Speeches

March 5, 2018

Speaking at Economic Philosophy of Pt. Deendayal Upadhyaya, in New Delhi

बहुत बहुत धन्यवाद अतुल जी, श्रद्धेय मदन दास देवी जी जिनका आशीर्वाद मुझे लगभग बचपन से ही मिला है और जिनके मार्गदर्शन में शुरू के वर्षों में मुझे भारतीय जनता पार्टी का काम करने का भी सौभाग्य मिला| आज बहुत आनंद आया मदन दास जी आप स्वयं ही दिल्ली आये हैं इस कार्यक्रम में भी आपने भाग लिया, डॉक्टर श्रीमती ज्योति किरण शुक्ला जी, वास्तव में रोल रिवर्स होना चाहिये, आपको एड्रेस देना चाहिए उसके ऊपर मैं छोटी-मोटी टिप्पणी कर सकता हूँ, आपने तो इसपर इतना रिसर्च किया है, इतना काम किया है| मेरे जैसे छोटे कार्यकर्ता के लिए मुश्किल है कि इतनी बड़ी विचारधारा को किस प्रकार से सबके समक्ष रखना और फिर डॉक्टर महेश शर्मा जी भी जिस कार्यक्रम में हों तो वैसे ही एकदम डर लगता है कि कुछ गलत बोल दिया, कुछ गलत विचार रख दिया तो शायद क्लास लग जाएगी मेरी बाद में डॉक्टर साहब के पास – श्री विनय सहस्रबुद्धे जी, सांसद हैं महाराष्ट्र से, भारतीय जनता पार्टी में बहुत प्रमुख उनका काम रहता है, प्रमुख पदों पर हैं और मैं समझता हूँ जो एक ट्रेनिंग का कॉन्सेप्ट बीजेपी में शुरू हुआ है उसमें विनय जी ने जो रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी के नाते establish किये हैं processes, procedures, systems, उससे हम सभी कार्यकर्ता बहुत लाभ लेते हैं|

तरुण विजय जी ने बहुत अच्छे काम किये हैं पार्टी के लिए पहले सांसद थे और खासतौर पर जो एक तरुण विजय जी की विशेषता रही है कि उन्होंने तमिल नाडु को कैसे देश के साथ जोड़ना, उत्तर भारत के लोगों को भी तमिलनाडु के कल्चर के साथ जोड़ने का जो इन्होंने प्रयत्न किया, मुझे लगता है तमिलनाडु में इनको ऑलमोस्ट लोकल की तरह मानने लग गए हैं वहां पर लोग|

अतुल जैन जी और सभी उपस्थित महानुभाव, मीडिया के मित्रों, भाईयों और बहनों – मुझे मालूम नहीं आप में से इस कमरे में कितने लोगों को सौभाग्य मिला पंडित जी की गोद में खेलने का, लेकिन मैं उन चंद लोगों में से हूँ जिनको बचपन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी से मिलने का या उनके साथ मैं यह नहीं बोल सकता कि बहुत ज्यादा कुछ बात-वात हुई होगी पर ज़रूर उनके गोद में खेलने का मुझे ज़रूर यह अवसर मिला| मैं सिर्फ 4 साल का था जब उनका देहांत हुआ, पर उस समय जब भी वह मुंबई आते थे तब हमारे यहाँ पर रुकते थे उस कारण से थोड़ा बहुत faint recollection ही है लेकिन मेरी माँ ज़रूर बताती है कि जिस दिन उनका स्वर्गवास हुआ और बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि मैं आज रेल मंत्री हूँ और रेल के डब्बे में ही उनका हादसा हुआ|

लेकिन देखिए आजका परिप्रेक्ष्य कितनी coincidences लाता है, पंडित जी मुंबई से निकले थे उत्तर प्रदेश के लिए और फिर वहां से ट्रेन ली थी आगे जब यह हादसा हुआ रेल गाड़ी में, और मुझे कुछ महीने पहले ही रेलवे का प्रभार मिला| जब यह हादसा हुआ तो नानाजी देशमुख मेरे घर पर रुके हुए थे और न्यूज़ सबसे पहले नानाजी के पास आई, सायन में ही, मुंबई में और ऐसा मेरी माँ बताती है, मुझे याद नहीं है| पर मम्मी बताती हैं कि मैं फूट-फूट के रोया था कि क्या हो रहा है, क्यों सब लोग ऐसे बात कर रहे हैं, क्या हुआ चाचा जी को क्या हुआ है, मैं चाचा जी बोलता था, छोटा था|

और आज इस कार्यक्रम में डीआरआई के सौजन्य से यह कार्यक्रम होना, नानाजी को याद करना, दीनदयाल जी को याद करना, उस रेल गाड़ी को याद करना, इतने सारे coincidences आज अतुल जी आपने एक साथ ले आये हैं कि it’s a little bit overwhelming also sometimes. पर अच्छी बात है कि दीनदयाल रिसर्च इंस्टिट्यूट ने, डीआरआई ने लगातार अपने रिसर्च के माध्यम से, नानाजी के जीवन के अलग-अलग पहलुओं को देश के समक्ष रखा, उनकी विचारधारा को समय-समय पर और fine tune किया, contemporary बनाया| और मार्च 8, 1968 को शायद डीआरआई की स्थापना हुई थी, एक प्रकार से दो दिन बाद हम उसके भी 50 वर्ष मनाने जा रहे हैं और कितना course of history जब भी भारत की लिखी जाएगी तो यह 2018 वर्ष, जिसमें 50 वर्ष डीआरआई के भी पूरे होते हैं और तीन दिन बाद ही पूरे होते हैं और मार्च के महीने में पूरे होते हैं उसमें इतिहास में यह भी लिखा जायेगा कि दीनदयाल रिसर्च इंस्टिट्यूट के माध्यम से करा हुआ काम और उस माध्यम से नानाजी ने जो लगातार दीनदयाल जी के दिखाए हुए क़दमों पर भारतीय जनता पार्टी चलती रहे, उसपर फोकस रहे, यह काम करते-करते दो दिन पहले शायद एक सपना जो पंडित जी ने देखा होगा 50-60 साल पहले वह पूरा होता दिखा जब त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड, तीनों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनना मैं समझता हूँ एक बहुत ही अच्छा coincidence भी हो सकता है या शायद काल का चक्र ऐसा घूमा है कि डीआरआई के 50 वर्ष, दीनदयाल जी का जन्म शताब्दी वर्ष, दीनदयाल जी ने हमें चराई विती चराई विती का जो नारा दिया था हमें, जो सीख दी थी उसमें चलते-चलते मुझे अभी भी याद है जब 1996 में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी देश के प्रधानमंत्री बने, एक non-congress Prime Minister शायद पहली बार ही बने होंगे, बाकी भी जो experiments थे वह सब कभी न कभी कांग्रेस से निकले हुए लोगों को मौका मिला था|

