Speeches

May 26, 2018

Speaking at India Today programme ‘Panchayat’ in New Delhi

प्रश्न: इस वक़्त हमारे साथ हैं मोदी सरकार के उभरते सितारे, वैसे दिखते लाइट वेट हैं लेकिन पॉलिटिकली इस वक्त बहुत हेवी वेट हैं, इन्टेरिम फाइनेंस मिनिस्टर पीयूष गोयल | पीयूष जी स्वागत है आपका पंचायत आजतक में |

उत्तर: धन्वयद राहुल जी, मुझे लगता है आपको काफी ग़लतफ़हमियाँ हैं, मैं बहुत लाइट वेट हूँ और रोज़ कसरत करता हूँ कि वेट कम ही रहे |

प्रश्न: नहीं पर पॉलिटिकल वेट आपका तेज़ी से बढ़ रहा है | चलिए, वह बहस का मुद्दा फिलहाल नहीं है, वह तो हकीकत है, हकीकत मैं आपसे यह जानना चाहता हूँ कि चार साल में आपकी परफॉरमेंस आपके हिसाब से क्या यूपीए से बेहतर रही | चिदंबरम जी यहाँ आये उन्होंने कुछ आंकड़े रखे, उन्होंने कहा कि यूपीए-1 की एवरेज ग्रोथ रेट थी 8.4% और अगर आप यूपीए के 10 साल देखते हैं और मोदी सरकार के चार साल से तुलना करते हैं तो यूपीए अभी भी ग्रोथ रेट के लिहाज़ से मोदी सरकार से आगे है?

उत्तर: मैं समझता हूँ कि भारत की जनता पूरी तरीके से समझती है कि चिदंबरम जी ने किस प्रकार की सरकार चलाई | जब उनको 2004 में सरकार मिली तब देश की आर्थिक व्यवस्था बड़ी मज़बूत मिली थी, ग्रोथ रेट 8.4% था, फिस्कल डेफिसिट घटकर बहुत लो नंबर पर आ गया था, महंगाई बहुत लो नंबर 4% के करीब थी, ब्याज के दर घटकर 6% से नीचे में उस समय पर होम लोन अटल जी की सरकार के समय मिलता था | तो एक मज़बूत अर्थव्यवस्था जो उनको मिली उससे उनके 3-4 साल ठीक से निकल गए |

जब संकट आया, अंतर्राष्ट्रीय संकट 2008 में तब सरकार एकदम गड़बड़ाई और उन्होंने पंप-प्राइम करके इकॉनमी यानी फिस्कल डेफिसिट को एक ही वर्ष में, जो वित्तीय घाटा है वह 2.9 से बढ़कर सीधा 6% पर ले गए एक वर्ष के भीतर | और उस प्रकार से नोट छाप-छापकर जिसका भुगतान भारत की जनता कर रही है, हम सब उस नोट छापने के ऊपर पैसा आज तक भर रहे हैं | उन्होंने नोट छाप-छापकर एक false sense of growth का चित्र 2009-10/2010-11 में 2 साल तक चलाया और फिर जब उसका जो इम्पैक्ट इकॉनमी पर आया उसके बाद आखिरी 3 साल में फिर इकॉनमी बुरी तरीके से लड़खड़ाई और 2014 में हमें ऐसा आर्थिक ढांचा मिला जिसमें महंगाई भी चरम सीमा पर थी 12%-10%, वित्तीय घाटा 4.5% के करीब था, जिस प्रकार से ब्याज के दर उन दिनों चल रहे थे मैं समझता हूँ आपके सभी दर्शक जानते हैं जो ग्रोथ था जब प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार आई वह 4.5% के करीब था |

तो कांग्रेस को मिली विरासत एक बहुत मज़बूत अर्थव्यवस्था की थी जिसपर उन्होंने कुछ वर्ष तक फायदा लिया और उसके बाद एकदम बुरी तरीके से लडखडाये और उसका खामियाना हमें मिला विरासत में जिसको हमने बहुत बखूबी प्रधानमंत्री मोदी जी और वित्त मंत्री अरुण जेटली जी के अथक प्रयासों से फिर एक बार भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया है, एक ईमानदार व्यवस्था दी है देश को |

मैं समझता हूँ देश का हर नागरिक जानता है किस प्रकार का भ्रष्टाचार कांग्रेस के राज में होता था, किस प्रकार से परिवार और जो एमपी और जो मिनिस्टर थे उनके लोगों को किस प्रकार से सरकारी तंत्र सस्ते में या मुफ्त में दिए जाते थे | सभी लोग जानते हैं कि विकास शायद चंद लोगों के हाथों में रहता था लेकिन गाँव, गरीब, किसान तक वह विकास पहुँचता नहीं था | किसानों की जो हालत थी उस महंगाई के दौर में कि अगर किसान को कुछ एमएसपी बढ़ता भी था उससे ज्यादा महंगाई बढ़ती थी |

तो हर प्रकार से मैं समझता हूँ कांग्रेस विफल रही और इसलिए जनता ने उनको मात्र 44 सीट पर रोक दिया कि लीडर ऑफ़ ऑपोजीशन भी नहीं बना पाए |

प्रश्न: इस वक्त सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब आदमी सुबह उठता है तो देखता है कि तेल की कीमत कितनी बढ़ गयी | जब कर्नाटक का चुनाव चल रहा था लगभग तीन हफ्ते आपने तेल की कीमतें नहीं बढ़ाई, अब यह अच्छी बात है कि जब आपको मोदी जी को, बीजेपी को वोट देना है तब आप तेल की कीमतें नहीं बढ़ाते, जैसे ही वोट आपका पड़ गया 104 सीटें आ गयी, ok, thank you very much. अब आप हर रोज़ एक्स्ट्रा पैसा दीजिये तेल के लिए, ऐसा क्यों करते हैं सर?

उत्तर: देखिए कर्नाटक के चुनाव के टाइम पर अगर कीमतें नहीं बढ़ी तो उसका मुझे लगता है ऑइल कम्पनीज से हमें जानकारी मिलेगी, लेकिन हो सकता है कि उनके पास अगर कुछ रिज़र्वज़ हों जिसकी वजह से उनको रोज़ की रोज़ नहीं बढ़ाना पड़े तो वह नहीं बढ़ाएंगे, लेकिन….

प्रश्न: पर सर पिछली बार ऐसा हुआ तब गुजरात के चुनाव के टाइम पर हुआ, जनता भी तो देखती हैना, चुनाव के टाइम पर ही रिज़र्व मिलता है बाकी टाइम नहीं मिलता?

उत्तर: नहीं, और भी कारण हो सकते हैं, चुनाव के दिनों में अगर कीमतें बहुत ज्यादा घटेंगी तो भी तकलीफ आ सकती है | हो सकता है गुजरात के चुनाव के दिनों में तो एक्चुअली कीमतें घटती…

प्रश्न: इस वक्त तो बढ़ी?

