Speeches

July 9, 2017

Speaking at GST Event, New Delhi

अनिल जी, कुलजीत जी, सभी सम्माननीय कॉर्पोरटर, पुराने कॉर्पोरटर, पार्टी के नेतागण, पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्तागण, हम सबके सम्मानित मुकेश जी, भाईयों और बहनों | वास्तव में जीएसटी आज इतना ज्यादा चर्चित विषय हो गया है कि कई चीज़ें तो जीएसटी के बारे में लोग समझने भी लग गए हैं कि अब यह आ गया है, पहली जुलाई को आ गया है, पहले बहुत कोशिश की गयी कि इसको डिले किया जाये, डिफर किया जाये लेकिन अब लगभग देश में यह सहमति बन गयी है सबकी कि अब आ गया है, अब इसको स्वीकार करना है और स्वीकार करने के साथ-साथ आगे बढ़ना है देश को | यह कोई प्रधानमंत्री मोदी जी की उपलब्धि नहीं है, हम में से कोई कार्यकर्ता भी इस भ्रम में ना रहे कि यह मोदी जी या जेटली जी अपने आप से कर लेते हैं | यह सांझी विरासत है इस देश की और इस भारत के संघीय ढांचे का इतना बड़ा प्रतीक है कि कैसे 29 राज्य, राज्य सरकारें, केंद्र सरकार, अगर कोई पार्टी किधर पॉवर में भी ना हो, सरकार भी ना चलाती हो, उन सब पार्टियों ने भी इसका सहयोग किया तब जाकर जीएसटी लागू हो पाया इस देश में |

आखिर जीएसटी का कानून सर्वसम्मति से पास हुआ लोक सभा में, राज्य सभा में, अधिकांश राज्यों की असेंबली में भी, कुछ एक-दो पार्टी ने इसका राजनीतिकरण करने की कोशिश की पर अधिकांश देश भर में यह सभी पार्टी की सांझी विरासत है, सभी ने इसको स्वीकार किया, इसमें सुझाव दिए और शत-प्रतिशत निर्णय जो जीएसटी काउंसिल में हुए, यह सर्वसम्मति से हुए, unanimous decision हुए | मैं समझता हूँ यह बहुत बड़ी उपलब्धि है इस देश की कि सभी पार्टियों ने मिलकर एक देशहित और जनहित का काम किया | दुर्भाग्य है कि अब कुछ पार्टियों को डर लग रहा है कि भाई इसका तो बहुत लाभ हो जायेगा देश को, जनता को इसका लाभ जब महसूस होने लगेगा, कहीं ऐसा ना हो जाये की पूरा क्रेडिट मोदी जी को मिल जाये इसलिए आप गलत भ्रांतियाँ फ़ैलाने की कोशिश कर रहे हैं, प्रचार गलत करने की कोशिश कर रहे हैं | लेकिन मैं आपको बता दूं कि यह जो कुछ लोग अभी जिसको अंग्रेजी में कहते हैं ना ‘they are developing cold feet,’ इन लोगों के भ्रम में ना आते हुए हम अधिकांश अधिकारीगण या जो एक्सपर्ट्स हैं जीएसटी के उनके पास अपनी समस्या लेकर जायें, जो यहाँ पर एक कार्यकर्ता बैठे हैं | और वास्तव में हम भी जो राजनेता यहाँ बैठे हैं जो राजनीति में पद भी ग्रहण करके हैं, हम भी कोई टेक्निकल जवाब देने की ना कोशिश करें |

देखिए हम technicalities में जायेंगे गलती कर जायेंगे, गलती करेंगे बाद में जनता का विश्वास टूटेगा, जो भी टेक्निकल विषय हैं वह अधिकारी या जो इस विषय के विशेषज्ञ हैं समझते हैं, उन्ही को करने दें | हम जाकर ज्यादा कोशिश ना करें कि हम समझने की कोशिश करें कि टेक्सटाइल पर क्या लगता है, कैसा लगता है, पहले क्या था, आज क्या है, यह काम अधिकारियों का है | और देश में हजारों जगह, लगभग 5,000 जगह workshops की गयी हैं ट्रेड एसोसिएशन्ज़, ट्रेड organisations, अलग-अलग व्यापारी और उद्योग जगत से लगे हुए लोगों के साथ | यह लगातार आगे भी चल रहे हैं, गत दो दिन में केंद्रीय स्तर पर वर्कशॉप की गयीं जिसको दूरदर्शन ने मुझे लगता है सभी को देश भर में दिखाया जिसमें फाइनेंस सेक्रेटरी जो revenue देखते हैं, हंसमुख अधिया जी ने स्वयं सैंकड़ों सवाल का जवाब जिससे लोगों को सरलता से समझ में आ जाये |

यह यूट्यूब पर भी उपलब्ध है अगर कोई कार्यकर्ता ज्यादा उत्साहित है और चाहता है कि मैं टेक्निकल जवाब भी देना चाहूं तो पहले स्टडी करे, अध्ययन करे इन सब विषयों का, फिर सवाल-जवाब लेने  की साहस करे | मैं स्वयं भी कोई technical answers का साहस नहीं करता हूँ, मैंने साथ में एक मिस्टर जयन जो जीएसटी के साथ संबंधित अधिकारी हैं उनको रखा है | और आपने देखा होगा जब-जब सवाल आ रहा था मैं उनसे कन्फर्म कर रहा था, हूँगा मैं चार्टर्ड अकाउंटेंट लेकिन मैंने कोई जीएसटी के पूरे प्रावधान स्टडी नहीं किये हैं | अगर मैं जवाब देने की कोशिश कर जाऊं तो कल को ला के कोई गलती करूँ और फिर मुझे quote करकर आपको तकलीफ हो जाये यह भी ठीक नहीं है | तो मैं सभी कार्यकर्ताओं को रिक्वेस्ट करूँगा कि जहाँ तक हो सके सवाल लोगों के लेना, समझना, लेकिन उनको जो भी पहले वैट ऑफिस था, एक्साइज ऑफिस था, कस्टम ऑफिस था, वहां पर हेल्प लाइन्स लगी हुई हैं |

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने देश भर में सवा सौ हेल्पलाइन लगाई हैं, cost and works accountants, अलग-अलग chambers, company secretaries,  Phd Chambers, CII, ASSOCHAM, FICCI, अलग-अलग प्रदेश में जो chamber चलते हैं सबने help lines लगाई हैं जहाँ विशेषज्ञ, experts बैठते हैं उनकी सलाह पर ही आप लोग चलें | और देखिए आप सोचिये यह कितना कठिन काम था, 2003 में मान्य प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार ने इस विषय को सबसे पहले गंभीरता से देश के समक्ष रखा, एक विजय केलकर कमिटी बनी जिसने Goods and Services Tax की कल्पना की | तो 2003 से शुरू हुआ हुआ काम जिसको चिदंबरम साहब ने 2007 में बजट में सुनाया था, जिसको प्रणब मुख़र्जी जी, मान्य महामहिम जी ने तब वित्त मंत्री थे 2011 में कानून पेश किया पार्लियामेंट में, उसपर 6 वर्ष लग गए, Standing Committee of Finance ने बैठ के उसका अध्ययन करके कई सुझाव दिए | तब तक सरकार बदल गयी, नयी सरकार आई, उसने भी उसी ईमानदारी से इस प्रक्रिया को आगे रखा और तब जाकर 14 साल के वनवास के बाद One nation, One tax, One market की जो एक सपना वाजपेयी जी ने देखा था उसको आज देश ने सांझी विरासत के रूप में, सभी पार्टियों ने मिलकर इसको सर्वसम्मति से पारित करके इसको एक सच्चाई बनाई है |