तब मैंने अटल जी को पूछा था कि आपने कभी सोचा था कि आप देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, उन्होंने कहाँ था कि नहीं, मेरी तो कुंडली में ही नहीं लिखा था कि मैं देश का कभी कोई ऐसा पद संभाल पाउँगा| तो मेरे लिए तो यह वास्तव में आश्चर्य की बात है कि यह कैसा चक्र घूमा है और शायद भारतीय जनसंघ जब स्थापित हुआ तबसे जितने कार्यकर्ता जनसंघ से जुड़े होंगे उसके बाद भारतीय जनता पार्टी से जुड़े, मुझे नहीं लगता किसी ने कोई पद के हिसाब से या कुछ बहुत ज्यादा इसमें स्वयं के लिए सोचकर जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी से अपने आपको जोड़ा होगा|

उस समय में तो एकदम it was beyond imagination that the BJP could ever form a government, not only in the centre with an absolute majority, but in 21 states of the country today. 29 में से 21 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों का आज राज होना और पिछले दो दिन तो टीवी पर जब नक़्शे दिखाए जाते हैं भारत के, तो एकाद नजरबट्टू छोड़ दें तो बाकी तो लगभग पूरा, और यह सिर्फ विचारधारा की ताकत हो सकती है जिसने पार्टी को भी और पार्टी के कार्यकर्ताओं को लगातार हिम्मत दी, हौसला बढ़ाया कि काम करते रहे, चलते रहे, अपने long-term vision को बिना compromise किये कैसे पार्टी का विस्तार करते रहना, कैसे विचारधारा को एक-एक घर तक पहुंचाना, जनता को कैसे साथ में लेना|

और नानाजी का योगदान, दीनदयाल जी की विचारधारा को देश के कोने-कोने तक लेकर जाना और उसको खुद जीना अपने अलग-अलग सामाजिक क्षेत्र के कार्यों से, यह अपने आप में एक शायद इतिहास का एक ऐसा लेसन रहेगा जो भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को सालों साल तक प्रेरणा भी देगा, हमारा उत्साह भी बढ़ाएगा और हम सबके ऊपर नियंत्रण भी रखेगा|

नानाजी से एक और जुडी हुई बात जिसके लिए मुझे बहुत गर्व है और एक प्रकार से अब भारतीय जनता पार्टी में भी इसका consciousness बढ़ते जा रही है वह रही जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और पूर्व के जनसंघ के कोटा में हमें 3 कैबिनेट बर्थ्स मिलने थे| स्वाभाविक है अटल जी और अडवाणी जी दो थे और तीसरा नानाजी उस समय जहाँ तक मुझे याद है लेबर मिनिस्टर बनने की बात थी नानाजी कि, इंडस्ट्री मिनिस्टर| फिर शायद बाबू लाल जी बने थे या कोई, उनको लेबर दिया गया था, बाबू लाल जी वर्मा बने थे और उनको शायद लेबर दिया गया था| पर नानाजी को इंडस्ट्री मिनिस्टर बनने की बात थी 1977 में, तब उन्होंने कहा कि अब थोड़े ही 2-3 साल में मेरी आयु 65 वर्ष की हो जाएगी और नानाजी का मानना था कि 65 वर्ष की आयु पर एक राजनीतिक कार्यकर्ता ने निवृत्ति लेनी चाहिए, रिटायर हो जाना चाहिए और पद छोड़कर, राजनीतिक पद छोड़कर सामाजिक जीवन में प्रवेश करके देश और समाज की चिंता सामाजिक कामों से करना चाहिए| और मैं समझता हूँ इतने सालों के संघर्ष के बाद और नानाजी का जीवन तो पूरा ही संघर्ष में रहा है बचपन से, जब संघ का काम विस्तार करने के लिए निकले होंगे महाराष्ट्र से किस-किस कठिनाइयों से गुज़रते हुए वह 1977 का पल जब एक देश के कैबिनेट मिनिस्टर के नाते उनकी swearing-in होनी थी और ठुकराना उसको और कहना कि नहीं, बस एक-दो साल में जब रिटायर ही होना है तो क्या पद ग्रहण करना किसी और को बना दो, मैं समझता हूँ एक बहुत बड़ा हम सबके लिए लेसन था| और मुझे इसलिए आनंद आता है इस बात से क्योंकि जब, again it links up to my mother in another way, कि जब मम्मी भी 65 वर्ष की हुई तो उन्होंने भी यही तय किया कि मुझे और नानाजी का रोल था मम्मी को राजनीति में लाने के लिए, ज़रा भी उनकी इच्छा नहीं थी| लगभग, she was forced into politics जब यह हुआ था कि महिलाएं भी और आयें राजनीति में माननीय जयवंती बेन मेहता हमारी वहां की तेज़ नेता थी, तेजस्वी नेता थी मुंबई की| तब नानाजी ने एक प्रकार से प्रोत्साहित किया था कि मम्मी भी राजनीति में आयें तो उनके दिखाए हुए रास्ते को अपनाते हुए उन्होंने भी तय किया कि मैं 65 वर्ष की हो गयी हूँ अब मुझे राजनीतिक जीवन से रिटायर होना है और अब मैं समाज के ही काम में लगूंगी|

यह अलग बात है कि उस समय immediate candidate नहीं मिला तब शायद 63 वर्ष की थी 1999 में तो प्रमोद जी और गोपीनाथ जी ने literally force करके कहा कि एक बार और लड़ लो| नहीं 65 क्रॉस कर चुकी थी but she was forced to fight once more in 1999, और 2004 में फिर यह सवाल उठा कि आपको लड़ना चाहिए, 3 टर्म हो गए थे आमदार एमएलए के नाते| But she stuck to her gun, she said, this far and no further, अब मैं रिटायर ही हूँगी, कोई और युवा कार्यकर्ता को दें पीयूष को छोड़कर, यह भी उनका स्पष्ट मानना था| यह कोई हमारी पार्टी में परंपरा नहीं है कि माँ के बाद बेटा बनेगा, तो वह स्पष्ट उनका वह था कि कोई और पार्टी का कार्यकर्ता या कोई और कैंडिडेट बने, पीयूष कैंडिडेट नहीं बनेगा मेरी सीट पर| 2004 में वह रिटायर हुई, दुर्भाग्य से कैंडिडेट नहीं मिला तो किसी को बाहर से लाना पड़ा और वह 4000-5000 वोट से वह सीट भी हार गए और बाद में प्रमोद जी और गोपीनाथ जी बहुत नाराज़ हुए मम्मी के ऊपर कि आपने हमारी जीतने वाली सीट ख़राब कर दी|

लेकिन सिद्धांत पर खड़े रहने की जो सीख दीनदयाल जी ने हम सबको दी और नानाजी ने उसको कर के दिखाया, अपने जीवन में लागू कर के दिखाया, मैं समझता हूँ हम सबके लिए बहुत ही गर्व की बात है| और कैसे मिशन के रूप में काम करना, कैसे अपने काम को लक्ष्य को एकदम क्लीन रखना, लक्ष्य को एकदम मैं समझता हूँ अपने आपमें शत-प्रतिशत अपने आपको लक्ष्य के पीछे कमिट कर देना यह जो नानाजी का काम करने का जो ढंग था वह हम सबने सीखा है, हम सबको उसका लाभ मिला है और मैं समझता हूँ मेरे जैसे छोटे कार्यकर्ता को शायद नानाजी की प्रेरणा ज़िन्दगी भर प्रोत्साहित करते रहेगी, ज़िन्दगी भर मार्ग दिखाते रहेगी कि काम में सफलता कैसे पाना और काम में अपने आपको किस ढंग से पूरी तरीके से झोंक देना अपने आपको लक्ष्य पाने के लिए|