उत्तर: उस समय घटती | तो दोनों तरफ से लोग आरोप लगा सकते हैं कि यह चुनाव की वजह से घट रही हैं या बढ़ रही हैं | तो मुझे लगता है कि स्वाभाविक है कि अगर उस समय पर कोई और इंफ्लुएंस न हो वोटिंग पैटर्न के ऊपर तो अगर नहीं चेंज हुआ तो वह अच्छा ही है | लेकिन एक अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में आज कीमतें बढ़ी हैं, हमारी सरकार उसपर पूरी तरीके से नियंत्रण कर रही है, पिछले दो दिनों में थोड़ा right size भी हुआ है कीमतों में |

एक holistic long-term solution जिससे भारत की जनता को ज्यादा बोझ न पड़े इन बढ़ी हुई कीमतों का, राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों मिलकर एक long-term solution के लिए प्रतिबद्ध है |

प्रश्न: चिदंबरम जी यहाँ पर थे, जहाँ आप बैठे हैं ठीक वहीँ पर बैठे थे उन्होंने कहा यह सब जुमलाबाज़ी है | मोदी जी चाहें, पीयूष गोयल चाहें तो 25 रुपये आज घटा सकते हैं तेल की कीमतें घटाते नहीं हैं?

उत्तर: अब समझ में आता है कि वित्त मंत्रालय कितना ख़राब जो चल रहा था उसके पीछे क्या समझ थी और क्या सोच थी | अगर चिदंबरम जी को यह समझ है कि 25 रुपये आज घट सकते हैं तो यह दर्शाता है कि उनके सोचने का ढंग कितना हल्का-फुल्का है कि वह तत्वों में और कोई रियलिटी चेक करे बगैर कुछ भी बोल देते हैं | मैं समझता हूँ कि उन्होंने सबसे पहले तो देश को जवाब देना चाहिए कि किस प्रकार से उनके रहते हुए देश की अर्थव्यवस्था डगमगाई, उनके रहते हुए महंगाई कैसे डबल डिजिट हुई, उनके रहते हुए दाल की कीमतें क्यों इतनी महँगी थी, उनके रहते हुए ब्याज के दर इतने क्यों बढ़ गए?

इन सब चीज़ों का पहले वह देश को जवाब दें, जो अनाप शनाप भ्रष्टाचार हुआ और खासतौर पर उनके खुद के परिवार ने जो आज इनकम टैक्स और सभी सरकारी विभागों को कोआपरेट भी नहीं कर रहे हैं अपनी छानबीन में, पहले तो उनको उसका जवाब देना चाहिए, जवाब देना चाहिए कि उनके लड़के को क्यों पैसे मिलते थे हर बार जो कोई कंपनी का एफआईपीबी अप्रूवल होता था तो उनके लड़के की कंपनी को क्यों पैसे मिलते थे, जवाब दें कि उस पैसे को ले लेने के बाद उस कंपनी को किसी के नाम रखा गया लेकिन उस कंपनी के शेयर्स को विल के माध्यम से इनके बच्चे को कैसे दिया गया, क्यों दिया गया जो पकड़ा गया इनकम टैक्स की रेड में |

पहले इन सब चीज़ों का जवाब चिदंबरम जी दे दें बजाये कि बड़ी-बड़ी बातें करना और दूसरों पर आरोप लगाना मुझे लगता है आज चिदंबरम जी खुद डॉक में खड़े हैं उनके सभी कारनामे देश और जनता के सामने आ रहे हैं |

प्रश्न: सर आप विपक्ष पर तो हमला कर रहे हैं लेकिन आप यह नहीं बता रहे हैं कि आप क्या करेंगे, एक तरफ आपके सामने है वित्तीय घाटा, फिस्कल डेफिसिट, हर आप एक रुपये अगर तेल की कीमत कम करते हैं तो 11 से 13,000 करोड़ रुपये सरकार पर बोझ पड़ता है | दूसरी तरफ है मेरी जेब, यहाँ पर तमाम लोग बैठे हैं जो टीवी पर देख रहे हैं उनकी जेब, यह सारे आपके वोटर हैं इनका भी आपको ख्याल रखना है, चुनाव अब सर पर है | आप इसको कैसे बैलेंस करेंगे क्योंकि international crude oil prices का trend अब upwards है, $80 पर पहुँच गया, दो दिन में थोड़ी सी कटौती हुई लेकिन trend upwards है?

उत्तर: राहुल जी आप क्यों कह रहे हो यह सब वोटर हैं, शायद आप भी हमारे वोटर हो सकते हैं?

प्रश्न: मैं कह रहा हूँ जितने भी लोग हैं सब वोटर… किसी न किसी के तो वोटर हैं ही?

उत्तर: आपका भी वोट मिलेगा ना?

प्रश्न: नहीं सर, आप मेहनत करेंगे अच्छे से काम करेंगे तो जनता आपको वोट देगी |

उत्तर: और जनता में आप भी शामिल हैं?

प्रश्न: नहीं बेशक मैं भी शामिल हूँ, उसमें कोई डाउट ही नहीं है |

उत्तर: ऐसा है कि मैं पूरी तरीके से ज़िम्मेदारी से काम कर रहा हूँ कि जनता पर भी बोझ ना बढे और वित्तीय घाटा भी किस प्रकार से जो हमने टारगेट किया है इस वर्ष के लिए उसको भी मेन्टेन करना है और मैं समझता हूँ और बहुत तरीके हैं जिससे सरकारी आय बढ़ाई भी जा सकती है, सरकारी जो leakages और हमें कुछ opportunities मिलती हैं उसको भी और नियंत्रण में लाया जाये, कुछ और चीज़ों के ऊपर अगर disinvestment से हम थोड़ा वित्तीय घाटा कम कर सकते हैं, इन सब तरीकों को explore करके जैसा मैंने पहले कहा राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर कैसे जनता पर भी बोझ न हो और पूरी वित्तीय स्थिति भी काबू में रहे इसके लिए हम पूरी तरीके से सक्षम है |

प्रश्न: सरकार चार साल का अपना जश्न मना रही है, चार साल की अपनी परफॉरमेंस का, सीधे-सीधे कुछ गुड न्यूज़ देकर जाइये कि अगले हफ्ते से, कब से तेल की कीमतें कम होंगी सीधा बताइये?

