Speeches

February 21, 2018

Speaking at Launch of Hindi version of Bibek Debroy’s Books, in New Delhi

विषयों में हम उनकी सलाह समय-समय पर लेते रहते हैं, उसका लाभ लेते रहते हैं बिबेक देबरॉय जी, मेरे बड़े भाई और महाराष्ट्र से ही मेरे साथ राज्य सभा में सांसद विनय सहस्रबुद्धे जी, श्री संजय चड्ढा जी, श्री ऋषिराज जी और प्रभात कुमार जी जिनके साथ लगभग मैं समझता हूँ 15-20 वर्षों में बहुत ही स्नेह का रिश्ता बना है और उपस्थित सभी भाईयों बहनों, मीडिया के मित्रों|

वास्तव में मेरे लिए आनंद का विषय आज इसलिए है कि दो किताबों का तो अनिवारण कर ही रहे हैं, लोकार्पण कर ही रहे हैं लेकिन साथ ही साथ आज बिबेक जी के भी कई नए-नए पहलुओं के ऊपर भी मुझे आज जानकारी मिली| मुझे यह ध्यान में नहीं था कि इन्होंने संस्कृत से अंग्रेजी में महाभारत और रामायण का भी अनुवाद किया है, यह वास्तव में मेरे लिए आज नयी खबर थी|

और साथ ही साथ रोज़ limericks के माध्यम से – the 5-line poetry, यह नए-नए विषयों पर अपने विचार उजागर करते हैं, और he makes it very interesting. Anuj, we should have noted that through our Twitter handle I think. But I would like to read one of his recent limericks on the 13,000 absentee officers.

आपको ध्यान में होगा कई अफ्सरान तनख्वाह लेते थे लेकिन काम पर नहीं आते थे, अपना रेजिस्टर में अटेंडेंस मार्क हो जाती थी| उसपर जो हमने रोक लगाई तो उसको बिबेक जी ने लिखा – “13,000 is quite a lot and railways plans to probe the plot, employees without sanctioned leave hitherto got a reprieve, they will now be put in a spot.”

And I really think that in such a succinct five liner, short verse he has been able to bring out a malaise that the country has suffered for, I don’t know, how many years, but somehow we needed the Modi government to come in and set some of these things right. Only on that point Bibekji, एक आपसे मैं शिकायत भी करना चाहूँगा| मुझे लगता है आप जैसे मित्रों ने जो रास्ता बताया कि हमने देश को सुधार करना चाहिए, देश में बदलाव लाना चाहिए, देश में जो यह गलत-गलत काम हो रहे हैं और बरसों से चले आ रहे हैं उसपर रोक लगानी चाहिए, जो पुराना ढंग था काम करने का उसको बदलकर एक ईमानदार रास्ता देश में चलाना चाहिए| और यह 2014 में आपने किताब लिखी थी, रेलवे की बात पर बाद में आऊँगा पर ‘भारत वापिस पटरी पर’ और प्रधानमंत्री जी से आपने लोकार्पण करा लिया और शायद मुझे लगता है प्रधानमंत्री जी ने यही सब किताबें पढ़-पढ़कर यह काम शुरू किया कि जो लोग देश के बैंकों को लूटते थे, जो लोग भ्रष्टाचार करते थे उन सबको पकडके एक-एक को कटघरे में खड़ा करना, उन सबका पर्दाफाश करने का जो काम शुरू किया उसपर आज बजाये कि हमारे मीडिया के बंधु प्रधानमंत्री को धन्यवाद दें, देश के लोगों के साथ अपनी बात को जोडें कि यह अच्छा काम हो रहा है – उल्टा हमें कटघरे में खड़ा करके पूछ रहे हैं कि यह आपने पर्दाफाश क्यों किया? यह आपने उजागर क्यों किया बैंकों में किस प्रकार से लोन दिया जाता था, यह आपने क्यों लोगों को गलत लोन लेने से रोका?

