आपको अपना मेमोरेंडम अरुण जेटली जी के नाम पर भेजना पड़ेगा। मैं माध्यम बन सकता हूँ लेकिन यह जो-जो विषय आपने अभी बताए या अभी आपने जो रेलवे की कंप्लेंट का बिताया इसके कोजेंट रीज़न्स के साथ समस्या और उसके पीछे कैसे इस समस्या को हल किया जाए, सरलीकरण किया जाए ऑडिट के प्रॉसेस को। अगर आप लोग इस पर विचार विमर्श करकर श्री अरुण जेटली जी के नाम पर पत्र देते हैं और चाहे मुझे भिजवा दीजिए तो उस पर पूरी तरीक़े से गौर करके और जीएसटी काउंसिल के समक्ष रखा जा सकता है। फ़ाइनल निर्णय जीएसटी काउंसिल ही लेता है।
जैसे पिछली बार भी जब मीटिंग में कई चीज़ें करी कोटा स्टोन की समस्या हल करी, मूर्तिकारों की समस्या हल करी, 93% जीएसटी टैक्स पेयर्स को जो पाँच करोड़ के टर्नओवर से नीचे हैं और ऐसे 93% उन सबको अब क्वाटर्ली रिटर्न भरना पड़ेगा। उसका सॉफ़्टवेयर में, जीएसटीएन नेटवर्क में चेंजेस किए जा रहे हैं, सरल एक पेज का सिंपल फॉर्मैट में कैसे क्वार्टरली रिटर्न भरें वह वेबसाइट पर डाल रखा है लोगों के सुझाव माँगने के लिए।
मैं समझता हूँ जीएसटी एक इवॉल्विंग व्यवस्था है। देखें एक प्रकार से तो कुल 18 महीने भी पूरे नहीं हुए हैं, यह 18वाँ महीना है। विश्व में भारत जितनी बड़ी कोई देश ने जीएसटी लागू करने की हिम्मत ही नहीं जुटाई है। अभी तक जितने देशों में जीएसटी लगा है वह छोटे-छोटे देश हैं। आज अमेरिका में कोई जीएसटी नहीं है, चाइना में कोई जीएसटी नहीं हैं जो बड़े देश हैं। भारत में एक निर्णायक सरकार, मोदी जी की सरकार ने सब राज्यों को साथ में लिया और वास्तव में कोआपरेटिव और कोलैबोरेटिव फेडेरालिस्म संघीय ढांचे को कैसे सबकी सहमति के साथ चलाया जाए, कैसे सबको साथ लेकर यह नई व्यवस्था बनाई जाए।
अच्छा व्यवस्था बनाने में कोई मोदी जी या अरुण जी या किसी का कोई उद्देश्य और कुछ नहीं था यही था कि आप लोग सबको अफ़सरशाही से मुक्ति मिले, आप सबके लिए सरल टैक्स की व्यवस्था हो। आख़िर हम पूरे समय जीएसटी के बारे में चर्चा करते हैं यह भूल जाते हैं कि जीएसटी रेट्स साधारणत: जो तय हुए वह पहले जो रेट्स थे 40 टैक्स और सेस के उन सबको जोड़कर रेट तय हुए।
और उसके बाद एक साल के भीतर-भीतर 370 वस्तुओं पर रेट्स कम किए गए, 65 से अधिक सेवाओं पर रेट्स कम किए गए और यह सिलसिला लगातार चलता जाएगा। तो जैसे-जैसे जीएसटी रेवेन्यू बढ़ता है और आप सबका तो मैं मानता हूँ कि धन्यवाद करना चाहिए कि इतनी अच्छी तरीक़े से ट्रेड और इंडस्ट्री ने जीएसटी को अपनाया है। वास्तव में जीएसटी लाया ही गया था आप लोगों के अनुरोध पर। पूरे देश भर से आवाज़ उठती थी जीएसटी लाओ जीएसटी लाओ, और तो कोई ला नहीं पाता मोदी जी में हिम्मत थी लाने की और आज इतने कम समय में लगभग सेटल डाउन हो गया, आज किधर कोई बात आती नहीं।
