आप सबका अनुभव जोड़कर अगर देखें तो मैं समझता हूँ दुनिया की कोई संस्था के पास इतना अनुभव नहीं है | मुझे डाउट है कि any organisation in the world, it could be the most modern lab of America, it could be NASA for that matter, may not have the levels from grass root to the top of experience that you 13 lakh rail men and women have.
तो आप सोचिये अगर हम सब अपने दिमाग को थोड़ा खोलते हैं और खुले दिमाग से अपने काम को सुधार की तरफ ले जाते हैं तो हममें कितनी क्षमता है? मतलब आज 50-60 लोगों को सर्टिफिकेट मिला है अगले साल शायद 500 को देना पड़ जाये, इतने लोगों के अलग-अलग सुझाव, अलग-अलग काम में क्षमता दिखेगी |
तो हम सबको अपनी सोच बदलने की थोड़ी आवश्यकता है, एक हो सकता है कई सालों से एक तरीके से काम चलता है तो हम सोचते हैं बस अब यही काम इसी तरीके से चलेगा | पर हर एक चीज़ में अगर हम एक बार बोलें नहीं पुरानी इरेज़ करते हैं पूरे माइंड को और नए तरीके से सोचकर देखते हैं, कई बार पता चलेगा जो पुराना तरीका था वह ठीक था, चलेगा, पुराने तरीके से कर लेंगे | पर थोड़ा, if you take one step back, reboot, कंप्यूटर में जो rebooting करते हैं |
आखिर स्प्रिंट जब रेस होती है, रेस में भी कैसे होता है? आदमी एक-दो कदम पीछे जाकर और फिर तेज़ दौड़ता हैना? या वह Javelin throw वगैरा जो भी होते हैं, दो कदम आदमी पीछे जाकर और फिर तेज़ फुर्ती से निकलता है |
Just step back for a moment, think and then get into the race, possibly with a fresh mind. And I think we can get transformational results in a railway which is trying to re-engineer and transform itself. And everything is possible, सिर्फ हमको अपने मन और दिमाग को खुला रखना है, हमको नए आइडियाज के लिए अपने आपको समर्पित करना है कि हम नए आइडियाज से engage करने के लिए तैयार हैं |
और मैं समझता हूँ कि जो आपने अभी-अभी आंकड़े सुने सीसीआरएस मिस्टर पाठक से यह हम सबके लिए ख़ुशी की भी बात है लेकिन समाधान की बात नहीं है, समाधान तो तब होगा जब यह आंकड़ा शून्य पर जायेगा | हम सबको प्रयत्न करना है और हो सकता है कि कैसे यह आंकड़ा शून्य पर जाये, हम सबको प्रयत्न करना है कि जो क्षति या जो हानि पहुँचती है लोगों को जो हमारे कारण न भी हो उसको भी कैसे शून्य पर लेके जाएं |
आखिर मैं मुंबईसेहूँ, कोई आप में से कुछ लोगों ने मुंबई में भी काम किया होगा, हज़ारों लोग वहां पर अलग-अलग प्रकार से सफर करते हैं क्योंकि ट्रेंस ओवर-क्राउडेड हैं, कभी ट्रैक क्रॉस करते हुए ट्रेन से गिर जाना बारिश के समय में, अलग-अलग चीज़ें होती हैं | अब यह भी हादसे हमारी ज़िम्मेदारी न होते हुए क्या हम कुछ सोच सकते हैं कैसे इसको भी ओवरकम करें? आखिर हर व्यक्ति हमारे देश का नागरिक है, हमारे लिए तो अमूल्य हैना हर व्यक्ति का जीवन, हर व्यक्ति की वेल-बींग हम सबके लिए उतनी ही इम्पोर्टेन्ट होनी चाहिए |
आरपीएफ ने अभी काम शुरू किया है महिलाओं को और बच्चों को सुरक्षा सुधारने का, अब वास्तव में मेरी नाराज़गी है बोर्ड हो या सिग्नलिंग हो या सबसे जो इतनी हल्की-हल्की छोटी-छोटी धीमी से इन कामों को ले रहा है | मैं चाहता था कि अगले दिसंबर तक, अब तो दिसंबर संभव नहीं लगता है पर काम से काम मार्च तक क्या हम देश के सब स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा सकते, इतनी बड़ी संस्था, इतनी हम सबमें क्षमता और उसका सीधा लाभ होगा आर्टिफिशल इंटेलिजेंस इस्तेमाल करके जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग हो रहा है, बच्चों को जो गलत कामों में लेके जा रहे हैं | क्या आपके-मेरे बच्चे के साथ कभी कोई गलत काम हो तो हम उसको स्वीकार करेंगे? तो उस गरीब के बच्चे के साथ जो हो रहा है उसको रोकना क्या हमारी ज़िम्मेदारी नहीं है?