Credit growth has fallen, स्वाभाविक है it will fall, because we are not giving credit to scamsters anymore, private investment has come down. स्वाभाविक है कि वह demand-supply के हिसाब से, ईमानदार व्यवस्था से जो लोग eligible हैं उनको लोन मिलेगा वह प्रोजेक्ट लगेंगे| ऐसा तो नहीं हो सकता है कि लोग अनाप शनाप लोन लेते रहें जिसकी वजह से 2004 और 2014 के बीच लगभग 3 गुना हो गया लोन बुक बैंकों का – 18 लाख करोड़ से 54 लाख करोड़ रुपये लोन बढ़-बढ़कर 3 गुना हो गए| उसके बलबूते पर ही अगर ग्रोथ करना है, विकास की दर को तेज़ करना है, वह तो बहुत आसन है, हम और उठाकर लाखों करोड़ रुपया लोन सबको बाँट दें, एक false sense of growth, false sense of demand सब जगह दिखने लगेगा, कोई प्रोजेक्ट लगना नहीं है, आधे से ज्यादा प्रोजेक्ट sick हो जाने हैं, आधे से ज्यादा प्रोजेक्ट्स में cost over-run होते ही जायेगा, बढ़ते ही जायेगा क्योंकि नियत है ही नहीं ख़त्म करने की|

अब उन सबको रोक लगाना, उस तरीके की प्रथाओं को बंद करना यह आपने सीख ‘भारत वापिस पटरी पर’ किताब के माध्यम से हम सबको दी| और मैं समझता हूँ उसको ईमानदारी से फॉलो करने का जो काम किया इस सरकार ने उसका नतीजा है कि आज देश के समक्ष एक ईमानदार व्यवस्था देश को मिली है, देश के समक्ष जो असलियत है कई लोगों की सामने आ रही है और उसपर तेज़ गति से कार्रवाई हो रही है|

एक प्रकार से जब यह किताब को मैं भी देख रहा था तो एक और किताब का ध्यान में आया, एक महिला किरण देसाई जी ने, she is a Man Booker Prize winning author. उन्होंने एक लिखा है ‘Inheritance of Loss’ और उसकी जो main theme है, of course, subject अलग है, but उस theme का जो सार है, Inheritance of Loss का वह सार है कि, migration से जोड़कर लेकिन सार उसका यह था – ‘Living between two worlds, living between the past and the present. और उन्होंने एक यूरोप की कहानी और एक भारत की कहानी का interplay करके उसको जोड़ा है|

पर वास्तव में एक प्रकार से हमारे सामने भी यही परिस्थिति है, we are living between two worlds, एक अतीत है, एक past है जिसमें भ्रष्टाचार had become a way of life, जिसमें व्यवस्थाएं किसी एक उद्योगपति के लिए या किसी एक समूह के लिए बनाई जाती थी बजाये कि देश हित को सामने रखना, जनहित को सामने रखना, गरीबों के हित को सामने रखना| और यह जो ट्रांसफॉर्मेशन है पुरानी व्यवस्था से नयी व्यवस्था के बीच यह जो काम आज सरकार ने अपने जिम्मे लिया है, शिकायत मैं कोई लिटरली शिकायत नहीं कर रहा था, वास्तव में आपका धन्यवाद कर रहा था| लेकिन शिकायत एक प्रकार से किस की तरफ निशाना था वह मैं समझता हूँ इस रूम में बैठे हुए सभी लोग भलीभांति समझ गए होंगे|

परन्तु सही बात है, भारत को भी पटरी पर लाना है और भारतीय रेल को भी पटरी पर लाना है, यह twin objectives में बहुत interplay है, बहुत जुड़ाव है क्योंकि भारतीय रेल वास्तव में भारत की आत्मा है| एक प्रकार से जिस प्रकार से खून हमारे पूरे शरीर में हर हिस्से, कोने-कोने तक जाता है, भारतीय रेल का भी ऋषि जी ने जो बताया पूरे देश में जो समावेश है, पूरे देश को एकजुट करता है| और अब तो हम कश्मीर तक रेल को बढ़ाते जा रहे हैं, वहां पर पूर्वी भारत में, नॉर्थ-ईस्ट में पूर्वी उत्तर भारत में तेज़ गति से विकास हो रहा है, अब तो राजधानी भी त्रिपुरा से शुरू होकर दिल्ली की तरफ आ रही है|