वैसे आज की भी चर्चा देखें तो सरलीकरण होना चाहिए उसपर तो किसी की दो राय हो ही नहीं सकती है। पर सरलीकरण के सुझाव आप को स्पेसिफिक दें तो उसके हिसाब से सरलीकरण किया जा सकता है। कुछ सवाल उठा कि लाइम में इनवर्टेड ड्यूटी का। अब वास्तव में यह अलग-अलग वस्तुओं में अलग-अलग इनपुट्स जाते हैं तो ऐसे एक-एक वस्तु के इनपुट, इनपुट तो कॉमन होते हैंना तो लाइम में जो इनपुट जाते हैं वह 10 और चीज़ों में जाता होगा।
एक-एक एन्डप्रोडक्ट के हिसाब से इनपुट टैक्स या रेट अलग-अलग नहीं हो सकते हैं, रेट तो एक ही होगा एक वस्तु का। तो मैं समझता हूँ वह कुछ इश्यूज़ पर यह विषय आ सकते हैं कुछ प्रोडक्ट्स में लेकिन पहले की जो व्यवस्था थी उससे लाख गुना अच्छी है। पहले तो कभी हम यह इनपुट क्रेडिट की कभी सोच भी नहीं थी। तो मैं समझता हूँ कि इसको ओवरऑल हज़ार वस्तु, हज़ार आइटम्स है लाइन आइटम्स की उसके परिप्रेक्ष्य में भी देखना पड़ेगा।
लेकिन जो-जो आपके सुझाव हैं वह अवश्य भेजिए हर एक पर ग़ौर होगा लेकिन जीएसटी काउंसिल के तहत ही होगा। वह चुनावी दौर के बीचों-बीच आचार संहिता के बीच में तो न कोई आश्वासन दे सकते हैं न कोई उसका निर्णय ले सकते हैं। वह तो 7 तारीख़ के बाद ही अब जो होगा उसपर जीएसटी काउंसिल बैठकर निर्णय ले सकेगी।
और वास्तव में एक मीटिंग तो हाल ही में होने वाली है तो अब इतना लेट हो गया है कि मुझे पता नहीं है अब अच्छे से स्टडी होकर, फिटमेंट कमेटी वग़ैरह स्टडी कर कर काउंसिल के समक्ष इतनी जल्दी रख भी पाएगी कि नहीं। फिर भी सुझाव भेजिए इस मीटिंग में नहीं अगली मीटिंग में होगा। व्यवस्थाएं तो लंबे अरसे के लिए बनती हैं ना। तो मैं समझता हूँ कि साधारणत: एक अच्छी व्यवस्था, सरल व्यवस्था, 40 टैक्स और सेसिज़ को जोड़ने वाली व्यवस्था जो।
आख़िर पहले तो अफ़सर हर टैक्स के अलग-अलग होते थे। एक्साइज़ का अलग कोई अफ़सर होता था, सर्विस टैक्स का कोई अलग था, वैट का कोई और था, अलग-अलग सेस के लोग अलग मैनेज करते थे। अब राकेश जी मुंबई से हैं वह आपको बताएँगे मुंबई के ऑक्ट्राय नाका की क्या हालत थी। पूरे दिन भर गाड़ियां जाती थी तो अलग-अलग प्रकार से उसके ऊपर चैक पोस्ट लगे हुए रहते थे, चैक पोस्ट के ऊपर लोग चेकिंग करते थे।
अच्छा maybe ट्रेड और इंडस्ट्री ने भी बहुत प्रकार के काम किए हैं उसका मैं ऑडिट नहीं करना चाहूंगा। कौन सी गाड़ी में क्या सामान जा रहा है, पहुँच रहा है, नहीं पहुँच रहा है, पहुँचने के बाद क्या हो रहा है, ज़्यादा तो नहीं बोलूं ना, हम सब समझदार लोग हैं हम समझते हैं क्या होता था पहले। अब उसके लिए ईवे बिल लाना ज़रूरी हो गया। पर एक मैं आपको ज़रूर बता सकता हूँ जो मेरा ख़ुद का मानना है। व्यापारी वर्ग मूलतः ईमानदार व्यवस्था चाहता है, कोई व्यापारी मुझे आज तक नहीं मिला है उद्योगपति, व्यापारी, उद्यमी जो कोई बेईमानी की व्यवस्था से ख़ुश था।
सबके दिल में एक चाहत थी कि यह सुधरे, व्यवस्थाएं ईमानदार हों, सब को सामान्य अवसर मिले अपने व्यापार और अपने उद्योग को तेज़ गति से बढ़ाने का। और मेरा तो अनुभव है कि साधारणत: एक मार्केट में समझो 8-10 दुकानें हैं, हो सकता है कोई एक व्यक्ति ग़लत काम करता हो पर उस एक व्यक्ति के ग़लत काम करने का परिणाम यह होता था कि बाक़ी 7-8 दुकानों को तय करना पड़ता था कि या तो वह भी ग़लत काम करें तो लेवल प्लेइंग फ़ील्ड हो जाए सब एक ही लेवल पर आ जाएं, भाई सब ही ग़लत करेंगे तो सबके टैक्स की चोरी होगी और या दुकान बंद कर कर गाँव चले जाओ।
