सिमी जैन जी, गीता गुप्ता जी, मंच पर और नीचे बैठे सभी महानुभाव भाईयों और बहनों, और दोनों बेटियां जिन्होंने एक ने सुन्दर कविता सुनाई, एक ने डॉक्टरी में अपनी पूरी कमाई समाज को और देश को समर्पित की, दोनों को नमन करता हूँ, बधाई देता हूँ। और आज आप सभी को तहे दिल से बधाई देता हूँ कि इतना सुन्दर प्लॉट हमारे समाज को मिला है। मैं अभी-अभी देख रहा था कनॉट प्लेस इतना नज़दीक है कि चलकर जा सकते हैं, आपको गाड़ी भी न लगे ऐसे कनॉट प्लेस, और मुझे लगता है कनॉट प्लेस के इतना निकट ज़मीन, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन भी पांच मिनट, कनॉट प्लेस भी पांच मिनट।
मैं समझता हूँ हम सौभाग्यशाली हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जी को जब यह विषय रखा गया कि यहां पर एन्क्रोचमेंट है, प्लॉट की तकलीफ हो रही है उन्होंने क्षण भी नहीं लगाया, तुरंत आदेश दिए कि इसको खाली किया जाये। और शायद इस प्लॉट पर बहुत लोगों की नज़र रही होगी आसान नहीं रहा होगा इस प्लॉट को मिलना। लेकिन नरेश जी को दात दूंगा कि यह लगातार लगभग 20 वर्षों से इस काम के पीछे लगे रहे हैं और हम सबके लिए बहुत ख़ुशी की बात है।
वैसे आज पुण्यतिथि है भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी की, पता नहीं हम में से किस को कितना ख्याल है उनका। वह शायद हिंदी साहित्य के शिल्पकार माने जाते हैं, भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी। 6 जनवरी 1885 को उनका जन्म हुआ और स्वदेशी भावना को उन्होंने बहुत आगे बढ़ाया था और शायद हमारे अग्रवाल समाज का भी जो इतिहास है उसको पूरा संचालित करने में, लिखने में उनका बहुत बड़ा योगदान था। अब दुर्भाग्य की बात है कि समय बीतता जाता है, हम भी भूल जाते हैं, लोग भी भूल जाते हैं और कुछ मात्रा में हम सबको और मैं भी अपने को आप सबसे जोड़ना चाहूंगा, हम सबके ऊपर ज़िम्मेदारी है कि हम यह सब जानकारियां अपने समाज का जो इतिहास है यह अगली पीढ़ी तक भी पहुंचाएं, नहीं तो हमारी अगली पीढ़ी कटते जा रही है।
अगली पीढ़ी की अपनी प्राथमिकताएं हैं और जब तक हम सब माता-पिता इसको ज़िम्मेदारी से नहीं समझेंगे तब तक मैं समझता हूँ बड़ा मुश्किल होगा इस समाज के इतने सुन्दर इतिहास को, इस समाज की जो नीव रही है, मैं स्वाभाविक रूप से मेरे पहले जो प्रमुख वक्ता आये थे, प्रमुख अतिथि आये थे उन्होंने ज़रूर याद दिलाया होगा महाराजा अग्रसेन की कल्पना को जो एक ईंट और एक रुपये से कैसे समाज को पूरे विश्वभर में एक उद्यमी समाज, एक उद्योजक समाज बनाने में कैसे कल्पना की महाराजा अग्रसेन ने।
अब वह कल्पना ज़रूर अगली पीढ़ी में जाएगी लेकिन अगर इतिहास से वंचित रही अगली पीढ़ी तो मैं समझता हूँ इस समाज की जो विशेषताएं हैं और कुछ विशेषताएं अभी बहन श्रूति ने भी सुनाई, यह आगे बढ़ेगी नहीं, यह आगे पलपेगी नहीं, यह और ज़्यादा फलेंगी फूलेंगी नहीं। और मेरा तो अनुरोध यही रहेगा कि कैसे महानुभाओं ने इस समाज को गौरवशाली बनाया, कैसे हमारे पूर्वजों ने इस समाज को देश और विदेश तक पहुँचाया, कैसे इस समाज में सबसे ज़्यादा दानवीरता दिखाई।
