Speeches

July 2, 2018

Speaking at a Press Conference in New Delhi

मित्रों, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार जब 2014 में बनी तब एक जटिल समस्या हमारे समक्ष आई थी भारत के जो पब्लिक सेक्टर बैंक्स हैं उसमें बड़ी मात्रा में जो लोन दिए गए थे उसमें स्ट्रेस था, स्ट्रेस्ड एकाउंट्स के रूप में बहुत बड़ी मात्रा में loans का restructuring हुआ था या evergreening हुआ था जिसके कारण बैंकों की स्थिति नाज़ुक थी लेकिन असलियत देश के समक्ष नहीं आई थी|

Reserve Bank of India और भारत सरकार ने मिलकर 2015 से अब तक पूरी तरीके से पारदर्शिता बैंकों की asset quality में जो लोन की असलियत थी उसको देश और दुनिया के समक्ष रखने का प्रयास किया है| यह बहुत ज़रूरी था क्योंकि जब समस्या का समाधान निकालना है तो क्या समस्या की डायमेंशन है, कितनी गहरी है समस्या यह समझना बहुत ज़रूरी था| साथ ही साथ यह भी ज़रूरी था कि बड़े से बड़े व्यक्ति को भी मजबूर करना कि वह लोन वापिस दे और जो लोन लिया गया है उसको वापिस देने की ज़िम्मेदारी हर बॉरोवर के ऊपर आये और जो एक ज़माने में कहा जाता था कि छोटे बॉरोवर को तो लोन देने की ज़िम्मेदारी है वापिस लेकिन बड़े बॉरोवर से लोन वापिस लेने की ज़िम्मेदारी सिर्फ बैंक की समस्या है|

इस परिस्थिति को बदलने का साहसी कदम भारत सरकार ने गत तीन वर्षों में लिया है| इसके तहत बहुत सारे निर्णय लिए गए, अगस्त 2015 में एसेट क्वालिटी रिव्यू करके रिज़र्व बैंक ने सभी बैंकों के बॉरोवर प्रोफाइल और लोन प्रोफाइल को देश के सामने और बैंक के सामने ईमानदारी से प्रस्तुत किया, उसके बाद भारत सरकार ने इन्सोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के माध्यम से एक पारदर्शिता से कैसे यह ख़राब अकाउंट या जिन अकाउंटो में तकलीफ थी इनको पारदर्शिता से कैसे रिज़ोल्व किया जाये इसका एक पूरा ढांचा बनाया| और फिर रिज़र्व बैंक ने 12 फरवरी 2018 को एक नया गाइडलाइन बनाकर बैंकों को बाध्य किया कि जो बाकी लोन हैं 25 करोड़ से ऊपर, छोटे लोन्स को तो उन्होंने उस सिक्यूलर के भी बाहर रखा है 25 करोड़ तक के, लेकिन 25 करोड़ से ऊपर जितने लोन हैं उन सबके लिए बैंकों को एडवाइस किया, गाइड किया कि वह उस पर भी early resolution करें, जल्द से जल्द उसकी भी समीक्षा करके उसको भी कैसे समाधान करना, उसपर भी चिंता करें और 180 दिन की समय सीमा में जो लोन दिख रहा है कि शायद आगे चलकर तकलीफ में आ सकते हैं उसका समाधान भी टाइम-बाउंड मैनर में करने का एडवाइजरी रिज़र्व बैंक ने दी|

