Speeches

December 14, 2017

Speaking at a press conference on UPA Govt’s NPA Scam, in New Delhi

मित्रों, आज कांग्रेस के दो प्रमुख नेताओं ने एक प्रेस वार्तालाप में बहुत ही अनाप शनाप कुछ बैंकों के संबंध में और एनपीए के संबंध में कमेंट्स किये जो वास्तव में सच्चाई से बिलकुल परे थे| उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि जो माननीय प्रधानमंत्री जी ने कल बात रखी फिक्की के कार्यक्रम में विज्ञान भवन में कि बैंकों के एनपीए में जो बहुत बड़ा घोटाला हुआ और आज जो बैंकों की हालत ख़राब हुई है उसकी ज़िम्मेदारी सीधा-सीधा माननीय प्रधानमंत्री जी ने कांग्रेस के यूपीए शासन के दौरान indiscriminate lending, बिना ठीक से      appraisal करे, बिना ठीक से देखे जो बहुत भारी मात्रा में लोन दिए गए खासतौर पर 2008 से 2014 के दौरान उसकी वजह से आज बैंकों की हालत ख़राब है और एनपीए का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है|

इस बात के ऊपर कुछ कांग्रेस के नेताओं ने रिज़र्व बैंक के आंकड़ों का हवाला देते हुए कोशिश की कहने की कि यह एनपीए का फिगर भारतीय जनता पार्टी, एनडीए के तीन वर्ष के कार्यकाल में बढ़ा इसलिए हम ज़िम्मेदार हैं एनपीए के लिए| मुझे लगा इसका थोड़ा स्पष्टीकरण आपके सामने रख दूं| माननीय वित्त मंत्री एक कार्यक्रम में हैं अभी फिक्की के इसलिए वह नहीं आ पा रहे थे तो सरकार की तरफ से मुझे यह ज़िम्मेदारी दी गयी कि मैं correct perspective आपके सामने रखूं|

एक अच्छा मज़बूत बैंकिंग सेक्टर बहुत ज़रूरी होता है अर्थव्यवस्था के लिए और देश और दुनिया में चिन्ता थी कि बैंकों की स्थिति असलियत में क्या है| और माननीय उर्जित पटेल जो रिज़र्व बैंक के गवर्नर हैं उनके बयान से मैं शुरू करना चाहूँगा उन्होंने हाल में ही कहा – “NPAs have been plaguing banks for long, but the issue was being recognized only recently, therefore, this is a legacy issue, although the recognition and reporting of these have taken place only recently.” यह रिज़र्व बैंक के माननीय गवर्नर का स्टेटमेंट है|

यानी यह एनपीए की समस्या तो विरासत में हमें मिली और कई वर्षों से असलियत में ऐसे कई एकाउंट्स थे जो एनपीए होने चाहिए थे लेकिन बैंक्स उनको कारपेट के नीचे डालती थी, ever-greening करती थी, roll over करती थी बजाए कि असलियत दिखाना कि हाँ 90 दिन हो गए, इन्होंने ब्याज भरा नहीं है इसलिए यह एनपीए होना चाहिए जो रिज़र्व बैंक की कानूनी प्रक्रिया है कि जो भी अकाउंट इर्रेगुलर हो जाये और 90 दिन के अन्दर उस अकाउंट को रेगुलर न करें, यानी उसका जो ब्याज देना है उसकी जो रीपेमेंट है, अगर 90 दिन में उसको समय पर न पे करें तो अकाउंट इर्रेगुलर होता है, एनपीए की केटेगरी में जाता है|

