Speeches

January 21, 2019

Speaking at CEPR: India Resources Conclave 2019, in New Delhi

अच्छा लगता है देखकर कि युवाओं को भी इंटरेस्ट है अदरवाइज़ तो बड़ा बोरिंग सब्जेक्ट है यह कोयले का, पर देश की संपत्ति है नेचुरल रिसोर्सेज किस तरीके से देश के लोगों के काम आये। साथ ही साथ जैसे पहले के सेशंस में बात हुई, अश्विनी जी ने कहा कि पर्यावरण का भी ध्यान रखना पड़ेगा उसको इग्नोर नहीं कर सकते। यह भी बात सच है कि भारत का योगदान इस क्लाइमेट चेंज की समस्या में इतना गंभीर नहीं है लेकिन योगदान किसका भी हो समस्या तो सबके ऊपर आएगी।

तो स्वाभाविक रूप से एनवायरनमेंट के प्रति भी हमको बहुत ध्यान देना पड़ेगा जब कोयले का विषय या बिजली का विषय हो तो इन सब चीज़ों को मुझे लगता है सुभाष जी ने बहुत अच्छी तरीके से सम्मराइज़ किया। मुझे तो लग रहा था कोई फ़ास्ट ट्रेन जा रही है जो धड़ाधड़ एक-एक विषय निकाल रही थी, मैं भी, I couldn’t keep pace with your speed सुभाष जी, जिस स्पीड से आप विषय put up कर रहे थे।

तो मैं सीधा कुछ अहम मुद्दे जो आपने उठाये जो आज के दिन भर की चर्चा में आपके निकले, मुझे लगता है उसी पर जाना ठीक रहेगा। स्वाभाविक रूप से कोयले का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है भारत की बिजली में, लगभग 60% कोयले से आता है, कई और इंडस्ट्रीज – फ़र्टिलाइज़र, स्टील, सीमेंट, एल्युमीनियम, सबमें कोयले की ज़रूरत पड़ती है।

मुझे तो याद है पहले जब मैं छोटा था तब घर के तीन-चार बिल्डिंग छोड़कर नज़दीक मुंबई में एक छोटी दुकान भी थी जो कोयला सिर्फ बेचती थी जो मैं समझता हूँ घर वालों के लिए बेचती थी जो लोग घरों में कोयला लेकर जाते हैं जो मुझे लगता है आज के दिन तो शायद ही किधर देश में ऐसी कुछ देखने को स्थिति मिलती होगी। खासतौर पर उज्ज्वला योजना के बाद लगभग देश में शायद दो करोड़ अभी मात्र घर रह गए हैं जिनके पास एलपीजी कुकिंग गैस कनेक्शन नहीं है और वह भी जिस तेज़ गति से मेरे मित्र धर्मेंद्र प्रधान जी और उनका विभाग काम कर रहे हैं। शायद अगले 6-8 महीने में वह भी कवर हो जायेंगे और उज्ज्वला अकेले के तहत 8 करोड़ गरीबों के घर में मुफ्त में एलपीजी कुकिंग गैस का कनेक्शन पहुंचेगा इस सरकार के पांच साल के कार्यकाल में।

और वैसे उज्ज्वला की बात निकली है तो आपको बताना चाहूंगा आज़ादी के बाद 2014 तक लगभग 13 करोड़ एलपीजी कनेक्शन इस देश में लगे हैं। हमारे पहले चार साल में 12 करोड़ ऐड हुए हैं, आज़ादी के बाद 2014 तक 13 करोड़, 2014 से कुछ दिनों पहले तक 12 करोड़ ऐड हुए हैं और अब 6-8 महीने में 2 करोड़ और। यानी हम पांच साल में we will be adding more LPG connections than we saw in the last 50-60 years. That is reflecting the style of governance and the pace of work of this government.