परंतु जीएसटी में यह एक किरण दिखती है भविष्य के लिए कि जब सब लोग सामान्य टैक्स और एक रेट टैक्स का देंगे देश भर में तो तब कम्पटीशन ईमानदारी से सबके लिए सामान्य होगा, सबको कम्पटीशन में खरा उतरने के लिए और व्यापार और उद्योग को और तेज़ गति देने के लिए, बढ़ाने के लिए, अच्छा मुनाफ़ा कमाने के लिए लोगों को गुणवत्ता पर ध्यान देना पड़ेगा, अपनी सेवा पर ध्यान देना पड़ेगा, अपना प्रोडक्ट अच्छा हो, क्वालिटी प्रोडक्ट हो, हमारी सर्विस कस्टमर सर्विस अच्छी हो, हम प्रॉसेस के थ्रू टेंडर या ईमानदार पर्चेज़िंग प्रॉसेस के थ्रू हम अपने आपको खरे उतरें और कम्पटीशन के थ्रू अपना सामान बेच पाएं।
कम्पटीशन ईमानदारी की कम्पटीशन हो, equals की कम्पटीशन हो। और मेरा स्वयं का अनुभव है कि जहाँ-जहाँ मैंने यह बात रखी है ख़ासतौर पर युवा पीढ़ी के साथ उनका तो एक दम पक्का मानना है कि भाई हमको अपने बाप-दादा की तरह व्यापार और उद्योग नहीं चाहिए। हमको तो अच्छी शान से काम करना है दिन में, रात को पार्टी करनी है और चैन की नींद रात को सोनी है, अगले दिन जब हम कारख़ाना पहुँचे तो हमें कोई सफ़ेद एंबेसडर न दिखे हमारी फ़ैक्ट्री के बाहर और मैं समझता हूँ हम में से सब यही चाहते हैं।
शायद आपकी और मेरी अधिकांश एक दो-चार यंगस्टर्स को इस रूम में छोड़ दें यहाँ बैठे हैं तो अधिकांश हम सब एक उम्र के हैं और शायद हमें इस नई व्यवस्था से जुड़ने में थोड़ा समय लगेगा। यह एडजस्टमेंट का पीरियड है पर मैं आपको यह आश्वस्त करना चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली जी और पूरी भारतीय जनता पार्टी इस बात पर विश्वास करती है कि इस देश का जो हर व्यापारी, हर उद्योग का सपना था कि यह देश ईमानदार हो, देश की व्यवस्थाएं सुधरें, देश की व्यवस्थाएं ईमानदार हों हम उस राह पर अब चल चले हैं और कोई इसको रोक नहीं पाएगा।
आज दुनिया देख रही है कि भारत में व्यवस्थाएं सुधरी हैं, बदली हैं। आख़िर कोई इंडेक्स ले लो चाहे कॉम्पिटिटिव इंडेक्स ले लो, ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस ले लो, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की इंडेक्स ले लो जो देखती है अलग-अलग देशों में कितना भ्रष्टाचार है, नहीं है, कैसा है। हर एक में भारत में सुधार हो रहा है, हर एक इंडेक्स में। और मैं समझता हूँ हम भी अगर गहराई से देखें विषय को तो हमें भी ध्यान आएगा कि अफ़सरशाही कम होती जा रही है, आहिस्ता-आहिस्ता हम सबके लिए काम करना सरल होते जा रहा है और जो व्यवस्थाएं इतने सालों से चल रही थी वह कोई ओवरनाइट।