आखिर लाला लाजपत राय क्या एक इतिहास के पन्नों में एक छोटे पैराग्राफ में रह जायेंगे? या हम अपने बच्चों को बताएँगे उनकी क्या-क्या सैक्रिफाइस रही। क्या कभी न कभी जिस प्रकार से दानवीरता हमारे समाज ने इतने वर्षों में दिखाई – स्कूल हो, कॉलेज हो, अस्पताल हो, हर क्षेत्र में। वैसे तो मदन मोहन मालवीय जी ने जो काशी विद्यापीठ बनाई, काशी विश्वविद्यालय उसमें भी हमारे समाज का बहुत बड़ा योगदान था। और हम गिनते रहें तो मैं समझता हूँ कितने भी संस्थाएं देश भर में देखें उसमें आर्थिक रूप से और मैं समझता हूँ अपने खुदके प्रयत्नों में भी हमारा समाज कभी पीछे नहीं रहा है, सबसे अग्रसर रहा है, सबसे आगे रहा है।
मुझे ख़ुशी है कि जो कल्पना नंदकिशोर जी ने अभी रखी कि यहाँ पर जो प्रकल्प बनेगा वह भी इस इतिहास को संचालित करेगा, सबको इकट्ठा करेगा, वह देश और दुनिया में अपने समाज तक पहुँचने की चेष्टा करेगा। अपने समाज के जो रत्न रहे हैं उनकी जानकारियां निकालेगा। मुझे पता नहीं आपमें से किसी ने पढ़ी है कि नहीं एक अंग्रेजी किताब एलेक्स हेली ने लिखी थी – रूट्स – और उस व्यक्ति ने, एलेक्स हेली ने अपने पूर्वजों को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते शायद वह तो अमेरिका में रहता था लेकिन ढूँढ़ते-ढूँढ़ते लगभग 700-800 साल पीछे जाकर अपने पूर्वजों की पहचान निकाली, इतिहास निकाला और उसके ऊपर वह किताब, रूट्स, लिखी थी।
मैं समझता हूँ यह इतिहास सिर्फ पन्ने भरने के लिए या सिर्फ इतिहास इकट्ठा करने के हिसाब से नहीं लेकिन उनकी सोच पुराने ज़माने में क्या कठिनाइयों से समाज गुज़रा है, किस प्रकार से इवॉल्व हुआ है, किस प्रकार से ग्रो किया है, बढ़ा है, पल्पा है वह जब बाहर आएगा तो आगे आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देगा।
यह जो यहाँ भवन बनेगा मैं समझता हूँ एक मौका है हमारे पास समाज को एकत्र करने का। मैंने मज़ाक़ में, और मैं माफ़ी चाहूंगा अगर किसी की भावना को ठेस पहुंचे पर कुछ असलियत हमें स्वीकार करनी पड़ेगी। और बहन श्रूति जी को भी मैं थोड़ा बताऊंगा बाद में, आपने कुछ दो-तीन विषय उठाये थे उसके बारे में भी बताऊंगा। लेकिन मैं समझता हूँ जो हमारे समाज की सबसे बड़ी कमज़ोरी रही है वह यह रही है कि हम बंटते गए हैं, हमने समाज में संस्था बनाई, संस्था में स्वाभाविक है आज नरेश जी ने कोई संस्था बनाई, आहिस्ते-आहिस्ते नए लोग जुड़ेंगे, नए लोग आएंगे, नए पदाधिकारी बनेंगे, नए लोग प्राथमिक स्थान लेंगे तो व्यक्ति नाराज़ होकर अपनी दूसरी संस्था बना लेगा। और पद और प्राथमिकता के लालच में, कोई मेहरबानी करके बुरा न माने इस बात को, लेकिन हमने इतना बाँट दिया है अपना समाज कि हमारा वर्चस्व किधर हम बना नहीं पाए। जिस व्यक्ति को पद नहीं मिला उसने अपनी नयी संस्था बना ली और ऐसे करते-करते शायद आज देश और दुनिया में देखें तो पता नहीं हज़ारों होंगी, लाखों होंगी या कितनी संस्थाएं होंगी।