वैसे तो अभी-अभी हमारे नए कार्यालय का भी उद्घाटन हुआ पिछले महीने और कितने सारे संयोग एक साथ आते हैं कि यह कोई कार्यालय हमारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर होगा यह कोई हमने नहीं तय किया था, यह तो सरकारी व्यवस्था से सब institutional area पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर बना, उसी में हमें कार्यालय की ज़मीन मिली, उसी में हमने कार्यालय बनाया और कार्यालय को भी dedicate किया है तो श्यामा प्रसाद मुख़र्जी और पंडित दीनदयाल जी के दिखाए हुए मार्ग को कि यह कार्यालय अत्याधुनिक होगा लेकिन मूल भावना से प्रेरित होगा| तो अगर आपमें से किसी ने कार्यालय देखा हो तो कार्यालय का डिज़ाइन भी बड़े भारतीय मूल आधारित है| उसमें बीच में कोर्टयार्ड बनाया गया है, जिससे चारों तरफ से नेचर का बेनिफिट मिले, लाइट आये, हवा आये और पूरे कार्यालय को मॉडर्न बनाते हुए सादगी रखी है – functionally very appropriate, functionally top of the line, हर प्रकार की आधुनिक सुविधा फिर वह video conferencing हो, अच्छे facilities for library हो, technology के माध्यम से internet connectivity, social media पर हमारा वर्चस्व बना रहे, हर प्रकार की मॉडर्न सुविधा वहां पर उपलब्ध है लेकिन सादगी के साथ|

और अच्छा संयोग  है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर हमारा नया कार्यालय बने उसमें पहली प्रेस कांफ्रेंस हो त्रिपुरा और मेघालय और नागालैंड के विजय के बाद, I think sometimes the stars also give you a lot of message. और पंडित जी का जो मूल भावना थी, अन्त्योदय की भावना, एक प्रकार से उस विचारधारा पर चलते हुए इस सरकार के अब 4 वर्ष पूरे होने जाने वाले हैं और इस 4 वर्ष में किस प्रकार से पूरे देश में सबका साथ, सबका विकास हो, उस भावना को लेते हुए और अन्त्योदय को एक मूल हर काम में हमने पिरोने की कोशिश की है और थोड़े ही शब्दों में मैं बताने की कोशिश करूँगा कैसे हमारे हर काम में अन्त्योदय की भावना को हम सामने रखते हुए, विचारधारा को सामने रखते हुए निर्णय लेते हैं|

श्यामा प्रसाद जी ने तो अपना जीवन बलिदान किया देश की एकता के लिए, देश की अखंडता के लिए और एक प्रकार से जो पूर्वोत्तर भारत है, the seven sisters, या आठों राज्यों को एक प्रकार से अगर देखें तो इन आठों राज्यों में एक भावना थी कि भारत हमें अपनाता नहीं है, भारत हमारी चिंता कम करता है और आहिस्ते-आहिस्ते वहां के विकास के कार्य महज़ कागज़ों में रह गए थे, ज़मीन पर विकास उतर नहीं रहा था|

प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार आने के बाद हर 15 दिन में कोई न कोई एक केन्द्रीय मंत्री नॉर्थ-ईस्ट के स्टेट्स में जाता था, हर 15 दिन में और यह बकायदा योजना के हिसाब से, क्योंकि वहां के विकास के कार्य हमारे लिए बहुत महत्व रखते थे, राजनीतिक महत्व नहीं, देश की एकता और अखंडता के हिसाब से कैसे नॉर्थ-ईस्ट के हर नागरिक को लगे I am a part of India. India cares for me. I belong to India. India belongs to me. यह भावना कैसे हर एक व्यक्ति में आये, कैसे ईमानदार व्यवस्था से वहां पर विकास हो, कैसे केंद्र सरकार की योजनायें नॉर्थ-ईस्ट को देश के साथ जोड़ने में लगें और मुझे याद है जो पहला या दूसरा कैबिनेट नोट ऊर्जा मंत्री के नाते मैंने कैबिनेट में पेश किया वह लगभग 10,000 करोड़ रुपये की लागत से शायद सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश, या सिक्किम और असम, दो राज्यों में पॉवर ट्रांसमिशन सिस्टम को सुदृढ़ करने के लिए, और मज़बूत करने के लिए, अच्छा बनाने के लिए केंद्र सरकार ने शत-प्रतिशत पैसा दिया, लगभग 10,000 करोड़|

और आप मानोगे नहीं, मुझे 6-8 महीने लगे उस समय दोनों राज्यों में गैर-बीजेपी, गैर-एनडीए सरकारें थी, मुझे 6-8 महीने लगे सिर्फ इतनी स्वीकृति कराने में कि भाई पैसा नहीं भेजेंगे वहां काम करेंगे, क्योंकि सालों साल यह देखा जाता था कि पैसा तो बहुत जाता था नॉर्थ-ईस्ट को, ज़मीन पर काम नहीं होता था| और ऐसे ही अन्य-अन्य केंद्र सरकार की योजनायें जब नॉर्थ-ईस्ट में एक्चुअल ग्राउंड पर इम्प्लीमेंट होने लगी तब उसका परिणाम यह था कि पूरे नॉर्थ-ईस्ट में मोदी जी इतने पॉपुलर बनें, भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व बना| स्वाभाविक है भारतीय जनता पार्टी की organizational machinery वहां मज़बूत होती रही और हमारे सभी वहां के नेता जिन्होंने सालों साल काम किया, जिन्होंने अपना जीवन बलिदान देकर लड़ाई लड़ी त्रिपुरा में, मेघालय में, नागालैंड में, अन्य-अन्य इलाकों में उन सबके परिश्रम से आज मुझे लगता है मिज़ोरम छोड़कर बाकी सात राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या हमारे सहयोगी दलों की, एनडीए की, NEDA की, North-East Democratic Alliance, हमारी सरकारें आज 8 में से 7 राज्यों में चल रही हैं|

और मैं समझता हूँ वास्तव में यह सही श्रद्धांजलि है दोनों, श्यामा प्रसाद मुख़र्जी जी के लिए और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के लिए कि भारतीय जनता पार्टी का काम, भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा आज पूरे देश में जो फ़ैल रही है उसमें नॉर्थ-ईस्ट जो एक बहुत ही अहम इम्पैक्ट रखने वाला एरिया है जिसके लिए पार्टी में लगभग कम ही लोग थे जिनको कॉन्फिडेंस था कि इस प्रकार का विस्तार हो सकता है पार्टी का| उसके बावजूद आज के वर्तमान नेतृत्व ने पंडित जी के दिखाए हुए रास्ते को वहां तक पहुँचाया और आज वहां पर लोगों का समर्थन हमें मिला|