और आपको याद होगा माननीय प्रधानमंत्री जी के साथ बड़ा एक जुड़ा हुआ रहता था चुनाव के पहले गुजरात में भी और चुनाव के दौरान भी 2014 में। जो भी काम प्रधानमंत्री जी लेते हैं उसमें स्पीड, स्किल और स्केल होगा, और मैं समझता हूँ उज्ज्वला हो या कोयले का विभाग हो इसमें आपको यह तीनों चीज़ें स्पीड, स्किल और स्केल, बड़े रूप में देखने को मिलेंगी। और क्योंकि यह कोयले के ऊपर सेशन है तो मैं कोयले के बारे में भी यह तीनों मापदंड में थोड़ी बहुत जानकारी आपके समक्ष रखूँगा।

वैसे आपने एक शब्द इस्तेमाल किया था – ब्लैक गोल्ड – उससे मुझे याद आया कुछ दिन पहले या कुछ महीने पहले अमिताभ बच्चन जी आये थे भोजन पर और बात करते-करते अपने जीवन की कहानी सुना रहे थे तो उनको पता था मैं कोयला मंत्री हूँ तो उन्होंने बताया कि उन्होंने जीवन की शुरुआत और मैं समझता हूँ आप सब यंग्सटर्स भी जानते होंगे कि जब उन्होंने पहले अप्लाई किया था आल इंडिया रेडियो में एनाउंसर की जॉब के लिए तो वह रिजेक्ट हो गए थे। Can you imagine Amitabh Bachchan being rejected by All India Radio for an announcer’s job?

But he was rejected for that तो इसलिए उन्होंने कोलकाता की एक कोयले की व्यापार करने वाली कंपनी में नौकरी ली और उन दिनों में कोयला जब खरीदने जाता था कोई व्यापारी तो स्वाभाविक रूप से अच्छी क्वालिटी का कोयला किसी को चाहिए तो कोलैटरल कॉस्ट्स बहुत सारे होते थे। I don’t think I need to specify what collateral costs are. उस ज़माने की विशेषता ही ऐसी रहती थी पहले के हर एक चीज़ में कोलैटरल कॉस्ट लगता ही था और कोलैटरल कॉस्ट देने के बावजूद वह कहते थे उनको कोल माइन पर जाना पड़ता था और वहां पर माइन के अंदर जाकर हाथ रखते थे कि यह कोयला अच्छा है यह हम खरीदेंगे और वहां माइन पर बताया जाता था कि यह कोयला चाहिए तो इसके लिए इतनी रिश्वत लगेगी वह कोयला चाहिए तो इतनी रिश्वत लगेगी।

तो he actually acted it out and he showed कि underground mines थी उस ज़माने में – we are talking of about 40-45 years ago. तो he said हम underground mines में वह उलटे लेटकर जैसे जाना पड़ता था उन ट्रॉलीज में, तो he actually acted it out कि ऐसे हम लेटकर underground mine में ट्रॉली में जाते थे अंदर जाकर कोयले की क्वालिटी अस्सेस करते थे और तय करते थे कि यह लॉट हमें चाहिए उसका क्या दाम होगा और फिर उसका व्यापार कोलकाता के बाजार से करते थे।

तो कोयला वास्तव में इतना महत्वपूर्ण रोल रहा है ज़िन्दगी भर कोयले का भारत में ही नहीं पूरे विश्व की आर्थिक और मैं समझता हूँ देश की प्रगति में, खासतौर पर क्योंकि कोयले से सबसे सस्ती बिजली बनती है और सस्ती बिजली अनिवार्य है अगर कोई देश को प्रगति करनी है। और उस हिसाब से देखें तो कोयले का बड़ा chequered career भी रहा है, कोयले से सस्ती बिजली होने के कारण कोयले की खदानों में भी रूचि बहुत रही, फिर आपने 2008-09 का दौरान पीरियड देखा जब कोयले की खदानों के आवंटन में भ्रष्टाचार बड़े रूप में हुआ। उस भ्रष्टाचार के कारण जब सुप्रीम कोर्ट तक बात गयी तो 2014 में, सितम्बर 2014 में, 204 कोल माइंस की अलॉटमेंट को कैंसिल कर दिया गया।

तो एक प्रकार से बड़ा chequered career रहा कोल का और मैं समझता हूँ शायद कोई चाहता भी नहीं होगा कि कोल मंत्रालय उसको मिले, न कोई अधिकारी न कोई मंत्री। और मेरा पता नहीं सौभाग्य था दुर्भाग्य था जो भी था मुझे एक दिन ऐसे ही हंसी मज़ाक़ में माननीय अरुण जेटली जी ने, वित्त मंत्री ने पूछा कि if you had a choice. चुनाव का परिणाम आ चुका था, हमें मालूम भी नहीं था कि कौन मंत्री बनेगा क्या होगा पर ऐसे ही घर आये हुए थे तो मज़ाक़ में उन्होंने पूछा – this is between 16th and 25th May कि अगर तेरे को मंत्री बनाते हैं तो कौनसा विभाग पसंद करेगा। और मैंने भी कहा कि जो सबसे toughest विभाग है वह दे देना।