लेकिन दुर्भाग्य से इस सरकार के आने के पहले जो अकाउंट एनपीए होते थे उनको असली मायने में एनपीए दिखाया नहीं जाता था, छुपाया जाता था कांग्रेस के कार्यकाल में| और वह छुपाके ever-greening करके, roll over करके ऐसा दिखाया जाता था कि अकाउंट को हमने रेगुलर कर दिया| उदाहरण के लिए किसी अकाउंट को 500 करोड़ रुपये भरने हैं ब्याज और रीपेमेंट और तारीख नजदीक आ रही है तो या तो एक नया लोन दे दो 500 करोड़ का जिससे वह पुराने अकाउंट में भर दे और बता दे कि देखो मेरा अकाउंट रेगुलर है, या उसको अन्य-अन्य restructuring के माध्यम से और उसमें corporate debt restructuring, special debt restructuring, stressed debt restructuring – अलग-अलग प्रावधान का इस्तेमाल करते हुए जो असली में अकाउंट की क्षमता ही नहीं थी लोन वापिस देने की या ब्याज भरने की उनको restructuring के माध्यम से छुपाया जाता था एनपीए को और दिखाया जाता था जैसे अकाउंट रेगुलर है| इस बात को उर्जित पटेल जी ने कहा कि यह एनपीए की समस्या कई वर्षों से बैंकों को सता रही थी, तंग कर रही थी – plaguing the banks.

पर आज इस सरकार के आने के बाद, 2014 के बाद असली स्थिति आज हमने देश-दुनिया और जनता के सामने रखी है| तो एक विरासत में पाया गया गलत काम कांग्रेस का अब हमने उसको सही मायने में उसकी असलियत, उसका पर्दाफाश किया और उसकी सही मायने में एनपीए के माध्यम से रिपोर्टिंग हुई| और यह मैं क्यों कहता हूँ?

आपको जानकर हैरानी होगी जो आंकड़े मैं आपके समक्ष रखने वाला हूँ| मार्च 2008, कांग्रेस की सरकार थी, मार्च 2008 में कुल बैंकों का ऋण मात्र 18,16,000 करोड़ था| 18.16 lakh crore was the total lending, as on March 2008. और यही आंकड़ा मार्च 2014 में मात्र 6 वर्षों में बढ़कर 52,15,000 करोड़ हो गया|

स्वाभाविक है आपमें से जो लोग बिज़नेस और बैंकिंग और एकाउंट्स देखते रहते हैं वह जानते हैं कि बैंकों को तो प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग जो 40% करनी होती है वह किसी भी वर्ष में नहीं कर पाए हैं| तो ऐसा नहीं है कि यह आंकड़ा बढ़ा तो इसमें कोई गरीबों को लोन दिया, किसानों को लोन दिया जो मध्यम वर्गीय हैं उनको लोन बड़े मात्रा में दिया है, यह सब corporate lending indiscriminately की गयी है, बड़े-बड़े उद्योगपतियों को 2008 से 2014 के बीच भारी मात्रा में, लगभग आप देख रहे हैं तीन गुना हो गया 6 वर्षों में, 18 लाख से बढ़कर 52 लाख – लगभग तीन गुना लेंडिंग हो जाना 6 वर्षों में| अर्थव्यवस्था कोई इतनी नहीं बढ़ी है, आप तो जानते हैं कि 2011-12, 2013-14 में तो अर्थव्यवस्था घटते जा रही थी, सिर्फ महंगाई बढ़ रही थी| जीडीपी ग्रोथ तो नंबर्स अगर आप देखें तो जीडीपी ग्रोथ तो घटते जा रही थी|

ऐसी परिस्थिति में जब एक तरफ तीन गुना लोन्स दिए गए 2008 से 2014 के बीच, उस समय में 2012 का आंकड़ा देखो तो मात्र पौने सात परसेंट जीडीपी ग्रोथ थी, 2013 में वह घटके सवा पांच, साढ़े पांच परसेंट हो गयी, 2014 में भी 6% के आस-पास थी| तो इस पूरे पीरियड की जीडीपी ग्रोथ के सामने अगर क्रेडिट ग्रोथ देखें तो यह साफ़ दर्शाता है कि कांग्रेस के शासन के समय indiscriminate lending, गलत कंपनियों को भारी मात्रा में उनकी लोन लेने की क्षमता से भी अधिक लोन दिए गए, लोन ख़राब हुए, एनपीए हुए, स्ट्रेस हुए तो उस असलियत को सामने दिखाया नहीं गया और balance sheets को cover-up operation, कारपेट के नीचे डाल दिया गया जो लोन एनपीए होना चाहिए था, नया लोन देकर या रिस्ट्रक्चर करके उसको अकाउंट को ठीक, रेगुलर अकाउंट बताया गया|

