मोदी सरकार के 4 साल हो गए हैं, इन 4 सालों में 3 रेल मंत्री हैं और तीसरे रेल मंत्री इस समय हमारे साथ हैं, पीयूष गोयल जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में कुछ बड़े बदलाव किये हैं| क्या-क्या बदलाव हुए हैं और आम लोगों को क्या उससे राहत मिली है हम इनसे जानेंगे|
प्रश्न: पीयूष जी यह कहा जा रहा था जब सरकार आई थी कि रेल जो है, भारतीय रेल, वह घड़ी की सुई के हिसाब से चलेगी, लेकिन आज कल जो सुर्ख़ियों में है कि ट्रेन बहुत ज्यादा लेट हो रही है, बीच में जो टाइम टेबल में सुधार आया था उससे फिर से भटक गयी है रेल और अब घंटों के हिसाब से फिर से ट्रेन लेट चल रही है| तो ट्रेन पंक्चुअलिटी कब आ पायेगी हिंदुस्तान में?
उत्तर: एक बहुत बिगड़ी हुई व्यवस्था जब हमें मिली थी तब हमने काम शुरू किया कि कैसे सुरक्षा सुधार करी जाये, जो बैकलॉग था रेल रिन्यूअल का, सेफ्टी वर्क्स का उसको कैसे तेज़ गति से किया जाये| मोदी जी की सरकार आने के बाद एक तो निवेश बढ़ा, कैसे इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार किया जाये जो इतने बड़े पैमाने पर जो जनता की डिमांड है रेल सफ़र करने की, जितनी ट्रेनों की डिमांड है, जितनी गुड्स को, कोयले को ढोना पड़ता है, इस सबको देखते हुए बहुत सारे काम हमने शुरू किये, साथ ही साथ रेल को सुरक्षित बनाने के काम पर बहुत बल दिया, आप देखते हैं पिछले वर्ष सबसे कम एक्सीडेंट हुए रेलवे में|
इन सब कामों को मद्देनज़र रखते हुए थोड़ी पंक्चुअलिटी में हमें दिक्कत आई है, और हमारा मानना है कि एक जैसे डॉक्टर के पास सही बीमारी नहीं बताओ तब तक इलाज नहीं हो सकता है, वैसे ही हम समझते हैं कि जब तक सही पंक्चुअलिटी का आंकड़ा सामने नहीं आये तो उसके इलाज के तरीके भी नहीं आते| तो अब हमारे सब अधिकारी लगे हैं कैसे इसको सुधार किया जाये, कैसे इसमें प्लांड ट्रैफिक ब्लॉक्स दिए जाये, कैसे कई कामों को एक साथ जोड़कर समय पर किया जाये तो इन सब चीज़ों से मुझे लगता है आपको सुधार भी दिखने लगेगा|
प्रश्न: लेकिन जो मेंटेनेंस है आप कह रहे हैं ब्लॉक की वजह से ट्रेनें पंक्चुअलिटी नहीं है या लेट हो रही हैं, लेकिन यह तो कंटीन्यूअस प्रोसेस है, मेंटेनेंस लगातार कहीं न कहीं चलता ही रहेगा तो इसका मतलब यह है कि, वह समय कब आएगा, मैं वह जानना चाह रहा हूँ?