हम ज़मीन धरातल तक बदलाव लाने में अगर सफल न भी हुए हों लेकिन यह सिलसिला ऊपर से शुरू होता है। मैं एक छोटा उदाहरण दूँगा एक बार यह सात-आठ साल पहले की बात है मेरी पत्नी शायद टैक्सी में किधर गयी होगी एक जगह से दूसरी जगह और टैक्सी ड्राइवर ने शायद 80 रुपये मीटर में था उसने 100 रुपये माँग लिए। अब पता नहीं क्या हुआ उस दिन मेरी पत्नी ने उसको बड़े प्यार से पूछा कि मीटर तो 80 रुपये दिखा रहा है आप 100 क्यों माँग रहे हो और वैसे शायद नॉर्मल कोर्स में 100 रुपये का नोट देती तो वापस लेती भी नहीं अगर उसने 80 रुपये बोले होते लेकिन जब उसने 100 बोले और मीटर में 80 दिखा रहा था तो पूछ लिया कि भाई 80 हुआ है मीटर में आप 100 क्यों माँग रहे हो।
मैं आपको बहुत दुख के साथ उसका जवाब बताना चाहूँगा। टैक्सी ड्राइवर ने मेरी पत्नी को कहा कि मेमसाहब मैंने 20 रुपये ही तो ऊपर माँगे कोई कोयले की खदान थोड़ी माँगी ली है। और यह रियल एग्ज़ाम्पल दे रहा हूँ तब तक तो मेरा कोई मंत्री बनने का भी आसार नहीं था और कोयले का मंत्री बनने का तो सपने में नहीं सोचा था।
लेकिन मोदी जी ने व्यवस्थाएं बदली। आज कोई कोयले की खदान पर उंगली उठाकर बता दे कि बिना ऑक्शन के किसी को कोयले की खदान मिल सकती है इस देश में, सरकारी कंपनियों को छोड़कर सरकारी कंपनियों को तो गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट दी जा सकती है। पर जब ऊपर से व्यवस्थाएं साफ़ होती जाती हैं तो वह नीचे तक पहुँचती हैं और पूरे देश में वह लहर गूंजती है कि अब देश बदल रहा है, देश की परंपरागत स्थिति से व्यापार नहीं होगा अब बदलाव होगा पूरे व्यापार करने के ढंग में।
और मैं समझता हूँ कि आप जितना चाहेंगे मैं एग्ज़ाम्पल एक के बाद एक गिना सकता हूँ पर एक एग्ज़ाम्पल जिसमें हम सबको रुचि रहती है वह मैं ज़रूर आपके समक्ष रखना चाहूँगा। वह है इनकम टैक्स की। कुछ तो कई बार मुझे कहते हैं कि बड़े इनकम टैक्स के नोटिस आ रहे हैं वगैरा-वगैरा। मैं समझता हूँ कि जितनी जगह मैं गया हूँ मैंने लोगों को कहा है कि भाई अगर कोई आपको लगता है बहुत ज़्यादा बड़े पैमाने पर आ रहा है तो 10, 20, 25 नोटिस ही कलेक्ट कर कर एक जिरॉक्स कर कर मुझे भिजवा कर तो दो एक बार। मैं देखूँ तो सही कि कोई ग़लत तो नहीं कर रहा है, कोई डिवीज़न में ग़लत तो नहीं कर रहा है, कोई लोकल एरिया की कोई प्रॉब्लम तो नहीं है। मुझे आज तक किसी ने भेजा नहीं है। अफ़वाहों पर हम चलते जाते हैं लेकिन आप देखिए इनकम टैक्स की व्यवस्था कैसी बनाई जा रही है। आप याद करिए इस साल आपका इनकम टैक्स का रिटर्न के लिए आपको किसी को भी दफ़्तर जाना पड़ा इनकम टैक्स के।
पहले ही 3-4 महीने के अंदर जितने लोगों ने रिटर्न फ़ाइल किया था उनको as it is accept कर कर कम्प्यूटर द्वारा या तो RTGS से अगर आपने RTGS डिटेल्स दिए हैं या चेक आपके घर पर पहुँच गया है बिना कोई प्रश्न पूछे। 70-75,000 करोड़ के इनकम टैक्स रिफंड दो करोड़ लोगों तक पहले ही तीन-चार महीने में सीधा पहुँचे आपको किधर जूते नहीं घिसने पड़े, किधर कुछ ग़लत काम नहीं करना पड़ा।