तो सोच तो वही है जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने दी थी, उसी सोच का विस्तार हो रहा है, नयी मंजिलों तक वह पहुँच रही है सोच| और अगर नए भारत का निर्माण करना है तो वह तब तक संभव नहीं है अगर भारत को तेज़ विकास की गति देनी है और प्रगति के पथ पर लेकर जाना है वह तब तक संभव नहीं है जब तक जो पिछड़े इलाके हैं उसमें भी तेज़ गति से विकास हो| उसमें पूर्वी भारत के अलग-अलग राज्य हैं, पश्चिम बंगाल है, ओडिशा है, झारखंड है, उस इलाके का जब तक हम तेज़ गति से प्रगति नहीं होगी, विकास नहीं होगा और इसी प्रकार से यह आठों राज्य नॉर्थ-ईस्ट के जब तक इस पूरे इलाके में तेज़ गति से विकास नहीं होगा तब तक भारत विकसित देश नहीं बन सकता है| ईस्टर्न यूपी, बिहार, और यह इस सरकार की प्राथमिकता रही है कि वास्तव में जो अन्त्योदय कहता है जो एकात्म मानववाद का मूल भावना है कि समाज के अंतिम छोर पर जो व्यक्ति खड़ा है, the bottom of the pyramid, उसकी चिंता देश ने पहले करनी चाहिए| अगर देश के रिसोर्सेज पर किसी का अधिकार सबसे पहले है तो वह अधिकार गरीब से गरीब व्यक्ति का है|

और मैं समझता हूँ वह जो अन्त्योदय की भावना, वह जो एकात्म मानववाद का basic tenet of the philosophy of integral humanism थी, उस tenet को अगर किसी सरकार ने अपने काम से, अपनी योजनाओं से और अपने व्यवहार से अगर किसी ने देश में कोने-कोने तक पहुंचाया है तो यह गत 4 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में, हमारे सभी मार्गदर्शक नेताओं के नेतृत्व में इसको जो करने का काम मोदी जी ने शुरू किया है मुझे विश्वास है कि वह इस देश के भविष्य को और सुन्दर भी बनाएगा, देश की जनता को एक अच्छा भविष्य देगा और देश को तेज़ गति देगा, देश के विकास के काम को तेज़ गति देगा| पर बैलेंस्ड विकास होगा, ऐसा नहीं कि मुंबई-दिल्ली में तो तेज़ गति से विकास हो रहा है लेकिन काफी पिछड़े इलाके रह जायें जहाँ पर विकास पहुंचे ही नहीं|

और इसी कड़ी में सरकार ने 115 डिस्ट्रिक identify किये जिसको हमने बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट नहीं कहा, किसी एरिया में अगर डेवलपमेंट कम हुआ है देश के 70 वर्ष के इंडिपेंडेंट काम में तो यह कोई ख़ुशी की बात नहीं है, पर इनको हमने Aspirational Districts का दर्जा दिया है| They are also aspiring for a better future. They are aspiring for a better quality of life for the people of these districts. और यह 115 डिस्ट्रिक में, इसमें कई डिस्ट्रिक्स नक्सल इलाकों में हैं, माओवादी ताकतें जहाँ काम कर रही हैं, कई डिस्ट्रिक्स पूर्वी भारत में और उत्तर पूर्वी भारत में है और देश के अन्य-अन्य इलाकों में और इनको चयनित करते हुए हमने उसकी रिफरेन्स बाकी डिस्ट्रिक्स जो उस राज्य में हैं उसके साथ रखी है तो कोई हमने टेम्पलेट नेशनल नहीं बनाया, स्टेट-वाइज टेम्पलेट बनाया| हर राज्य की बैकवर्ड डिस्ट्रिक्स जिनमें विकास कम हुआ है इनको Aspirational Districts का दर्जा देते हुए कैसे यह तेज़ गति से यहाँ पर काम हो, कैसे केंद्र की अलग-अलग स्कीम्ज़ इन एरियाज को और तेज़ गति से सुधारने में लगें और एक प्रकार से नानाजी ने यही काम बुंदेलखंड में जाकर किया, यही काम विदर्भ में जा के किया|

नानाजी की जो पूरी सोच थी कि मैं सामाजिक जीवन में अपने आपको पूरी तरीके से झोंक दूंगा उसमें उनका सोच रही थी कि जो सबसे बैकवर्ड डिस्ट्रिक्स हैं और मुझे सौभाग्य मिला चित्रकूट जाने का और वास्तव में जो वहां पर देखने को मिलता है, संभावनाएं बहुत हैं लेकिन विकास नहीं हो पाया| और अभी-अभी मैंने शायद हाल में ही आपको फ़ोन किया था, आपको नहीं किया था अभय जी को किया था, अभय जी को फ़ोन किया था कि मैं बुंदेलखंड में एक रेलवे का कारखाना लगाना चाहता हूँ| मैं समझता उससे ज्यादा श्रद्धांजलि मुझे नहीं ध्यान में आया मैं क्या दे सकता हूँ नानाजी को कि हम बुंदेलखंड में जाकर एक रेलवे की फैक्ट्री लगायें और वहां के लोगों को अवसर मिले नौकरी का, वहां के लोगों को अवसर मिले विकास का, वहां के लोगों को दिखे क्या-क्या बड़े-बड़े कारखानों में होता है, कैसे होता है, क्या काम हो सकता है|

अभी-अभी एक निर्णय हाल ही में मैंने लिया है, शायद शताब्दी झाँसी लेकर जाने का निर्णय लिया है, गतिमान एक्सप्रेस, ग्वालियर तक एक्सटेंड करने के विचार आया था, तोमर जी आये थे कि गतिमान को आप ग्वालियर तक लेकर आओ| तो मैं ऐसे ही नक्शा देख रहा था तो मैंने थोड़ा आगे झाँसी देखी, तो मैंने कहा फिर अगर ग्वालियर तक लेकर जा रहे हैं तो इसको अगले स्टॉप झाँसी भी लेकर जाते हैं| तो अधिकारियों की तो सोच अलग ढंग की होती है तो उन्होंने तुरंत शूट-डाउन कर दिया कि नहीं वह पॉसिबल नहीं है, वहां पर यह सब प्रॉब्लम है, वह है, फलाना-ढिमका| मैंने कहाँ, नहीं, यह करना है अब रास्ता आप निकालो और मुझे शायद बताया गया पहली अप्रैल से या कब से वह ग्वालियर से आगे झाँसी तक जानी शुरू हो गयी|

तो शायद पहली बार एक इतनी प्रीमियम ट्रेन बुंदेलखंड में टर्मिनेट होगी, और originating और terminating station का अपना एक महत्व होता है, तो ग्वालियर लेकर जाने को तो मैंने तुरंत agree किया क्योंकि सीधा अटल जी के साथ जुड़ा हुआ रहता है, ग्वालियर तो हमारे मन में सीधा अटल जी के साथ जुड़ता है| तो साथ में मैंने कहा नाना जी के साथ और अटल जी और नानाजी का जो अटूट रिश्ता था उससे तो हम सब अवगत हैं अच्छी तरीके से|