और इस तरीके से यह माननीय प्रधानमंत्री जी ने सही बताया कि लोन अनाप शनाप बेबुनियाद लोन दे-देकर बैंकों के ऊपर यह बोझा बढ़ाया गया, यह सबसे बड़ा स्कैम इस देश की अर्थव्यवस्था के साथ कांग्रेस के शासन में हुआ, असलियत यह है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों ने इक्विटी कैपिटल पर्याप्त न होने के बावजूद बैंकों से लोन लिए, अलग-अलग अकाउंट में लोन लिए, एक अकाउंट जिसके प्रमोटर को तो हाल में गिरफ्तार करना पड़ा सीबीआई को उसने 11 अलग-अलग अकाउंट में 11,000 करोड़ से अधिक रुपये ले लिए|

यह सब कांग्रेस के 2014 तक के शासन की कहानी बता रहा हूँ| उसमें से एक पॉवर प्लांट भी था जब मैं पूर्व में ऊर्जा मंत्री था तब एनटीपीसी को भेजा स्टेट बैंक के आग्रह पर कि जाकर देखो अगर यह बैंक ने टेकओवर किया, अगर एनटीपीसी लेके पॉवर प्लांट लगा सकता है, तो बैंक का आउटस्टैंडिंग 4000 करोड़ था 2014 तक, एनटीपीसी के अधिकारियों ने कहा इसके लिए तो हम 600 करोड़ रुपये भी नहीं दे सकते हैं, कुछ ज़मीन पर खर्चा ही नहीं हुआ है|

और इसलिए 2015, अगस्त, में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने एक नयी प्रक्रिया शुरू की, Asset Quality Review (AQR) और जितने पुराने बेईमानी से दिखाए हुए रेगुलर एकाउंट्स, जितने पुराने एकाउंट्स जो वास्तव में एनपीए होने चाहिए थे 2014 के पहले, जिनको छुपाया गया था, शायद कुछ राजनीतिक कारणों से, शायद क्योंकि उसमें कुछ कंपनियां बड़े राजनीतिज्ञों के साथ जुडी हुई थी, इस कारण से जो छुपाया गया था सही एनपीए उसको इस सरकार ने अगस्त 2015 से Asset Quality Review करके रिज़र्व बैंक द्वारा असलियत सामने लायी, प्रेशर डाला कंपनियों के ऊपर और शायद भारत के इतिहास में पहली बार बड़े-बड़े उद्योगपतियों को अपना लोन वापिस देने के लिए मजबूर किया और जो-जो लोगों ने अपना लोन वापिस नहीं दिया उनपर सख्त से सख्त कार्रवाई की जा रही है, उनके एसेट्स को टेकओवर किया जा रहा है, जिसके लिए कानून बनाया गया Insolvency Code का, Bankruptcy and Insolvency Code. 12 बड़े-बड़े एकाउंट्स को Insolvency Code द्वारा पूरे बैंकों ने प्रमोटर के हाथ से अपने कब्ज़े में ले लिया जो कांग्रेस के समय में कभी नहीं होता था, सिर्फ छुपाये जाते थे इस प्रकार के लोन|

और अब Insolvency द्वारा इन सब लोन्स और इन कंपनियों पर कार्रवाई करके इसकी सही वैल्यू बैंकों को मिलेगी| तो मैं समझता हूँ यह बहुत ईमानदारी, साहस और ज़रूरत का काम रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने किया और इस सरकार का प्रधानमंत्री मोदी जी, वित्त मंत्री अरुण जेटली जी और सरकार का पूरा समर्थन रिज़र्व बैंक को मिला यह काम करने के लिए| हो सकता है पूर्व में राजनीतिक शक्ति इतनी नहीं थी जो इस प्रकार की सफाई छटाई के लिए रिज़र्व बैंक को समर्थन देती हो, इस कारण देश की यह स्थिति हुई कि बैंकों में लाखों करोड़ – और आपको जानकर हैरानी होगी एक और आंकड़ा जैसे मैंने बताया कि जीडीपी ग्रोथ तो 6.5% था, लेकिन तीन गुना हो गया बैंक का लोन सिर्फ 2008 से 2014 के बीच|