ज़रूर कुछ पार्टियाँ उसमें अभी कहने की साहस कर रही हैं कि नहीं यह 6 रेट क्यों है, 2 ही रेट होने चाहिए | वैसे यह मंच वाद-विवाद का मंच नहीं है लेकिन ज़रा आप सोचिये जो मिनाक्षी जी ने सही, बहुत अच्छी तरीके से आपको समझाया कि अगर कोई बीएमडब्ल्यू की गाडी खरीदता है, क्या उसका रेट, और जो किसान अपना उत्पादन करता है या जो गरीब अपनी रबर की चप्पल खरीदता है, क्या इन दोनों का रेट साँझा हो सकता है, एक रेट हो सकता है क्या? आज कुछ नेता यह कह रहे हैं कि यह 6 रेट क्यों हैं, 2 ही रेट होने चाहिए | एक बड़ा प्रमुख नेता जो अधिकांश विदेश ही रहता है, वहां से ट्वीट करके हमको सूचनाएं देता है, उसने ट्वीट किया है कि 18% से ज्यादा कोई रेट होना चाहिए हम आन्दोलन करेंगे, आन्दोलन किसके लिए करेंगे जो बीएमडब्ल्यू कार खरीदना चाहते हैं, उनके लिए आन्दोलन करने के लिए सड़क पर आ रहे हैं, जो अमीरों के वस्तु हैं जिनपर 28% या ज्यादा रेट लगा है, सेस लगा है उनके लिए आन्दोलन करना चाह रहे हैं?

और यह रेट कैसे फिक्स हुए? यह रेट कोई मन-मर्ज़ी से मोदी जी ने या जेटली जी ने नहीं फिक्स किये, एक भी रेट हमने नहीं फिक्स किया है | सभी रेट जीएसटी काउंसिल ने 17 मीटिंग करके सर्वसम्मति से रेट फिक्स किया है, उसमें 6 सरकारें कांग्रेस की भी हैं, उसमें कम्युनिस्ट की दो सरकारें हैं केरल और त्रिपुरा, टीआरएस की तेलंगाना की सरकार है, टीडीपी की आंध्र की सरकार है, नार्थ-ईस्ट की अलग-अलग पार्टीज की सरकार है | आखिर अगर सबने सर्वसम्मति से रेट फिक्स किया तो क्या वह नेता अपने ही मुख्यमंत्री और वित्त मंत्रियों के ऊपर टिप्पणी कर रहे हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा है यह second thought क्यों हो रहा है उनको, और आखिर यह रेट भी फिक्स कैसे हुए?

पहले जो रेट थे, एक्साइज था, वैट था, एंट्री टैक्स था, ऐसे 17 टैक्स थे, 23 सेस थे, इन सबको जोड के पहले जो व्यवस्था में जो बोझ था कोई भी आइटम पर उस को नजदीक से नजदीक रेट में फिट करने का काम एक फिटमेंट कमिटी ने किया जो सभी पार्टियाँ और सभी राज्य सरकारों को सम्मिलित करके बनाई गयी थी | तो स्वाभाविक है कि आखिर जिन सरकारों को जनता ने चुन के भेजा जिसमें दिल्ली की सरकार भी थी, जो साधारणतः राजनीतिक रूप से हमारे हर निर्णय को oppose करती है, उनके भी प्रतिनिधि उसमें थे, एक कांग्रेस के भी प्रतिनिधि थे, कम्युनिस्ट के भी थे, सभी की यह सांझी विरासत है यह रेट्स जो तय हुए हैं, सर्वसम्मति से हुआ है | पहले जो रेट् बोझ था उसी के इर्द-गिर्द कोई 5 के आस-पास था, 4 था, 6 था, 7 था, उसको 5 किया है, कोई 12 के आस-पास बोझ था उसको 12 किया है, हो सकता है किसी का 10 हो, किसी का 11 हो, उसको 12 में फिट किया, किसी का 13 है, 14 है, उसको भी 12 किया गया | ऐसे करके यह रेट फिक्स किये गए हैं तो अगर कोई कहे कि हमारा रेट बहुत ज्यादा है तो वह सीधा-सीधा गलत है | अच्छा कुछ आइटम में जैसा अभी मिनाक्षी जी ने बहुत अच्छी तरीके से समझाया कुछ आइटम में रेट नहीं लगते तो विदेश से इम्पोर्ट बढ़ जाता है, छोटे उद्योग भारत के ख़त्म हो जाते हैं, जैसा उन्होंने सेनेटरी पैड में कहा | और यह एक योजना से शायद कुछ बड़ी कंपनियां यह रोज़ आर्टिकल लिखवा रही हैं कि सेनेटरी पैड में 12 ज्यादा है उसको कम किया जाये और महिलाओं की आड़ में, महिलाओं को सामने खड़ा करके यह दुष्प्रचार किया जा रहा है | बिलकुल सरासर गलत है |

आखिर जो सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स और छोटे उद्योग बनाते हैं, 20 लाख तक तो उनको exempt रखा गया है, अब मुझे नहीं मालूम कौनसा सेल्फ-हेल्प ग्रुप 5 करोड़ और 10 करोड़ की सेल्स करता है | अच्छा कोई 20 लाख से ज्यादा करता है, 20 से 75 लाख तक तो manufacturer को 2% composite scheme दी गयी है, ट्रेडर को 1% composite scheme दी गयी है, तो 75 लाख तक जब इतना सरल व्यवस्था इतने कम टैक्स की आपको व्यवस्था कर दी है तो देश का अधिकांश उद्योग, उद्योग में काम करने वाले लोग और व्यापारीगण तो 75 लाख से ज्यादा सेल साल में करते ही नहीं है और करते भी हैं तो दिखाते ही नहीं है | तो उनको तो कोई किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होनी चाहिए |

अगर हिंदुस्तान लीवर इतनी बड़ी कंपनी जब सेनेटरी पैड बनाती है, उसको अगर कोई चोट पड़ रही है और वह एक एक सेनेटरी पैड 5 रुपये, 7 रुपये, 10 रुपये का बेचते हैं, शायद उससे भी ज्यादा तो उनको तो रोने का कोई कारण नहीं है | बड़ी कंपनियों के लिए तो हम वकालत करने के लिए यहाँ कोई नहीं बैठा है और वास्तव में जो अमीर लोगों के वस्तु हैं उसपर अगर थोड़ा टैक्स आ भी जाये और वह टैक्स किसी गरीब की कुटिया में बिजली देने का काम करे, अगर किसी वृद्ध महिला जो गाँव में रहती है उसको अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं मिलने के लिए दो रुपये ज्यादा इकट्ठे हो जायें, अगर कोई विद्यार्थी को अच्छी शिक्षा मिले और आपके और मेरे बच्चों की तरह वह भी एक समाज में अच्छा स्थान ग्रहण कर सकें तो यह क्या गलत होगा इस देश के लिए?