आज कोई पूछे कि कितने लोग जुड़े हुए हैं हमारे साथ हम कोई आंकड़ा नहीं बना सकते क्योंकि हम इतना बट गए हैं, हमने कभी अपने आपको … नहीं किया, कभी एकजुट होकर नहीं सोचा। और शायद यही कारण रहा कि समाज में एक होड़ सी लग गयी है कि कौन आगे है कौन पीछे है। और जो कल्पना से महाराजा अग्रसेन ने एक प्रकार से सबको जोड़ा था, आखिर जब गांव का हर व्यक्ति एक ईंट और एक रुपया देता था तब समाज को भी जोड़ने का एक साधन था और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही है कि हम बटते-बटते ऐसे बट गए हैं कि कोई हमारे समाज की पहचान हम देश और दुनिया में बना नहीं पाए।
और मुझे लगता है, मैंने तो कहा था इसी वास्तु से शुरू करें यह कोशिश कि क्या हम पूरे समाज को जोड़ने वाला वास्तु बना सकते हैं, क्या हम पूरे समाज को जोड़ने का एक मौका ढूंढ सकते हैं? क्या हम, खासतौर पर हम सब नेता यह तय कर सकते हैं कि हम पद नहीं लेंगे? चलो युवाओं को जोड़ते हैं, युवा-युवतियों को जोड़ते हैं, उनको पद पर रखकर उनको कहते हैं कि वह समाज को आगे जोड़ें, हम पीछे से सहायता करें, हम पीछे से प्रोत्साहन दें।
और मुझे लगता है जितना सामाजिक काम हमारे समाज ने किया है, जितना शिक्षा के क्षेत्र में, स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारा एक पूरे देश भर में फैलाव है उसको अब एक और ज़ोर लगाने का समय आ गया है। हम सब अगर याद करें तो ज़रूर हम पाएंगे कि यह संस्था 50 साल पुरानी है, यह संस्था 80 साल पुरानी है, यह संस्था मेरे दादा ने शुरू की थी, यह संस्था मेरे पिता ने शुरू की थी। क्या हम यह देखें कि 20 और 30 वर्ष की आयु के हमारे जितने समाज के नवरत्न हैं, आगे भविष्य हैं उन्होंने कितनी संस्थाएं शुरू की, क्या हम वह ढूंढने की कोशिश कर सकते हैं?
क्यों हमारा 20 साल का नौजवान उसके दिल में क्यों नहीं भावना आ रही है कि मैं एक स्कूल शुरू करूँगा। जैसे बहन ने अपनी पूरी कमाई, डॉक्टर बहन ने, पूरी कमाई कहा कि मैं समाज में दूंगी, ऐसे हमारे कितने युवा-युवती हम निकाल सकते हैं चलो उसको ढूंढें। ढूंढें हम नयी संस्थाएं कितनी खड़ी करेंगे कि लोगों को शिक्षा अच्छी प्राप्त हो, लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी प्राप्त हो।
आखिर एक प्रकार से आप देखिये इस सरकार ने क्या कोशिश की, मैं इसमें राजनीतिकरण नहीं लाना चाह रहा हूँ लेकिन आप देखिये सरकार की मेहनत। जब हर एक परिवार में खाता खुले और उसमें भी प्राथमिकता हो कि बहनों का खाता खुले जन धन योजना के तहत, तब 33 करोड़ अगर खाते खुले तो उसके पीछे हेतु क्या था कि फाइनेंशियल इन्क्लूजन हो, बैंकिंग व्यवस्था से सभी परिवार जुड़ें। जब प्रधानमंत्री आवास योजना में यह निश्चय किया और संकल्प लिया कि देश में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जिसके सर पर छत नहीं हो, जिसके खुदका मकान नहीं हो, उस मकान में स्वाभाविक है चौबीस घंटे बिजली मिले, बिजली सबको मिले कोई वंचित न रहे, पेयजल मिले अच्छा, शौचालय हो।