स्क्रूटनी होती थी पहले। आपको याद होगा लोग आते थे कि हम आपका स्क्रूटनी में नाम आ रहा है, याद है कि नहीं और फिर दलाल बिचौलिए आते थे कि आप स्क्रूटनी में नाम बचाने की। अब वह सब चीज़ें कभी हो ही नहीं सकती क्योंकि न मेरे हाथ में है न वित्त मंत्री के हाथ में है न प्रधानमंत्री के हाथ में है कि किसके यहाँ स्क्रूटनी होगी किसके यहाँ नहीं होगी।
पूरा कम्प्यूटर से डेटा माइनिंग कर कर कंप्यूटर जी तय करेंगे कि किसकी स्क्रूटनी होगी, किसकी स्क्रूटनी नहीं होगी। कोई कभी आपके यहाँ आए भी यह धमकी देकर तो उसको पुलिस में अरेस्ट करवा देना क्योंकि कोई इन्फ्लुएंस कर ही नहीं सकता है स्क्रूटनी को। कोई आपको ग़लत फ़हमी में डाले आपकी हो रही है मैं बचा दूँगा, नहीं बचा दूँगा या करवा दूँगा सीधा पुलिस थाने में जाकर उसके ख़िलाफ़ कंप्लेंट लिखवा देना।
हमने व्यवस्थाएं पूरी ईमानदार कैसे बन सकें उस पर बल दिया है, नीव से व्यवस्था बदलने पर बल दिया है। आपको जानकर ख़ुशी होगी कि कहाँ पहले सैकड़ों लोगों की स्क्रूटनी होती थी अब मात्र 0.3 यानी एक हज़ार रिटर्न जो फ़ाइल होते हैं उसमें मात्र तीन लोगों की स्क्रूटनी होती है, हर हज़ार रिटर्न पर मात्र 3 लोगों की स्क्रूटनी, और वह तीन भी कोई ह्यूमन नहीं तय करेगा कंप्यूटर जी तय करेंगे डेटा चेक कर कर। अगर भाई किसी के हिसाब में एक करोड़ रुपये प्रॉफिट से सीधा एक लाख रुपये हो गया और या किसी के अकाउंट में एक लाख से प्रॉफिट सीधा एक करोड हो गया।
मैं अभी-अभी बीकानेर होकर आया हूँ तो उसका उदाहरण तो आज कल बड़ा चर्चित है कि कैसे कम समय में एक रुपये की चीज़ सात रुपये की हो जाती है। अब ऐसी चीज़ें जब कंप्यूटर देखेगा तो स्वाभाविक है कि उसमें तो कुछ प्रश्न उठाने पड़ेंगे। मैं कोई राजनीति नहीं लाना चाह रहा हूँ यहाँ पर लेकिन I am just giving an example कि इस टाइप की चीज़ों को तो चेक करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए।
उसके अलावा आगे की स्क्रूटनी की व्यवस्था सुनिए क्या बन रही है और उसका पूरा प्रोसेस तय हो गया है। मेरे समक्ष उसकी पूरी प्रेजेंटेशन हुई थी जब कुछ दिनों के लिए मैं देखता था और मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे वह फ़ाइल साइन करने का मौक़ा मिला जिसमें यह निर्धारित किया है, और यह प्रॉसेस तय हो गया है अब सॉफ़्टवेयर बन रहा है कि अगर किसका एग्ज़ाम्पल लूँ माहिती जी का इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल हो रहा है तो इनकम टैक्स रिटर्न में माहिती जी अपना नाम, पैन नंबर के साथ पूरी डिटेलस देते हैं और बाय चांस कंप्यूटर में तय हुआ कि इसका स्क्रूटनी होना है इस रिटर्न का माहिती जी के रिटर्न का।
तो वह जिस इनकम टैक्स अफ़सर के पास जाएगा उस इनकम टैक्स अफ़सर के पास इनका नाम और पैन नंबर नहीं जाएगा एक डमी नंबर लिख कर 12345 समझो एक डमी नंबर लिखकर पूरी डिटेलस एक अफ़सर के पास जाएंगी अलग शहर में, किसी को मालूम ही नहीं किसका रिटर्न है क्या है। वह अफ़सर स्टडी कर कर प्रश्न निकालेगा और कंप्यूटर में फीड इन कर देगा 12345 के नाम पर। कंप्यूटर अपने आप उससे वह प्रश्न आपके पास भेजेगा।