तो वास्तव में एक पूरे देश को जोड़ने वाली जो एक कड़ी और जो भारत की अर्थव्यवस्था को भी तेज़ गति से बढ़ावा देती है ऐसी भारतीय रेल में एक नयी सोच, नया काम करने का ढंग, एक नया तेज़ गति से काम करने का तरीका, इसको लाने में हम सब जुटे हुए हैं| श्री सदानंद गौड़ा जी, श्री सुरेश प्रभु जी ने जो नीव रखी थी भारतीय रेल को एक नए रूप से डेवेलोप करने की, उसकी प्रगति, उसका विकास करने की उस काम को मैं और आगे बढ़ा रहा हूँ, उसको गति देने का प्रयास कर रहा हूँ|

आपके कई सुझाव अलग-अलग समय पर हमको भी मिलते रहते हैं, आपकी जो कमिटी की रिपोर्ट थी उसको पूरा गहराई से हमने स्टडी करके मैं उसपर एक एक्शन टेकेन रिपोर्ट बनाने के काम को शुरू किया है जो रेलवेज में आप सभी जानते हैं कई रिपोर्ट्स आई हैं अलग-अलग समय पर| अब हमारा ऑफिस वहां पर एक एक्शन टेकेन रिपोर्ट, हर विषय के ऊपर क्या काम अभी तक हो चुका है और आगे चलकर क्या काम होगा और कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिसपर हमारा मानना है कि नहीं करा जा सकता है या नहीं करने की आवश्यकता है या नहीं करना चाहिए वह भी हम उस रिपोर्ट में उजागर करेंगे, किन विषयों पर हमारी सहमति नहीं है कि इसको हम आगे बढ़ाएंगे| और मैं समझता हूँ यही वह हेलथी स्पिरिट है जिसका ज़िक्र आपने भी अभी किया विद्युतीकरण के मामले में|

As regards the electrification of the railways, Bibekji very rightly pointed out, और यह मैंने कई बार यह विषय मेरे पत्रकार बंधुओं को भी बताया, this government is not ostrich in our approach. We don’t stand on prestige कि किसी को एक आइडिया आ गया तो बस that is the last word, my way or the highway. यह हमारा काम करने का ढंग ही नहीं है, और ऐसे ही बिबेक जी भी हमको समय-समय पर नए-नए सुझाव, नए प्रश्न, नए विचार देते रहते हैं और वैसे ही हम अलग-अलग विषयों पर अपने विचार रखते हैं| और जब सबके विचार आते हैं उन सब विचारों से सोच भी अपनी और मज़बूत होती है, सोच में परिवर्तन होता है, सुधार हो सकता है|

और ऐसा तो कोई ज़रूरी नहीं है कि हर एक चीज़ में ‘I am perfect.’ आखिर भारत का संविधान भी देखें तो वह संविधान बनाते वक्त जैसे पूरे विश्व के अलग-अलग संविधान को लेकर एक यूनीक भारत की पहचान बनी जिसके लिए मैं समझता हूँ यह देश ज़िन्दगी भर, इस देश की पूरी आयु के लिए भारत रत्न बाबासाहेब अम्बेडकर जी के कृतज्ञ रहेगा, उनके दिखाए हुए रास्ते पर चलेगा| And we will forever remain obliged to Babasaheb Ambedkar for really giving this nation such a powerful constitution, taking the best from across the world.

And today that is what the Indian Railways is doing. We take ideas from former colleagues in the railways; we take ideas from people who have travelled the world, who have experience of different rail systems in the world.

मैं अभी-अभी यहाँ आने के पहले Siemens के साथ दो घंटे बैठा था, अलग-अलग विषयों पर हम चर्चा कर रहे थे जिसमें बहुत सारी नयी चीज़ें मुझे सीखने को मिली| इस कार्यक्रम के बाद Bombardier के साथ बैठूँगा कुछ और चीज़ें सीखने को मिलेंगी, फिर दोनों के बीच टकराव करवाऊंगा, टकराव में से एक दूसरे की खामियां सीखने को मिलेंगी| फिर तीसरी कंपनी को जोडूंगा, फिर तीनों के बीच टकराव कराऊंगा|