आखिर हमारी माता-बहनों की आत्मसम्मान भी हमारी ज़िम्मेदारी है, कब तक खेतों में जाकर अपनी दिनचर्या शुरू करेंगी बहनें। और आपको जानकर आश्चर्य होगा जब यह सरकार आयी 2014 में तब तीन में से दो बहनें बिना शौच के अपना जीवन बिताती थी, आज 95% घरों में शौचालय है। स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा अच्छी मिले नज़दीक में, 2022 तक अगर यह कल्पना की गयी है मुद्रा योजना की पहल की। मुझे पता नहीं है आप में से किस को जानकारी है, मुद्रा योजना जो छोटे लोन से 10 लाख रुपये तक के लोन बिना सिक्योरिटी, श्योरिटी के, कोई जामिनदार नहीं लगेगा उसको। उसमें 12 करोड़ से अधिक लोगों को उसका लाभ मिला है, लाभार्थी 12 करोड़ से अधिक मुद्रा लोन के लाभार्थी हैं। और उसमें 70% महिलाएं हैं।
आखिर यह कल्पना, मुद्रा योजना हो, जन धन खाता हो, या हर एक के सर पर छत हो, इसमें और महाराजा अग्रसेन जी की सोच में भाईयों बहनों बताइये क्या फर्क है? एक ईंट, एक रुपया फिर चाहे जन धन योजना हो, मुद्रा योजना हो, आयुष्मान भारत हो या प्रधानमंत्री आवास योजना हो। यह सब महाराजा अग्रसेन जी ने जो बात हम सबके लिए छोड़कर गए थे उसका प्रतीक है, और शायद प्रधानमंत्री मोदी जी को भी प्रेरणा महाराजा अग्रसेन से आयी हो। अब वह आप लोग सोचो।
पर हमने कभी उनको बांटा नहीं है किसी एक समाज में या दूसरे समाज में, मैं समझता हूँ मोदी जी पूरे देश और विश्व के आज नेता बन गए हैं। और वास्तव में उनकी जो सोच है कि इस देश में हर गरीब का जीवन स्तर उठे, विकास सबका हो, विकास यह नहीं चुने कि इस समाज का होगा, इस धर्म का होगा, इस व्यक्ति विशेष का होगा, सबको मौका मिले।
और बहन श्रूति को बताना चाहूंगा चाहे वह नोटबंदी हो, चाहे वह जीएसटी हो, चाहे वह जैसे मैंने बताया मुद्रा योजना हो, चाहे वह जन धन योजना हो, चाहे बीमा की सुरक्षा योजनाएं हो, चाहे किसानों के लिए फसल बीमा योजना हो या मिनिमम सपोर्ट प्राइस डेढ़ गुना देकर उनकी भी आमदनी को दोगुना करने की कोशिश हो। चाहे प्रधानमंत्री आवास योजना में हर एक को घर मिले और या चाहे शौचालय की योजना हो जो बहनों को आत्मसम्मान दें।
यह सब अगर होता है तो हम सब जब अपना टैक्स भरते हैं उस टैक्स के पैसे से होता है कोई बाहर से पैसा नहीं आता। और यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि हम सब, आपने बनिया शब्द यूज़ किया मैं व्यापारी शब्द यूज़ करना चाहूंगा, हम सब व्यापारी हम सब अपने-अपने क्षेत्र में जब काम करते हैं, जब हम टैक्स देते हैं उसी से सरकारी व्यवस्थाएं बनती हैं, उसी से देश की सुरक्षा बनती है। आखिर पुलिस की तनख्वाह कहाँ से जाती है? आखिर सैनिकों की तनख्वाह कहाँ से जाती है?