प्रश्न: आज अमित शाह जी ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया किस प्रकार से सरकार को मिला हुआ एक-एक रुपया गरीब, किसान, महिला, युवा, जो शोषित, वंचित परिवार हैं, आदिवासी हैं उन सबके उज्ज्वल भविष्य के लिए इस्तेमाल हुआ है | मैं समझता हूँ देश के जो लोग पेट्रोल डीजल में अगर कुछ टैक्स भी देते हैं वह भलीभांति जानते हैं कि वह टैक्स का पैसा शायद किसी गरीब की कुटिया में बिजली देता है, शायद किसी माता-बहन को जिसको 400 सिगरेट का रोज़ अपने अन्दर लेना पड़ता है उसके बदले एलपीजी सिलिंडर मुफ्त में देता है |

मैं समझता हूँ इस देश के करदाता इतने समझदार हैं कि प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार में एक-एक रुपया अच्छी तरीके से उसका सदुपयोग हुआ है और रही बात गुड न्यूज़, गुड न्यूज़ हमने प्रेस वालों के सामने भी अपना रिपोर्ट कार्ड रखा | आज अमित शाह जी ने पूरे विस्तार से सामने रखी बात कि कैसे ऐतिहासिक परिवर्तन गावों के, गरीब के, किसान के, जनता के जीवन में हुआ है, कैसे इस सरकार ने ईमानदारी को प्राथमिकता दी है, कैसे इस सरकार ने अपने हर एक काम में जो तेज़ गति स्पीड, स्किल और स्केल से काम बढ़ा है कहाँ इस देश में आज़ादी के बाद 65 वर्ष में 6 करोड़ टॉयलेट बने थे, हमने 4 साल में 7 करोड़ से अधिक टॉयलेट बना दिए, कहाँ 65 साल बाद गावों और घर बिना बिजली के थे हर गाँव तक पहुँच गया है, 6-8-9 महीने में हर घर तक बिजली पहुंचेगी, कहाँ एलपीजी सिलिंडर 11 करोड़ लोगों के घर में थे, आज 20 करोड़ से अधिक लोगों के घर में हैं | और एक साल के भीतर हर घर में एलपीजी सिलिंडर, एक-डेढ़ साल में होगा |

प्रश्न: इन सब चीज़ों पर मैं आपसे पूछूँगा |

उत्तर: नहीं, इन सब चीज़ें मतलब आप एक चीज़ पकडकर आपकी नीडल रुक गयी है, जो इतने सारे अच्छे काम हैं उसका क्या?

प्रश्न: मैं उसपर भी आ रहा हूँ, मैं अच्छे कामों पर भी आ रहा हूँ लेकिन कुलमिलाकर तस्वीर एक ही उभरती है, अगर आप जो चीज़ें कह रहे हैं उनको मैं जोड़ दूं तो उससे तस्वीर यह उभरती है कि सरकार को यह कैलकुलेशन आ रहा है कि अगर हम तेल की कीमतों को थोड़ा ऊपर रखें भी, टैक्स वसूलते रहे तो हो सकता है कि जो पैसा आ रहा है उससे हम अपनी जो सारी सोशल इन्कलूजन स्कीम हैं जिनसे गरीबों का फायदा होता है जिन स्कीमों का आपने ज़िक्र किया उसके ज़रिये गरीबों तक फायदा पहुंचा सकते हैं, मिडिल-क्लास अगर थोड़ा एक्स्ट्रा दे भी पेट्रोल के लिए तो कोई हर्ज़ नहीं है |

उत्तर: मेरे ख्याल से ऐसा आपकी सोच हो सकती है हमारी तो नहीं है, हम तो मिडिल-क्लास, जो मध्यम वर्गीय, निम्न मध्यम वर्गीय लोग हैं उनकी बखूबी चिंता करते हैं, उनके जीवन में क्या-क्या कमियां रही हैं, क्या उनको तकलीफ रही है उसकी पूरी चिंता करते हैं और उस चिंता को अपने काम में भी ज़ाहिर करते हैं | तो यह आपकी थिंकिंग हो सकती है कि सोशल इन्कलूजन सिर्फ गरीबों के लिए है मध्यम वर्गी के लिए नहीं है | हमारी सरकार सबका साथ, सबका विकास जब बोलती है तो ना वह धर्म के हिसाब से भेदभाव करती है, ना जाति या लिंग के हिसाब से भेदभाव करती है | और इसी प्रकार से मध्यम वर्ग हो गरीब हो उसमें भी भेदभाव नहीं करती, लेकिन हर एक की क्षमता अलग-अलग रहती है बोझा लेने की तो उसके हिसाब से ही यह सब निर्णय लिए जाते हैं | हाँ, हो सकता है कुछ अमीरों को ज्यादा चोट पहुंचेगी जिन अमीरों को पहले आराम से बैंक लोन मिल जाता था बिना कोई सिक्योरिटी के, जिन अमीरों को पहले कोयले के खदान मिल जाते थे बिना कोई प्रोसेस के मुफ्त में मिल जाते थे | कुछ अमीरों को पहले स्पेक्ट्रम मिल जाता था बिना सही दाम डिस्कवर करे, कुछ अमीरों को पहले कॉमनवेल्थ गेम्स में 40,000 रुपये में टॉयलेट रोल बेचने को मिल जाता था एक शायद वह कांग्रेस की नीति थी और उस नीति के हिसाब से चिदंबरम जी को लगता था कि बड़े देश में विकास हो रहा है |

तो अगर वह नीतियां और उस प्रकार की गवर्नेंस इस देश को चाहिए होती तो कांग्रेस को 44 सीट पर नहीं लाती, अगर उस तरीके की नीतियां लोगों को पसंद होती और हमारा काम पसंद नहीं होता तो आज 14 कांग्रेस की सरकारें एक के बाद एक लुढ़कती नहीं देश में |

प्रश्न: आप तेल से आगे बढ़ना चाह रहे हैं लेकिन मैं तेल पर एक सवाल और पूछना चाहता हूँ | क्योंकि जब मैंने कहा कि पीयूष गोयल जी आ रहे हैं सबने कहा कि तेल पर ज़रूर पूछना क्योंकि तेल में इस वक्त आग लगी हुई है | यूपीए के वक्त पर क्रूड ऑइल की एवरेज प्राइस थी 105 डॉलर प्रति बैरल, यह गया मैक्सिमम 140 डॉलर प्रति बैरल पर, आपके वक्त पर 26 तक क्रैश कर गया क्रूड और अभी भी 80 के आस पास मंडरा रहा है, ऐसे में हमें इस वक्त यूपीए की सरकार से ज्यादा तेल की कीमत क्यों देनी पड़ रही है?

उत्तर: मैंने अभी-अभी समझाया कि तेल की जब कीमतें गिरी तो दो उसके परिणाम होते हैं, एक तो एकदम ही कीमत गिर जाए और कंसम्पशन अनाप शनाप बढ़ जाए तो ना तो वह पर्यावरण के लिए अच्छा है, आज पूरे देश में चिंता है और खासतौर पर हम दिल्ली में बैठे हैं, दिल्ली में तो सबसे ज्यादा चिंता है किस प्रकार से एनवायरनमेंट डीग्रेड हो रहा है | मुझे लगता है आपका आज तक और इंडिया टुडे चैनल पर भी मैंने कई सारे प्रोग्राम देखे हैं कि जलवायु परिवर्तन की आपको भी चिंता है | और मैं समझता हूँ हम सब चाहते हैं कि अगली पीढ़ी हमारे बच्चों की भी स्वास्थ्य को ठीक रखना |