It was just a casual conversation. I didn’t realise कि वह इतना सीरियसली ले लेंगे उसको। और मुझे याद है वह शुरू का पीरियड जब मैं मंत्री बना तो दो-तिहाई पॉवर प्लांट्स क्रिटिकल स्टॉक पर चल रहे थे, क्रिटिकल यानी किसी के पास शून्य कोल स्टॉक था किसी के पास एक दिन, दो दिन, बहुत कम प्लांट्स थे जिनके पास 7 दिन से अधिक स्टॉक था, two-third of the power plants were running on critical stock. पावर भी मैं देखता था मेरे मंत्री बनने के तीसरे दिन बाद दिल्ली में बड़ी आंधी तूफान आयी और पूरी दिल्ली का ट्रांसमिशन ग्रिड ठप हो गया और गर्मी के दिन थे, रात भर बिजली नहीं रहती थी और तब यहाँ पर लोकल स्टेट गवर्नमेंट भी नहीं थी, केजरीवाल जी ने हथियार छोड़ दिए थे चले गए थे, तो वह ज़िम्मेदारी भी अपने गले में आयी।

तो इसको किसी पत्रकार ने पेपर में ठीक लिखा था, एक होता है ‘baptism by fire’, I think many of you must have heard it in school/college. When we learn literature, we are taught about ‘baptism by fire,’ Christianity में एक बड़ा famous saying है कि when somebody is baptised or takes up that religion or takes up any new job. ‘Baptism by fire’ is a term or phrase very often used. तो मेरे लिए लिखा गया था ‘Baptism by power outage,’ इतने outages हो गए कि that was my learning. और राज़दान जी उन दिनों कई बार मिलते थे, कई बार इनका सहयोग और इनसे हम सलाह मशविरा भी करते थे।

एक अच्छा शुरू का पीरियड रहा जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिला, कोयले के ब्लॉक्स कैंसिल हुए, कोयले की शॉर्टेज थी और उस साल, 2014-15 हम नए-नए आये थे सरकार में 217 मिलियन टन कोयले का इम्पोर्ट हुआ था। और यह मैं इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि काफी ग़लतफहमी सब जगह घूम रही है जैसे कोयले का इम्पोर्ट बहुत बढ़ गया हो। 2014-15 में हम नए-नए आये थे उसके सब कॉन्ट्रैक्ट्स तो मैं समझता हूँ पहले से निर्धारित हो गए होंगे, हमारी सरकार को आने के बाद चीज़ों को लाइन पर लाना था। 2017 मिलियन टन का कोयले का इम्पोर्ट हुआ था।

उसके बाद लगातार आप चार साल के आंकड़े ले लो, कोई भी एक वर्ष नहीं है जिसमें 2017 मिलियन टन कोयले का इम्पोर्ट हुआ हो, उससे कम ही हुआ है। और जिस गति से कोयले का इम्पोर्ट 2014 के पहले बढ़ रहा था, हर वर्ष जो ग्रोथ था मेरे ख्याल से 22-25% कम्पाउंडेड ग्रोथ था कोयले के इम्पोर्ट में। उस गति से अगर कोयले का इम्पोर्ट बढ़ते रहता 2014-15 के बाद भी तो इस साल 380 मिलियन टन कोयले के इम्पोर्ट की आवश्यकता बढ़ती। यह वास्तविकता है।