तो अभी आपको भी पता नहीं आपका अफ़सर कौन था, अफ़सर को भी पता नहीं आप कौन हैं। जब आप इसका जवाब लिखोगे, जब माहिती जी जवाब लिखेंगे एक-एक प्रश्न का अब वह उस अफसर के पास नहीं जाएगा एक तीसरे अफ़सर के पास जाएगा again with a dummy number, अगेन उसको मालूम नहीं कि पहला अफ़सर कौन था, उसको मालूम नहीं माहिती जी कौन हैं, उनका पैन नंबर क्या है। कोई एक डमी नंबर के साथ एक तीसरे अफ़सर के पास सवाल भी जाएँगे, प्रश्न भी जाएँगे और रिटर्न भी जाएगा और उसके ऊपर वह अगर कुछ और पूछना है पूछ सकता है या असेसमेंट कर कर अपने सीनियर अधिकारी से अप्रूव कराएगा।
इस लेवल की ट्रांसपेरेंसी और इस लेवल की एकाउंटेबिलिटी मैं समझता हूँ हम में से किसी ने कभी कल्पना नहीं की थी की इस देश में आ सकती है जिसको प्रधानमंत्री मोदी जी कर रहे हैं। और पूरी तरीक़े से हो सकता है हमारे चार्टर्ड अकाउंटेंट मित्र मेरे भाई थोड़े नाराज़ हो सकते हैं इस बात से (नहीं ना अच्छी बात है) क्योंकि मैं समझता हूँ कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट भी ग़लत काम नहीं करना चाहता है। वह भी इज़्ज़त की कमाई खाएँगे, अच्छी तरह आपको हेल्प करेंगे, आपके रिटर्न्स बनाएंगे, क्वेश्चन आंसर करेंगे, वैल्यू एडेड सर्विसेज़ देंगे बजाए कि ग़लत काम में शामिल होने के, am I right sir?
और इस प्रकार से एक-एक व्यवस्था को कैसे सुधारना, कैसे पारदर्शी बनाना और सबको अच्छे सामान्य अवसर मिलें अपने उद्योग को प्रगति करने में यह इस सरकार की प्राथमिकता है और मैं समझता हूँ मैं तो आज सिर्फ़ आपका धन्यवाद करने आया हूँ कि आप लोगों ने जो टैक्स भरने में सरकार का सहयोग किया, जिस प्रकार से पूरी अर्थव्यवस्था को फॉर्मलाइज़ करने में आपने सरकार का समर्थन दिया, जिस प्रकार से जीएसटी को सफल बनाने में अपने पूरे ज़ोर-शोर से समर्थन दिया। उसी के फलस्वरूप आज हमारा भी हौसला बढ़ा है, हमें भी लगता है कि और सरलीकरण किया जाए, हमें भी लगता है कि और टैक्स के रेट्स घटाए जाएं और आज एक-एक रुपया जो आप टैक्स का भरते हो वह एक प्रधानमंत्री जिसके पिता का नाम तो शायद हम में से किसी को मालूम नहीं है और कुछ मित्र विपक्षी पार्टियों के उस पर भी टिप्पणी कर रहे हैं कि जिस आदमी के पिता का नाम नहीं मालूम उसको कैसे सहयोग करना।
अब मुझे पता नहीं माहिती जी आपके पिता का नाम क्या है उसके बावजूद मैं तो आपको समर्थन कर रहा हूँ ना। अच्छा और कुछ लोगों के पिता ने तो यहाँ तक बोल दिया था कि जब मैं एक रुपया भेजता हूँ केंद्र से तो मात्र 15 पैसे ग़रीब तक पहुँचते हैं। अब मैं समझता हूँ ऐसे पिता से तो हमारे प्रधानमंत्री अच्छे हैं जिनका पिता का नाम नहीं मालूम लेकिन जिसने ग़रीबी देखी है, जिसने ग़रीबी अनुभव की है।