तो अनाप शनाप तेल का खपत हो इस देश में यह किसी के भी हित में नहीं है, तो उसकी प्राइस को भी मेन्टेन रखना जिससे रनअवे कंसम्पशन नहीं हो, लेकिन उस पैसे का सदुपयोग करना, कैसे उस पैसे को इस्तेमाल करके गावों और गरीब तक व्यवस्थाएं जायें, कैसे हर घर में शौचालय बने, कैसे हम open defecation-free एक समाज बनाएं जिसमें महिलाओं का dignity हमारे लिए बहुत महत्व की रहती है, कैसे हम देश में गरीबों के वस्तुओं पर टैक्स के दर कम करें चाहे हमें BMW और Mercedes car को महंगा करना पड़े |

यह सरकार बहुत स्पष्ट रूप से चिंता करती है कि जिस गरीब के अटक प्रयासों से, मेहनत से देश की अर्थव्यवस्था आज यहाँ तक पहुंची है, जिस किसान ने अपना खून-पसीना एक करके हमारे लिए खाद्य सुरक्षा की है, इन सब की चिंता इस सरकार की प्राथमिकता है | हमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी कहके गए थे, उनकी जो एकात्म मानववाद की थ्योरी है अन्त्योदय की कि जो समाज में अंतिम छोर पर व्यक्ति खड़ा है, गरीब से गरीब व्यक्ति है, पूरे सरकार के खज़ाने का और देश के रिसोर्सेज का पहला अधिकार उस गरीब से गरीब व्यक्ति का है बजाये कि पांच सितारा होटलों में हम सुविधाएं बढाएं, मैं समझता हूँ गावों में सुविधा बढ़ाना यह हमारी सरकार की सोच है |

प्रश्न: आपकी सरकार की दो अहम स्कीमों पर हम आते हैं, आपने ज़िक्र किया कि मोदी सरकार ने हर गाँव तक बिजली पहुंचाई | आप पॉवर मिनिस्टर थे काफी काम आपने पॉवर क्षेत्र में भी किया, लेकिन जब यूपीए की सरकार थी चिदंबरम जी कहते हैं कि 97% गावों तक तो हमी ने बिजली पहुंचा दी थी, इन्होंने तो आखिरी के 18,000 गावों में, 3% गावों में पहुंचाई | लेकिन अगर मोदी जी को सुनो, पीयूष गोयल को सुनो लगता है कि सारी की सारी बिजली इन्होंने ही पहुंचाई, वह मानते ही नहीं कि यूपीए 97% काम करके गयी थी?

उत्तर: I think आपने थोड़ा अपना भी रिसर्च बढाने की आवश्यकता है | यूपीए के समय में और मुझे लगता है आपके दर्शक इसको जानकर हैरान होंगे, यूपीए के समय में उनकी सोच थी कि भाई एक गाँव में एक बार बिजली का खंबा ले जायें और उसके बाद पंचायत ऑफिस में एकाद थोड़े घरों में, शायद 10% घरों में बिजली पहुँच जाये उनका काम ख़त्म, उसके बाद कोई चिंता नहीं, उनकी ज़िम्मेदारी उसमें मानो ख़त्म | हमारी सरकार की जो सोच है उसमें हम गाँव नहीं घर तक और जो देश के 7-7.5 करोड़ घर यानी 30 करोड़ से अधिक लोग और यह शर्म की बात है कि 7 दशक हो गए, शर्म की बात है कि तीन पीढियां गुज़र गयीं, और तीन पीढियां जनता की भी गुज़र गयी, तीन पीढियां एक प्रथम परिवार की भी गुज़र गयी जिसने 48 साल इस देश में राज किया स्वयं और एक मुखौटे के रूप में एक प्रधानमंत्री को भी कुछ वर्ष रखा जिनके साथ क्या-क्या इन्सल्ट हुआ है वह तो आप जानते हो |

इसके बावजूद इतने लोगों को वंचित रखा बिजली से पहले तो उसका जवाब दें चिदंबरम जी, यह जो कहते हैं कि हम इतने गावों तक ले गए इसको इतना वर्ष लग गया | इसमें भी जो यूपीए के पिछले 5 साल थे उसके आंकड़े बताएं चिदंबरम जी, क्यों उन सालों में गावों और घर तक बिजली नहीं गयी, पहले बताएं कि बिजली की किल्लत क्यों रहती थी पूरे देश में सालों साल, दीनो दिन और हर घर में क्यों लोगों ने सोच लिया था कि बिजली गयी वह हैरानी की बात नहीं होती थी, बिजली आई यह हैरानी होती थी | क्यों मोदी जी की सरकार आने के बाद देश पॉवर सरप्लस हो गया, हर जगह पर जितनी बिजली डिस्कॉम खरीदना चाहे उपलब्ध होती है, क्यों कोयले का इम्पोर्ट कम हो गया, इन सब चीज़ों के बारे में तो चिदंबरम जी बोलें और यह 18,000 गावों को नहीं बिजली पहुँचाने का कारण तो बताएं | वह कारण यह है कि यह कठिन गावों थे, कोई पहाड़ की चोटी पर था, कोई नक्सल, माओवादी इलाकों में था |

पटना से 25 किलोमीटर दूर दियारा है, एक 1 लाख लोगों की बस्ती है, 25 किलोमीटर दूर, वहां तक नहीं पहुंचा पाई कांग्रेस की सरकारें क्योंकि थोड़ी मेहनत लगती थी, गंगा को पार करके जाना पड़ता था | तो मेहनत का काम उन्होंने कभी नहीं किया, सरल आसन काम और एक प्रकार से बता देना थोड़े घरों में बिजली पहुंचाके कि हमारी ज़िम्मेदारी ख़त्म, यह मोदी जी जिन्होंने गरीबी में अपना पूरा बचपन बिताया, उनका साहस था कि कठिन से कठिन गाँव तक मैं बिजली पहुँचाऊंगा समय सीमा में, उनका साहस था कि हर घर में बिजली उपलब्ध होनी चाहिए यह करने का काम मोदी जी ने उठा लिया |

प्रश्न: तो अभी आपका दावा है कि अगले साल के आम चुनाव से पहले हर घर में बिजली होगी?

उत्तर: अवश्य होगी | एक ज़रूर आप सबको बता दूं आज तक के मीडिया रिपोर्टर्स फिर जायेंगे, एक गाँव में कुछ दो-चार घर ढूंढकर निकालेंगे जिन्होंने अप्लाई नहीं किया होगा बिजली के लिए | आखिर किसी न किसी ने तो अप्लाई करना पड़ेगा बिजली लेने के लिए, तो बिजली के लिए अगर कोई अप्लाई नहीं करे और उसके घर पर यह रिपोर्टर जाकर पहुँच जाए और बोले कि यहाँ पर तो बिजली है नहीं, मोदी जी गलत बोलते हैं तो यह भूल जायेंगे कि और करोड़ों घर में बिजली है, अगर किसी ने अप्लाई नहीं किया तो इसलिए हमने specifically कहा है ‘willing consumer’. आपको अप्लाई तो करना पड़ेगा बिजली लेने के लिए |