जबकि उसके निस्बत हमारी अभी भी चेष्टा है कि 2018-19 में भी कोयले का इम्पोर्ट 2017 मिलियन टन से कम हो, तो इतनी आर्थिक प्रगति हुई है, इकॉनमी लगभग 7.3% एवरेज सीएजीआर पर ग्रो हुई है पिछले चार वर्षों में, विश्व की फास्टेस्ट ग्रोइंग लार्ज इकॉनमी है। स्वाभाविक है इसके साथ बिजली की भी खपत बढ़ी है, स्टील, सीमेंट, फ़र्टिलाइज़र सबमें खपत बढ़ी है लेकिन कोयले का इम्पोर्ट नहीं बढ़ा है पूरे इस … में। और वह इसलिए कि कोयले का इम्पोर्ट पिछले चार वर्षों में अकेले कोल इंडिया का ही ले लें तो 105 मिलियन टन बढ़ा है और यही ग्रोथ हमारे आने के पहले 105 मिलियन टन ग्रो होने के लिए 7-8 वर्ष लग गए जो हमने चार साल में ग्रो किया।

इस वर्ष उम्मीद है कि और एक अच्छी छलांग होगी और यह एक पांच साल के कार्यकाल में जो कोयले का ग्रोथ होगा वह आज के पहले कोई पांच साल में इतना ग्रोथ कोयले के प्रोडक्शन का कभी नहीं हुआ होगा यह मैं आपको दावे के साथ बता सकता हूँ। और इसी के साथ-साथ हमने कोल की क्वालिटी पर भी विशेष ध्यान दिया, यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि पहले तो कोल में बहुत पत्थर आया करते थे बड़े साइज के ब्लॉक्स आ जाते थे जो यूटिलाइज करने में तकलीफ होती थी, ग्रेड स्लिपेज बहुत होती थी। आपको एक पर्टिक्युलर ग्रेड का कोयला भेजा लेकिन आपको मिलता था एक्चुअली 4-ग्रेड, 5-ग्रेड कम वाला कोयला, यह राज़दान जी आपको उसका इतिहास बता सकते हैं इन्होने पावर सेक्रेटरी के नाते इसको बहुत झेला है।

हमने इसपर पूरी लगाम लगाई, स्ट्रिक्ट मॉनिटरिंग करके जो क्वालिटी का कोल आपको दिया जाता है वही क्वालिटी आपको मिले और थर्ड-पार्टी सैंपलिंग द्वारा वह वेरीफाई हो सके और वेरीफाई करके अगर ग्रेड स्लिपेज है तो आपको क्रेडिट नोट देकर पैसा वापस दिया जाता है। और उसी के कारण आज आप किधर भी देखिये तो कोल क्वालिटी के विषय पर आपको कोई न्यूज़पेपर आर्टिकल्स नहीं मिलेंगे, कोई कंप्लेंट नहीं मिलेंगे। मुझे पिछले दो-ढाई साल में कोई कोल क्वालिटी की कंप्लेंट मेरे पास नहीं आयी।

हमने रिग्रेड किया माइंस को to reflect the actual quality also, so that यह समस्या ही ख़त्म हो। और अगर पहले के हिसाब से ही कोयला बनाकर बेचते तो यह जो 105 मिलियन टन ग्रोथ हुई है कोल प्रोडक्शन में कोल इंडिया में यह 165 मिलियन टन हो सकती थी अगर कोल क्वालिटी पर अंकुश नहीं लगाते, फिर तो पत्थर भी जाता है, जो आता है उसको along with its bad quality जब बेचते थे तो प्रोडक्शन भी ज़्यादा दिखाना सरल होता। तो उस हिसाब से अगर प्रोडक्शन चलती रहती तो 105 नहीं 165 मिलियन टन ग्रोथ हो जाती और वह पिछले 10 साल में नहीं हुआ है।

लेकिन हमारा मानना था कि क्वालिटी अगर अच्छी मिले तो पावर प्लांट्स भी कम डैमेज होंगे, कैलोरिफिक वैल्यू ऑफ़ कोल जिसको कहते हैं कि कोल कंसम्पशन कितना हुआ per unit of energy that you produce, the thermal plant’s efficiency भी सुधरा और उससे साधारणतः बड़ी सरलता से पता चल जाता है कि कितना कोल क्वालिटी इम्प्रूव होने से लाभ हुआ। उससे पावर प्लांट्स के डैमेज और मेंटेनेंस का खर्चा कम होता है, प्रदूषण कम होता है, पॉल्यूशन लेवल्स कम होती हैं।