यह जो विदेशी सोच के कुछ लोग आज भ्रांतियां फैला रहे हैं कि टैक्स रेट तो एक ही होना चाहिए या दो ही होने चाहिए या 18% से ज्यादा नहीं होना चाहिए, यह विदेशी सोच इस देश में नहीं चल सकती है | आखिर आज अमेरिका, वैसे तो अमेरिका और चाइना जैसे बड़े देशों तक में आज जीएसटी लागू करने का किसी में साहस नहीं हुआ है, डरते हैं जीएसटी लागू करने से, क्योंकि सर्वसम्मति तो बना ही नहीं पाएंगे वह | यह कूटनीति थी, यह बहुत समझदारी से जो वित्त मंत्री जी, प्रधानमंत्री जी ने जिस प्रकार से सबकी सर्वसम्मति से जीएसटी को पारित किया है, यह मैं समझता हूँ हम सबको बहुत गर्व का विषय है कि हम ऐसी सर्वसम्मति, ऐसी unanimity देश के सामने पहली बार संघीय ढांचे का collaborative, cooperative और consultative process से इतना बड़ा निर्णय हुआ है |

ज़रूर ट्रांजीशन के पीरियड में थोड़ी दिक्कतें आएँगी, हम अपना घर बदलते हैं एक जगह से दूसरी जगह, हम अपनी दुकान कभी बदलते हैं एक से दूसरी जगह, कभी हम वस्तु नया introduce करते हैं मार्किट में, अपनी दुकान में, कोई फैक्ट्री चलाता है, कोई नया डेवेलोप करके प्रोडक्ट बनाता है नए डिजाइन का, क्या दिक्कतें नहीं आती हैं हमें कि सरलता से पहले दिन से बढ़िया धंधा हो जाता है | जब हम नयी दुकान में जाते हैं तो पता नहीं चलता है कि अरे यार इधर से तो पानी आ रहा है उसको प्लग करो, क्या पता नहीं चलता है कि कुंडी ठीक से नहीं लग रही है, उसको ठीक करो, क्या पता नहीं चलता है कि हम कोई ……… Whatsapp के ऊपर विश्वास करने की क्या ज़रूरत पड़ी है, सरकार इतने बड़े बड़े इश्तेहार दे रहा है उसी को पढ़ लीजिये, आप पहले भी तो वैट ऑफिस जाते थे, एक्साइज ऑफिस जाते थे, नजदीक के कमर्शियल टैक्स ऑफिस चले जाइये, जो सवाल है पूछ लीजिये, आपको उसका जवाब मिल जायेगा |

हो सकता है कि आपके सवाल में से कुछ ऐसी चीज़ सामने आएगी जिससे आगे चलके अगली जीएसटी कौंसिल में हम उनके समक्ष रखके उसको सुधार करने की भी कोशिश कर सकते हैं | आज भी कई सुझाव ऐसे अच्छे आये जो मुझे लगता है कि शायद जीएसटी कौंसिल के समक्ष रखने की आवश्यकता है | लेकिन अरुण जेटली जी, मान्य वित्त मंत्री, या प्रधानमंत्री मान्य मोदी जी, वह लोग निर्णय नहीं ले सकते फिर सर्वसम्मति का लाभ क्या होगा, फिर उसकी वैल्यू क्या होगी, फिर संघीय ढांचे की वैल्यू क्या होगी? यह सब चीज़ें फिर जीएसटी कौंसिल के समक्ष रखनी पड़ेंगी, वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री जी नहीं निर्णय ले सकते कि हाँ मिनाक्षी जी कह रही हैं बहुत अच्छी बात है, लाओ, मैंने बदल दिया | ऐसे नहीं होगा, जीएसटी कौंसिल के सामने जायेगा, जीएसटी कौंसिल को उसको सब तरीकों से समझना पड़ेगा और फिर निर्णय लेना पड़ेगा सर्वसम्मति से |

तो यह बात हमने सबने जहाँ यह बात बतानी होगी कि यह सांझी विरासत है, यह मोदी जी ने अकेले कुछ कर लिया ऐसा वस्तु नहीं है, ऐसा परिवर्तन नहीं है | यह देश के भविष्य को बदलने वाला निर्णय है, इस निर्णय को करने के साहस और मेहनत आप सबके आशीर्वाद से सभी सरकारों ने मिलकर किया है और इस सांझी विरासत को सफल बनाने का काम भी देश की 125 करोड़ की जनता और 1 करोड़ जो व्यापारी वर्ग और उद्योग वर्ग है, उन सबके कन्धों पर यह ज़िम्मेदारी आती है, यह एक व्यक्ति, दो व्यक्ति की ज़िम्मेदारी नहीं हो सकती | जब हम इस बात को ठीक से समझ लें तब आगे का काम बड़ा सरल हो जायेगा, सोच नकारात्मक रखनी है या सकारात्मक रखनी है यह हम सबको तय करना होगा | आप कोई भी परिवर्तन को negativity से, अरे यह सब गलत हो रहा है, उससे सोचेंगे तो आपको गलत-गलत-गलत मार्ग ही दिखता रहेगा, आप रोते रहेंगे, आप परेशान होते रहेंगे, उससे किसी को फरक नहीं पड़ेगा, खुद की तबियत ख़राब होगी |

पहले लोगों ने बहुत कोशिश की कि 1 जुलाई की डेट बदल दी जाये, आगे कड़ी जाये | पहले क्या था कि जीएसटी को ले के बड़ा लोग खुश हो रहे थे फिर जब पूरा सिस्टम सामने आया, मिनाक्षी जी ने भी उसका उल्लेख किया, और मैं कोई एक विशेष वर्ग या एक विशेष व्यापार की बात नहीं कर रहा हूँ | कई लोगों ने इस बात पर भी टिप्पणी की कि आप चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को क्यों चोर मानते हैं, आप व्यापारी और उद्योग को क्यों चोर मानते हो? ज़रा भी नहीं| मैं तो खुद चार्टर्ड अकाउंटेंट हूँ, मैंने खुद उद्योग चलाया है, एक छोटा small scale industry चलाई थी, उद्यमी के नाते उसको फिर बड़ा करते गया | 30 वर्ष मैं भी तो आपकी तरह निजी क्षेत्र में ही काम करता था | कोई कंसलटेंट साहब आये थे यहाँ पर, बिज़नेस कंसलटेंट, मैंने भी इन्वेस्टमेंट बैंकिंग की है, सर्विस टैक्स pay किया है | तो स्वाभाविक है. मैं आपको विश्वास हूँ इस देश का डीएनए, इस देश का खून, इस देश का हर नागरिक साधारणतः लगभग शत-प्रतिशत ईमानदार है यह इस सरकार की सोच है |

कुछ खराब लोग तो हर क्षेत्र में होते हैं, क्या राजनीति में कम ख़राब लोग हैं? आप रोज़ टीवी खोल के देख लो क्या हालत हो रही है, क्या क्या सामने आ रहा है | हाँ यह अलग बात है कि पहले कोई इतना सहस नहीं करता था कि राजनीतिक भ्रष्ट्राचार को भी देश के समक्ष खुलासा करने की, अधिकारीगण क्या हर एक जना ईमानदार है? वैसे ही क्या हर एक व्यापारी, हर एक उद्योगपति ईमानदार है? नहीं! सभी जगह, सभी समाज के हर वर्ग में कुछ लोग गलत काम करते ही हैं पर उसकी वजह से हमारी सरकार या कोई भी सरकार, हर एक को कोई एक ही ब्रश से पेंट नहीं कर सकता है और ना ही यह हमारी सोच है | हम शुरू करते हैं यह सोच के कि हर एक व्यापारी, हर एक उद्योगपति, हर एक उपभोक्ता, सब ईमानदार हैं, वहां से शुरू होती है | और इसलिए यह जो जीएसटी का पूरा सिस्टम बनाया गया है, यह उस ईमानदार व्यापारी, ईमानदार उद्योग को मद्देनज़र रखते हुए बनाया गया है |

