जी, कोल और माइन सेक्टर के साथ दो विषय ऐसे निकले जो मुझे लगा यह जीएसटी काउंसिल तक पहुंचने लायक हैं, चार घंटे के बाद । मैंने उन सबको आश्वस्त किया कि यह हम जीएसटी काउंसिल में हम यह रखेंगे और सब बड़े संतुष्ट होकर गए। तो मुझे लगता है ऐसी कोई परेशानी नहीं है। You know, they say in English, a problem is a problem only until only a solution is found, and we are, after all, a part of all of you, so solutions can be found, only I cannot find a solution alone. GST council will find that solution.
Panelist: मनीष सिसोदिया आए थे दिन में, हमारे इसी मंच पर उन्होंने कहा था कि मुझे यकीन है कि….. हाँ लेकिन उन्होंने तारीफ की, कहा long overdue, लेकिन साथ में उन्होंने कहा कि इससे grey market जो है वह बढ़ जायेगा | उनका कहना है कि और उन्होंने कहा कि उन्होंने वित्त मंत्री से यह कहा है लेकिन उसपर कुछ किया नहीं जा रहा है। तो हम यह समझना चाहते हैं क्योंकि उनकी उस बात में कई लोगों को दम लगा क्योंकि दूसरा तर्क हमें अभी मालूम नहीं है । उन्होंने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति जो अभी तक 1100 का पंखा खरीदता था वह खरीदने जाये तो उससे 1300 का दिखे तो वो बिना बिल के उसे 900 का खरीदना चाहेगा, क्या ये सही है?
Answer: पहली बात तो 1100 का 1300 होने की कोई आवश्यकता नहीं है, कोई पॉसिबिलिटी कम ही लगती है मुझे, क्योंकि आज जो 1100 का पंखा है, इसमें जो अलग-अलग लेवल पर टैक्सेज लगते हैं उसका क्रेडिट तो मिलता ही नहीं है बेचते वक्त। तो पहली बात तो वह क्रेडिट मिलने से तो कोई दाम बढ़ेगा नहीं कम होगा। हां यह ज़रूर है कि आज दिल्ली में कुछ इलाके ऐसे हैं जिसकी जानकारी यहाँ पता नहीं आपको भी होगी और शायद कई लोगों को यहाँ पर रूम में भी होगी, जहाँ पर पूरा व्यापार नंबर दो का होता है । वहां शायद सस्ता मिलता होगा क्योंकि टैक्स पे करने की आदत ही नहीं है लोगों की। अगर टैक्स पे करना पड़ेगा और बढेगा तो मैं समझता हूं वो तो कोई नुकसान नहीं है क्योंकि वह टैक्स अल्टीमेटली दिल्ली सरकार को ही मिलेगा उसका अधिकांश अंश। 50% state government को मिलता है, जो सेंटर को 50% मिलता है उसका भी सीधा 42% स्टेट को मिलता है, the devolution of funds में। 58 जो रह जाता है उसमें भी कई centrally sponsored schemes में स्टेट के पास यह जाता है।
तो अगर 100 रुपए टैक्स कलेक्ट होते हैं, तो मेरा तो अंदाजा है कि 85 रुपए सीधा राज्य सरकार को मिलते हैं इसमें डायरेक्ट-इनडायरेक्ट मिलाकर। अब राज्य सरकारें अगर जनहित का काम करना चाहे, गरीबों के जीवन में सुधार लाना चाहें, बिजली पहुंचाना चाहें, लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं देना चाहें तो उनके हाथ में 100-200 रुपए ज्यादा आते हैं क्योंकि लोग ईमानदारी से टैक्स भरते हैं तो मैं समझता हूं ये तो देशहित ही हुआ ना? आखिर यही देश है भारत जिसमें एक अपील पर माननीय प्रधानमंत्री जी के सवा करोड़ लोगों ने अपनी एलपीजी की गैस सब्सिडी छोड़ी जिस सब्सिडी छोड़ने से किसी गरीब महिला-बहन के यहां पर मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन देकर उसके चूल्हे से उसको राहत पहुंचाई गई।