यह सब चीज़ पिछले यह सब चीज़ पिछले चार-साढ़े चार साल की उपलब्धियां रही हैं। पर्यावरण पर भी ध्यान देना, एक अच्छा विषय कहा कि रॉ मैटेरियल्स को एक्सपोर्ट नहीं करना चाहिए, वैल्यू ऐड करके करना चाहिए, बहुत अच्छी बात कही अश्विनी जी ने। और साधारणतः इस सरकार का जो अम्बिशस टार्गेट्स हैं कि जैसे स्टील है, क्या हम स्टील में 300 मिलियन टन तक पहुँच सकते हैं, आज 120 मिलियन टन या कुछ भारत में बनता है। Can we aim to make it 300 million tonne? ऐसे ही एलुमिना में क्या हम self-sufficient हो सकते हैं, एल्युमीनियम में। आजके दिन पता नहीं आप लोग कितना जानते हैं पर एलुमिना कुछ मात्रा में अभी भी एक्सपोर्ट होता है भारत से तो बड़े शर्म की बात है और कुछ समय के लिए माइंस मिनिस्ट्री भी मेरे पास थी तो आपको जानकर हैरानी होगी कि माइंस मिनिस्ट्री के फाइलों में नोट्स हैं जिसमें लिखा गया है कि NALCO should not expand its aluminium production capacity (NALCO is our PSU, making aluminium).

उसको यह आदेश दिया गया भारत सरकार द्वारा, हमारे सरकार आने के पहले कि आप अपनी कैपेसिटी एक्सपैंड मत करो क्योंकि कोयले की शॉर्टेज है, कोयले की शॉर्टेज के कारण आपको कोल नहीं मिलेगा तो आपकी प्रोडक्शन कॉस्ट ज़्यादा होगी उसके बदले शायद ईरान या इराक, ईरान में, ईरान में जाकर NALCO एक्सपैंड करे अपनी प्रोडक्शन फैसिलिटी और यहाँ से एलुमिना ईरान भेजकर एल्युमीनियम बने। उस डिसीजन को मैंने रिवर्स किया था कि जो एक्सपेंशन करना है भारत में होगा, ओडिशा में होगा और अब NALCO उस एक्सपैंशन प्रोजेक्ट के ऊपर काम कर रहा है जिससे एलुमिना भारत में बने और ईरान में न बने एल्युमीनियम। भारत का एलुमिना भारत में इस्तेमाल हो, ओडिशा में इस्तेमाल हो, हमारे युवा-युवतियों को उससे रोज़गार के अवसर मिले, डायरेक्ट एम्प्लॉयमेंट मिले, इनडायरेक्ट ऑपर्चुनिटी मिले और वैल्यू एडेड प्रोडक्ट भारत में रहे बजाये कि सिर्फ रॉ मटेरियल एक्सपोर्ट करके विदेश से फिनिश्ड प्रोडक्ट भारत में आये।

आपने ज़रूर ज़िक्र किया 20 billion dollar worth of imports, जैसा मैंने कहा tonnage बढ़ा नहीं है, वैल्यू ज़रूर बढ़ी है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटीज के दाम पिछले साल बहुत हाई रहे जिसकी वजह से 20 billion dollar तक गया है। पर इस इम्पोर्ट में भी दो अंश हैं एक है कोकिंग कोल जो भारत में sufficient quantity में अवेलेबल नहीं है, रानीगंज झरिया में है जहाँ आग के कारण और सेट्लमेंट्स के कारण अभी तक हम उसको एक्सप्लॉइट नहीं कर पा रहे हैं। तो यह जो लगभग 50 मिलियन टन कोकिंग कोल और यह सबसे महंगा है, बीच में तो 250 dollar per tonne गया था, तो आप अंदाज़ा लगाइये 50 मिलियन टन अगर 250 डॉलर पर इम्पोर्ट करते हैं तो 12.5 बिलियन तो कोकिंग कोल इम्पोर्टर हैं एकदम अनिवार्य हैं इसमें हमारे पास कोई साधन नहीं है डोमेस्टिक प्रोडक्शन से रिप्लस करने के लिए।