बैंकों ने उसका स्वागत किया क्योंकि वास्तव में अगर कोई विषय, कोई बैंक का लोन ख़राब हो रहा है तो उसको बहुत लम्बे अरसे तक खींचना जैसे कि पहले के ज़माने में होता था 2014 के पहले उससे समस्या और जटिल होती थी, और तकलीफ बढ़ती थी और शायद बैंक की रिकवरी की कैपेसिटी भी बहुत कम रह जाती थी| इसको कैसे समय सीमा में जल्दी रिसोल्व करना जिससे बैंकों की क्षमता नए लोन देने की बढ़े, जिसको कहा जा सकता है कि इस पुरानी विरासत को जल्द से जल्द ख़त्म करना और आगे के लिए क्रेडिट कैपेसिटी क्रिएट करना बैंकों में इस काम के लिए हमने एक उच्च स्तरीय समिति नियुक्त की थी, जिसकी घोषणा मैंने मुंबई में की थी, श्री सुनील मेहता जी की अध्यक्षता में, उसमें चेयरमैन स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया भी थे, मैनेजिंग डायरेक्टर सीईओ बैंक ऑफ़ बड़ौदा भी थे, श्री वेंकट, मैनेजिंग डायरेक्टर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया थे और इन सबने मिलकर एक बहुत ही विषय की गहराई को समझते हुए संतुलित, बहुत ही कोम्प्रेहेंसिव और होलिस्टिक प्लान आज मेरे और हमारे अधिकारियों के बैंकिंग डिपार्टमेंट के समक्ष रखा है|

इस पूरी रिपोर्ट की सबसे बड़ी खूबी अगर मनो तो यह है कि पूरे आजके जितने रेगुलेशंज़ हैं उस सबका सम्मान करते हुए, उस सबके अंतर्गत इन्होंने अपने सुझाव पेश किये हैं, किसी भी प्रकार का regulatory forbearance या कुछ regulation में कुछ dispensation सुझाव में नहीं आई है| सरकार का भी रोल वास्तव में इसमें कुछ इमीडियेट कोई रोल दिखता नहीं है, पूरी तरीके से bank-led resolution process और हर एक resolution के लिए maximize किया गया है पारदर्शिता को, अधिक से अधिक पारदर्शिता से कैसे बैंक मिल जुलकर इस समस्या का समाधान करेंगे ऐसा इन्होंने एक प्रपोजल जिसको सशक्त, प्रोजेक्ट सशक्त के रूप में आज इन्होंने हमारे समक्ष पेश किया है|

Stressed assets का resolution करने में एक five-pronged strategy committee ने तय की है जिसको मैं power point के माध्यम से आप सबको समझाने की कोशिश करूँगा|

Secretary: Actually, Sashakt is basically strengthening, and the whole objective of this was to strengthen the entire credit capacity and the credit culture and the entire credit portfolio of the public sector banks. So that is why we chose the app word of ‘Sashakt’. We could sort of play around with it but it is, the whole objective was to make it ‘Sashakt.’

इस पूरे सशक्त प्रोजेक्ट के 9 guiding principles जिसके basis पर यह तय किया गया है, वह 9 principles हैं – Transparent market-based solution, free from government intervention, leverage best-in-class skills from the market, focus on asset turnaround to ensure job protection and creation. It is fully compliant with extant regulations. There is a paradigm shift in governance and risk process. Strong independent governance, it is aligned with the IBC process and IBC laws, and it creates a system for value enhancement for public sector banks.

और वास्तव में Private sector banks भी इसका लाभ लेंगे क्योंकि consortium banks में, lending में उनका भी पैसा लगा हुआ है| अगर आप दूसरे पन्ने पर जायें तो इसमें हमने कुछ objectives highlight किये हैं कि यह resolution से क्या लाभ होगा| सबसे पहले मैंने जैसा बताया सब extant regulations के हिसाब से बनाया गया है, किसी भी प्रकार का कोई proposal bad bank बनाने का इन्होंने recommend नहीं किया है| There is no recommendation, no proposal to create a bad bank.

तीसरा इससे operational turnaround होगा और जो assets create किये गए हैं उसका भारत को जो लाभ मिल सकता है कोई पॉवर प्लांट है, कोई सीमेंट प्लांट है यह national assets बने हुए हैं इसका लाभ देश को और देश की जनता को मिलते रहे| किसी भी प्रकार के job loss की जो संभावना का सभी को डर था उसको भी बचाने में, उसको प्रिवेंट करने में जिससे कंपनियों को धनाधन बंद नहीं होना पड़े लेकिन job losses भी बचे और इससे आगे चलकर और नए रोज़गार के अवसर भी पैदा हों क्योंकि business revive होगा इसका इससे बहुत बड़ा ऑब्जेक्टिव है, बहुत लाभ होगा|