तो आखिर क्या आपको-मुझे संतुष्टि नहीं है कि हमारे एक छोटे कदम से… हमारी वो सब्सिडी शायद हमारे लिए बहुत अहमियत न रखती हो लेकिन जिस गरीब के घर में वो एलपीजी गई, कनेक्शन गया उसके लिए तो बहुत अहमियत रखता है। तो मैं समझता हूँ मैं सभी से अपील करूंगा कि अगर कोई व्यक्ति बिना बिल आपको बेचना चाहे तो आप उसको रोकिए, आप उसको कहिए कि भाई मुझे तो बिल चाहिए, पक्का चाहिए। लोगों में ये अवेयरनेस आए कि बिना बिल के व्यापार देशहित में नहीं है, जनहित में नहीं है। इसका सीधा भुगतान एक गरीब के पेट पर लात मारने जैसा है। और मैं एक और चीज कहूंगा कि ये नेटवर्क ऐसा है कि आखिर किसी ने तो उसको सेल किया उस दुकानदार को पंखा तो दुकानदार के जब सेल किया तो उसके परचेज में automatically परचेस बॉक्स में जाके वह आ गया कि ये सेल हुई है। अगर वो आगे सेल नहीं दिखाएगा तो भी जीएसटी नेटवर्क में पकड़ा जाएगा तो ज़रूर ये फर्क पड़ेगा कि जो ग्रे मार्केट पहले था वो बंद हो जाएगा। जो माननीय सिसोदिया जी कह रहे हैं मैं समझता हूँ यह शायद कुछ समझ के आभाव में उन्होंने कुछ उल्टा ही बोला है। जो एक्चुअल सिचुएशन है उसका पूरा 360 डिग्री उल्टा बोला है उन्होंने।
Panelist: आपने एलपीजी का जिक्र किया, मैं यहाँ पर नोटबंदी का भी जिक्र करना चाहूंगी। क्योंकि नोटबंदी भी पूरी दुनिया में जहां-जहां हुआ वहां दिखा कि सरकारें गिर गईं। यहां पर उस नोटबंदी के साथ आम जनता खड़ी हुई, सफलता का बहुत बड़ा श्रेय जनता को जाता है। लेकिन उस वक्त प्रधानमंत्री ने आकर कहा था कि कुछ दिनों की दिक्कत है, उन्होंने तारीख दी और कहा कि तबतक ऐसे धीरे-धीरे ये होगा। जीएसटी में मामले में क्या कल की सुबह एक अचानक एक बहुत सुनहरी सुबह लेकर आएगी? क्या इसके बदलाव को महसूस करते-करते हमें समय लगेगा? क्या हमें कुछ दिक्कतों के लिए तैयार रहना है?
Answer: जब सूरज का उदय होता है तो आहिस्ते-आहिस्ते उदय होता है। पहले उसका एक छोटा आपको हिस्सा दिखता है। फिर बढ़ते-बढ़ते जब वह ऊपर पहुंचता है तब सूर्य पूरे विश्व को रोशनी देता है। इसी प्रकार से जीएसटी भी, जब इतना बड़ा परिवर्तन है एक सोच बदलने की आवश्यकता है पूरे देश की । आप सोचिए 125 करोड़ का देश… विश्व में आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ है। इतने बड़ा आर्थिक परिवर्तन का एक भी मिसाल विश्व के इतिहास में नहीं है। जब इतना बड़ा परिवर्तन इस जीएसटी काउंसिल और सब राज्य सरकार, केंद्र सरकार ने मिलकर किया है तो मैं समझता हूं स्वाभाविक है कुछ दिन लगेंगे लोगों को समझने में। ऐसा भी नहीं है कि बहुत बड़ा मुश्किल है । इतना सरल सिस्टम बनाया गया । भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, 37 रिटर्न फलाना, ढिमका… इसमें कोई तत्त्व नहीं है, एक्चुअली एक भी रिटर्न नहीं है। मैंने तो पहले देखा नहीं था रिसेंटली स्टडी किया क्योंकि जब यह रोज सुनते थे 37 रिटर्न…37 रिटर्न, जब मैंने पता लगाया तो मैं अपने पुराने दिन याद करता हूं जब हम हर डिपार्टमेंट को अलग-अलग रिटर्न भरते थे, उसके निस्बत आज तो एक भी रिटर्न नहीं है। आपको तो अपना सेल्स रजिस्टर एंटर करना है। जिसको आप सामान बेच रहे हो उसका नाम, उसका नंबर, जीएसटी नंबर और कितने का सामान बेचा, उसपर कितना टैक्स कलेक्ट किया… आपको बस इतना लिखते जाना है, कंप्यूटर में भी मत लिखो, बहीखाते में लिख दो।