तो यह गतिमान एक प्रकार से दोनों ग्वालियर और झाँसी को जोड़ते हुए एक नया मेसेज देगी कि हमारे लिए कैसे जो aspirational districts हैं उसकी क्या महत्व है इस देश के लिए, इस सरकार के लिए| वैसे तो दीनदयाल जी का नाम ही मेसेज था – दीन-दयाल – सबकी चिंता करने वाला दयालु व्यक्ति, और रेलवे से उनका एक और जुड़ाव था कि उनके मामा भी रेलवे में थे, शायद नाना भी रेलवे में थे, दोनों रेलवे में थे| एक जगह तो मैं होकर आया हूँ, जयपुर के पास कौनसी है वह? धानक्या तो मैं होकर आया हूँ जब तिरंगा यात्रा में सौभाग्य से मेरी ड्यूटी जयपुर रूरल में लगी तो हमने हमारी तिरंगा यात्रा का समापन ही धानक्या में किया और उनका घर भी देख के आया जहाँ पर शुरू के जीवन में वह रहे हैं और उनके पिताजी भी शायद, भगवती प्रसाद जी भी असिस्टेंट स्टेशन मास्टर थे जालेसर में|

तो इतने सारे संजोग पंडित जी के जीवन से अब मेरे साथ जुड़ते जा रहे हैं कि शायद वह अपने आप में, it’s both very motivating but it’s also a great check on me कि मैं कभी भटकूँ नहीं पंडित जी के दिखाए हुए रास्ते से| और मेरे रेलवे के कार्यकाल में भी जिस प्रकार से ऊर्जा के क्षेत्र में हमने कोशिश की कि हर गाँव-गाँव तक, हर घर-घर तक बिजली पहुंचे, वैसे ही रेलवे में भी यही हमारी कोशिश रहेगी कि कैसे गरीब से गरीब व्यक्ति जिसका साधन है, रेलवे अगर देखें तो आहिस्ते-आहिस्ते एक वर्ग है जो हवाई जहाज़ की तरफ जा रहा है लेकिन देश का सामान्य मानव तो आज भी रेलवे के ऊपर निर्भर है, कैसे उसकी सुविधाएँ सुधारी जा सकें|

और अभी-अभी हमने एक निर्णय लिया कि रेलवे की, और मैं अभी कावेरी एक्सप्रेस या किस में जा रहा था मैसूर से बैंगलोर हाल ही में, पिछले महीने, और मैंने जो हालत देखी general unreserved compartment में मैं ट्रेवल कर रहा था साथ में, second class की जो हालत देखी और ध्यान में आया कि शायद राजधानी और दुरंतो और शताब्दी के पीछे तो सबकी चिंता लगी रहती है क्योंकि अख़बारों में तो उसी का चित्र आता है, अख़बारों में तो रिपोर्ट वही होती है| और सोशल मीडिया पर भी ज्यादा बोलने वाले लोग शायद इन्ही ट्रेनों में सफ़र करते हैं जिनको कभी खाना अच्छा नहीं लगता है या जिसको लगता है कि सफाई कम थी| लेकिन वह जो व्यक्ति है जिसकी आवाज़ सुनी नहीं जाती है उसकी चिंता करना इस सरकार की प्राथमिकता है|

तो मैंने निर्णय लिया है कि देश के पूरे 58,000 जो कोचेस हैं, 58,000 passenger coaches, और स्वाभाविक है उसमें 5-1000 ही यह प्रीमियम ट्रेन्स के हैं, 53,000 जो रेगुलर यात्री जिसमें unreserved भी हैं, general second class हैं, जनशताब्दी होंगी, जितने ट्रेन्स को सामान्य आदमी के लिए सेवा करती हैं उन सब  58,000 के 58,000 कोचेस को जब वह पीरियाडिक ओवरहॉल के लिए अगली बार जाएँगी और हर 18 महीने में उसका पीरियाडिक ओवरहॉल होता है तो हम पूरी तरीके से उसको नया पेंट करेंगे, एक्सटीरियर को सुन्दर बनाएंगे, इंटीरियर्स को सुन्दर बनाएंगे, cushioning हो, सीटों की cushioning सुधारना, उसका कवर सुधारना, flooring सुधारना| तो उसका प्रोटोकॉल बन रहा है अभी विभाग में| पर सरकार ज्यादा चिंता करेगी गरीब व्यक्ति के कोचेस पर बजाये कि सिर्फ जो ज्यादा हल्ला बोले उसी के कोचेस का सुधार करेगी यह सरकार की सोच रेलवे में भी आज आ गयी|

मुझे याद है पीछे में एक निर्णय ले रहा था कि पूरे देश के हर रेल के कोच में हम सीसीटीवी कैमरा लगायें, हर स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरा लगायें महिलाओं का बच्चों की सबकी सुरक्षा के लिए और साथ ही साथ वाई-फाई सुविधा 8000 स्टेशन पर हो देश भर में| फिर आ गए अधिकारी कि साहब, 8000 स्टेशन में तो passengers ही नहीं हैं, passengers तो 2000 स्टेशन में हैं बाकी 6000 तो दूरदराज़ के इलाकों में हैं जहाँ दिन में कभी एक ट्रेन रुकती है, दो ट्रेन रुकती है, कभी 50 लोग आते हैं स्टेशन, कभी 20 आते हैं|

मैंने कहा नहीं, वाई-फाई तो लगेगा पूरे 8000 स्टेशन पर| तो क्या हुआ यात्री नहीं आते हैं तो, आस पास के गावों के लोग उसका लाभ लेंगे, जितने आस पास के गाँव के बच्चे हैं उनको यहाँ पर लाकर हम ट्रेन करेंगे, कंप्यूटर दिखाएंगे, पूरे देश और दुनिया के बारे में उनको अवगत कराएँगे, मुफ्त में वहां सेवा देंगे आस पास के बच्चों को, महिलाओं को वहां पर बुलाकर ट्रेन करेंगे, कोशिश करेंगे वहां पर एक जन औषधि की दुकान लग जाये साथ में|

आज कल एक विषय जिसपर मैं स्वयं बहुत चिंता भी करता हूँ और मैंने सोचा है कि रेलवे को उसका माध्यम बनानी की कोशिश करेंगे, सेनेटरी पैड्स का विषय, कि क्या इन 8000 स्टेशनों पर हम छोटी जन औषधि स्टोर बनाकर सस्ती दवाइयाँ भी मिलें, सस्ते से सस्ते सेनेटरी पैड वहां पर उपलब्ध हो जाये आस पास के गावों में जाकर उसको उपलब्ध कराया जाए महिलाओं के लिए|

पता नहीं आपमें से किसी ने पैडमैन पिक्चर देखी है कि नहीं! पत्रकार मित्र सोचेंगे मेरा जैसे कोई उसमें पैडमैन में इंटरेस्ट हैं क्योंकि मैं 3-4 पब्लिक फ़ोरम्स पर बोल चुका हूँ| पर वास्तव में दिल से मानता हूँ कि आज पूरे देश में हमने यह कैंपेन चलाना चाहिए कि देश की एक भी महिला ऐसी न रहे जिसको इसका लाभ नहीं मिले| आज सर्विक्स कैंसर हो, अलग-अलग बीमारियों का जो फैलाव होता जा रहा है, आज मुझे लगता है समय आ गया है इस देश को निर्णय लेकर देश की हर महिला तक यह कैसे पहुंचे और हमारा LED model एकदम परफेक्ट है इसके लिए| आप economies of scale ले आओ इस काम में जो बड़ी-बड़ी कंपनियां बनाती हैं और इतना महंगा बेचती हैं उसके बदले इसको large scale पर अगर देश में बनाया जाये और biodegradable बनाया जाये तो मेरा अनुमान है कि यह शायद एक-सवा डेढ़ रुपये के अन्दर आ सकता है|