आज देखिए आप सवालों में किसी ने यह नहीं पूछा कि 37 रिटर्न, इसकी भी बड़ी misinformation campaign हुई, जब मैंने स्टडी किया सिस्टम तब मुझे ध्यान आया इसमें तो एक भी रिटर्न नहीं है, टोटल जीरो रिटर्न वाला सिस्टम बनाया है | यह एक्चुअली अधिकारियों की गलती है कि इन्होंने 37 रिटर्न बात कर दी, वास्तव में तो एक स्टेटमेंट फाइल करना है, बाकी कुछ नहीं | हाँ थोड़ा समय लगेगा जैसे जैसे सबको यह बात समझ में आएगी, सबके परचेस के डेटा ऑटो-पॉप्युलेट होकर सिस्टम में बनेगी | लेकिन वास्तव में हम सबको ईमानदारी से, शत-प्रतिशत ईमानदारी से अपना सेल्स इनवॉइस इंटर करना है और वह सेल्स इनवॉइस 10 तारीख तक अगले महीने की सबमिट करना है सिस्टम के अन्दर | इसके लिए इन्टरनेट भी नहीं चाहिए, दो मिनट के लिए आप कॉल सेंटर चले जाओ और अपनी एक्सेल शीट अपलोड कर दो, इतनी सरल व्यवस्था बनाई गयी है | उसके इलावा परचेस रजिस्टर जो लोगों ने आपको माल बेचा उनके यहाँ से परचेस रजिस्टर अपनी खुद में बन जाएगी, वह अपना सेल्स डालेंगे, आपके यहाँ परचेस के रूप में दिखेगी, आप जब सेल डालोगे आपके खरीदार के यहाँ परचेस के रूप में दिखेगी |

जो 15 तारीख तक, 10 और 15 के बीच आप देख सकते हैं कि भाई मेरी परचेस रजिस्टर पूरी बन गयी कि नहीं, अगर किसी ने अपनी सेल नहीं डाली तो उसको फ़ोन करके बोल सकते हैं भाई तुम्हारी सेल नहीं आई है डालो, या तुमने नंबर गलत या नाम गलत डाल दिया ठीक करो | आजकल तो फ़ोन पर भी पैसे नहीं लगते हैं, लगभग फ्री सा हो गया है फ़ोन भी करना तो उसके लिए भी कुछ चिंता नहीं, कठिनाई नहीं होनी चाहिए | तो पहली बार तो आपको सिर्फ सेल्स का एक स्टेटमेंट भरना है मैंने किस किस को क्या माल बेचा,  दूसरा परचेस स्वयं में आ जायेगा, शुरू में थोड़ी लोग गलती करेंगे तो आहिस्ते-आहिस्ते ध्यान आएगा कि भाई यहाँ तो बच नहीं सकते, सेल डालनी ही पड़ेगी, तो आहिस्ते-आहिस्ते वह परचेस रजिस्टर भी पूरी भर दी जाएगी | कुछ आपने unregistered dealer वगैरा से परचेस किया तो reverse charge mechanism में आपको सुविधा है डालने की |

अच्छा कोई व्यक्ति सेल डालने को ही तैयार नहीं हो, तो आप उसको अपनी परचेस डाल सकते हो तो उसके यहाँ सेल दिखेगी तो कंप्यूटर बता देगा कि अरे भाई उसने छुपाई है अपनी सेल, आपने परचेस के रूप में डाल दिया तो उसकी सेल दिख जाएगी तो वह भी छुपा नहीं पायेगा | और जो तीसरी है वह तो ऑटोमेटिकली कंप्यूटर बताएगा आपने इतनी-इतनी सेल करी, उसपर आपने इतना जीएसटी कलेक्ट किया, दूसरों ने आपको इतना-इतना माल बेचा उसपर आपको इतना क्रेडिट मिला और नेट आपको इतना भरना है | यह भी आपको नहीं बनाना है कंप्यूटर ही आपको बता देगा, सिस्टम ही आपको बता देगा | तो 37 छोड़ो एक भी रिटर्न नहीं भरना है |

और मुझे याद है जब मैं फैक्ट्री चलाता था तब वैट के लिए अलग फॉर्मेट होता था जिसमें रिकॉर्ड रखना पड़ता था, सर्विस टैक्स के लिए अलग, एक्साइज के लिए अलग, ऐसे अलग-अलग अलग-अलग करते कितनी बार हमें सेल्स रिकॉर्ड बनाना पड़ता था, कितनी बार परचेस रिकॉर्ड बनाना पड़ता था, कितने अलग-अलग रिटर्न भरने पड़ते थे एक-एक विभाग को| यह दिन कोई भूला तो नहीं है ना, अभी-अभी तक ताज़ा ही मेमोरी में है, हाँ यह ज़रूर है आगे चल के एक बार हाथ बैठ जायेगा जीएसटी में और ध्यान आ जायेगा कि भाई इसमें तो अब ईमानदार व्यवस्था से ही जुड़ना है, नंबर दो का धंधा बंद तब आहिस्ते-आहिस्ते लोगों को इसकी सरलता भी ध्यान आ जाएगी, अच्छा मैं जितनी जगह यह बात रखता हूँ कि इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि अब व्यापार सबके लिए इक्वल हो जायेगा, ऐसा नहीं कि कोई हिमाचल में है, कोई दिल्ली में है तो अलग-अलग उसके ऊपर बोझ बढ़ता है टैक्स का | ऐसा नहीं है कि एक आदमी टैक्स की चोरी करता है तो उसका सामान सस्ता हो गया बाकी 8 लोगों का सामान महंगा हो जाता है तो उनके पास दो ही पर्याय हैं या तो धंधा बंद करो या उसकी तरह चोरी करना शुरू करो | और दिल्ली तो बड़ी विशेष जगह ऐसी है कि कुछ इलाके ऐसे हैं जहाँ यह आहिस्ते-आहिस्ते एक ने, दो ने, चार ने चोरी करनी शुरू की, उनकी कम्पटीशन में खड़ा ना रहने के कारण पूरी की पूरी मार्किट ही….कुछ गलत बोल रहा हूँ भाईयो-बहनों? मैं नाम नहीं ले रहा हूँ पर आप में से कोई ऐसा है जिसको मालूम नहीं है इसके नाम? सभी को मालूम है ना?

हां पर वो कई लोग तो हालात के मारे थे। चाहते नहीं थे ऐसा काम करना पर अगर काम्पिटीशन में दो आदमी चोरी करें 8 ईमानदार क्या करेंगे? या धंधा बंद करेंगे या जुड़ जाएंगे। कहते हैं ना, If u can’t beat them, join them. है ना अंग्रेजी में एक कहावत, कुछ लोगों ने सुनी होगी। या एक और कहावत है, ‘When in Rome, do as the Romans do.’ उस मार्केट में व्यापार करना है तो जो सब लोग करते हैं वही आपको लोग करो ।

क्या ये व्यवस्था बदलनी चाह‌िए कि नहीं बदलनी चाह‌िए? अच्छा एक और मैं तो ऐसे कई गोष्ठियां कर रहा हूं। मैं इसमें भाषण नहीं देना चाहता, मैं चर्चा करने चाहता हूं। आज भी मैंने इसलिए कहा, पहले मैं सबकी बात सुनना चाहूंगा जिससे कुछ न कुछ जवाब भी सामने आ जाएगा। और आधे से ज्यादा जवाब तो मेरे इसी जनरल कन्वर्सेशन में आ जाएंगे। क्या आपको ध्यान में है कि जब कोई टैक्स की चोरी करता है तो उसका परिणाम क्या हो रहा है? आप कोई भी सोचिए जब टैक्स की चोरी करते हैं तो एक मिनट के लिए दिमाग में लाइए कि अगर मैंने ये टैक्स ईमानदारी से भरा होता तो शायद वह एक गरीब विद्यार्थी को अच्छी शिक्षा मिलने में जाती। हम सबका कुछ न कुछ मूल गांव में तो संबंध है ही ना? गांव में किसान की क्या हालत है,  गरीबों की क्या हालत है, हम सब जानते हैं कि नहीं जानते हैं। कि अब भूल गए हैं दिल्ली आकर, हमने ट्रेन का सफर कर लिया, जो पीछे रह गए, ट्रेन में नहीं आ पाए उनको भूल तो नहीं सकते हैं ना हमसब? क्या उनके जीवन में भी कुछ परिवर्तन, सुधार की ज़िम्मेदारी हम सबकी बनती है कि नहीं। क्या वहां पर भी कोई वृद्ध महिला को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं मिलें, इसके लिए हमें दो रुपए टैक्स ज्यादा भी देना पड़ जाए उपभोक्ता के नाते या व्यापारी के नाते, या टैक्स की चोरी करते हुए हमारे दिमाग में विचार आएगा कि नहीं आएगा? और ये कोई टैक्स केंद्र सरकार को नहीं मिल रहा है।