फिर भी झरिया रानीगंज में आग को बंद करना, कंट्रोल करना, रिसेटल करना वहां के लोगों को जिससे कोकिंग कोल प्रोडक्शन बढ़ सके इसके लिए झारखंड सरकार और केंद्र सरकार ने काफी प्रयत्न किया है, काफी काम बढ़ा है और मुझे उम्मीद है उसमें भी आगे चलकर कोकिंग कोल हम भारत में बढ़ा सकें। थर्मल कोल की एक अलग विशेषता है, कुछ लोगों को ध्यान होगा मैंने 1 billion tonne produce करे भारत उसकी कल्पना की थी बाद में ऐसी स्थिति आयी कि 69 मिलियन टन पिटहेड्स, कोल माइंस के ऊपर स्टॉक इकट्ठा 31 मार्च 2017 को, 69 मिलियन टन! और उसी समय पावर प्लांट्स के पास लगभग 40 या 45 मिलियन टन कोल स्टॉक था। और पावर प्लांट्स ने कोल उठाना बंद कर दिया, रेलवे को भी नुकसान कोल कंपनियों को भी नुकसान और हमें प्रोडक्शन रेगुलेट करनी पड़ गयी जिसके कारण हम जो 1 billion tonne की तरफ तेज़ी से बढ़ रहे थे वह प्रोजेक्ट को एक प्रकार से लगाम लग गयी।

तब हमने डिटेल में स्टडी किया भाई इम्पोर्ट हो रहा है एक तरफ तो हमारा कोल बिक क्यों नहीं रहा है, क्यों इतने स्टॉक्स हैं? भाइयों बहनों आपको हैरानी होगी कि पिछली सरकारें इतनी निहत्ती थी की बजाये कि यह भारत की बढ़ते हुए कोल डिमांड को देखते, नयी कोल माइंस खोलते नयी प्रोडक्शन बढ़ाए उन्होंने पावर प्लांट्स को यह अनुमति दी, rather उनको कहा कि आप इम्पोर्टेड कोल के डिज़ाइन पर अपने पावर प्लांट्स बनाओ। भारत असमर्थ रहेगा sufficient या पर्याप्त मात्रा में कोयला देने  के लिए, आप विदेशी कोयले के ऊपर अपना डिज़ाइन करो बॉयलर।

और आपको जानकर हैरानी होगी आज हमारे पास इतने सारे प्लांट्स हैं, कुछ शत प्रतिशत इम्पोर्टेड कोल पर चलते हैं, कुछ बिना ब्लेंडिंग ऑफ़ इम्पोर्टेड कोल् यूज़ ही नहीं कर सकते हैं भारत का डोमेस्टिक कोल जिसके कारण ……. और कुछ प्लांट्स लगे हैं कोस्ट पर जिसमें जब तक आप ट्रांसपोर्ट करो कोल माइन से इतना महंगा हो जाता है कोयला और भारत के कोयले में फ्लाई ऐश बहुत ज़्यादा है। लगभग 45% फ्लाई ऐश है, वॉशिंग भी करो तो 35% फ्लाई ऐश है। तो आप जब कोयला लॉन्ग डिस्टेंस ट्रांसपोर्ट करते हो तो 35% तो आप सिर्फ फ्लाई ऐश कर रहे हो, आपको दो-तिहाई उसमें कोयला मिलेगा पावर प्लांट को।

तो उसके कारण यह तीन, एक तो टोटली डिपेंडेंट ऑन इम्पोर्टेड कोल जो डिज़ाइन बॉयलर्स हैं, एक जो ब्लेंडेड कोल ही यूज़ कर सकते हैं जिसमें पार्शियली इम्पोर्ट चाहिए और एक जो कोस्ट में प्लांट्स लगे हैं जिसके लिए हमारे पास सस्ता कोयला पहुंचाने का साधन नहीं है। यह तीनों को अगर आप कैलकुलेट करोगे तो आप पाओगे कि हमारे पास बहुत कम हेडरूम है इस कोयले के इम्पोर्ट को कम करने का और स्वाभाविक रूप से कोयले का इम्पोर्ट यह 200 मिलियन का 4 साल से चलते आ रहा है लेकिन हमने उसको बढ़ने नहीं दिया।