तो मैं सोचता हूँ कई बार आप लोगों को बोर्ड में भी लगता होगा या जो भी मेरे साथ इंटरैक्ट करते हैं कि मैं बहुत अग्रेसिव हूँ या बहुत ज़्यादा टाइमलाइन्स कम करता हूँ, but it is not without a purpose.
अगर कुछ मैंने कभी कोई गलत चीज़ में आपको टाइमलाइन कम्प्रेस करने का है तो आपखड़े होकर कहिये मुझे कि इसकी कोई ज़रूरत ही नहीं है आप क्यों हमारे ऊपर प्रेशर डाल रहे हो, खड़े होकर कहिये | और अब तक जितने लोग मेरे साथ रेगुलर इंटरैक्ट करते हैं, यह आगे बैठे हैं आप लोग, आपको पता है कि मैं कोई दिल पर नहीं लेता हूँ, मेरा क्रिटिसिज़्म मैं स्वीकार करता हूँ और वेलकम भी करता हूँ |
लेकिन मुझे लगता है कि हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि यह चीज़ें, अपनी रेलवे को 160 वर्ष हो गए हैं, देश की आज़ादी को 70 वर्ष हो गए हैं, कब तक हम इसको सहेंगे? और कब तक देश भी इस तरीके से चलते रहेगा कि बस रेल तो ऐसे ही चलेगी? तो मुझे लगता है बदलाव के साथ हम सब जुड़ें |
एक बहुत अच्छा कोट है, आपमें कुछ लोगोंने वॉरेन बफेट का नाम सुना होगा, उन्होंने एक बहुत अच्छी बात कही थी एक बार कि जब हम छाँव के नीचे खड़े होते हैं, तो बड़ा वृक्ष है, बड़ा पेड़ है और हमारे रेलवे कॉलोनीज में तो बहुत अच्छे-अच्छे पेड़ मैंने देखे हैं | कोई बड़े वृक्ष के नीचे जब हम खड़े होते हैं छाँव लेने के लिए कि धूप हमें न लगे या बारिश से बचने के लिए हम कभी छाँव के नीचे जाते हैं, ट्री के नीचे, तो वह वृक्ष कभी न कभी – 10 साल, 20 साल, 50 साल, 100 साल पहले किसी ने वह बीज बोया होगा जिसके कारण आज वह बड़ा ट्री हमको छाँव देता है | आप सबके पास मौका है जैसे हमारे मित्र ने बोगिबिल ब्रिज में काम करके एक पूरे इस असम, अरुणाचल प्रदेश, उस पूरे इलाके के लिए एक नया जीवन एक प्रकार से दिया है | Am I right sir?
It’s a new life for the people in that remote north-eastern part of Indiaजिनकी देश ने कभी इतनी चिंता नहीं की जितनी पिछले 4-5 वर्षों में की गयी है | तो अगर हम सब यह ज़िम्मेदारी लें कि जो मैं आज काम कर रहा हूँ यह मैं बीज बो रहा हूँ कि हमारे बच्चे और उनके बच्चे कल छाँव में खड़े हो सकें, तो मैं समझता हूँ यह 13 लाख लोगों की क्षमता इस पूरे देश के आगे के भविष्य के ट्रैवेल के लिए काम से काम, मैं सिर्फ रेल ट्रैवेल नहीं कह रहा हूँ, मैं ट्रैवेल के लिए कह रहा हूँ | हममें से कुछ लोग फ्रेट कॉरिडोर में भी लग जाते हैं, हममें से कुछ लोग कंस्ट्रक्शन में और चीज़ों में मेट्रो में लग सकते हैं आगे चलकर, बहुत सारी चीज़ें हो सकती हैं |
तो इस देश के समुचित ट्रैवेल के लिए, मोबिलिटी के लिए, कम्युनिकेशन के लिए हम सब एक प्रकार से वह नीव बनें कि आगे आने वाला कल और आगे का हमारा भविष्य और बच्चे, याद करें कि यह टीम थी जिसने ऐतिहासिक काम करके भारतीय रेल को एक नयी दिशा दी, नए रूप से आगे बढ़ाया | जो सभी आजके विजेता हैं उन सभी को और जो सभी को आज सम्मानित किया गया है उन सभी को मेरी बहुत-बहुत बधाई, जिनको आज नहीं सम्मानित किया गया उन सबको आज से प्रोत्साहन लेना चाहिए कि अगली बार उनका भी हक़ बने, अधिकार बने प्रोत्साहित होने के लिए, अवॉर्ड पाने के लिए, रेकॉग्नीशन पाने के लिए और हम सब मिलकर एक टीम स्पिरिट के साथ आगे इस काम को बढ़ाएंगे इस विश्वास के साथ आप सबको आने त्यौहार के मौके के लिए दीपावली आ रही है, भाई दूज आ रहा है, आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनायें |
धन्यवाद |