आप सोचिए जितना टैक्स कलेक्ट होता है, आधा टैक्स तो सीधा राज्य सरकार को जाता है, आधा केंद्र सरकार में आता है। जो आधा केंद्र सरकार में आता है,  उसमें पहले 42 प्रतिशत फिर राज्य सरकार को जाता है 14वीं वित्त आयोग के नाते। तो जो 50 परसेंट केंद्र को मिला उसका 42 परसेंट फिर राज्य को चला गया।     तो 21 परसेंट 100 में से फिर राज्य को चला गया, 50 प्लस 21 – 71 परसेंट राज्य सरकार को चला गया। जो 29 प्रतिशत रहा उसमें भी सेंट्रली स्पॉन्सर्ड स्कीम्स, आखिर मेरी विद्युतीकरण में दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, इंटीग्रेट पावर डेवलपमेंट स्कीम, उज्जवला…अलग-अलग योजनाओं से फिर राज्य सरकार को केंद्र सरकार पैसे देती है |

तो लगभग 85 परसेंट से अधिक जो भी टैक्स कलेक्ट होता है जीएसटी के माध्यम से ये सब राज्य सरकार को जाता है। और उससे राज्य सरकार गरीब की, किसान की, शो‌षित-वंचित लोगों की स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा सेवाएं, अलग-अलग प्रकार की योजनाएं जिससे गर्भवती महिलाओं को सुविधा मिले। स्कॉलरशिप के ल‌िए गरीब विद्यार्थियों को.. इन सबपर खर्चा करती है | तो टैक्स की चोरी के टाइम हम कभी ये न भूलें कि ये गरीब के पेट पर लात मारने बराबर है। और मैं जितनी जगहों पर यह बात रखता हूं, सबसे ज्यादा समर्थन, आशीर्वाद अगर मिलता है तो युवाओं का मिलता है, युवतियों का मिलता है। आज का युवा, आज की युवती बाप-दादा की तरह दो-दो बहीखाता नहीं रखना चाहती है ये कच्चा, ये पक्का। उपभोक्ता आए तो ये नहीं पूछता कि कच्चे में बेचूं या पक्के में बेचूं?

सबको एक ईमानदार व्यवस्था से जुड़ने में युवा शक्ति को आज आनंद आता है। वो रात को चैन की नींद सोना चाहता है। अपना रात को गए किधर न किधर कुलचा-भटूरा खाया, पिक्चर देखी और रात को आकर चैन की नींद सो गए। ये डर नहीं चाह‌िए कि मैं टैक्स की चोरी की है तो पता नहीं कितने अलग-अलग विभाग आकर मुझे तंग करेंगे। मुझे याद है, आपमें से कोई अगर उद्योग चलाता है तो आपको भी कभी न कभी अनुभव हुआ होगा। जब मैं फैक्ट्री चलाता था कभी सुबह फैक्ट्री पहुंचो, और फैक्ट्री के बाहर ही …. जैन साहब माफ करिएगा कोई बुरा, अन्यथा मत लीजिएगा… पर अगर फैक्ट्री पहुंचो और सुबह एक सफेद एम्बेसडर खड़ी हो, फैक्ट्री के दरवाजे के बाहर तो आप सबको जो फैक्ट्री चलाते हैं उनको अनुभव होगा क्या दिल में क्या बीतती है उस टाइम पे। और अगर उस पर एक बोर्ड लगा हो, गोल बोर्ड लगाते हैं गाड़ी के पीछे – सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम, देखा है आप लोगों ने कभी? अगर फैक्ट्री पहुंचो, सफेद एम्बेसडर खड़ी हो और पीछे एक बोर्ड हो सबसे पहला विचार आता है आज रात को घर जाएंगे या आज रात को फैक्ट्री में ही बैठना पड़ेगा।

लेकिन अगर हमने अपनी सभी सेल्स को ईमानदारी से जीएसटी में डाल दिया तो कोई अधिकारी आने का कारण भी नहीं बनेगा, कोई आएगा तो हमें डरने की जरूरत नहीं है, हम उसके ऊपर पूरे तरीके से कार्रवाई कर सकते हैं, कम्प्लेंट कर सकते हैं, अपने लोक प्रतिनिधि के पास जाकर बोल सकते हैं कि यह क्या है, हमें तंग कर रहे हैं, हमने सब सेल दिखाई है। हमारा दामन साफ होना चाह‌िए। दामन साफ होगा तो कभी तकलीफ नहीं आएगी। तो अगर हम इस कल्पना को रखें कि ये सांझी विरासत है। सांझी विरासत में ईमानदार व्यवस्था की तरफ देश जा रहा है। ट्रांजीशनल पीरियड में कुछ तकलीफें आएंगीं, उसको हमें मिल-जुलकर रास्ते निकालना हैं और थोड़ा समय देना है जिससे ये पूरा व्यवस्था ठीक-ठाक से स्मूथ हो जाए, सिम्पल हो जाए।

जो जेनुइन कंसर्न्स हैं वो भी जीएसटी कौंसिल से बात करके आगे चलकर सुधारी जा सकती हैं पर आज ही आपने पेपर में पढ़ा होगा हमने सख्त निर्देश दिया है कि किसी को भी तंग नहीं किया जाएगा जब तक ये सब चीजें समझ जाएं, सब ग्रहण कर लें। और झूठे कैम्पेन, झूठे व्हाट्सएप, राजनीतिक बयानों पर मत आइए। सीधा अधिकारियों के पास जाकर आप पूछिए, क्या चीज सही है क्या चीज गलत है। जैसे क्रेडिट कार्ड का बताया, उन्होंने सही कहा ये मिसइन्फॉर्मेशन है। क्रेडिट कार्ड पर जो आप खरीदते हो उसपर कोई एडिशनल टैक्स नहीं है। जो वस्तु का टैक्स है, वही लगेगा। 60 रुपए का आपने खरीदा तो 60 रुपए ही आपको देने पड़ेंगे। अगर आप पेमेंट डिले करते हो, जो ड्यू डेट होती है, Delayed payment के ऊपर जो चार्ज लगता है, वो तो अगर आप टाइम पर क्रेडिट कार्ड पेमेंट नहीं करो वो तो चार्ज आपके ऊपर है, उसके टैक्स टैक्स लगेगा, शायद 18 प्रतिशत।

तो अगर आपने 60 रुपए का माल लिया और आपने दो महीने तक पेमेंट नहीं की वह ओवरड्यू हो गया और बैंक में जिसका भी क्रेडिट कार्ड है, 3 रुपए आपको चार्ज लगाती है, तो वो जो 3 रुपए है, जो आपकी गलती है आपने समय पर नहीं दिया, आज भी उसपर लगता है। आज भी Delayed payment पर आपको ब्याज देना पड़ता है, अनाप-शनाप ब्याज देना पड़ता है। और उसके ऊपर सर्विस चार्ज लगता है, सर्व‌िस टैक्स लगता है, वही व्यवस्था आगे चालू की गई है। कोई 60 रुपए के मूल्य के ऊपर आपको टैक्स नहीं एक्स्ट्रा लग सकता है, वो बहुत स्पष्ट आप सबको बोल सकते हैं।