आखिर जब 9 करोड़ 45 लाख – ध्यान दीजिये, 9 करोड़ 45 लाख शौचालय बनते हैं तो वह सवा लाख करोड़ रुपये कहाँ से आते हैं? जब 50 करोड़ गरीबों को आयुष्मान भारत के तहत, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, पीएमजे के तहत मुफ्त में अगर स्वास्थ्य सेवाएं देनी हैं तो वह जो हज़ारों करोड़ रुपये लगेंगे वह कहाँ से आएंगे वह ईमानदार टैक्स देने से ही आ सकता है। और मैं तो कई हमारे व्यापारी संघठनों के कार्यक्रमों में यह बात रखता हूँ हो सकता है थोड़े समय के लिए हमें कष्ट उठाना पड़ा हो, स्वाभाविक है, आप कोई अच्छा काम करने चले जाओ, बड़ा सरल होता है क्या? अच्छा काम छोड़ी।
आपके घर में बहन कभी पेंटिंग हुई है क्या? पेंटिंग हुई है कभी आपके घर में? पेंटिंग के दो तरीके होते हैं, जब घर में हम रंग लगाते हैं एक होता है कि जो पुराना पेंट लगा हुआ है उसके ऊपर ही एक हाथ लगा दो। एक तो वह तरीका होता है, शायद इस दीवार पर जो रंग लगा है वह उस तरीके से लगा हुआ है, मुझे नहीं लगता इसमें कोई हमने स्क्रैप-डाउन पेंटिंग की है, पुराना निकाला है, डिस्टेंपर डाला है, तीन कोट रंग लगा है, वह तो अभी ज़रूरत नहीं है वह तो अब वास्तु बनेगा अच्छी तरीके से।
आजके कार्यक्रम के लिए हमने इसपर, मुंबई की भाषा अगर इस्तेमाल करने की आपकी अनुमति हो और कोई अन्यथा न ले मैं मुंबई से आता हूँ तो हमने चूना लगाया है। सब समझते हैना चूना लगाना लगेगा उसको। उसमें 12 करोड़ से अधिक लोगों को उसका लाभ मिला है, लाभार्थी 12 करोड़ से अधिक मुद्रा लोन के लाभार्थी हैं। और उसमें 70% महिलाएं हैं।
आखिर यह कल्पना, मुद्रा योजना हो, जन धन खाता हो, या हर एक के सर पर छत हो, इसमें और महाराजा अग्रसेन जी की सोच में भाईयों बहनों बताइये क्या फर्क है? एक ईंट, एक रुपया फिर चाहे जन धन योजना हो, मुद्रा योजना हो, आयुष्मान भारत हो या प्रधानमंत्री आवास योजना हो। यह सब महाराजा अग्रसेन जी ने जो बात हम सबके लिए छोड़कर गए थे उसका प्रतीक है, और शायद प्रधानमंत्री मोदी जी को भी प्रेरणा महाराजा अग्रसेन जी से आयी है। अब वह आप लोग सोचो।
पर हमने कभी उनको बांटा नहीं है किसी एक समाज में या दूसरे समाज में, मैं समझता हूँ मोदी जी पूरे देश और विश्व के आज नेता बन गए हैं। और वास्तव में उनकी जो सोच है कि इस देश में हर गरीब का जीवन स्तर उठे, विकास सबका हो, विकास यह नहीं चुने कि इस समाज का होगा, इस धर्म का होगा, इस व्यक्ति विशेष का होगा, सबको मौका मिले। और बहन श्रूति को बताना चाहूंगा चाहे वह नोटबंदी हो, चाहे वह जीएसटी हो, चाहे वह जैसे मैंने बताया मुद्रा योजना हो, चाहे वह जन धन योजना हो, चाहे बीमा की सुरक्षा योजनाएं हो, चाहे किसानों के लिए फसल बीमा योजना हो या मिनिमम सपोर्ट प्राइस डेढ़ गुना देकर उनकी भी आमदनी को दोगुना करने की कोशिश हो। चाहे प्रधानमंत्री आवास योजना में हर एक को घर मिले और या चाहे शौचालय की योजना हो जो बहनों को आत्मसम्मान दें।
यह सब अगर होता है तो हम सब जब अपना टैक्स भरते हैं उस टैक्स के पैसे से होता है कोई बाहर से पैसा नहीं आता। और यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि हम सब, आपने बनिया शब्द यूज़ किया मैं व्यापारी शब्द यूज़ करना चाहूंगा, हम सब व्यापारी हम सब अपने-अपने क्षेत्र में जब काम करते हैं, जब हम टैक्स देते हैं उसी से सरकारी व्यवस्थाएं बनती हैं, उसी से देश की सुरक्षा बनती है। आखिर पुलिस की तनख्वाह कहाँ से जाती है? आखिर सैनिकों की तनख्वाह कहाँ से जाती है?