उत्तर: मैंने मेंटेनेंस की बात नहीं की, मैंने कहा बैकलॉग ऑफ़ मेंटेनेंस, रूटीन मेंटेनेंस के लिए तो हम एक ट्रैफिक ब्लॉक निर्धारित करके उसको कर सकते हैं| लेकिन अगर हजारों किलोमीटर ट्रैक रिन्यूअल, अच्छा ट्रैक रिन्यूअल ऐसा नहीं है कि एक लाइन में पूरे हज़ार किलोमीटर हैं, किधर एक किलोमीटर, किधर चार, किधर छह किलोमीटर, छोटे पैचेज़ में होता है| तो ऐसे जब अलग-अलग स्थानों पर देश भर में पुरानी रेल चले आ रही है जो उसकी यूज़फुल लाइफ ख़त्म हो गयी है, जो उससे सुरक्षा में कोम्प्रोमाईज़ हो सकता है उसको तो बदलने की प्राथमिकता देनी ही पड़ेगी ना|
प्रश्न: क्लीनलीनेस एक रेलवे की बड़ी समस्या रही थी, उसमें काफी सुधार हुआ है, लोग अब तारीफ करते हैं कि ट्रेन के डिब्बे साफ़ मिलते हैं| लेकिन उसके बावजूद हिंदुस्तान में एक सच्चाई यह है कि चाहे मजबूरी हो इंसान की या कोई समस्या है, कई बार वह टॉयलेट के पास वाले पैसेज में खड़े होकर सफ़र करता है और वहां पर खड़े होने का मतलब है कि आपको टॉयलेट से बू आएगी ही आएगी, बायो टॉयलेट भी लगाये आपने लेकिन उसके बावजूद वह समस्या ख़त्म नहीं हो रही है, यह समस्या कब ख़त्म होगी?
उत्तर: बायो टॉयलेट में दो लाभ थे, एक तो जो मल है वह नीचे ट्रैक पर नहीं गिरता है, उससे देश की स्वच्छता और ट्रैक्स की स्वच्छता सुनिश्चित होगी और वह यूरिक एसिड जाता था उससे ट्रैक भी जल्दी और ख़राब होते थे तो और ट्रैक रिप्लेस करना पड़ता था, महंगा भी होता था और समय वापिस, पंक्चुअलिटी ख़राब होती थी| तो इसको कहते हैं कि एक चारों दिशा से उसकी वजह से मार खाते थे, बायो टॉयलेट्स लगभग मार्च 2019 तक हर ट्रेन के कोच में लग जायेंगे जिससे मल नीचे गिरना और स्वच्छता के लिए एक बहुत बड़ा लेग-अप मिलेगा|
लेकिन बायो टॉयलेट के इस्तेमाल में अगर आप कुछ कचरा डाल दो, कुछ बोतल डाल दो या कुछ कपडे का पीस डाल दो तो वह क्लॉग कर देता है और उसका फिर वह बैकलैश में स्मेल आती है| तो उसके लिए हम एजुकेट करने के लिए पोस्टर्स लगाना, लोगों को एजुकेट करना, पीछे आपने देखा होगा इश्तेहार भी आये पेपर में, डस्टबिन लगाना हर टॉयलेट में यह हमने शुरू कर दिया है|
इसके अलावा हमने 500 टॉयलेट ख़रीदे हैं जो वैक्यूम टॉयलेट्स हैं हवाई जहाज़ की तरह, उसका एक्सपेरिमेंट कर रहे है, एक बार वह एक्सपेरिमेंट सक्सेसफुल हो जाये तो अगले चरण में हम इन सब बायो टॉयलेट्स को वैक्यूम लगाकर इसको वैक्यूम से सक-आउट करने की व्यवस्था लगाने की हमारी कल्पना है जिससे पूरी तरीके से यह समस्या से निजात मिलेगी|
प्रश्न: मतलब, ट्रेन में वह दौर दूर नहीं जब ट्रेन में आप एरोप्लेन की तरह टॉयलेट इस्तेमाल कर रहे हैं?