इसमें यह भी प्रोवाइड किया है कि जो बैंक्स चाहें वह resolution process में participate करके आगे जब upside होगा अगर कंपनी अच्छी तरीके से चलेगी और उसकी value बढ़ेगी तो कोई बैंक चाहे तो उसमें भी participate कर सकेगा और upside को भी capture करने का इसमें प्रावधान रखा गया है| बाहर का कैपिटल, प्राइवेट और पब्लिक कैपिटल बाहर से भी आ सके इसको प्रपोजल में लाया गया है और जो पूरा आर्किटेक्चर क्रिएट किया है इन्होंने यह आगे चलकर भी कभी कोई समस्या आती है बैंकों को उसके लिए भी यह बहुत यूज़फुल रहेगा, यह सिर्फ पुराने नहीं पर एक परमानेंट मैकेनिज्म क्रिएट कर रहा है कि बैंकों के स्ट्रेस को कैसे रिसोल्व करना और कैसे फ्यूचर में जो हमें 2014 में विरासत मिली, ऐसी विरासत कभी कोई और सरकार को भविष्य में न झेलना पड़े उसका भी इसमें एक प्रकार से पूरी तरीके से प्रोवाइड किया गया है|

इसमें five-pronged approach जो मैंने पहले कहा पूरी तरीके से RBI guidelines से comply करने वाले प्रपोजल समिति ने बनाये हैं| पहला जो सुझाव है उसमें जो छोटे उद्योग हैं, लघु उद्योग, छोटे उद्योग जिनका कुल लोन 50 करोड़ रुपये तक है उसके बारे में कुछ सुझाव दिए हैं वह आगे मैं बताता हूँ| दूसरा है जो 50 से 500 करोड़ के बीच जो लोन्स हैं जिसमें अधिकांश में consortium या multiple banking भी है, कई बैंक मिलकर involved हैं| तीसरा है जो 500 करोड़ से ज्यादा बड़े अकाउंट हैं जिसमें potential for turnaround भी है और potential for growth भी कई केसेस में है, जिसमें एक एप्रोच दिया गया है जो मैं आगे समझाऊंगा|

चौथा जो बैंक में already NCLT में referred cases हैं उसके लिए एक एप्रोच दिया है और अगर पहले तीन एप्रोच से कोई केस रिसोल्व नहीं हो पायेगा तो उसको भी NCLT में फिर भेजने का चौथे एप्रोच में आ जायेगा|

और एक पांचवां फ्यूचरिस्टिक सुझाव दिया है कि अभी भी बैंक्स कई बार लोन्स को बंच करके लोन की ट्रेडिंग करते हैं, जैसे कोई बैंक 25-50 लोन को जोड़कर एक पूरा bunched portfolio बनाता है और कोई न कोई बैंक को negotiate करके बेचने का भी प्रयास करता है| उसके लिए एक समिति का अच्छा सुझाव है कि आगे चलकर क्यों न एक platform create किया जाये, यह NSC के अंतर्गत हो सकता है या कोई भी ऐसी संस्था के अंतर्गत क्यों न एक platform create करें जिसमें ऐसे portfolio of assets जिसमें performing loans/non-performing दोनों हो सकते हैं इसको भी ट्रेडिंग के लिए पारदर्शिता से transparent mechanism बन जायेगा|

अगले पन्ने पर देखें तो 50 करोड़ तक के जो लोन हैं इसके लिए resolution बनाया गया है, एक प्रोसेस बनाया गया है सुझाव दिया गया है जिसमें एक template बनाया जायेगा, प्रावधान बनाए जायेंगे जिसके अंतर्गत बैंक के अधिकारी इन छोटे लोन्स में 90 दिन के अन्दर तय करें कि यह लोन चल सकता है, इस लोन में क्या-क्या करने की आवश्यकता है, कुछ पुराने लोन को एडजस्ट करना पड़े, कुछ नया लोन देना पड़े, वर्किंग कैपिटल देना पड़े| अलग-अलग तरीके से कैसे इन छोटी कंपनियों को जो 50 करोड़ से छोटी लोन एक्सपोजर है उसको रिसोल्व किया जाये और एक बहुत बड़ा रोज़गार को प्रोत्साहन दिया जाये|