पता नहीं आप में से किसने वह छोटी सी एक 30 मिनट की छोटी प्रस्तुतीकरण बनी है “चलो जीते हैं” । उसमें एक छोटा सा अंश है प्रधानमंत्री मोदी जी के जीवन का अगर आप यूट्यूब पर देखें तो मैं समझता हूँ आँख में आँसू आ जाएंगे। एक झलक है कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी जी का मन शेप हुआ है, कैसे उन्होंने तय किया कि मुझे समाज के लिए जीना है, मुझे गरीबों के लिए जीना है।
क्या वह अनुभव थे। कैसे उनकी माँ ने चूल्हे पर रोटी बनाती थी कोयले के चूल्हे पर और धुआँ झोंकती थी जिसकी वजह से आज उज्जवला के तहत हर माता-बहन को LPG की कनेक्शन मुफ़्त में दी जा रही है। कैसे बिना बिजली के वह पढ़ाई कर कर यहाँ तक पहुँचे हैं लेकिन चाहते हैं कोई और ग़रीब का बच्चा बिना बिजली के न रहे, बिजली से वंचित न रहे, हम सबके साथ सामान्य अवसर मिले हर ग़रीब को।
कैसे वह चाहते हैं कि हमारी कोई माता-बहन का अपमान न हो कि सूर्योदय से सनसेट तक (सनराइज़ टू सनसेट तक) कोई हमारी माँ-बहन शौच के लिए न जा पाए और हम सब देखते रह जाएं लेकिन कुछ करें ना। आज 9 करोड़ से अधिक शौचालय बने हैं इस देश में पिछले 4 सालों में। कहाँ तीन में से एक व्यक्ति के घर में शौचालय था, आज 93 प्रतिशत लोगों के घर में शौचालय है जल्द ही उसको शत प्रतिशत कर देंगे। आख़िर यह सब उनके अनुभव हैं जीवन के।
लेकिन यह तभी हो पाया जब आप सबने अपना टैक्स भरा, आप सबने हौसला दिया प्रधानमंत्री मोदी जी और उनकी सरकार को, आप सबने अपनी इनकम टैक्स, आपनी GST, अन्य-अन्य प्रकार से जो समर्थन, जो आशीर्वाद दिया है और जो मेहनत कर कर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर से, जन धन खाते खोलकर, आधार लागू कर कर, पूरा डेटाबेस मैपिंग कर कर वह जो एक रुपया किसी के पिता जी पहुँचा नहीं पाते थे ग़रीब तक और सिर्फ़ 15 पैसे पहुँचता था, सभी बिचौलियों को ख़त्म कर कर आपकी मेहनत की कमाई से पे किया गया टैक्स पूरी तरीक़े से शत प्रतिशत ग़रीब की सेवा में लगे यह जो काम प्रधानमंत्री मोदी जी ने किया है उसके समर्थन में मैं समझता हूँ आज पूरा देश उनके साथ है, उनको आशीर्वाद देता है।
माननीय वसुंधरा राजे सिंधिया जी ने राजस्थान में जिस प्रकार से केंद्र सरकार की और राजस्थान की योजनाओं को गाँव, ग़रीब, किसान तक पहुंचाया। आज भामाशाह योजना आपकी राजस्थान की हम पूरे देश में लागू करने की कोशिश कर रहे हैं आयुष्मान भारत की तरह। जो बिजली के क्षेत्र में जर्जर हालत पिछली सरकार से वसुंधरा जी को मिली थी उसको उन्होंने सुधार कर कर बिजली कंपनियों का घाटा जिसको हम जो राजस्थान की डिस्कॉम्स हैं उसको एक चौथाई कर दिया है।
15-16,000 करोड़ का घाटा हर वर्ष होता था बिजली कंपनियों का 2013 के पहले, 70-75,000 करोड़ का लोन डिस्कॉम के ऊपर था। हम सब व्यापारी भाई उसके सफ़र करते थे, चौबीस घंटे बिजली नहीं आती थी, डीज़ल जनरेटर सेट पर चलानी पड़ती थी फ़ैक्ट्री में। आज उन्होंने उसको समृद्ध किया, मज़बूत बनाया पूरी डिस्कॉम व्यवस्था को।