10 तारीख के पहले अगले महीने जाकर उसको एक चाहे कॉलसेंटर में ही अपलोड कर दो जिसके लिए हम पूरे देश में हर जगह सेवा केंद्र खोल रहे हैं। आप उधर ही जाके उनको देके उसको लोड करा सकते हो, इन्टरनेट की भी आवश्यकता नहीं है | उसके बाद आपको कुछ नहीं करना है, आपका परचेस रजिस्टर भी स्ट्रेट कंप्यूटर द्वारा ऑटोमैटिक है। उसमें कुछ गलतियां होंगी तो आप उसको सुधार कर सकते हो खुद ही या फोन करके जिसने आपको बेचा कुछ उससे बोल सकते हो आपने ये एंट्री नहीं की होगी, मेरे परचेज में दिख नहीं रहा है। और आगे चलकर तो मुझे लगता है कि ये बच्चों का खेल हो जाएगा। कोई 18, 19 साल का बच्चा जाकर .. सेल्स रजिस्टर तो मैंने भी लिखा है जब मैं 16-17 साल का था। इतना सरल होता है। एक सेल्स रजिस्टर लिखो। पहले तो चार-चार लिखते थे, छह-छह लिखते थे, अब तो एक सेल्स रजिस्टर लिखो बाकी सिस्टम द्वारा automatic है।
Panelist: तो क्या ये जीएसटी अपने इस स्वरूप में इतना परफेक्ट है कि बदलाव की गुंजाइश नहीं है, सुधार की?
Answer: जब आपने इस प्रोग्राम की कल्पना की तो क्या आपने इतना परफेक्ट बनाया कि इसमें पूरे हॉल में एक भी कुर्सी थोड़ी टेढ़ी-मेढ़ी नहीं है? एक भी यह जो चेयर का आपने कवर लगाया है, यही चेयर का टेढ़ा-मेढ़ा है जो सामने है । वहां पर मैं एक आपको कचरे का पीस दिखा सकता हूं सामने वो थोड़ी लाइट ज्यादा है …|
Panelist: यानी सुधार की गुंजाइश है?
Answer: देखिए, जब हम कुछ भी काम करते हैं, उसमें जिस दिन सुधार की गुंजाइश नहीं रहेगी तो आपका टीवी चैनल भी चलाने की गुंजाइश नहीं रहेगी । आप क्या प्रतिक्रिया करोगे, क्या रिपोर्टिंग करोगे? फिर मेरी भी मंत्री बनने की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी फिर तो Louis great जो भी 2-3, जो भी होता है उसका अफसर या कर्मचारी सरकार चलेगा। आखिर आपको, मुझे, हम सबको जो दायित्व, जिम्मेदारी मिली है वो इसलिए मिली है कि काम पर निगरानी रखी जाए। काम की जिम्मेदारी लोग लें, काम ठीक से हो रहा है कि नहीं हम देख सकें । मेरा काम ठीक है कि नहीं आप देख सकें। आप किस प्रकार से रिपोर्टिंग करती हैं वो जनता देख सके। अगर आपकी रिपोर्टिंग अच्छी है तो आजतक नंबर वन चैनल बनता है…जिस दिन आप रिपोर्टिंग उल्टी-सीधी करोगे तो फिर आपका भी कई दूसरे चैनल जैसा हाल होगा कि कोई देखने वाला नहीं होगा चैनल चल रहा है |
Panelist: फिलहाल जिस स्वरूप में है जीएसटी, जिसमें विरोध की आवाजें आ रही हैं उसमें यह होता है कि बहुत कॉम्पीलकेटेड है, जो कि आप कह रहे हैं सरल है, और उन चीज़ों को समझने के बाद समझ में आता है कि हाँ सरल है। लेकिन क्या रेट कम हो सकते हैं?