और जहाँ तक रही बात इन भाई साहब को चिंता हो रही है मेरे गाँव में बिजली नहीं है इनको मैं अवश्य बता देता हूँ, हर गाँव में बिजली पहुंची है, इनका हो सकता है कोई मजला-टोला होगा गाँव के पास जहाँ तक अभी तक नहीं गयी होगी, आप तुरंत अपने इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में थोड़ी मेहनत करिए, यहाँ पांच सितारा होटल में बैठकर नहीं पहुंचेगी, आपके गाँव में जाइये, वहां के बिजली बोर्ड के अधिकारी को बोलिए कि मेरे को बिजली चाहिए और नहीं मिले तो फिर बोलना |

प्रश्न: सर एक तो बिजली का वादा है दूसरा आपकी बड़ी हिट स्कीम है उज्ज्वला स्कीम, उज्ज्वला स्कीम से यूपी में आपको फायदा भी काफी हुआ | तो उज्ज्वला स्कीम की हमने थोड़ी एनालिसिस की, उज्ज्वला स्कीम में आप सिलिंडर तो दे देते हैं और यह वाकी में बड़ी बात है, लेकिन ऐसा नहीं कि हर सिलिंडर जो जाता है वह रिफिल हो रहा है | अगर हम आंकड़े देखते हैं वह दिखाते हैं कि जहाँ पर सिलिंडर की जो कनेक्शन है वह करीब 16% बढ़ी है, यह पेट्रोलियम प्लानिंग और एनालिसिस सेल का डेटा है, वहीँ पर गैस सिलिंडर की कंसम्पशन 9.83% बढ़ी है | यानी सिलिंडर तो आप बहुत पहुंचा रहे हैं लेकिन सिलिंडर का परसेंटेज ऐसा भी है जहाँ पर रिफिल यह सिलिंडर नहीं हो रहे?

उत्तर: राहुल जी मेरी आपसे उम्मीद जो है जितना आप रिसर्च करते हो, जितने समझदार आप एक उच्च स्तरीय जर्नालिस्ट हो, मैं समझता था आपकी समझ इससे ज्यादा होगी कि यह प्रश्न आप खुद ही इसका जवाब भी समझते होंगे | पर आज मैं बड़ा हैरान हूँ कि आपको यह आंकड़े को देखकर लग रहा है कि जैसे सिलिंडर नहीं पहुँचते है | मैं भी दर्शकों को अभी समझाता हूँ यह आंकड़ों की सच्चाई |

यह जो सिलिंडर दिए जा रहे हैं, यह किन घरों में दिए जा रहे हैं? क्या यह सिलिंडर गरीब घरों में नहीं दिए जा रहे हैं? जो अमीर थे, अमीरों के पास तो पहले ही सिलिंडर था, अमीर तो पहले ही सिलिंडर मैनेज कर चुके थे, यह तो गरीब थे जो अफ्फोर्ड नहीं कर पाते थे उनको हमने सिलिंडर पहुंचाने का काम किया | तो यह 16% जो आप कैलकुलेट कर रहे हो बढ़ा यह हमने वह गरीबों के घर में सिलिंडर दिया जिनके घर में आज तक सिलिंडर नहीं था |

अब अमीर के घर में जो सिलिंडर की खपत होती है उतनी खपत स्वाभाविक है गरीब के घर में नहीं होती है, इसमें क्या हैरानी की बात है? मैं तो 9% सिलिंडर ग्रोथ है, और 16% कनेक्शन ग्रोथ है मैं समझता हूँ यह तो शत-प्रतिशत दिखाता है कि हर गरीब ने अब वह इस्तेमाल करना शुरू कर लिया है क्योंकि कहा अमीर के घर में 10-12-14-16 सिलिंडर लगते होंगे हर साल में गरीब के घर में इतने नहीं लगते हैं | आज तक गरीब की यह आर्थिक स्थिति नहीं हुई है कि वह हर महीने में सिलिंडर खपत कर लेता है |

तो यह आंकड़े तो वास्तव में आपने मुझे नए दिए, मेरे पास आज तक थे नहीं पर आगे के लिए मुझे बोलने के लिए आपने बहुत अच्छा रिसर्च करके दे दिया | अगर 16% सिलिंडर बढ़े और 9% खपत बढ़ी है तो this is great news, that means हर गरीब आज सिलिंडर इस्तेमाल कर रहा है |

प्रश्न: देखिए ना आप चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं आप आकंड़ों पर एकदम कूद जाते हैं, मैं कह रहा हूँ लाज़मी तौर पर जो अभी सिलिंडर गए हैं वह गरीब लोगों तक गए हैं, मैं आपसे सवाल पूछ रहा हूँ कि वैसे रिपोर्ट्स यह बता रही हैं कि कई घरों में चूँकि आपने सिलिंडर तो पहुंचा दिया लोगों के पास पैसा नहीं है सिलिंडर को रिफिल खरीदने के लिए, तो सिलिंडर तो आ गया लेकिन खाली सिलिंडर पड़ा है, यह मैं आपसे सवाल पूछ रहा हूँ?

उत्तर: देखिए, यह मैंने आपका इसका जवाब पहले ही दे दिया था, मुझे ख्याल था कि क्योंकि आपकी एप्रोच यही है कि ढूंढो कोई एक-दो घर जहाँ पर सिलिंडर नहीं किसी ने रिफिल किया, हो सकता है भाई किसी ने नहीं रिफिल किया होगा, हो सकता है किसी की आर्थिक स्थिति इतनी नहीं होगी कि वह रिफिल कर सकता है | आप बिग पिक्चर तो देख नहीं सकते, आप मैन्यूट टाइम में चले जाते हैं कि भाई यह घर में नहीं है, यह घर में नहीं है |

अरे 500 घर में है उसमें एक घर ने नहीं रिफिल किया तो आपकी पहले सोच बदलिए, आप पहले थोड़ा बहुत अपने आपमें यह सोचिये कि कुछ पॉजिटिव एनर्जी भी अगर देश में आप देंगे तो आप देश की सेवा करेंगे, बजाये कि हर छोटी चीज़ में किसी तरीके से यह ढूंढ निकालो, अब मैं यहाँ पर आया हूँ आपके कार्यक्रम में, suppose में आपको बताऊँ देखो यह क्या आपने किया यह काला यहाँ पर गिरा हुआ है, यह आपने क्या सफाई की है, देखो सब कचरा पड़ा है स्टेज पर, अगर मैं आपको यह बताऊँ तो आपको कैसा लगेगा भाई साहब? आपने तो अच्छा हॉल बुक किया है, अच्छी सफाई करी है, बड़े अच्छे अरेंजमेंट किये हैं, पानी भी रखा है, आपका इंडिया टुडे का कप भी रखा है |

तो अब मैं बोलूँ यह देखो यह क्या सफ़ेद रंग का आपके जूते के पास क्या गिरा है, मैं समझता हूँ यह ओछी थिंकिंग है, बहुत स्माल थिंकिंग है, आज देश उससे बढ़ गया है | और आप कुछ भी कहो जिसके घर में सिलिंडर पहुंचा है उसको पता है कि उसको घर में सिलिंडर मिला है, जिसके घर में शौचालय पहुंचा है उनको पता है कि मुझे मोदी सरकार ने शौचालय दिया | जिस गाँव-गरीब के यहाँ पर 60-65 साल बिजली नहीं थी वह महसूस करता है कि यह मोदी है जिसने मेरी चिंता की और मुझे बिजली दी, जिसने यह नहीं चिंता की कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों को करोड़ों रुपये लोन मुफ्त में बांटते रहो जो कभी वापिस नहीं आने है, उसमे चिंता की कि मेरे घर में बिजली पहुंचे |

तो मैं समझता हूँ हमारी बातचीत सीधा जनता के साथ होती है, सीधा हम जनता को विकास पहुंचाने का काम करते हैं, बजाये कि यह छोटी चीज़ों में उलझने के और बजाये कि हम अपने आपको divert कर दें attention from the big picture and focus on these very minute details.