इस सरकार के आने के बाद कोई नया प्लांट विदेशी कोल के ऊपर नहीं लगने दिया, सबको रोका गया जिसके ऑर्डर्स नहीं हुए थे। और आज कोई प्लांट लगता है तो उसको शक्ति के तहत एक ट्रांसपेरेंट पारदर्शी तरीके से लिंकेज मिल सकता है, पारदर्शी तरीके से कोल ब्लॉक्स का आवंटन या ऑक्शन होता है, ऑक्शन ऐसा होता है कि आप अपने मोबाइल फ़ोन पर देख सकते हो पूरी ऑक्शन की प्रक्रिया जिसमें किसी प्रकार का भ्रष्टाचार का स्कोप नहीं रखा गया। मैं चाहूँ भी तो सुभाष जी को मैं फेवर नहीं कर सकता कोयले का ब्लॉक या लिंकेज के लिए। और यह इसलिए किया गया जैसा आपने रेज किया कि दूर के कोल माइन से कोयला आता है इसलिए हमने लिंकेज को भी अभी ऑक्शन कर दिया है so that उसमें भी पारदर्शिता हो। नहीं तो आपका प्लांट इधर है, नज़दीक में कोल माइन है वहां से आपको कोल मिलने के लिए रिश्वत दे देनी पड़ती थी।

उसके बदले हमने कहा जो लिंकेज खुलेगी सबको ऑपर्चुनिटी है आप बिड करो, आप highest bidder होंगे आपको मिल जायेगा, अगर आप existing linkage holder हो, दूर से आपको कोयला आता है तो भी आप बिड करके नज़दीक से ले सकते हो वह सरेंडर कर देना। हमने rationalisation के लिए allow किया कि लोग swap करे linkages, राजनाथ जी के पास एक लिंकेज है, अश्विनी जी के पास एक है। यह दूर से ट्रांसपोर्ट करते हैं अपनी माइन से यह भी दूर से करते हैं, दोनों एक्सचेंज कर लें और अपने नज़दीक के माइन से अपनी requirement meet करे, जो सेविंग है वह भारत की  जनता को मिले उसका लाभ जिससे बिजली की कीमतों पर भी हमने नियंत्रण रखा।

तो एक प्रकार से टेक्नोलॉजी, ईमानदारी, पारदर्शिता और कर्मठ परिश्रम करके पिछले साढ़े चार सालों में जो प्रगति हुई है मैं समझता हूँ विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि अब कोयले के इतिहास में … हमने अभी-अभी एक five year challenge 2-3 दिन पहले सरकार ने किया था शायद सोशल मीडिया पर कि हम चैलेंज करते हैं कि कोई भी क्षेत्र में पांच साल पहले क्या स्थिति थी उससे बेटर स्थिति हम आजके दिन आपको दिखा सकते हैं।

और मैं चैलेंज करता हूँ कि कोयले के 50 साल के इतिहास में कोई भी ईयर ले लो, पिछले पांच साल को तो छोड़ो मेरे आने के पहले, कोई पांच साल का पीरियड ले लो अगर इतनी ईमानदारी से, इतनी अच्छी ग्रोथ और ग्रोइंग प्रोडक्शन के साथ, इतनी क्वालिटी में सुधार के साथ अगर कोई और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कोई पीरियड गया हो जो मोदी जी के पीरियड से बेटर हो तो यह मेरा खुला चैलेंज है किसी को भी कि I am willing to come on any public debate on any platform to debate this issue. This has been the golden years of black coal, as Subhash ji termed it.

और मुझे पूरा विश्वास है इसी प्रकार से बिना भ्रष्टाचार के और ज़्यादा अच्छी प्रोडक्टिविटी, और ज़्यादा अच्छा आउटपुट, और ज़्यादा लोगों को भारतीय कोल से अपनी बिजली बनाने की सहूलियत, स्टील, सीमेंट वगैरा सबको भी अधिक मात्रा में कोयला यह दिलाने में हम सब पूरी तरीके से प्रयत्न करते रहेंगे, सफलता भी प्राप्त करते रहेंगे।

वैसे आपने कई चीज़ें solar panels वगैरा का भी, कई electric vehicles, I can respond to all of them, but वह आगे और चर्चाओं में करते रहेंगे। आज काफी लम्बा हो गया है, बच्चों को भी जाना होगा आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने मुझे यह मौका दिया। और CEPR इसी प्रकार से और गोष्ठियां हों ऐसे डायलॉग्स लगते रहे, फीडबैक बनाते रहे जो-जो आपने कहा उसका मुझे अवश्य आप भेजना फीडबैक और उसमें जो-जो चीज़ों पर हम और काम करके सुधार कर सकते हैं, I can assure you 100% consideration of all the points that you have raised.

Thank you.

 

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