हम सब जानते हैं कि small और medium enterprises (SMEs) एक भारत के विकास के लिए बहुत अहम योगदान देती हैं और economic growth और रोज़गार बनाने में इनका बहुत बड़ा contribution रहता है| तो इसलिए इनको जल्द से जल्द रिसोल्व करना इन बैंकों की प्राथमिकता रहेगी, और क्योंकि ज्यादा करके यह छोटे लोन एक ही बैंक के अंतर्गत होते हैं तो बैंक 90 दिन के अन्दर इसको रिसोल्व करेगी एक टेम्पलेट बनाकर जो बैंक का बोर्ड तय कर सकता है| और इसमें एक steering committee बनेगी जो validate करेगी कि जो भी करना है वह एक template के हिसाब से और एक proper process के हिसाब से किया जाये, non-discretionary template होगा, process होगा और 90 दिन के अन्दर करके फिर इसमें एक सुझाव यह भी आया है कि एक monitory and review mechanism create किया जाये जिसमें ज़रूरत पड़े तो छोटे बैंक बड़े बैंकों की भी सहायता ले सकें या कोई external expertise की भी सहायता ले सके मॉनिटर करने के लिए कि यह पूरा process-driven हो, पारदर्शिता से हो और time bound हो| इससे जो एक तकलीफ है कि छोटे एकाउंट्स रिसोल्व नहीं हो रहे हैं इसको हम एक फोकस दे सकें|

दूसरे जो एकाउंट्स हैं वह multiple या consortium bank accounts अधिकांश 50 से 500 करोड़ के बीच जो एकाउंट्स हैं| ऐसे में रिज़र्व बैंक ने कहा है कि हमने 180 दिन में इसको रिसोल्व करना चाहिए, तो उस 180 दिन में क्या प्रोसेस होगा इसमें एक लीड बैंक जो सबसे बड़ा बॉरोवर होगा या जो नियुक्त किया गया है लीड बैंक यह इसको लीड करेगा, it is called Bank-led Resolution Approach (BLRA), इसमें लगभग 3 लाख करोड़ का सभी बैंकों का मिलकर एक्सपोज़र है|

आजके दिन एक बहुत बड़ी समस्या आती है कि सब बैंक इसमें एक common consensus पर नहीं आते हैं इसके लिए एक inter-creditor agreement सभी बैंक्स, प्राइवेट और पब्लिक को एप्रोच किया IBA द्वारा और कोशिश करेंगे IBA के सभी बैंक इस inter-creditor agreement में सम्मिलित हो जायें| अभी तक जो चर्चा हुई है लगभग सभी पब्लिक सेक्टर बैंक्स और जो प्रमुख प्राइवेट सेक्टर बैंक्स इसमें इन्वोल्वड हैं, सभी ने इंडीकेट किया है कि वह इस inter-creditor agreement में जुड़ना चाहेंगे क्योंकि हर एक के अपने-अपने लोन्स हैं जहाँ वह लीड बैंक हैं| अगर कोई बैंक दूसरे बैंकों को नहीं सपोर्ट करेगा तो दूसरे बैंक उनको नहीं सपोर्ट करते जिसकी वजह से आज लॉगजैम हुआ हुआ है|

तो यह एग्रीमेंट के होते लीड बैंक पूरा resolution process को लीड करेगा 180 दिन की समय सीमा में, resolution plan बनाएगा, कुछ specialists को empanel करके लेगा जो हेल्प करेंगे इसको turnaround करने में और जहाँ ज़रूरत पड़ेगी industry experts को भी जोड़ेगा on need-to-involve basis. इसमें जो बड़े बैंक हैं वह अगर कोई छोटा बैंक लीड बैंक है तो उसको सपोर्ट भी करेंगी at the option of the smaller bank.