प्रश्न: हम demonetization पर आते हैं, demonetization मोदी सरकार का एक बड़ा फैसला था, अब जब आप demonetization को देखते हैं, क्या आपको लगता है कि जो-जो आपने सोचा था जिस वक्त आपने demonetization की घोषणा की वह सब हुआ या फिर कुछ….?

उत्तर: अवश्य ! शत-प्रतिशत successful demonetization, विमुद्रीकरण हुआ है, इसमें भी अभी सोच कैसे अलग होती है | मैं भी आपके शो में कई बार आया हूँ राहुल जी, आपको चिंता हो रही है कि 99% नोट वापिस आ गए, हम उसमें खुश हो रहे हैं कि 99% नोट वापिस आ गए | क्योंकि आप सोचकर बैठे थे कि नोट वापिस नहीं आयेंगे तो उसका मतलब है कि वह काला धन छुप गया, हमारी सोच अलग है, हमारी सोच है नोट वापिस आ गए मतलब बैंक में जमा हो गए, मतलब रिकॉर्ड बन गया किसने जमा किये यह नोट | वह रिकॉर्ड मिलने से आज हम उस रिकॉर्ड को स्टडी करके एक्शन ले सकते हैं जहाँ-जहाँ लोगों ने ठीक से इनकम नहीं अपनी फाइल की है |

आखिर कोई व्यक्ति बोलता है मेरी इनकम तो 10 लाख रुपये सालाना है और suddenly 25 लाख रुपये बैंक में डाल देता है, तो data mining से हमारे पास डेटा आता है हम उसके ऊपर कार्रवाई कर सकते हैं | भाई 10 लाख रुपये कमाता था साल में, कुछ खर्चा भी होता होगा जीवन चलाने के लिए तो यह 25 लाख कहाँ से आये? तो हम तो सोचते हैं हमें तो wealth of data मिल गया जिसके ऊपर कार्रवाई हो सकती है, दूसरी बात – यह पैसे अन्दर आने से अब इस पैसे का सदुपयोग होगा भारत की अर्थव्यवस्था को और मज़बूत करने के लिए, यह पैसा सालों साल कुछ कमाएगा, शायद ब्याज कमाए, शायद कोई उद्यमी इसको उद्योग में लगाये, शायद कोई व्यापार में लगाये, अलग-अलग प्रकार से इसका सदुपयोग होगा जो ईमानदार पैसा इसमें से था | बजाये कि घर में गुल्लक में पड़ा रहे बैंक में आएगा तो देश की आर्थिक व्यवस्था को और मज़बूत करेगा और उसके ऊपर जो कमाई होगी उसपर इनकम टैक्स भरना पड़ेगा |

तो एक प्रकार से हमने ख़राब पैसे को सिस्टम में लाया है, कुछ अच्छा पैसा भी लोगों के पास पड़ा था वह भी सिस्टम में आया | दोनों पैसे पर कुछ कमाई होगी, कमाई के ऊपर टैक्स होगा, और जो गलत पैसा डालने वाले लोग हैं उसपर कार्रवाई होगी | तो मैं समझता हूँ एक देश में ईमानदार व्यवस्था की तरफ जाने में लोगों की रुची और दिलचस्पी बढ़ी है, अब लोगों को, व्यापारियों को, सामान्य व्यक्तियों को ध्यान आया भाई टैक्स पे करो ईमानदारी से रात को चैन की नींद सो, क्यों उलझना यह सब बेकार के कामों में |

प्रश्न: सर आपने जब कहा था demonetization के बाद कि इससे credit cards की, digital payments की जो तादाद है वह बहुत तेज़ी से बढ़ेगी, करीब 6 महीने तक बढ़ी भी लेकिन उसके बाद अगर आप हालके आंकड़े देखते हैं तो हम virtually pre-demonetization levels के आस पास आ गए हैं, याने कि जो आपकी उम्मीद थी कि लोग अब digital की तरफ बढ़ेंगे, वैसा हो नहीं रहा, cash economy अभी भी उतनी ही जितनी पहले थी?

उत्तर: तो आप हमारी मदद करिए कि लोगों को ध्यान में आये कि जितना ज्यादा व्यवस्था digital economy की तरफ जाएगी उतना ज्यादा देश की आर्थिक व्यवस्था भी सुधरेगी और tax collection भी सुधरेगी | मैं आपको सिंपल चीज़ बताता हूँ, suppose आप कोई दुकान में जाते हैं और टाइल खरीदते हैं, हो सकता है आपके घर में कुछ ज़रूरत पड़े आप टाइल खरीदते हैं | अगर दुकानदार आपको बोलता है कि साहब आपको मैं बिना बिल के इतने में दूंगा, बिल के इतने में दूंगा, अगर आप लालच करके वह सस्ते वाले टाइल ले लो बिना बिल के हो सकता है आपको थोड़े 200-400 रुपये बच जाये | लेकिन आपने देश का कितना नुकसान किया है वह सोचिये, आपने एक बेईमान आदमी को अपना काम चलाने के लिए समर्थन दिया है, उसके बदले अगर आप complain कर दो कि यह आदमी ने बिना बिल के मुझे टाइल ऑफर किया है तो कानूनी व्यवस्था उसपर एक्शन ले सकती है | हम 500-1000 ऐसे लोगों पर एक्शन ले लें और पूरे देश में यह मेसेज चला जाये भाई अभी अब किसी को बिना बिल के माल ऑफर करेंगे तो हम जेल जा सकते हैं या बिना बिल के माल ऑफर करेंगे तो हमारे ऊपर कार्रवाई होगी |

तो उससे टैक्स कलेक्शन भी बढ़ेगा, टैक्स कलेक्शन बढ़ने के दो परिणाम होंगे, एक तो गरीबों की सेवा हो सकती है, गरीबों को और सेवा उपलब्ध कराई जा सकती है, दूसरा टैक्स के रेट घटाए जा सकते हैं | आखिर अगर ज्यादा अच्छी टैक्स कलेक्शन होती है तो टैक्स के रेट भी घटेंगे तो मैं आपके माध्यम से सबसे अपील करना चाहूँगा आप जहाँ-जहाँ हो सके डेबिट कार्ड से, भीम से, यूपीआई से या क्रेडिट कार्ड से कोई भी इलेक्ट्रॉनिक मेथड से जब आप पे करते हैं तो वह transaction officially record हो जाती है, आदमी उसपर टैक्स की चोरी नहीं कर सकता है |