सैनेट्री पैड्स का तो बहनजी ने अच्छी तरह समझाया अगर ये 12 परसेंट नहीं लगता तो सब भारत के छोटे उद्योग बंद हो जाते और विदेशी कंपनियां भारत में सैनेट्री पैड डम्प करतीं, प्लास्टिक या आर्टिफिशियल बनाया हुआ जिससे प्रदूषण भी बढ़ता। हमने अपने सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स को और प्रोत्साहन करने के लिए और देशीय स्वदेशी वस्तु ज्यादा बने उसके लिए इसके ऊपर टैक्स रखा है, और यह मैं पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कोई प्रतिनिधि मंडल आए हम उनको ये बात समझा सकते हैं।

जहां तक कंप्यूटर्स का सवाल है जो बड़े मॉनिटर्स हैं वो बड़े लोग ज्यादा साधारणतया खरीदते हैं, गरीब मध्यमवर्गीय लोगों के वस्तु पर कम रहे, अमीरों की वस्तुओं पर ज्यादा हो उसमें मुझे लगता है पहले भी ऐसा ही था, आज भी ऐसा ही रखा गया है। कोई परिवर्तन नहीं किया गया है तो बार-बार ये लाने की कोशिश न करें कि एक एचएसएन कोड में दो टैक्स, तीन टैक्स क्यों रखे हैं। वो वस्तु के ऊपर है और वस्तु के हिसाब से टैक्स रेट निर्धारित किया है। वैसे साधारणतया कोशिश की है कि एचएसएन कोड पर सेम रेट हो। लेकिन अगर सेम गाड़ियां एक ही एचएसएन कोड की हैं। क्या आप जो छोटी तीन लाख, चार लाख की गाड़ी लेते हैं या कोई इलेक्ट्रिक कार लेता है प्रदूषण कम करने के लिए उसका रेट और बीएमडब्ल्यू का रेट एक तो नहीं हो सकता है ना? अलग-अलग करना ही पड़ेगा |

अगर कोई 100 इंच का बड़ा टेलीविजन खरीदता है और कोई साधारण मध्यम वर्गीय 15 इंच, 20 इंच का टेलीविजन खरीदता है, क्या रेट अलग होना चाहिए या एक होना चाह‌िए? क्या मुकेश अंबानी के घर पर जो टेलीविजन लगे और एक भारतनगर में रहने वाले व्यक्ति के घर पर जो टीवी लगे उसका रेट एक होना चाह‌िए या अलग होना चाह‌िए? आप बताएं मुझे? क्योंकि उनसे हम ज्यादा टैक्स लेकर आखिर गरीब की सेवा कर पाएंगे ना? इसमें शायद कुछ नेताओं को विदेश बैठे हुए ट्वीट करके आलोचना करने में मजा आ रहा हो…लेकिन आज जनता उनको पूछ रही है कि क्या आप अमीरों के नुमाइंदे बन गए हो? क्या आप अमीरों के लिए देश में गलत प्रचार करने में लग गए हो और ये बात हमारे कार्यकर्ता गांव-गांव तक, घर-घर तक, हर झोपड़पट्टी में, हर मध्यमवर्गीय को बताएं कि ये जो महंगा टैक्स रखा है ये अमीरों के ऊपर रखा है। और ये सरकार गरीबों की सरकार है, ये सरकार मध्यमवर्गीयों की सरकार है, यह सरकार शोषित-वंचित जो वर्षों से, जिनको अच्छी सेवाएं नहीं मिली उनकी सरकार है और ये हम दावे के साथ कहते हैं कि अमीरों की वस्तुओं पर ज्यादा रहे ये हमारी प्राथमिकता रही है।

इंस्पेक्टर राज खत्म होने के ल‌िए 22 जगह चेक पोस्ट खत्म हो गया है, 22 राज्यों में, बाकी एक भी राज्य खत्म करने के करार पर हैं। अगर आपकी ईमानदार व्यवस्था से बिल बना है तो स्टेट के कानून अभी तक चल रहे हैं क्योंकि ई-वे का कानून अभी तक बना नहीं है। जैसे ही वो बन जाएगा शायद 15-20 दिन में तो वो भी लागू हो जाएगा। और सरलता आ जाएगी, उसमें चर्चा विचार-विमर्श चल रहा है। अगली जीएसटी काउंसिल में उसको फाइनल करने की कोशिश की जाएगी। पर वही बात है यह ट्रांजीशन का पीरियड है। पहले तो ज्यादा परेशान होते थे आप, आप ये भूल रहे हैं कि ज्यादा से अभी कम पे आए हैं क्योंकि कुछ राज्यों में फ्लाइंग स्क्वाड और टेस्ट, चेकिंग तो चल ही रही है जिससे यह नंबर दो का धंधा रोका जा सकेगा। उसके बाद एक बार ई-वे बिल सर्वसम्मत‌ि से आ जाएगा तो वो भी बंद हो जाएंगे।

थोड़ा सब्र तो रखिए ना। 100 से हम समझो 20 तक आए हैं, 20 से 2 पर आने के लिए थोड़ा और समय लगेगा? उसके ल‌िए ट्रांजीशन का थोड़ा समय दिया जाए। किसी ने पूछा ट्रांजीशनल स्टॉक का। ट्रांजीशनल स्टॉक पर बड़ी सरलता से और स्पष्ट इश्तिहार द्वारा भी हमने जानकारियां दी हैं। आप इश्तिहार तो पढ़ने की मेहनत कर सकते हैं। कुछ सवाल, डाउट हों तो ज़रा नियरेस्ट टैक्स ऑफिस में जाकर पूछ लो। आपका जो भी स्टॉक है उसमें आपके पास अगर टैक्स-पेड इनवॉइस है और उसमें टैक्स दिखाया गया है तो आप उसका पूरा क्रेडिट ले सकते हो। अगर टैक्स अलग से नहीं दिखाया गया है पर टैक्स-पेड इनवॉइस है जिसमें सेल्स टैक्स नंबर डाला हुआ है तो आप 60 प्रतिशत उसका इनपुट क्रेडिट ट्रांजिशनल प्रोवीजंस के तहत ले सकते हैं। इसकी पूरी प्रावधान बनाई गई है ट्रांजिशनल पीरियड के ल‌िए।

इसी तरीके से रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म वो इसलिए लाया गया है और यह बात आप, बड़ा सरल है, समझ जाएंगे। समझो ये व्यापारी हैं, अपना कार्यकर्ता है इसलिए इनकी तरफ, नहीं अब मैं व्यापारी हूं चलो ज्यादा आसान हो जाएगा। मैं व्यापारी हूं और मैं बोलूं मैं 20 लाख से कम बेचता हूं और ऐसे कई लोग हैं जो अपना सेल दिखाते ही नहीं हैं। सरकार को और कंप्यूटर को कैसे मालूम पड़ेगा कि ये 20 लाख है या ज्यादा है। इसलिए ये दिखाया गया है कि जिस-जिसको मैं बेचूंगा अगर वो भी बिजनेस टु बिजनेस सेल है वो भी क्रेडिट लेना चाहता है, जीएसटी नंबर होल्डर है तो वो उसपे रिवर्स चार्ज में टैक्स पे करेगा और हाथ के हाथ उसी समय उसका क्रेडिट ले लेगा और वो क्रेडिट लेकर अपने सेल के ऊपर उसका लाभ ले लेगा, तो उनको कोई भार नहीं पड़ेगा, जीरो कास्ट ही रहेगा। लेकिन जिससे खरीदा है, उसका नाम कंप्यूटर में आ जाएगा। और ऐसे जब 100 लोगों को, जिस-जिसको मैंने माल बेचा है लेकिन रिचर्ड पर नहीं दिखाया वह सब जब रिवर्स चार्ज में अपना परचेस दिखाएंगे और परचेस नहीं दिखाएंगे तो उनके सेल कहाँ से हुआ कैसे दिखाएंगे? परचेस नहीं दिखाएंगे तो इनकम बढ़ जाएगी टैक्स भरना पड़ेगा तो हर एक आदमी परचेस तो दिखायेगा | तो कंप्यूटर में मेरी सब जो सेल हुई है वह आप लोग के परचेस होने के कारण आप रिवर्स चार्ज में जब दिखाएंगे तो कंप्यूटर को पता चल जायेगा कि अरे भाई यह तो गलत बोल रहा है, इसकी तो सेल एक करोड़ रुपये की है तो मेरे पास पहुँच सकता है कंप्यूटर |