But it’s all in the healthy spirit of competition and getting the best for the people of India. आखिर जितना ज्यादा इन सबके बीच competitive spirit बनेगी उतनी अच्छी रेलवे को नयी technologies मिलेंगी, उतने कम दाम पर हमको, कम निवेश में हम उन technologies को भारतीय रेल में लगा पाएंगे| और practical solutions जो unique होंगे भारत के लिए, जो भारत के परिप्रेक्ष्य में relevant होंगे जिसका भारत के system में fitment ठीक होगा, उसको भारत में introduce करेंगे|

आखिर अगर यूरोप में या अमेरिका में कोई rail system चलता है वह always ज़रूरी नहीं है भारत में suitable हो लेकिन क्योंकि वह जापान, अमेरिका, यूरोप में चलता है उसको भारत कभी लाभ ले ही नहीं सकता यह उतना ही नुकसानदायक है यह सोच जो अभी ऋषि जी अपने मेट्रो के अनुभव से बता रहे थे और कुछ मात्रा में जो बुलेट ट्रेन से भी जुड़ता है| क्या भारत के लोग ज़िन्दगी भर बैकवर्ड रहने के लिए अपने आपको निर्भर बना दें, बेबस बना दें? या भारत के लोगों की भी जो आकांक्षाएं हैं, अपेक्षाएं हैं अपनी सरकार से, व्यवस्थाओं से कि उनको भी वर्ल्ड-क्लास फैसिलिटी भारत में मिले|

यह चुनौती रहती है हर पालिसीमेकर की, हमारा मानना है कि भारत की जनता का अधिकार है कि उनको सुरक्षित यात्रा मिले, सुविधाजनक यात्रा मिले, गति तेज़ हो, सुविधाएं अच्छी हो, पूरा जो सिस्टम है वह सुरक्षित तरीके से चले और यह सब किया जा सकता है, मेरा मानना है कि यह सब किया जा सकता है और भारतीय रेल को शायद विश्व का सबसे अच्छा रेल जो करीब-करीब 865 करोड़ यात्राएं सालाना भारत की जनता के लिए समर्पित करता है| ऐसी बड़ी भारतीय रेल अच्छी तरीके से काम करे, अच्छी तरीके से जनता की सेवा करे यह पूरी तरीके से संभव है और यह करने के लिए हम सब प्रतिबद्ध हैं, हम सब संकल्पित हैं|

वास्तव में अलग-अलग विषयों पर तो काम हो ही रहा है, सिग्नलिंग में हमने आप सबसे शेयर किया किस प्रकार से नयी सोच से आगे सिग्नलिंग में हम काम कर रहे हैं, स्टेशन डेवलपमेंट के नए मॉडल के ऊपर कैसे गति लायी जाये जिससे passengers को सुरक्षा भी मिले, स्टेशन पर कम्फर्ट भी मिले, CCTV cameras और वाई-फाई के पीछे latest technologies कैसे सिस्टम में लायी जाये इसके ऊपर हम अलग-अलग लोगों से चर्चा करके सीख रहे हैं|

मेरे ख्याल से जो यह नयी सोच से आज रेलवे चल रही है, जिसमें हम stakeholder consultation को प्राथमिकता दे रहे हैं और stakeholder से समझके ले रहे हैं कि कैसे competition बढ़ाया जाये, कैसे cost-effective, relevant solutions India के लिए बनाये जायें, इसका आने वाले दिनों में बड़े रूप में लाभ होगा| और जिस प्रकार से 160 वर्ष आज भारतीय रेल इस देश की जनता की सेवा कर रही है, आगे आने वाले दिनों में वह और अच्छे रूप से, और सुचारू रूप से जनता की सेवा कर सके इसके लिए हम सब दिन और रात काम करके इसको सुनिश्चित करने में पूरी तरीके से लगे हुए हैं|