साथ ही साथ एक independent screening committee बनाई जाएगी जिसमें eminent लोगों को लिया जायेगा कोई judiciary से हो सकता है, कोई vigilance commissioner रहा हो स्टेट या सेंटर में, कोई अधिकारी रहा हो सरकार में, कोई industry expert हो, ऐसी कई सारी screening committees बनाई जाएँगी और यह screening committees को lead bank randomized way में select करके, कोई ऐसा नहीं कि एक लोन के लिए एक ही screening committee रहेगी या एक बैंक के लिए एक ही रहेगी| screening committees तैयार हो जाएँगी IBA द्वारा और randomized process से screening committee को नियुक्त किया जायेगा एक-एक लोन के ऊपर lead bank द्वारा और वह प्रोसेस ठीक से फॉलो हुआ है कि नहीं वह देखने का काम करेगी| वह उसकी गहराई में नहीं जा पायेगी कि क्या लोन देना, क्या लोन नहीं देना, बढ़ाना, कम करना वह तो बैंक की ज़िम्मेदारी रहेगी, लीड बैंक की पर यह independent committee process की validity देखेगी, process की sanctity को संभालेगी|

और अगर 66% borrowers एक बार approve कर दें, sorry lenders, जिन्होंने पैसा दिया है ऐसे 66%, जैसे IBC में है, 66%, यह हमने IBC से लिया हुआ है – 66% lenders एक बार approve करें तो यह सभी पर binding है, same like IBC, यह यह inter-creditor agreement में सभी बैंक्स इसको बनाएंगे इसका सिस्टम बनाएंगे| और जो लीड बैंक हैं उसकी ज़िम्मेदारी होगी कि resolution process को अंत तक पूरी तरीके से implement करें और अगर 180 दिन में यह account resolve नहीं हो पाता है तो उसको फिर NCLT में भेज दिया जायेगा और फिर IBC will kick in.

जो तीसरा एप्रोच है यह asset management company alternate investment fund-led resolution approach है जो 500 करोड़ से बड़े एकाउंट्स के लिए लागू होगा, इसमें लगभग 200 अकाउंट हैं और 3 लाख करोड़ का एक्सपोजर बैंकिंग सिस्टम में है| अभी तक की वही प्रॉब्लम रही कि सब मिल जुलकर एक निर्णय पर नहीं आ पाते थे, जो आज के asset reconstruction companies हैं इनके पास capital भी limited है तो बहुत ज्यादा वह लोग बिड नहीं कर पा रहे थे| और जो SR model हैं, Security Receipt, इसमें बैंकों को तो 15% ही पैसा मिलता था, बाकी तो Security Receipt जो 5 साल, कई बार 6 साल-7 साल में रिसोल्व होता था|

तो इस समिति ने सुझाव दिया है कि independent asset management company एक या अधिक देश में बननी चाहिए, और जब यह independent asset management company बनेगी तो independent process से वह देखेगी कि कौनसे assets को हम resolve कर सकते हैं, कौनसे assets को turnaround कर सकते हैं और वह alternate investment fund से पैसा रेज करके 60 दिन के अन्दर security receipts को redeem कर देगी जिससे बैंकों को पूरा पैसा 60 दिन में मिल सके| लेकिन जो अभी का प्रोसेस है कि banks asset reconstruction companies को offer करती हैं assets वह अभी का प्रोसेस ही फॉलो होगा जिससे पारदर्शिता से asset reconstruction companies bid करेंगी, जो भी best bid देगा उसको यह लोन बेचा जायेगा बैंकों द्वारा और फिर वह asset reconstruction company AMC AIF के साथ coordinated approach से पूरा 85% SRB redeem कर देगी और आगे चलकर यह asset management company experts को involve करके इन assets को revive करने के काम में जुट जाएगी|

अगर कोई बैंक चाहे कि आगे के upside में भी वह participate करना चाहें, अगर कोई बैंक को यह दिखता है जैसे पॉवर प्लांट में कई बैंकों ने कहा कि हमें दिखता है कि आगे चलकर यह तो सोना हो जायेगा, आज शायद पूरी वैल्यू न मिले आगे चलकर अच्छी वैल्यू मिल सकती है| तो वह बैंक जो alternate investment fund हैं इसमें invest करके आगे के upside में भी participate कर सकते हैं|