और मुझे याद है जब LED में मैंने कहा था कि, जब तो 310 plus taxes वगैरा में खरीदी जाती थी सरकार द्वारा, तो मैंने कहा था इसको double digit पर लाना है और मुझे याद है बहुत लोग बड़े चिंतित थे डिपार्टमेंट में कि आप 120 में बेच रहे हो यह 350-400 में तो हम खरीदते हैं, फिर खर्चे लगते हैं, आपने सब्सिडी भी उठा दी है, तो यह तो इतना loss हो जायेगा| मैंने कहा नहीं, चिंता मत करो, ईमानदारी से खरीदेंगे, बड़े पयमाने पर खरीदेंगे और जनता की सेवा में लगायेंगे यह double digit में आ जायेगा|

एक supplier’s meeting में मुझे पूछा – what do you mean by double digit? I said anything less than 99! पर आपको जानकर ख़ुशी होगी आखिर डेढ़ साल के भीतर-भीतर जो 310 plus taxes में खरीदी जाती थी वह Rs 38 plus tax में आ गयी – 87% reduction! और छोटी-मोटी कंपनी नहीं, Philips, Crompton Greaves, Philips अकेले ने 5 करोड़ दिए थे 38 रुपये में, Surya, Roshni, सब बड़ी-बड़ी कंपनियां, Osram इस दाम पर देने लग गयी|

मुझे पूरा विश्वास है अगर हम इसको एक कैंपेन के रूप में लेते हैं इसमें economies of scale ले आते हैं और मैंने देखा नहीं था पहले, गोपाल शेट्टी जी भी हैं, हमारा काफी सांसद आये हैं| हम सब सांसद भी इसपर चिंता करें, विनय जी शायद आप इसपर एक लीड ले सकते हो| और मेरा अनुमान है कि अगर 100 रुपये सालाना एक महिला को यह सुविधा पूरे साल की उपलब्ध हो जाये तो जो 25 करोड़ – it’s a guess estimate, I don’t have any statistics with me and मैंने मनेका जी से बातचीत शुरू की है थोड़ी सी – अगर 40 करोड़ या कितनी महिलाओं को यह ज़रूरत पड़ती है और 15 करोड़ को शायद उपलब्ध हो अभी तो 25 करोड़ अगर महिलाओं को यह उपलब्ध कराने का वॉल्यूम गेन करते हैं और एक टारगेट लेते हैं कि बायो-डिग्रेडेबल 100 रुपये सालाना हम सुविधा प्रोवाइड कर सकें, मेरा मानना है इस देश के अधिकांश परिवार उसको अफ्फोर्ड कर पाएंगे| अगर परिवार में तीन महिलाएं भी हुई तो रोज़ का 80 पैसे का खर्चा हुआ, 80-85 पैसे का रोज़ का खर्चा होगा तीन महिलाओं के पीछे घर में| और फिर कई लोग सीएसआर में इसमें मदद कर सकेंगे और उसके लिए रेल विभाग जो कर सकती है निशुल्क हमारी तरफ से पूरी तरीके से हम उपलब्ध कराएँगे| चाहे स्टेशन के ऊपर मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी देनी पड़ी तो आज 8000 जगह हम manufacture कर सकते हैं लोकल, self-help groups manufacture कर सकती हैं, आप ज्योति जी इसपर चिंता करिए, self-help groups, वहां की महिलाएं इसको बना सकती हैं, hygienic तरीके से बना सकती हैं, स्टेशन में छत वगैरा सब होती है|

मशीन भी कोई इतनी महँगी नहीं है, उसके लिए भी मैं और लोगों को जोड़कर, हमारे सांसद अपने MPLADS से वगैरा-वगैरा हम करके वह भी जुटा सकते हैं आसानी से, कोई बड़ी कठिनाई की बात नहीं है| तो इस सरकार की सोच पूरे समय इसमें रहती है कि कैसे अलग-अलग योजना – अब मुझे वाई-फाई तो लगाना है क्यूंकि सीसीटीवी सुरक्षा के लिए चाहिए तो वाई-फाई लगेगा, मॉडर्न सिग्नलिंग सिस्टम अगर लगाना है सुरक्षा सुधारने के लिए, लाइन कैपेसिटी बढ़ाने के लिए तो वाई-फाई तो लगेगा| क्यूँ न हम वह वाई-फाई का लाभ उन बच्चों को पहुँचाऊँ जो शायद – हम तो इस रूम में बैठे हुए सब वाई-फाई को, we take it for granted. हमारे फ़ोन में इन्टरनेट तो हमारे लिए सबके लिए बहुत नॉर्मल चीज़ है, अभी आप कुछ चीज़ किसी को विचार आये कुछ तो आप निकालकर google कर लोगे कि DRI कब स्थापित हुआ था, पीयूष ने कोई गलत डेट तो नहीं बोल दी| हो सकता है आपके मन में आये आप google करके चेक कर लोगे|

पर यह जो इतना बड़ा वर्ग है क्या उनके बच्चों को जो ट्रेन बोर्ड नहीं कर पाए एक तरीके से, मैं समझता हूँ इस रूम में हम सब कभी न कभी मूलतः हम या हमारे पूर्वज कोई न कोई गाँव से ही तो आये होंगे और अधिकांश लोग शायद ट्रेन बोर्ड करके आये होंगे| तो वह जो बच्चे रह गए हैं जो ट्रेन बोर्ड नहीं कर पाए, will they always remain left behind? या हम अब यह सब सुविधाएं गावों तक पहुंचाएं यह इस देश की सामूहिक ज़िम्मेदारी होनी चाहिए यह वास्तव में प्रश्न हम सबके सामने है और जिस प्रश्न का उत्तर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने जीवन में अपनी विचारधारा से दिया था, उसमें त्याग भी था, उसमें तपस्या भी थी, उसमें सेवा भी थी, उसमें बलिदान भी था|

और मैं समझता हूँ उन्होंने अपना स्वयं का जीवन भी बलिदान देके जो त्याग का जीवन जिया और त्याग इस कठोरता का कि थर्ड क्लास में ट्रेवल करना कि पार्टी के पास कम रहता था, संघ के पास टंचाई रहती थी तो, और साथ में यह भी कि आखिर सामान्य व्यक्ति तो थर्ड क्लास में ट्रेवल करता है, उस ज़माने में थर्ड क्लास होता था तो मैं उनकी तरह ही ट्रेवल करूँगा| और मुझे मेरे पिताजी बताया करते थे कि बहुत पार्टी के अन्दर विरोध होता था जब वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बने कि भाई अभी आप हवाई जहाज़ से जाओ, अब आप बदलो अपने तरीके, पर शायद उन्होंने कभी अपना तरीका बदला नहीं| और उसी के कारण देश को एक सपूत जो शायद एक देश की पूरी अर्थव्यवस्था में एक नया रूप आ सकता था अगर उनकी विचारधारा को देश ने और पहले एक्सेप्ट किया होता, उस मार्ग पर चले होते, वह देश ने वह मौका खो दिया|