उत्तर: वैक्यूम टॉयलेट्स का इस्तेमाल हमने करने की योजना बनाई है लेकिन अभी ट्रायल स्टेज पर है| हमने सबने एक समुचित एक रेलवे की सोच से काम करना चाहिए, जब सब एक साथ मिलकर एक भारत, एक रेलवे के दृष्टिकोण से देखेंगे तो निर्णय अच्छे होंगे, निर्णय और ज्यादा तेज़ गति से होंगे और कई ऐसी चीज़ें जो अवॉइड हो सकती थी उससे देश बचेगा|
अभी हमने HAGN-above में बिना cadre की reservations के कैसे inter-mixing, intermingling हो सकती है उससे शुरुआत करने की चेष्ठा की है फिर आगे और चर्चा करेंगे बाकी लोगों की क्या है| मुझे आलरेडी लोगों का मेसेज आने लग गया है कि भाई आपने HAGN-above कर दिया तो Joint Secretary and above भी हमको भी करिए| इसमें एक प्रकार से पूरे रेलवे की जो silos की thinking है वह ख़त्म होकर एक साथ सब लोग एकजुट होकर काम कर सकेंगे|
एकाद लोगों ने मुझे कहा कि भाई ऐसा ना हो जाये कि इंजीनियरिंग फंक्शन पर कोई फाइनेंस का आदमी बैठ जाये पर मैं समझता हूँ इतनी सूझबूझ तो मंत्री और रेलवे बोर्ड के और सभी सीनियर अधिकारियों में होती है कि correct man for the correct job post करने की ज़िम्मेदारी तो always रहेगी, पर रिजर्वेशन नहीं रहेगी|
प्रश्न: जब आप पॉवर मिनिस्ट्री में थे तो पीएम ने आपको एक टारगेट दे दिया था कि सारे गावों का इलेक्ट्रिफिकेशन करना है, फिर एलईडी वाला भी हुआ| आपने यहाँ आकर कोई टारगेट सेट किया कि आपको क्या कर देना है?
उत्तर: मैं समझता हूँ कि कैसे भारतीय रेल सुरक्षित हो, हर व्यक्ति को और ज्यादा सुरक्षा महसूस हो, कैसे पैसेंजर की सुविधाओं में हम और ज्यादा तेज़ गति से सुधार ला सकें, कैसे इंफ्रास्ट्रक्चर सोच-बूझके एक्सपैंड करें जिससे जहाँ पर सबसे अधिक ज़रूरत है उसपर पहले निवेश हो बजाये कि सैंकड़ों प्रोजेक्ट में देश भर में थोड़ा-थोड़ा पैसा देकर उसको डिवाइड कर देना जिससे कोई प्रोजेक्ट कम्पलीट नहीं हो और किसी भी व्यक्ति को राहत न मिले| उसके बदले वह प्रोजेक्ट जिसका सबसे अधिकांश लाभ मिलेगा जनता को, जिससे सबसे अधिक रेवेन्यू आ सकता है फ्रेट के माध्यम से, इसपर फोकस करना|
इस प्रकार से हमने सोच बदली है रेलवे की| अब आप डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर ले लो, इससे करोड़ों टन माल ट्रांसपोर्ट हो सकेगा, 2007 की कल्पना है, 2007 से 2014 के बीच मात्र 20-22-24% ज़मीन मिली थी| 2007 से 2014 के बीच कॉन्ट्रैक्ट तक नहीं दिए सब काम के, 2014 में आने के बाद हमने सब ज़मीन अरेंज करी, आज 98% से ज्यादा ज़मीन हमारे हाथ में है, हमने सब कॉन्ट्रैक्ट्स इशू किये टेंडरिंग करके| तो मैं समझता हूँ जो तेज़ गति चाहिए थी हर प्रोजेक्ट में, आज वाई-फाई है, 675 स्टेशन में मुफ्त वाई-फाई मिलता है हम कोशिश कर रहे हैं 6000 स्टेशन तक पहुंचे| सीसटीवी कैमरा – चंद ही स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरा हैं, हम चाहते हैं कि हर स्टेशन पर लगभग 6,500 स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरा लग जायें, जो कोचेस हैं उसमें कैमरा लगे, उसका फीड पुलिस को भी मिले तो एक तो डिटेरेंट भी होगा लोग कुछ और गलत काम करने से डरेंगे भी और कुछ हो जाये दुर्घटना तो उसकी जानकारियां और उसपर कार्रवाई करने में हमें सुविधा होगी|
तो एक प्रकार से तेज़ गति से जनता के हितों को सामने रखते हुए और रेलवेज को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हम काम कर रहे हैं और मुझे विश्वास है जैसे नए भारत की कल्पना 2022 तक प्रधानमंत्री जी ने की है वैसे ही रेलवे में भी एक नयी सोच के साथ नयी रेल बनाने की कल्पना हम सब लेकर निकले हैं|
प्रश्न: एक आखिरी सवाल आपसे लूँगा, दो बड़े अहम सवाल हैं, एक तो यह कहा गया था रेल मंत्रालय की तरफ से कि वेट लिस्ट टिकेट यह ख़त्म कर दिया जायेगा रेलवे से और दूसरा….