तो मैं तो समझता हूँ मैं आपसे अपील करूँगा कि आपका media house और जो इतना देश में सबसे प्रमुख media house है, आप और सरकार मिलकर एक campaign चलायें लोगों को इस बात से अवगत कराने के लिए, लोगों को समझाने के लिए कि जब आप ईमानदार टैक्स पे करते हैं तो एक गरीब का लाभ होता है, एक देश की अर्थव्यवस्था मज़बूत होती है और बेईमान लोगों को मेसेज जाता है कि भाई बेईमानी अब इस देश में नहीं चलेगी | यही तो मोदी सरकार कर रही है, एक ईमानदार व्यवस्था देश में लाने की कोशिश कर रही |

प्रश्न: एक तरफ सरकार की अपनी सोच है  आपकी सोच है demonetization पर, दूसरी तरफ अर्थशास्त्र को समझने वाले economist की सोच है | जानी मानी global economist हैं गीता गोपीनाथ उनका बयान आया, उन्होंने कहा कि मैंने दुनिया के तमाम अर्थशास्त्रियों से बात की मुझे एक अर्थशास्त्री ऐसा नहीं मिला जिसको लगे कि demonetization से फायदा हुआ, तो जो अर्थशास्त्र को लोग समझते हैं वह अभी भी खोज रहे हैं demonetization के फायदे?

उत्तर: नहीं तो गीता गोपीनाथ अभी हार्वर्ड में पढ़ाती हैं वैसे और केरल सरकार की निजी एडवाइजर हैं तो स्वाभाविक है उस सरकार की जो पालिसी है उसके हिसाब से ही कहेंगी | दूसरी बात, economists का तो simple वह है, मैं भी economists से रोज़ मिलता रहता हूँ, शायद आपसे ज्यादा ही मिलता हूँगा, उनका तो simple है, on the one hand एक विषय रखेंगे and on the other hand दूसरा विषय रखेंगे तो आपको पता ही नहीं है कि left hand ठीक था या right hand ठीक था |

तो वह तो अलग-अलग अपने-अपने विचार से, अपनी-अपनी सोच के हिसाब से, Geetaji is entitled to her views. मुझे कोई आपत्ति नहीं है, पर अगर वह उसी प्रकार के कुछ दो-चार लोगों को मिली हों जिनको यह समझ में नहीं आया हो, आखिर विदेश में, अमेरिका में या और कोई देश में तो किसी की साहस ही नहीं है इतना बड़ा कदम उठाने की, वहां नरेन्द्र मोदी जैसा लीडर है ही नहीं जो इतना बड़ा साहस वाला कदम उठा सकता है | तो वह तो भारत की जनता है जो समझती है कि हमारे पास नरेन्द्र मोदी है, उनको अमेरिका में क्या समझ में आएगा |

प्रश्न: सर, मोदी सरकार ने कहा कि हम एयर इंडिया को डिसइन्वेस्ट करेंगे, अब रिपोर्ट आ रही है कि कोई आपको अच्छा बायर मिला ही नहीं, हो सकता है कि एयर इंडिया का डिसइन्वेस्टमेंट टालना पड़े, क्या यह सही है?

उत्तर: यह रिपोर्ट तो आप जैसे लोग ही जेनरेट करते है ना? मुझे तो ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि कोई इंटरेस्ट नहीं है, रिपोर्ट जिसने बनाई आप उसी को पूछ सकते हैं | अगर आपके यहाँ पर यह रिपोर्ट आई है तो आप अपने जर्नालिस्ट को पूछ लीजिये |

प्रश्न: तो अगर मैं आपको दूसरे तरीके से सवाल पूछूँ इस वक्त आपको यह लग रहा है कि एयर इंडिया का डिसइन्वेस्टमेंट कामयाबी से होगा?

उत्तर: देखिए भाई साहब इतना कड़क निर्णय करने की चिदंबरम जी में साहस थी क्या? उनको यह पूछना चाहिए था कि आपने क्यों नहीं सोचा एयर इंडिया का डिसइन्वेस्टमेंट करने जब आपने 25,000 करोड़ खर्च दिया एयर इंडिया के पीछे | क्या वह 25,000 करोड़ से इस देश की जनता का और सेवा नहीं हो सकती थी? क्या बिजली और पहले नहीं पहुँच सकती थी हर घर में? क्या एलपीजी सिलिंडर और पहले नहीं पहुँच सकता था? क्या शौचालय नहीं पहुँच सकता था?

प्रश्न: चिदंबरम जी ने कुछ कहा ही नहीं डिसइन्वेस्टमेंट पर, चिदंबरम जी ने कुछ नहीं कहा, यह मैं ही पूछ रहा हूँ आपसे |

उत्तर: मैं आपको बता रहा हूँ कि आप गलत आदमी को गलत सवाल पूछते हो, उनको यह सब पूछना चाहिए कि आपने क्यों नहीं एयर इंडिया डिसइन्वेस्टमेंट किया | हमने तो साहस किया डिसइन्वेस्टमेंट का निर्णय लेने का, expression of interest बाहर है, लोगों से हमारे transaction advisor चर्चा करके बताएँगे कि किस प्रकार से इसका डिसइन्वेस्टमेंट  सफल हो सकता है | आप पता नहीं investment banking कितना जानते हैं मैं तो investment banker रह चुका हूँ, investment banking ऐसा सरल काम नहीं होता है कि भाई आज कुछ चीज़ ऑफर करी और कल बिक गयी | मुझे याद है हम 50-60 transaction पर काम करते थे तो एकाद दो transaction सफल होती थी, मेहनत करनी पड़ती है उसमें | अब मेहनत कर रही है यह सरकार तो उसपर भी यह कि अरे आपने निकाला अभी तक बिका क्यों नहीं? इतना आसान होता तो फिर इतने सालों तक यह बिक जाना चाहिए था |

प्रश्न: आप कहते हैं कि अर्थव्यवस्था की हालत बहुत इम्प्रूव हो गयी, एक जो बड़ा पयमाना है वह यह है कि ग्रॉस जो इन्वेस्टमेंट हो रही है, जो डोमेस्टिक इंडस्ट्री इन्वेस्ट कर रही है उसकी तादाद क्या है, कैपिटल फार्मेशन की | अगर आप हाल के आंकड़े देखते हैं तो एफडीआई की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन जो प्राइवेट इन्वेस्टमेंट करना चाहिए डोमेस्टिक इंडस्ट्री को उसकी तादाद इतनी तेज़ी से बढ़ नहीं रही और जहाँ पर एफडीआई का सवाल है वहां पर चिदंबरम जी ने थोड़ी आलोचना की वह मैं आपके सामने रखता हूँ | उन्होंने कहा कि replacement capital  तो आ रहा है, additional capital नहीं आ रहा, क्या जवाब है आपका?