Answer: पहली बात तो रेट कम करना या ज्यादा करना ये तो जीएसटी काउंसिल ही तय करता है। जो इसलिए कई चीज़ें हैं जिसमें मुझे है मैंने एक-दो चीजें वित्त मंत्री से बात की थी कि मुझे लगता है कि इसमें कुछ सुधार होना चाहिए उन्होंने कहा लेकिन जीएसटी काउंसिल माना ही नहीं। तो यह परिस्थिति हमने कोई ऐसी सरकार आपने देखी है जो खुद सरकार में रहते हुए अपनी पावर्स छोडके राज्यों को दे दे। आज तक आप बताइये 70 साल में, नॉर्मली सरकारें दूसरों की पावर हड़पने में लगी रहती है। जनता को त्रस्त करती है, हमने तो अपनी पावर ही जीएसटी काउंसिल को दे दी। कम ज्यादा दोनों होने की संभावना है, जैसे अभी हॉर्मोनाइज सिस्टम एचएसन कोड के हिसाब से हर एक वस्तु पर पता चलेगा कि कितना टैक्स आ रहा है। कितना इनपुट क्रेडिट पास बैक हो रहा है, नेट कितनी कलेक्शन हो रही है, तो जीएसटी काउंसिल के सामने आएगा।
ऐतिहासिक रेवेन्यू सबको मालूम है, वैट कितना आता था, एक्साइज कितना आता था, सर्विस टैक्स …… समझो मालूम पड़ा कि यह जो कप है, इस हॉर्मोनाइज कोड पर, एचएसन कोड पर पहले पूरे देश में 10 हजार करोड़ रुपए आते थे कर के रूप में, अब पता चला अब सिर्फ 2 हजार आ रहे हैं तो ध्यान आएगा इस का रेट हमने कुछ ज्यादा ही कम कर दिया है । अगर इसमें 10,000 के बदले 40,000 आने लग गए तो ध्यान में आएगा लगता है कुछ ज्यादा ही रेट बढ़ गया इसको कम करने की आवश्यकता है। पर ये सब डेटा बेस्ड decisions होंगे। और ये डेटा कलेक्ट करने की क्षमता इस नए सिस्टम में है। तो जैसे-जैसे लोग ईमानदार व्यवस्था से जुड़कर पूरा टैक्स भरेंगे और टैक्सेज की मात्रा बढ़ेगी तो स्वाभिवक है कि लोगों का अधिकार भी बढ़ेगा जीएसटी काउंसिल के सामने जाएं और उनसे अपील करें भाई हमारा रेट को कम करो। अब कपड़ा बाजार वाले आए मैंने कहा यह दो विषय मुझे ठीक लगते हैं, हम जीएसटी काउंसिल के सामने रखेंगे पर मैं नहीं निर्णय ले सकता हूं, प्रधानमंत्री जी भी खुद नहीं निर्णय ले सकते हैं | सिर्फ जीएसटी काउंसिल, जिसमें हमारा एक वोट है, 29 वोट तो सब राज्य सरकारों के हैं, जिसमें 6 कांग्रेस के भी वोट हैं। तो मैं समझता हूं ऐसी व्यवस्था तो शायद ही कभी इस देश में बनी होगी जिसमें केंद्र सरकार ने अपने आपको 30 में से एक कर दिया हो।
Panelist: बिजली पर तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा है ना? हालांकि बिजली बाहर है लेकिन कोयले पर जीएसटी है…
Answer: बिजली बाहर है लेकिन मैं धन्यवाद दूंगा सभी सदस्य जीएसटी काउंसिल के जिन्होंने कोयले के ऊपर जीएसटी मात्र 5 प्रतिशत रखा, यह दर्शाता है कि जो हमारी दृढ़ निश्चय है, हमारा जो देश का सपना है कि देश में हर घर तक चौबीसों घंटे, सस्ती बिजली, अच्छी बिजली देने का यह पूरा होने के लिए एक और अहम् फैसला जीएसटी काउंसिल ने किया। मैं एक एडवाइसरी दे रहा हूं सभी रेग्यूलटर्स को कि इससे अगर कोई बिजली के दाम कम होने की संभावना हो तो उसको डिसकॉम को पासऑन करें। और जो डिसकॉम अच्छे चल रहे हैं उसमें कन्ज्यूमर्स को भी पासऑन होगा। जो डिसकाम पहले से चले आ रहे हैं, जो तकलीफ में हैं, उसका लॉस कम होगा। तो हर प्रकार से ये जनता को लाभ देगा क्योंकि आखिर बिजली के दर बढ़ना भी एक तरीके से बोझ है। अगर इन सब चीजों से बिजली के दर कम होते हैं और डिसकॉम का लॉस कम होता है तो बिजली के दाम बढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
Panelist: हमें अंदाजा है कि वही सवाल और जीएसटी को बार-बार समझाना होता है तो उसके लिए पेशेंस की बहुत जरूरत होती है लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि अपने अनुभव से सीखते हुए सरकार जनता को साथ बढ़ना है। बहुत धन्यवाद पीयूष जी …
Answer: बहुत बहुत धन्यवाद |