आखिर जब 9 करोड़ 45 लाख – ध्यान दीजिये, 9 करोड़ 45 लाख शौचालय बनते हैं तो वह सवा लाख करोड़ रुपये कहाँ से आते हैं? जब 50 करोड़ गरीबों को आयुष्मान भारत के तहत, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, पीएमजे के तहत मुफ्त में अगर स्वास्थ्य सेवाएं देनी हैं तो वह जो हज़ारों करोड़ रुपये लगेंगे वह कहाँ से आएंगे वह ईमानदार टैक्स देने से ही आ सकता है। और मैं तो कई हमारे व्यापारी संघठनों के कार्यक्रमों में यह बात रखता हूँ हो सकता है थोड़े समय के लिए हमें कष्ट उठाना पड़ा हो, स्वाभाविक है, आप कोई अच्छा काम करने चले जाओ, बड़ा सरल होता है क्या? अच्छा काम छोड़ी।
आपके घर में बहन कभी पेंटिंग हुई है क्या? पेंटिंग हुई है कभी आपके घर में? पेंटिंग के दो तरीके होते हैं, जब घर में हम रंग लगाते हैं एक होता है कि जो पुराना पेंट लगा हुआ है उसके ऊपर ही एक हाथ लगा दो। एक तो वह तरीका होता है, शायद इस दीवार पर जो रंग लगा है वह उस तरीके से लगा हुआ है, मुझे नहीं लगता इसमें कोई हमने स्क्रैप-डाउन पेंटिंग की है, पुराना निकाला है, डिस्टेंपर डाला है, तीन कोट रंग लगा है, वह तो अभी ज़रूरत नहीं है वह तो अब वास्तु बनेगा अच्छी तरीके से।
आजके कार्यक्रम के लिए हमने इसपर, मुंबई की भाषा अगर इस्तेमाल करने की आपकी अनुमति हो और कोई अन्यथा न ले मैं मुंबई से आता हूँ तो हमने चूना लगाया है। सब समझते हैना चूना लगाना क्या होता है? लेकिन जब हम अपने घर पर रंग करते हैं तो हम ऐसे ऊपर एक पेंट नहीं लगाते हैं क्योंकि वह तो हम सबको पता है कि वह तो थोड़ी देर में निकल जायेगा फिर क्रैक कर जायेगा क्योंकि पीछे नीव अच्छी नहीं है। अंदर शायद दीमक भी छुप जायेगा उस पेंट लगाने से लेकिन वह दीमक फिर बाहर आएगा और वह दीमक खाते जायेगा उसके बाद और हमारे नीव को हल्का करेगा, कमज़ोर करेगा।
और ऐसे ही वर्षों-वर्षों तक इस देश की अर्थव्यवस्था शायद वह दीमक खा-खाकर कमज़ोर होते जा रही है। अगर उस अर्थव्यवस्था को ठीक करना है तो उसको जड़ से ठीक करना पड़ेगा ऊपर से चूना लगाने से अर्थव्यवस्था ठीक नहीं हो सकती। आखिर बेटा हम सबने, और यहाँ मेरी उम्र के हैं, मेरे से शायद ज़्यादा ही उम्र के अधिक लोग बैठे हैं, शायद युवाओं को, युवतियों को हम प्रेरणा नहीं दे पाते हैं इस प्रकार के कार्यक्रमों में। और मैंने वहीँ से शुरू किया था कि उसपर हमें बल देना पड़ेगा, हमें मेहनत करनी पड़ेगी कि अगली पीढ़ी को भी यह बात पहुंचे।
हमने सबने दो-दो बहीखाते रखकर अपना पूरा जीवन निकाल लिया, जब जीएसटी आया, जब नोटबंदी आयी शायद हमको वह कष्ट बहुत महसूस हुआ। पर मैं आपको बताना चाहूंगा जहाँ-जहाँ मैं गया और मेरी ज़िम्मेदारी थी मैं देश भर में घूम आऊं इस विषय को रखने के लिए। चाहे वह ज्वेलर्स हों, जब एक्साइज आया था तब ज्वेलर्स ने बहुत प्रतिक्रिया की थी तब भी मुझे भेजा गया था सबसे बात करने, जब कपडे के व्यापार पर आया जीएसटी तो आंदोलन हुए देश भर में, अलग-अलग प्रकार से।