अगर हम उनके जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर भी देखें और शायद श्यामा प्रसाद जी ने कहा था न कि मुझे अगर और दीनदयाल मिल जायें, दो दीनदयाल मिल जायें तो देश का नक्शा बदल दूंगा| वास्तव में इतनी गहरी सोच थी उनकी| और अभी-अभी एक किताब हमारे समक्ष रखी थी, तो ऐसे ही while flipping through it एक पैराग्राफ जो मुझे लगा कितना कंटेम्प्ररी है और एक प्रकार से मैं खुद को भी उसी विचार से जोड़ता हूँ । इस देश में डिबेट चलती है, ‘Should the Indian rupees depreciate or should we go for a strong currency in this country.  यह एक डिबेट रेगुलर रहती है, एक्सपोर्टर कहते है की नहीं rupee should  be  allowed  to depreciate so that एक्सपोर्ट में हमारे को ज़्यादा पैसा मिले और हमारा बिज़नेस अच्छा चले और देश में फॉरेन करेंसी आये।

मुझे याद है डॉ जोशी के साथ कई बार मेरी इसपर चर्चा होती है, हमारी भी इंटरनल जब इस पर विचार करते है तो बहुत डिबेट होती है| मेरा मानना इसमें बहुत स्पष्ट है कि यह एकदम false or wrong thinking है कि अपने देश की करेंसी को depreciate करो और उससे देश अच्छा चलेगा । पता नहीं कुछ अर्थशास्त्री इसमें विश्वास रखते है, मैं स्वयं एक्सपोर्टर रहा हूँ, मैंने बहुत एक्सपोर्ट किया है अपने बिज़नेस लाइफ में before I became  a  minister और मेरा खुद का अनुभव है की जब rupee depreciate होता है तो फॉरेन कस्टमर आपका दाम कम कर देता है | वो आर्बिट्राज आपको नहीं बेनिफिट देता है, वो अपना दाम घटाकर आपको बोलता है अब तो आपको डॉलर के लिए ज़्यादा मिलते है रुपये तो दाम और कम करो और मुझे याद है एक बार तो हमने, हम फोर्जिंग एक्सपोर्ट करते थे फाइनली एक फार्मूला बना लिया, और फार्मूला इसलिए बनाना पड़ा कि उसको फॉरेन कस्टमर को समझाना पड़ता था कि भाई ठीक है, डेप्रिसिएशन का हमें रुपये थोड़े ज़्यादा मिलते है लेकिन उसकी वजह से देश में जो भयानक महंगाई होती है उससे हमारे खर्चे बढ़ते है, जो चीज़ हम इम्पोर्ट करते है निकेल इम्पोर्ट होता था, हमें स्टील में निकेल लगता था वो इम्पोर्ट की कॉस्ट बढ़ जाती है, तो रुपये depreciate  होने का तो मुझे एक्सपोर्टर के नाते नुकसान होता था । वो buyer ले जाता था पैसे & we  were left  in  the lurch because of a depreciating rupee. और देखिये पंडित जी ने क्या कहा – “Deendayal  ji  has recommended  many  measures to arrest the dangerous deterioration of currency. We should discard unproductive expenditure, reduce establishment cost of the state machinery, arrest political corruption, change licenses & quota system & promote savings for capital formation & operationally viable price policy.”

अगर आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार के कार्यकाल को देखेंगे हमने इसमें एक-एक बिंदु पर काम किया है जो पंडित जी ने हमें बताया था  एक-एक बिंदु पर। हाल में जो बैंको के पुराने अनाप शनाप दिए हुए लोन के कारण जो थोड़ी स्तिथि नाज़ुक हुई है और जिस प्रकार से पुराने कार्यकाल में किये गए भ्रष्ट्राचारी कांड या fraud सामने आ रहे है उसकी वजह से पिछले एकाद महीने में रुपये की कीमत घटी है पर अगर आप देखें तो जब हमारी सरकार आयी थी लगभग चार साल पहले और आज में रुपये की कीमत को नियंत्रण में रखा गया है । Rupees value has not depreciated.

और पिछली सरकार ने भी रुपये को जो थोड़ा मजबूत किया आखिरी के 6 महीनो में मैं समझता हूँ यहाँ से जो यहाँ बैठे हुए जितने व्यक्ति अर्थशास्त्र समझते है, आपको ध्यान में होगा कि 2013  सितम्बर में UPA  की सरकार ने शायद 35 बिलियन डॉलर बड़े महंगे ब्याज देकर, अंतर्राष्ट्रीय ब्याज का जो दर था उससे भी महंगा ब्याज देकर लगभग 35 बिलियन डॉलर Sep  2013 में देश में लाये जिसकी वजह से थोड़ा रुपया थमा, नहीं तो एकदम गिरते जा रहा था  2010-11 के बाद से धर-धर-धर करके रुपये की कीमत गिरते जा रही थी |  उसको नियंत्रण में लाने के लिए 35  billion डॉलर very  high  interest rate पर  उस समय के RBI  का निर्णय हुआ लाने का, उस समय की सरकार कांग्रेस की सरकार और RBI ने निर्णय लिया | रुपये थमा लेकिन वह तो temporary phenomena था आखिर यह तो debt था यह कोई FDI नहीं आया था, ऋण आया था, लोन! और 2016 में हमने वह पूरा पैसा वापस कर दिया बिना रुपये को गिरने देने से, चार साल के कार्यकाल में जिस प्रकार से तेज़ गति से Foreign Direct Investment  आये देश में भारत की विश्वसनीयता बढ़ी पूरे विश्व में । $60 billion पिछले वर्ष जो FDI आया लगभग दो गुना हो गया in the three-four years that we have been in the government, उसके कारण जब वह $35 billion वापिस देने पड़े तो रुपये की कीमत घटी नहीं|

इसी प्रकार से जो पंडित जी ने बात कही थी, आप देखिए – Changing license and quota system, हमने कोई खदानें मुफ्त में नहीं दी, कोई स्पेक्ट्रम सस्ते में अपने दोस्तों को नहीं दिया, अपने MPs को नहीं दिया, अपने रिश्तेदारों को नहीं दिया, हर एक चीज़ पारदर्शिता से नीलामी करके, उसका सही मूल सरकार को मिले| और खदानों में तो केंद्र सरकार ने एक रुपया नहीं रखा, पूरा राज्य सरकारों को दिया जिससे राज्य सरकारों के पास revenue आये और देश की सेवा, जनता की सेवा कर सकें|

Arresting political corruption – इस सरकार का मूल भावना यह रही है कि भ्रष्टाचार-मुक्त भारत बनाना है, नए भारत की नींव भारत से भ्रष्टाचार मिटाने पर है| Unproductive expenditure – आखिर यह Direct Benefit Transfer आजके पेपर में मैं पढ़ रहा था, लगभग 75% subsidy, 4 लाख करोड़ जो भारत सरकार सब्सिडी देती है उसका 75% अगले वर्ष में Direct Benefit Transfer से होगा|