कुछ और सुझाव आये हैं कि कुछ long-term redeemable bonds वगैरा भी issues हो सकते हैं जिसमें recompense हो सकता है, अगर asset बहुत अच्छा turnaround हो गया तो कुछ पार्ट बैंकों को भी recompense के रूप में मिलने की संभावना बन सकती है| तो एक प्रकार से एक ऐसा architecture create किया है जो आजके सिस्टम को भी फॉलो करता है लेकिन बैंकों को पूरा पैसा मिल जाये जो transparent mechanism से value create होती है, value determine होती है उसको सिर्फ एक मात्र SR में न मिले, पूरी तरीके से पैसा भी मिल सके यह architecture इस समिति ने सुझाव के रूप में दिया है|

जो मैंने अभी कहा एक तरीके से अगले स्लाइड में हमने summarize किया है कि इससे asset resolution की capability पूरे सिस्टम की बढ़ेगी और professionally managed AMCs system में आयेंगे जिसमें institutional funding AIF के माध्यम से available हो जाएगी| साथ में सभी stressed assets consolidated … asset management company को मिलेगी| पहले क्या होता था कि दो बैंक ने ARC को बेच दिया अपना लोन पर 6 ने नहीं बेचा तो उसका आगे का कोई सिलसिला clarity नहीं थी, अब जब बिकेगा तो पूरे asset एक साथ बिकेंगे तो जो भी ARC खरीदेगी पारदर्शिता से bidding के माध्यम से उसको पूरे लोन मिलेंगे और पूरे लोन मिलने से वह AMC को इन्वोल्व करके लोन को रिसोल्व कर सकेगी, turnaround कर सकेगी और नौकरियां बचा सकेगी – एक बहुत बड़ा बदलाव पहले और अब में लेकिन पूरे regulations को sanctity रखते हुए|

इससे बैंकों की भी फोकस फिर से क्रेडिट ग्रोथ पर आ सकेगी और जिस-जिस बॉरोवर को, अच्छे बॉरोवर को क्रेडिट चाहिए पर्याप्त मात्रा में बैंकों के पास पैसा आ जायेगा और वह पैसा अच्छे बॉरोवर्स को और जहाँ-जहाँ टर्नअराउंड की संभावना है वहां पर क्रेडिट ग्रोथ के लिए पीएसबी के पास बैंडविड्थ रिलीज़ हो जायेगा और valuations भी अच्छी मिलेगी with a potential for future upside.

और जैसा मैंने पहले कहा यह पूरा प्रोसेस मार्किट प्राइस, मार्किट में determine होगा, किसी भी प्रकार से किसी को कोई special dispensation नहीं होगी| कोई भी सरकारी दखलंदाज़ी नहीं होगी और पारदर्शिता से bidding के माध्यम से value determine होगी और साथ ही साथ बैंकों को पूरा पैसा मिलकर फोकस रहेगा turnaround पर, फोकस रहेगा रोज़गार के नए अवसर मिले, पुराने अवसर बचें, फोकस रहेगा कि बिना सरकारी दखलंदाज़ी के बैंक्स सर्वसम्मति से, unanimously, सभी निर्णय time bound fashion में ले सके|

यह है पूरी समिति की रिपोर्ट, मैं फिर एक बार तहे दिल से भारत सरकार की और से और सभी बैंकों की और से पब्लिक और प्राइवेट सभी बैंकों को इसका लाभ मिलेगा| हम सबकी और से सुनील मेहता जी, रजनीश जी, जयकुमार जी, वेंकट जी और सभी जो इनके अधिकारियों ने इसपर मेहनत की है और मैं समझता हूँ दिन रात मेहनत की है, जिस स्पीड पर मैंने बार-बार इनसे इसके विषय में रिपोर्ट्स मांगी, डिस्कशन की, यह हमारी चौथी मीटिंग है इस विषय में| और आप सब जानते हैं यह सुबह 10 बजे से आये हुए हैं और अब 9 बजे तक इन्होंने पूरा इसपर अलग-अलग iterations करके और सुधार करना, और सुधार करना, करके एक बहुत ही बढ़िया रिपोर्ट आज दी है इसको हमने एक्सेप्ट किया है आज| और सभी बैंकों को एक मौका मिला है कि यह इसको जल्द से जल्द resolution and future credit growth दोनों में अपने आपको फोकस करे तो मैं समझता हूँ भारत की अर्थव्यवस्था को और एक बहुत बड़ा बल मिलेगा|

धन्यवाद|

 

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