और मैं यह भी बताऊंगा कि मोदी जी हर आपके फीडबैक को, आपकी प्रतिक्रिया को सुनकर उसको सुधारने लगातार लगे रहते हैं और उसमें हिचकिचाते नहीं है। आखिर जीएसटी में 500 से अधिक आइटम्स पर रेट कम हुए, वह कोई छोटी बात नहीं है, पुराने रेट वही थे जो पहले दिए जाते थे और वह इतने अधिक थे कि वह चोरी करने के लिए प्रोत्साहन देते थे। जैसे-जैसे टैक्स ईमानदार व्यवस्था में बढ़ते जा रहे हैं वैसे-वैसे रेट कम करने की भी क्षमता बन रही है।
लेकिन यह दो बहीखाते रखने का शायद हमने तो अपना जीवन निकाल दिया होगा हमारी उम्र के लोगों ने, व्यापारियों ने, मैं समझता हूँ आप लोग यह नहीं करना चाहते हैं। और मैं जहाँ-जहाँ गया, शायद हमारी उम्र के लोग तो सुनते रहे किसने ताली कभी नहीं बजाई इसलिए मेरी कोई अपेक्षा भी नहीं है, लेकिन जितने युवा रहते थे उसमें किसी कार्यक्रम में वह सबसे ज़्यादा उत्साहित रहते थे। क्योंकि वह नहीं चाहते आपकी हमारी तरह पूरा जीवन बिताना, वह चाहते हैं एक ईमानदार व्यवस्था जिसमें सुबह जब फैक्ट्री या अपने दफ्तर या अपनी दुकान जाओ तो नीचे कोई सफ़ेद एम्बेसडर खड़ी हुई न मिले। और मुझे लगता है हम सबने कभी न कभी अनुभव किया है सफ़ेद एम्बेसडर उसमें वह गोल…. याद है कि नहीं?
अब वह कभी न कभी ख़त्म करने की हमारी इच्छा है कि नहीं है? हमारे युवा चाहते हैं अपना शांति से अपना व्यापार करेंगे, ईमानदार व्यवस्था से व्यापार करेंगे, सबको सामान्य अवसर मिले, टैक्स ईमानदारी से भरेंगे, रात को खाना भोजन करने घूमने फिरने निकलेंगे, पार्टी करेंगे और चैन की नींद सोयेंगे। यह टेंशन नहीं चाहिए कि कल को मेरे ऊपर क्या तकलीफ आ सकती है।
और मुझे लगता है जब ईमानदार व्यवस्था में देश आगे बढ़ेगा तब थोड़े समय के लिए कष्ट भी उठाना पड़े तो वह इस देश के उज्जवल भविष्य के लिए हमारा समाज और व्यापारी समाज कष्ट उठाने के लिए तैयार है। आखिर हम नहीं चाहते कि बच्चों को इस प्रकार की व्यवस्था छोड़कर जाएं। और जो जेन्युइन डिफिकल्टी किसी को भी आये उसको लगातार सुधार करने का हमारा प्रयत्न लगा रहता है।
आज भी मुझे बताया गया, आज मैं पेपर में पढ़ रहा था, दो जीएसटी की कमिटी आज भी बैठी हैं। और शायद 10 तारीख को हो सकता है कुछ खुशखबरी जिसका संकेत माननीय प्रधानमंत्री जी ने आलरेडी दिया भी है। आपको याद होगा पिछले, उसमें हमने पांच करोड़ रुपये तक सबको क्वार्टरली रिटर्न का भी निर्णय ले लिया है, और पांच करोड़ मतलब 93% जीएसटी रजिस्ट्रेशन को अब हर क्वार्टर में एक ही रिटर्न पांच करोड़ तक टर्नओवर के लिए देना पड़ेगा। उसका जीएसटी जो नेटवर्क है, जीएसटीएन नेटवर्क उसमें बदलाव का काम चालू है वह बदलकर जब चेंज हो जायेगा, शायद अप्रैल से वह लागू हो जायेगा, अप्रैल-मई से।