आज एक बड़ा कैंपेन कुछ लोग चला रहे हैं आधार के विरोध में, आधार की मूल कल्पना अटल जी के टाइम पर शुरू हुई थी एक नेशनल आइडेंटिटी हो हर व्यक्ति की, अटल जी के समय यह काम शुरू हुआ| कांग्रेस 10 वर्षों में विफल रही करने में, ऐसा नहीं कि टेक्नोलॉजी नहीं थी, ऐसा नहीं कि विचार में कोई कमी थी क्यूंकि दो नेता आपस  में लड़ते रहे| उस समय के गृह मंत्री और उस समय के टेलिकॉम मिनिस्टर के झगडे में, दो कांग्रेस नेता के झगडे में इस देश में भ्रष्टाचार भी चलता रहा और अनाप शनाप unproductive expenditure भी होता रहा| हमने उसको ईमानदारी से लागू किया और आज जन-धन अकाउंट, आधार और मोबाइल, यह JAM की trinity के माध्यम से जितनी पारदर्शिता से और जितनी सहूलियत से सब्सिडी का पैसा अन्य-अन्य स्कीमों में देश भर में सीधा लाभ जिसको मिलना है उसके खाते में आने से जो बिचौलिए चले गए, जो भ्रष्टाचार कम हुआ, मिटा, उसका लाभ सीधा देश की जनता को मिलता है| और अगर उसका – वैसे तो हम कोई प्रमाण पत्र के लिए काम नहीं कर रहे हैं, यह हमारी ज़िम्मेदारी है जिसको हम निभा रहे हैं| लेकिन उसका ही प्रमाण है कि उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक 325 सीटें भाजपा और उनके सहयोगी दलों को मिले, उत्तराखंड में 58, 70 में से, 325 403 में से| हिमाचल में सरकार आना, गुजरात में पांचवी, छठी बार विजय पाना, तीन राज्यों में त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड में विजय पाना|

और आगे आने वाले दिनों में जब कर्नाटक में भी – या मनोज जी आप तो टीवी पर बड़ा होली खेल रहे थे, अब कर्नाटक में भी केसरिया होली का समय आने वाला है और जब वह हो जायेगा तो हम ढूंढ रहे थे नक़्शे में कि पुरानी सोच कहाँ-कहाँ रह जाएगी तो ध्यान आया एक साइंस में एक टर्मिनोलॉजी है ना ‘parts per million’ जब हम टेक्नोलॉजी देखते हैं या जब हम क्वालिटी चेक करते हैं, Kaizen वगैरा से जो लोग अवगत हैं वह जानते होंगे कि टेक्नोलॉजी में एक parts per million देखा जाता है – PPM! तो पुडुचेरी, पंजाब और मिज़ोरम रह जायेगा जिसका मौका आगे आएगा|

और वह कोई जनता ने कोई और कारण से नहीं, जनता दुखी थी पुरानी व्यवस्था से, जनता को पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की चलने वाली सरकार पसंद आई, अन्त्योदय को कार्यान्वित करने वाली सरकार जो गरीब से गरीब व्यक्ति तक विकास पहुँचाने में अपने आपको समर्पित करती है, जो संकल्पित है उसका काम पसंद आया, प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व पर विश्वास है और एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों से प्रेरित जितने हम सब देश भर में कार्यकर्ता काम कर रहे हैं हम सबके काम और organizational ability को समर्थन देते हुए लोगों ने हमें जिताया है|

और मैं समझता हूँ पंडित जी के जन शताब्दी के अवसर पर इससे बड़ा कोई और हम श्रद्धांजलि नहीं दे सकते हैं पंडित जी को other than recommitting ourselves, dedicating ourselves and dedicating all these electoral victories to the service of the people, to the service of every citizen of India, irrespective of caste, creed, religion, faith. It is only when each one of us believes in our ability to change, to make a difference to the future of this country, it is only when each one of us decides that I am also responsible for what is happening in this country, it is only when each one of us takes it upon himself that I will play a role, I will define the destiny of India. मैं निमित बनूँगा देश के सुधार में, देश के भविष्य में, जब इस समाज में यह भावना जिसके लिए नानाजी ने अपने पूरे जीवन के 27 वर्ष दे दिए, 65 वर्ष की उम्र से निकलकर राजनीति छोड़कर, जिन्होंने अपना, शायद उससे भी ज्यादा समय, 1994 तक रहे| उन्होंने पूरा समय सिर्फ चिंता की तो समाज की चिंता की और जिस प्रकार से आज पूरे विश्व में हम देख रहे हैं कैपिटलिज्म फेल हो रहा है, कम्युनिस्ट विचारधारा फेल हो रही है, समाजवाद को तो पूरे विश्व ने ठुकरा दिया है, चाइना जैसा देश जो नाम के लिए कम्युनिस्ट रह गया लेकिन अपने आपको कैपिटलिस्ट बनाने के पीछे भगदड़ में चला गया| And like a person who is floating in two boats, दोनों तरफ से मार खाया, ना तो उनके समाज में कोई मूल शक्ति रही या कुछ विचारों में शक्ति रही और आज उनकी कैपिटलिस्ट फिलोसोफी भी क्वेश्चन मार्क हो गयी है|

ऐसी परिस्थिति में जो एकात्म मानववाद की जो विचारधारा जिसको लेकर भारतीय जनता पार्टी लेकर निकली है, जिसको लेकर प्रधानमंत्री मोदी जी देश में काम कर रहे हैं कैसे संपूर्ण व्यवस्था, संपूर्ण जीवन एक व्यक्ति का उसमें कैसे बदलाव आये, जीवन के हर पहलू पर कैसे चिंता की जाये, सिर्फ material wealth नहीं, पैसा सिर्फ जीवन को सुधार नहीं सकता है| आज हमारी family values हैं, traditions हैं, हमारा इतिहास है, हमारे traditions हैं, culture है, heritage है, इस सबका भी योगदान भारत के विकास में है| जिस प्रकार से एक व्यक्ति को पढाई भी अच्छी चाहिए, स्वास्थ्य भी अच्छा चाहिए, leisure भी मिलना चाहिए, recreation हो, अच्छे अवसर मिले काम करने के सरकारी पकड़ से व्यक्ति अपने आपको छुटकारा पाना चाहता है, अपने आपमें अपना जीवन अच्छा बनाना चाहता है – एक life of dignity for every citizen of this country, I think that is the commitment with which we are all working today.

पंडित जी के दिखाए हुए रास्ते पर हम सब अपने आपको rededicate करें, अपने आपको समर्पित करें इस भावना के साथ मैं धन्यवाद देता हूँ दीनदयाल रिसर्च इंस्टिट्यूट का कि कैसे उन्होंने पंडित जी के विचारों को देश के समक्ष जीवित रखा है, हम सबके लिए एक reality check के रूप में DRI काम करते जा रहा है और मुझे पूरा विश्वास है जो अर्थव्यवस्था की विचारधारा पंडित जी ने रखी थी एकात्म मानववाद की, अन्त्योदय की, देश उस पथ पर चलकर देश के हर नागरिक का विकास भी कर पायेगा, सबको साथ में लेकर विकास कर पायेगा और फिर एक बार भारत एक सोने की चिड़िया के रूप में उभरेगी जो हम सबका मैं समझता हूँ दिल ही दिल में सपना है, उस सपने को पूरा करने में हम सब लग जायेंगे, हम सब अपने आपको समर्पित कर देंगे|

बहुत-बहुत धन्यवाद|

Subscribe to Newsletter

Podcasts