और आखिर ईमानदार व्यवस्था बनानी हो तो जो कुछ लोग गलत काम करते हैं उनको भी तो ईमानदार व्यवस्था में लाना पड़ेगा ना? और यह इनको ईमानदार व्यवस्था में लाने का एक साधन है, माध्यम है| तो इसको आप उस स्पिरिट में लीजिये और इसको आप शत-प्रतिशत आपको क्रेडिट मिल जायेगा, कुछ unused क्रेडिट रहेगा तो उसका आपको रिफंड भी मिल जायेगा, टेक्सटाइल को छोडके, बाकी अधिकांश चीज़ों में उसका आपको रिफंड मिल जायेगा |

एचएसएन कोड का तो पेपरों में इतना डिटेल्स दी जा रही हैं, जो डेढ़ करोड़ तक है उसको 2 डिजिट, डेढ़ से पांच करोड़ तक 2 डिजिट, इसलिए मैं अधिकारी रखता हूँ, आगे टेक्निकल चीज़ें हमको भी नहीं मालूम हैं और पांच से ज्यादा 4 डिजिट, उसमें कुछ आपको दुविधा है तो टैक्स ऑफिस जाके पूछ लीजिये | आप को कोई इतना डरने की ज़रूरत नहीं है 150 आइटम का 150 रेट है, ऐसा नहीं है | जो इलेक्ट्रॉनिक गुड्स का ज़िक्र हो रहा था वह सब 85 में हैं, चैप्टर 85 में, तो ज़बरदस्ती हमें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, या ज़बरदस्ती आलोचना करने की भी ज़रूरत नहीं है, थोड़ा समझने की मेहनत कर सकते हैं |

एक अभी वित्त मंत्री ने परसों ऐप्प लॉन्च की है जीएसटी फाइंडर, उसमें आप डालो आपका विषय क्या है तो आपका रेट आ जाता है, आप ….. का डाल दो, समझो दो-चार का नहीं आया रेट, टैक्स ऑफिस में जाकर पूछलो | खुद क्यों इतना परेशान हो रहे हो, खुद क्यों सोच रहे हो बड़ा मुश्किल है? थोड़ा तो विश्वास है ना सबको कि आखिर सब राज्यों ने मिलकर अगर तय किया है तो ही लोगों ने उनको चुनके भेजा है ना, दिल्ली की सरकार मतलब दिल्ली के लोगों ने ही चुनके भेजी है, केंद्र सरकार भी आपने ही भेजी है, आंध्र की सरकार भी आंध्र के लोगों ने भेजी है | अगर सबने मिलकर एक व्यवस्था बनाई है तो सोच-समझकर ही बनाई है | पर हाँ जो लोग गलत काम करते हैं उनके लिए ज़रूर कठिनाई है इस व्यवस्था में, और वह कुछ लोगों की कठिनाई को देखते हुए कोई व्यवस्था बदलने नहीं वाली है | उनको इस व्यवस्था में आना पड़ेगा, पर किसकी जेन्युइन प्रॉब्लम है उसके लिए हमारे कान, दिल और दिमाग, तीनों पूरे समय खुले रहेंगे, आप कभी भी कोई विषय जो आपके अधिकारियों से सोल्व नहीं होता है जिसमें आपको लगता है कि यह ऊपर तक पहुंचनी है, अपने जनप्रतिनिधियों तक पहुंचाइए, जनप्रतिनिधियों के माध्यम से हम तक पहुंचेगी और उसको पूरी गंभीरता से हम देखके जहाँ भी जाइज़ होगा वहां सुधार करने का आपको पूरा आश्वासन देते हैं |

यह अच्छी बात थी authorised signatory edit करना है, कुछ और edit करना है, उसके प्रावधान बनेंगे, आगे चलकर वह आ जायेगा | कोई हर एक ने आज के आज तो कोई अकाउंटेंट बदला नहीं है और किसी ने बदला है तो टैक्स ऑफिस जाकर अर्जी कर सकता है तो उसके एक स्पेशल पासवर्ड से बदलने दिया जा सकता है | लेकिन साधारणतया सबके लिए व्यवस्था अभी बन रही है, उसमें बनने के लिए थोड़ा समय दे दीजिये |

साथ ही साथ एक विषय और आया कि टैक्स पेड बय क्रेडिटर, जिससे भी आप सामान खरीदते हैं, अगर उसने टैक्स नहीं भरा तो आपको उसका लाभ नहीं मिलेगा | पहले जब मैंने भी सुना मुझे लगा यह गलत है, ऐसा क्यों है? लेकिन जब बाद में अधिकारियों ने मुझे समझाया तो मैंने उनकी शाबाशी की कि आपने यहाँ तक गहराई में सोचा है | अब आप में से जो भी व्यापार या उद्योग जगत से जुड़े हुए हैं आप सब वह ब्रीफकेस कंपनी वाले मालिकों को जानते हैं जो ब्रीफकेस में पूरा कारोबार चलाते हैं, जो कोई रजिस्टर्ड नहीं होता है बिलें फाड़-फाड़ के बेचते हैं – यह लो दो टक्के का बिल, यह लो चार टक्के का बिल, यह लो 8 टक्के का बिल! यह मैं सच बोल रहा हूँ कि गलत बोल रहा हूँ? है कि नहीं? आते हैं कि नहीं, हम सबके पास आते हैं मैं भी बिज़नेस करता था, मेरे पास भी आते थे | यह लोग कभी टैक्स भरते नहीं हैं, क्यों नहीं भरते हैं? क्योंकि उनको दो चीज़ों पर विश्वास है, एक तो डिपार्टमेंट सब अलग-अलग हैं – वैट अलग है, एक्साइज अलग है, सर्विस टैक्स अलग है, इनकम टैक्स अलग है, कोई एकाद भूलचूक में पकड़ भी लेगा तो सेटल कर लेंगे, मैनेज कर लेंगे, एक के पकड़ने से दूसरों को मालूम नहीं पड़ेगा | ऐसे करके टैक्स की चोरी करके ऐसा व्यापार करने वाले लोगों को रोकने के लिए यह व्यवस्था बनाई गई है |