उत्तर: राहुल जी, वैसे कोई ऐसा न सोचे कि हमारी मिलीभगत है और आपने ऐसे क्वेश्चन पूछे जो मुझे इच्छा थी बात करने की |

प्रश्न: कोई ऐसी मिलीभगत नहीं है, आप अभी एक मिनट पहले आये आपसे तो बात करने का मौका भी नहीं मिला |

उत्तर: क्योंकि आपने बहुत बढ़िया सवाल पूछा | कैसे होती थी capital formation यूपीए और कांग्रेस के टाइम में मैं आपके दर्शकों को बताता हूँ | एक पार्टी आती थी सरकार के साथ सांठगाँठ करती थी एक फर्जी एप्लीकेशन करती थी, eligible न होते हुए भी एक कोयले का खदान मुफ्त में ले जाती थी, या कोई लाइसेंस ले जाती थी या कोई स्पेक्ट्रम ले जाती थी | फिर बैंक के पास जाती थी, हो सकता है दिल्ली से फ़ोन जाता होगा या पता नहीं क्या कारणों से जिसकी जेब में दो टूटी कौड़ी नहीं होती थी उनको हजारों रुपये के लोन दे दिए जाते थे, वह लोन दिए जाते थे उसमें से ही अपनी इक्विटी आदमी कन्वर्ट करके बना देता था और ग्रॉस कैपिटल फार्मेशन दिखता था जैसे कोई बड़े-बड़े उद्योग लग रहे हैं |

ऐसा नहीं कि हर एक जना गलत था पर आज जो सामने दृश्य दिख रहा है, लाखों करोड़ के एनपीए जो उस ज़माने के हैं खासतौर पर 2008-14 के बीच के, वह आज सामने जब आते हैं और हम देखते हैं कब सैंक्शन हुआ, किस आधार पर सैंक्शन हुआ, किस कंपनी को सैंक्शन हुआ? क्या उस समय की सरकार को और बैंकों को दिखता नहीं था कि एक कंपनी बनती थी, उसमें लोन देते थे हज़ार करोड़, वह दूसरी कंपनी में इक्विटी बनती थी उसके आधार पर और 3000 करोड़ जाता था, यह 4000 करोड़ लेकर तीसरी कंपनी बनती थी, उसमें वह इक्विटी के रूप में जाता था |

यह पूरी तरीके से कांग्रेस और कांग्रेस के नेताओं का षड्यंत्र था जिसने भारत के बैंकों को इतने बुरे हाल में बना दिया, जो बार-बार restructure और evergreening करके इसी carpet के नीचे लोन को दिखाते नहीं थे असली बात, 50,000-60,000-1,00,000 करोड़ के लोन ऐसे लोगों के पास जिनकी क्षमता ही नहीं है वापिस देने की और छोटे लोगों के पीछे तो बैंक भागती थी पैसा वापिस देने के लिए, बड़े लोगों को लगता था कोई दिक्कत ही नहीं है बैंक कभी आएगी ही नहीं पैसा मांगने |

यह मोदी जी की सरकार है जिसने बड़े-बड़े उद्योगपतियों को अपनी रिफाइनरियाँ बेचने को मजबूर किया, बड़े-बड़े उद्योगपतियों को स्टील प्लांट बेचने को मजबूर किया, बड़े-बड़े उद्योगपतियों की ज़मीनें वापिस ले ली बैंक का लोन वापिस लेने के लिए | तो मेरे ख्याल से आपको साहस होना चाहिए यह लोगों को बताने का कि वह फर्जी ग्रॉस कैपिटल फार्मेशन से हमारा ईमानदारी का ग्रॉस कैपिटल फार्मेशन अच्छा है |

प्रश्न: वक्त ख़त्म हो रहा है तो मेरे को बहुत तेज़ी से..

उत्तर: मेरे पास बहुत वक्त है कोई दिक्कत नहीं है |

प्रश्न: अभी सुपर-बॉस अमित शाह भी आने वाले हैं तो उससे पहले ख़त्म करना ज़रूरी है, दो मैं आपसे छोटे सवाल पूछना चाहता हूँ | एक है आपने कहा कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस प्लस 50% हम किसानों को देंगे, कैराना का चुनाव हो रहा है, वहां पर लोगों से पूछा गया, गन्ना किसान है वहां पर, कि क्या आपको मिल रहा है? वह कह रहे हैं यह 50% एक्स्ट्रा तो छोड़ दीजिये हमें समर्थन मूल्य ही नहीं मिल रहा | आपने दावा किया किसानों को आप 50% एक्स्ट्रा देंगे सपोर्ट प्राइस के ऊपर, किसान बता रहे हैं कि उनको सपोर्ट प्राइस तक नहीं मिल रहा मंत्री जी?

उत्तर: अभी तक तो खरीफ का क्रॉप आया भी नहीं है तो वह डेढ़ गुने का एमएसपी अभी अन्नौंस होना बाकी है, पहली बात | दूसरी बात, उत्तर प्रदेश में शुगरकेन किसानों के लिए जितना योगी महाराज जी की सरकार ने किया है शायद ही इसके पहले किसी सरकार ने उत्तर प्रदेश की किया होगा | उत्तर प्रदेश के सब cane arrears जो समाजवादी के समय के थे वह सब cane arrears सबको दिलवाए, कई शुगर प्लांट्स जो बंद पड़े थे उनको चालू करवाया | स्वाभाविक है इस साल हम सब जानते हैं कि शुगर की प्रोडक्शन बहुत बढ़ी है और यह मोदी सरकार की एक उपलब्धि है कि लगभग हर चीज़ में प्रोडक्शन और productivity हमने बढाई है, फिर चाहे वह जैसे दाल है, दाल की हर साल किल्लत होती थी, महिलाएं बतायेंगी कितनी महँगी हो गयी थी |

हमने short term solution नहीं किया, short term भी किया उसको थोड़े समय तक import करके consumer के दाम कम किये उपभोक्ता के लेकिन long term उसका पैदावार बढे, उसमें technology इस्तेमाल हो, उसमें सही मात्रा में productivity कैसे सुधरे | आज 16 लाख टन का हमारे पास buffer stock है तो दालों की कीमतें भी एकदम सही है पूरे देश में |

आपने कभी चिदंबरम जी को यह नहीं पूछा कि आपके समय दाल 100 रुपये और 120 थी, आज तो 50-60 रुपये हो गयी है तो उसके लिए चिदंबरम जी से कुछ सवाल पूछ लीजिये और हमें थोड़ी उसकी दाद भी दे दीजिये हमारे आज 4 साल पूरे हुए हैं |

प्रश्न: 4 साल पूरे हुए हैं मेरे पास सवाल ढेर सारे और हैं लेकिन वक्त ख़त्म हो गया है तो इस बातचीत को हम यही पर ख़त्म करते हैं | आप यहाँ पर आये, काफी aggressively आपने batting की अब देश की जनता को तय करना है कि वह मानते हैं कि उनकी जेब पहले से बेहतर है या नहीं | आपने हमें वक्त दिया इसके लिए बहुत-बहुत शुक्रिया |

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