और मैं समझता हूँ पूरे प्रदेश में, हर घर तक बिजली पहुँचाना, चौबीसों घंटे सब जगह बिजली देना, किसानों को पर्याप्त मात्रा में बिजली देना हर प्रकार से और मैं कई चीज़ें देख रहा था प्रधानमंत्री आवास योजना 14 लाख घरों में, भामाशाह योजना 6 करोड लाभार्थी, उज्ज्वला योजना 37 लाख महिलाओं को मुफ़्त गैस कनेक्शन मिले, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना 509 गाँव जहाँ कभी बिजली नहीं पहुँची थी, 10,500 मजला, टोला, ढाणी जो वंचित थे बिजली से, 14,60,000 घर, परिवार जिन तक बिजली नहीं पहुँची थी।
यह सब काम वसुंधरा जी ने जो आज गाँव, ग़रीब तक पहुँचाया है, यह डबल इंजन केंद्र और राज्य सरकार की जब साथ में मेहनत करती है, काम करती है तब ही प्रदेश में विकास होता है, तब ही प्रदेश में प्रगति की लहर उठती है।
और मुझे पूरा विश्वास है कि व्यापारी समाज, उद्योग जगत अच्छी तरह समझता है कि जब हम अपने दफ़्तर में, फ़ैक्ट्री में पेंट करते हैं तो सीधा एक ऊपर एक हाथ नहीं लगा देते हैं। ऊपर ही एक हाथ लगा देंगे तो नीचे का दीमक, नीचे की गंदगी कभी सामने आएगी नहीं एक-दो साल में वह पेंट फिर निकल कर उतर आएगा। हम पहले स्क्रैप डाउन करते हैं उसको, पुराना सब कचरा निकालते हैं, अगर दीमक लगी है उस दीमक को निकाल कर ठिकाने पहुँचाते हैं, छोड़ भी नहीं सकते हैं नहीं तो सब फर्नीचर पर लग जाएगा।
तो पहले साफ़ करो, पुराने सालों साल की दीमक को निकालो, उसको ठिकाने लगाओ फिर हम 3 राउंड पेंट कर कर एक सुंदर अपना ऑफ़िस बनाते हैं, सुंदर अपना घर बनाते हैं, सुंदर अपनी फ़ैक्ट्री बनाते हैं, विदर्भ इंडस्ट्रियल एसोसिएशन यह सुंदर हॉल बनाता है। इसी प्रकार से जब देश को सुधारना है, जब देश को बदलना है, देश में परिवर्तन करना है तो भाइयों-बहनों यह कोई ओवरनाइट काम नहीं हो सकता है, यह ऊपर लीपापोती नहीं हो सकती अगर मैं मुंबई की भाषा में बोलूँ और कोई उसको मिसकोट न कर देना भैया पर मुंबई की भाषा में बोलते हैं चूना लगाया।
तो जो चूना लगाने का काम लोगों ने वर्षों-वर्षों तक किया है इस देश के साथ प्रधानमंत्री मोदी जी उसको बदल रहे हैं जड़ से दीमक को निकाल कर, जड़ से भ्रष्टाचार को निकाल कर हम सबके लिए और हमारे बच्चे कभी यह न कोसें हम सबको कि कैसी व्यवस्था छोड़ कर हमारे लिए जा रहे हो। हम सबको इस देश के भावी पीढ़ी के लिए एक ज़िम्मेदारी है कि हम एक अच्छी व्यवस्था छोड़े। और आप सबका धन्यवाद करता हूँ कि आपने इस अच्छी इमानदार व्यवस्था को बल दिया, सहयोग दिया, आशीर्वाद दिया और मुझे पूरा विश्वास है कि यह सिलसिला हमारा लगातार चलता रहेगा, साथ-साथ सुधार होता रहेगा हर व्यवस्था में।
सुधार संसार का नियम है, परिवर्तन संसार का नियम है और मैं समझता हूँ जब आप और हम मिलकर देशहित में, जनहित में काम करेंगे तो दुनिया की कोई ताक़त भारत को फिर एक बार वह सुनहरी चिड़िया बनने से रोक नहीं पाएगी। आप सबका समर्थन और आशीर्वाद की अपेक्षा से मैं आज यहाँ आप सब से यहाँ से विदा लेता हूँ।
आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।