और आप सोचिये, आजके दिन जब ऐसे लोग पकडे जाते हैं तो क्या राज्य सरकार हो, केंद्र हो, कोई भी हो सिर्फ उसी को पकडती है या जिस-जिसको उसने बिल बेचा उनके घर पर भी आते हैं, बताइये? आप लोगों ने भी परेशानी झेली होगी ना? किसी गलत आदमी ने आपको बिल बेच दिया या बिल दे दिया, आपने एन्टर कर दिया | फिर वह शैल कंपनी पकड़ी गयी, या फर्जी कंपनी पकड़ी गयी तो आपके यहाँ पर भी तो दरवाज़ा खटखटाते हैं टैक्स के लोग | क्या आपको उससे निजात नहीं चाहिए, छुटकारा नहीं चाहिए? हो सकता है किसी एक व्यक्ति ने आपको कुछ माल बेच दिया और टैक्स नहीं भरा, आपको क्रेडिट नहीं मिला, आप उसके बाद उससे कभी माल नहीं खरीदोगे ना? सिस्टम भी बता देगा उसने टैक्स नहीं भरा, तो उसके पीछे पड़ेगा, भरवाएगा, भर दिया जायेगा तो आपको क्रेडिट मिल जायेगा, थोड़ा बहुत आप भी पीछे पड़ोगे | लेकिन यह लाभ होगा कि ऐसे सब कंपनियों का पर्दा फाश हो जायेगा, सिस्टम में ब्लैकलिस्ट हो जायेगा | अगली बार कोई कंपनी आपके पास आएगी तो आप चेक कर पाएंगे कि जब आप परचेस एन्टर करोगे कि अरे भाई यह तो ब्लैकलिस्टेड कंपनी है उसका नाम आपके सिस्टम में आ जायेगा कि इससे माल मत खरीदो |

एक बार नुकसान करना सस्ता सौदा है बजाये कि 10 बार कोई आपको लूटके ले जाये, एक बार सफ़र करना सस्ता सौदा है बजाये कि टैक्स के लोग आपके दरवाज़े पर आ जायें और बोले आपने इससे क्या माल ख़रीदा, बताओ| पूरी डिटेल दो, आप पर छापा पड़ेगा, किसी को भी वह चाहिए क्या? किसी को वह नहीं चाहिए, तो अच्छा है कि ऐसे लोगों का पर्दा फाश हो जो टैक्स नहीं भरते, 6-8 महीने, साल भर में व्यवस्था इतनी सुद्रढ़ हो जाएगी कि ऐसे लोग अपने ही भाग जायेंगे सब और जो कुछ बचे-खुचे रहेंगे वह ब्लैकलिस्ट category में आयेंगे, सरकार भी कार्रवाई कर सकेगी और उपभोक्ता या आप सब भी उनसे बाख पाओगे | तो बड़े सोच समझकर, सर्वसम्मति से हर राज्य ने अगर यह फैसले लिए हैं केंद्र सरकार में तो एक ही प्रतिनिधि है, 30 लोग बैठते हैं, 29 तो राज्य सरकारों के हैं, हमारा तो एक ही व्यक्ति है |

सबने सोचके, जिसको कहते हैं पंचों की राय बनी है, तो यह सब चीज़ों को बड़े गहरे रूप से सोच-सोच के यह बनाया गया है |

Leather goods का किसी ने कहा, भाई यह 500 ग्राम की good है जिसमें इनपुट है, उसका दाम अलग होगा, 1500 गया उसका दाम अलग होगा, तो अलग दाम के हिसाब से आप टैक्स भरोगे, इसमें कौनसी बड़ी बात है| अगर एमआरपी लिखते हो प्रोडक्ट पर तो क्या यह दोनों को आप एक ही दाम पर बेचते हो? नहीं ना? 500 ग्राम में जिसमें जाता है उसका दाम अलग होता है, 1500 वालों का दाम अलग होता है, उसके हिसाब से आप टैक्स कैलकुलेट करोगे, एमआरपी बनाओगे, और एमआरपी छापोगे उसके ऊपर, इतनी क्या परेशानी की बात हो गयी |

सोच बदलने की आवश्यकता है, नकारात्मक सोच से आप शुरू करोगे तो दुखी मन से काम करोगे, सकारात्मक सोच रहेगी कि अब एक पूरी ईमानदार व्यवस्था के साथ भारत जुड़ रहा है, भारत एक हो रहा है तो आपको यह पूरी चीज़ बड़ी सरल नज़र आएगी, बड़ी सरल महसूस होगी | जहाँ तक SEZ स्टेटस का सवाल है, उसको एक्सपोर्ट, डीम्ड एक्सपोर्ट माना जायेगा और जो भी उसको बेचेंगे उसका पूरा क्रेडिट आपको मिलेगा, जो भी वस्तु कोई एक्सपोर्ट करता है उसका 90% इनपुट क्रेडिट 7 दिन के अन्दर बैंक के खाते में उसको मिल जायेगा |

इन सब चीज़ों की प्रावधान जीएसटी में करी गयी है | किसी एक भाई ने DGFT का बताया वह जीएसटी से संभंधित नहीं है लेकिन DGFT का चार्ज किसी दूसरे अधिकारी को टेम्पररी चार्ज दिया गया है | अगर आपको कोई तकलीफ है तो मुझे अगर लिखित दे दें तो मैं लेमराज जी तक पहुंचा दूंगा और ज़रूर निश्चित करूँगा कि किसी को भी DGFT में भी कोई भी विलंभ नहीं हो, कोई भी तकलीफ नहीं हो |

तो मोटा-मोटा यह एक ईमानदार, सरल व्यवस्था जीएसटी के बनने की हम सबने सांझी प्रयास की है, सभी दल उसमें सम्मिलित हैं | कुछ दल आज डर रहे हैं और पता नहीं उनके पीछे क्या हेतु है, उनको डर लग रहा है कि इसका क्रेडिट कहीं मोदी जी को ना ज्यादा मिल जाये, या कोई भ्रष्ट्रचारी लोगों के बेहल्फ़ पर वह ऐसे बीच-बीच में कुछ ….. डाल रहे हैं तो यह बड़े दुःख की बात है | हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि ऐसे लोगों का पर्दा फाश करें, जो लोग कहते हैं दो ही रेट होने चाहिए या 18% मैक्सिमम होना चाहिए उनसे पूछे हम कि क्या आप अमीरों की दलाली करने के लिए यहाँ पर एक ही रेट या 18% से रेट कम होना चाहिए, क्या आपको गरीबों की चिंता नहीं है? क्या आपको सामान्य वर्ग की चिंता नहीं है? मध्यम वर्ग की चिंता नहीं है?

इसको रोकने की ज़िम्मेदारी भी आज देश की जनता के समक्ष है और मुझे पूरा विश्वास है इस अच्छे नए काम को पूरा देश का समर्थन है, आशीर्वाद है | और टैक्स पे करते हुए आप एक ही दिमाग में बात रखिए कि आपके टैक्स से एक गरीब के घर में शायद दो वक्त की रोटी जाएगी, कोई ….. से कोई बच्चा बचेगा, स्वास्थ्य सेवाएं गावों में सुधरेंगी, कोई किसान की हालत सुधरेगी, जब वह हमारे मन में रहेगा तो कभी हम टैक्स की चोरी नहीं करेंगे, ईमानदार व्यवस्था का समर्थन करना आसान हो जायेगा, करने में आनंद आएगा | जैसे आप में से अधिकांश लोगों ने अपनी एलपीजी सब्सिडी प्रधानमंत्री जी के एक आवाहन पर गिव-इट-अप के माध्यम से छोड़ी थी और उसका सीधा लाभ कोई गरीब महिला बहन-माता के घर में 400 सिगरेट का धुंवा जो उनके शरीर में जाता था पुरानी व्यवस्था में उसके बदले एलपीजी सिलिंडर जायेगा और मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन उज्ज्वला योजना के तहत जैसे मोदी जी ने गरीबों के घर में पहुँचाया वैसे आपके समर्थन, सहयोग और आशीर्वाद से यह खुशहाली हर गरीब के घर में पहुंचे, अलग-अलग प्रकार से गरीबों के जीवन में सुधार हो, यह व्यवस्था में आप भी सम्मिलित हों जो आनंद आपको आया एलपीजी सब्सिडी छोडके और गरीब माता-बहन के घर में एलपीजी पहुँचाके वही आनंद से जब हम टैक्स पे करेंगे ईमानदारी से तब इस देश का सही मायने में विकास होगा |

बहुत बहुत धन्यवाद |

 

 

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