आपने महात्मा गाँधी जी का विषय किया कि वह रेल से ट्रेवल करते थे, वास्तव में रेलवे को समझने के लिए रेल में ट्रेवल करना और उसमें जनरल कम्पार्टमेंट में ट्रेवल करना अपने आपमें पूरी कहानी को आपके सामने रखता है और जनता की आशाएं और जनता की सोच भी आपके सामने रखता है| आपने कावेरी एक्सप्रेस में जो मैं अभी-अभी गया था उसका ज़िक्र किया, by the way, उसकी पूरी ट्रेन के हर डिब्बे में मैं गया और क्योंकि जनरल कम्पार्टमेंट में vestibule नहीं है, कनेक्टेड नहीं है और एक शुरू में था एक आखिरी में था तो अगले स्टेशन पर उतरके मैं जनरल कम्पार्टमेंट में गया कि वहां के लोगों से भी मिल सकूं, उनकी भी फीडबैक ले सकूं, उनसे भी समझ सकूं और खुद देख सकूं कि इसमें क्या सुधार करने की आवश्यकता है|

और वास्तव में मेरे लिए it was an eye-opener. और आप सबसे बताते ख़ुशी होती है कि अब हमने निर्णय लिया है कि जब-जब यह हमारे एक-एक कोच, उसके लिए जायेंगे, POH (Periodic Overhaul) हर 18 महीने में हर कोच Periodic Overhaul (POH) के लिए जाता है| तो जैसे-जैसे यह कोचेस POH के लिए जायेंगे बजाये कि patchwork  काम करना उसमें, हम उसको पूरा एक नया coat of paint  देंगे जिससे बाहर से सुन्दर लगनी शुरू हो हमारी पूरी रेल गाड़ियाँ और interiors में भी बजाये कि just very tinkering effect on patchwork  करने के उसको भी कैसे हम और अच्छी तरीके से सुधार कर सके, उसके लिए और budget allocate करके हम ट्रेन के interiors को भी सुन्दर करना, उसको थोड़ा contemporary बनाने का काम हर POH में करेंगे यह निर्णय मैंने कावेरी एक्सप्रेस के जनरल कम्पार्टमेंट को विजिट करने के बाद यह निर्णय हाल ही में लिया है|

साथ ही साथ टॉयलेट्स के ऊपर दो प्रकार से काम चल रहा है, एक तो बायो-टॉयलेट हम चेंज कर ही रहे हैं और मुझे लगता है लगभग आधे से अधिक टॉयलेट्स बायो-टॉयलेट्स में कन्वर्ट हो गए हैं| बाकी के लिए अभी दो वर्ष का बैलेंस समय है मैं कोशिश कर रहा हूँ उसको और aggressively  करके  based on whatever is the maximum production we can procure उसको भी और advance करने की, उसको और जल्दी करने की कोशिश कर रहे हैं|

साथ ही साथ एक second step शुरू किया है, वैक्यूम टॉयलेट्स, जैसे हवाई जहाज़ में होता है, एक 500 वैक्यूम टॉयलेट्स का हमने ऑर्डर दिया है as a pilot, और वह एक बार successful हो जाये तो मेरी खुद की इच्छा है कि भारतीय रेल में हर टॉयलेट को अगर हम वैक्यूम टॉयलेट बना दें तो एक permanently हमारे ट्रैक्स भी ठीक हो जायेंगे, ट्रैक्स पर मल नहीं जायेगा जिससे आजके दिन हमें track renewal की बड़ी समस्या बहुत झेलनी पड़ती है, साथ ही साथ smell की प्रॉब्लम चली जाएगी और cleanliness सुधर जाएगी, सुन्दरता और स्वच्छता सुधर जाएगी|

तो इसपर भी हम काम कर रहे हैं, और यह मैं स्पष्ट कर दूं कि जितने यह सब काम हम प्रोजेक्ट्स दे रहे हैं यह कोई राजधानी, दुरंतो और शताब्दी के लिए सिर्फ नहीं है, यह हर एक ट्रेन के लिए हैं, जनरल कम्पार्टमेंट से और सेकंड क्लास स्लीपर से शुरू होकर इस काम को करेंगे| तो कोई यह गलतफ़हमी में न रहे कि यह कोई प्रीमियम ट्रेन्स के लिए है, यह गरीब से गरीब व्यक्ति, सामान्य व्यक्ति जिस ट्रेन में जाता है उससे अधिक करने की आवश्यकता है ऐसा मेरा मानना है और ऐसा इस सरकार की सोच है|