उत्तर: वेट लिस्ट?
प्रश्न: वेटिंग.
उत्तर: यह किसने कहा था आपको?
प्रश्न: यह सुरेश प्रभु जी जब हुआ करते थे तो उस समय का है!
उत्तर: पूरी दुनिया में वेट लिस्ट होती है, आज हवाई जहाज़ में भी जाओ तो आपको कोई हर एक फ्लाइट पर कन्फर्म टिकेट मिलना कोई नैचुरली पॉसिबल नहीं है और यह तो डिमांड सप्लाई के ऊपर है, देश में डिमांड बढ़ती रहेगी, सेवाएं सुधरेंगी, डिमांड बढ़ेगी यह तो सिलसिला चलता रहेगा| तो हम कोशिश करेंगे कि जितना ज्यादा अधिक से अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलोप हो सके उतना अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर अवेलेबल हो, जितना अधिक से अधिक ट्रेन चला सकें उसपर एफिशिएंटली उसको चलायें और लोगों को सुविधा मिले!
प्रश्न: बुलेट ट्रेन को लेकर उसी रफ़्तार से, बुलेट की रफ़्तार से राजनीति हो रही है, कांग्रेस कह रही है कि किसान ज़मीन नहीं देना चाहते हैं, जबरन जमीन ली जा रही है, क्या आपको लगता नहीं है कि बुलेट ट्रेन को लेकर बुलेट की स्पीड से ट्रेन चले उसके बजाये बुलेट स्पीड से पॉलिटिक्स हो रही है?
उत्तर: बहुत दुर्भाग्य की बात है कि कुछ राजनीतिक दल और राजनीतिक नेता हर एक चीज़ में राजनीति करते हैं और उनकी सोच इतनी छोटी है| वैसे तो राजधानी जब आई थी 50 साल पहले तब भी इन नेताओं ने, ऐसे नेताओं ने उसको ऑब्जेक्ट किया था, आज बेधड़क उसपर चलते हैं| तो मैं समझता हूँ आज देश की जो युवा पीढ़ी है, आज जो देश का भविष्य है वह आधुनिक टेक्नोलॉजी से जुड़ा हुआ है, उसमें जनता चाहती है कि जो विश्व में अच्छी योजनायें हैं जो विश्व में जो सुविधाएं हैं वह भारत के नागरिकों को भी मिले| मैं समझता हूँ भारत की जनता ने उन नेताओं को पहले भी नकारा है आगे चलकर और बड़े रूप से नकारेंगे|
प्रश्न: बहुत-बहुत धन्यवाद| हमारे साथ थे रेल मंत्री पीयूष गोयल जिनका कहना है कि दुनिया भर की जो उत्तम सेवाएं हों वह भारतीय रेल में सफ़र करने वाले मुसाफिरों को मिले यह कोशिश है मोदी सरकार की| बुलेट ट्रेन पर नेता राजनीति कर रहे हैं, जब-जब कोई नयी टेक्नोलॉजी हिंदुस्तान में लायी गयी तो उसपर राजनीति ज़रूर हुई है लेकिन बुलेट ट्रेन मोदी सरकार चलाएगी यह उन्होंने बताया है|