तो मुझे लगता है कि अब हमने कोशिश करनी चाहिए एक ईमानदार व्यवस्था की तरफ देश बढ़ रहा है, हमारा समाज और हमारा व्यापारी वर्ग भी उद्योग वर्ग भी उसके साथ जुड़े। और इसका सबसे बड़ा लाभ शायद हमें कठिनाइयां थोड़ी महसूस हो सकती हैं पर उसका लाभ आप लोगों के लिए मिलेगा, आप के लिए हम एक अच्छा ईमानदार देश छोड़कर जाना चाहते हैं।
और मुझे पूरा विश्वास है यह जो यहाँ भवन बनेगा यह भी एक प्रकार से जब पूरे समाज को देश और दुनिया में जोड़ेगा तो आगे चलकर एक अच्छी हमारी भी भागीदारी रहेगी इस देश को बनाने में, इस देश के विकास में और अधिक भागीदारी के साथ, और अधिक सामाजिक सेवाओं के साथ, और अधिक स्कूल, अस्पताल, कॉलेज, अच्छे कामों को देश भर में करके, ईमानदार व्यवस्थाओं से करके हम अपने समाज का भी नाम रोशन करेंगे, हमारे पूर्वजों के काम को सराहना करेंगे उनको और इज़्ज़त देंगे।
और मुझे पूरा विश्वास है कि महाराजा अग्रसेन जब देखेंगे कि यह समाज अब इस देश की रीड की हड्डी बनकर ईमानदार व्यवस्था को और प्रोत्साहन दे रहा है। यह समाज जब देश और दुनिया में एकजुट हो रहा है, यह समाज जो सामाजिक कुछ गलत काम हमारे समाज में चलते हैं उसको रोकने के लिए पहल कर रहा है। और उसके बारे में मैंने नरेश जी आपसे दो-तीन बार बात की है कि हमने कुछ न कुछ अपने शादी ब्याह के तरीके, बच्चों के बारे में अपनी सोच उन चीज़ों में भी हमें और ज़्यादा महनत करनी पड़ेगी, और ज़्यादा आपस में चर्चा-विचार करके समाज को नयी दिशा के रूप में लेकर जाना पड़ेगा। किस प्रकार से हम अगली पीढ़ी में वह संस्कार डाल सकें जो संस्कार से शुरू हुआ था समाज पर कहीं न कहीं बीच में गलत चीज़ें आ गयी। एक शादी हुई, उस शादी को कॉपी करते-करते दूसरी शादी और अधिक इलेबोरेट हो गयी, तीसरी और अधिक हो गयी, फिर मौके आ गए कि लोन लेकर यह शादी करनी पड़ जाये।
और यह दिखावे में मैं समझता हूँ हमने बहुत ज़्यादा नुकसान किया है समाज का। इन सब चीज़ों में हमारे समाज के बड़े नेता चिंता करें, हमें मार्गदर्शन दें कैसे हम इस बदलाव की तरफ हम सब बढ़ सकते हैं। मैं उसमें पहल करने को तैयार हूँ, मैं आपके साथ जुड़ने के लिए तैयार हूँ। और हम सब मिलकर इस समाज को इस देश का गौरव और पूरे विश्व को हम दिशा दे सकें ऐसा हमारे समाज में शक्ति है और ऐसा काम हम करके पूरी दुनिया को आकर्षित करें इस भवन की तरफ कि आइये इस भवन में देखिये कैसे यह समाज पूरे विश्व को नयी दिशा और नयी रोशनी दे रहा है।
बहुत-बहुत शुभकामनाएं आप सबको।