भारत की पल्स को समझने के लिए जो यह अलग-अलग अवसर मिलते हैं, ट्रेन में जाने की, ट्रेन में लोगों को मिलने की इसके लिए वास्तव में मैं जनता का शुक्रगुजार हूँ, जनता को धन्यवाद देता हूँ जो फीडबैक देते हैं, जो ईमानदारी से अपनी बात हिम्मत से हमारे सामने रखते हैं| आप सबसे भी अनुरोध है और आप जानते हैं कि जब भी कोई विषय और मेरे यह विद्युत मंत्रालय के समय से मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, जब भी कोई विषय जिसमें सुधार की संभावना है या हमारे काम में कुछ कमियां हैं उसको ठीक से रिसर्च करके हमारे सामने रखा जाता है या पत्रकारों में टीवी पर, पेपर्स पर इसकी चर्चा होती है, I am the first person to welcome it and to learn from it.

कभी-कभी दुःख होता है जब जाने-अनजाने में और आधी-अधूरी बातचीत समझकर कुछ लोग sensationalize करने की कोशिश करते हैं | उसमें ज़रूर यह दुःख होता है कि अच्छा होता अगर हमसे चर्चा करते, कोई अधिकारी से officially चर्चा करते, यह unnamed sources का तो कोई मतलब ही नहीं है| आपमें से जो-जो unnamed source-based reports डालते हैं, कुछ लोग smile कर रहे हैं उनको ध्यान में आ रहा है कि उनके ऊपर मेरी टिप्पणी है| यह unnamed source का तो कोई मतलब ही नहीं है, यह तो anonymous complaint की तरह है, मैं बोल सकता हूँ कल को कि एक unnamed source ने मुझे बोला है फलाना-फलाना पत्रकार रिश्वत लेकर कहानियाँ लिखता है, unnamed source है| अच्छा लगेगा क्या आपको?

आप सोच लीजिये इसके बारे में| हाँ, पर मैं भी नहीं quote करूँगा, मैं बताऊंगा कि मुझे एक unnamed source ने बताया आपके बारे में कुछ चीज़ें, अच्छी लगेगी आपको? तो छानबीन होनी चाहिए, रिसर्च होना चाहिए, officially आप quote लो ना, official stand समझो| अगर बिबेक देबरॉय जी के नाम पर कुछ आप लोग कहानियाँ बना रहे हो तो उनको चर्चा करो, मिलो, कोई एक दिन बाद आएगी रिपोर्ट तो उसमें कोई पहाड़ नहीं टूट जाने वाला है| पर अनाप शनाप खबरें और आखिर हम सब चर्चा में तो जैसा मैंने शुरुआत में कहा हम चर्चा करते रहें इसमें तो देश का हित है लेकिन नासमझी अगर किसी की है तो वह नासमझी को आप कोई unnamed source के नाम पर तो मत उजागर करके जनता को बहकावे में रखिए|

आखिर आप समझिये आप भी एक ज़िम्मेदार अंग हो भारत की डेमोक्रेसी का, आपके ऊपर भी ज़िम्मेदारी है, यह सिर्फ 24*7 ब्रेकिंग न्यूज़ की कहानी नहीं है, ज़िम्मेदारी है, जो आप लोग काम करते हैं| जैसे मेरे ऊपर ज़िम्मेदारी है, जैसे बिबेक जी के ऊपर है, विनय जी के ऊपर है, प्रभात जी के ऊपर है, कोई अनाप शनाप किताबें कल अगर छापने लग जायें तो मेरे जैसा व्यक्ति थोड़े ही आएगा इनके कार्यक्रम में|

तो मैं समझता हूँ उचित रहेगा, और इसका यह मतलब नहीं है, I am not trying to stop you from reporting anything, please do report. And as I said, I love criticism, because it helps me to learn. But business stories के ऊपर ज़रा सा थोड़ा रिसर्च करके और unnamed sources के बदले named source करने का साहस अगर आप रखेंगे तो मैं समझता हूँ दोतरफ़ा यह कहानी भारत को वास्तव में पटरी पर लाने में एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है|

बहुत-बहुत धन्यवाद|

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