इसमें एक और आपको जानकार हैरानी होगी आंकड़ा, वह है स्ट्रेस्ड एसेट्स का, जो लोन्स दिखते थे कि यह एनपीए होने वाले हैं, होने चाहिए, लेकिन रेड कारपेट के नीचे डाल दिए जाते थे या उनको छुपाया जाता था उसमें दो प्रकार के लोन थे एक को तो उन्होंने रेगुलर ही बताते रहे, दिखाया भी नहीं कि कुछ उसमें तकलीफ है, नया लोन दो अकाउंट रेगुलर कर दो या रिस्ट्रक्चरिंग करके अकाउंट रेगुलर कर दो| दूसरा था जो अकाउंट में दिखता था साफ़ कि यह एनपीए होने वाले हैं उसको स्ट्रेस्ड एसेट्स दिखाते थे|

तो आपको जानकर यह हैरानी होगी कि मार्च 2015 में, मार्च 2014 से शुरू करते हैं, मार्च 2014 जब कांग्रेस की यूपीए सरकार थी तब टोटल लेंडिंग का एनपीए मात्र 4.7 दिखाया लेकिन स्ट्रेस्ड एसेट्स इसके इलावा 7.2 थे, दोनों मिलाएं तो लगभग 12% बैंकिंग सेक्टर का ऋण तभी ही एनपीए के लायक था पर छुपाया जाता था स्ट्रेस्ड एसेट्स दिखाकर| हमारी सरकार आने के बाद हमने इन सब स्ट्रेस्ड एसेट्स को आरबीआई द्वारा, एक्यूआर द्वारा वेरीफाई करवाया और आपको जानकर ख़ुशी होगी कि यह जो 7.2% स्ट्रेस्ड एसेट्स थे मार्च 2014 में वह घटकर अब सिर्फ 2.9% रह गए हैं वह भी उनपर भी सब पर कार्रवाई और वेरिफिकेशन चल रहा है कि वास्तव में यह पे कर पाएंगे तो इनको रेगुलर करें, नहीं पे कर पाएंगे तो एनपीए में डालेंगे|

और यह सही मायने में जो पुराने अकाउंट छुपाये जाते थे उनको दिखाने से आज परिस्थिति बनी है कि लोगों को अपने एसेट्स बेच-बेचकर बैंक को पैसा वापिस देना पड़ रहा है| कई पत्रकार बंधुओं को याद होगा, एक ज़माना होता था कि आप और हम तो एक छोटा कोई लोन लेने जायें, चाहे हाउसिंग लोन हो, चाहे हमारी दुकान के लिए एक छोटा लोन हो, एक छोटे लघु उद्योग चलाने वाला या छोटा दुकानदार 2-5-10 लाख, 25 लाख-करोड़ रुपये का लोन लेता था और कभी कोई कठिनाई में आता था तो बैंक वाले हाथ धोकर पीछे पड़ते थे उसकी रिकवरी के लिए| लेकिन कोई बड़ा उद्योगपति जब 40,000 करोड़ या 50,000 करोड़ का डिफ़ॉल्ट करता था या लोन देने की इच्छा नहीं रखता था तब वह आराम से हवाई जहाजों में घूमता था बिना कोई चिन्ता के क्योंकि कांग्रेस के ज़माने में एक कहावत होती थी कि छोटा लोन लेने वाले के ऊपर तो बैंक कार्रवाई करेगी, उसके ऊपर तो पूरा दबाव आएगा कि उसको लोन वापिस देना है लेकिन बड़े लोन देने वाले को कोई चिन्ता नहीं है क्योंकि बड़े लोन की वापसी लेनी की चिन्ता बैंकों के सिर पर है, यह अब बैंकों की मुसीबत हो गयी कि वह कैसे लोन वापिस लेंगे|

और मुझे लगता है जो बिज़नेस कोरस्पोंडेंटस आज इस रूम में हैं वह भलीभांति इस बात को जानते हैं, समझते हैं कि बड़े लोन लेने वाले, बड़े बोरोवर तो बड़ा शांत रहते थे कि हमारे लोन की चिन्ता बैंक करेगा, छोटे लोन की चिंता कर्ज़दार को करनी पड़ेगी| तो यह असलियत आज देश के समक्ष है, देश के सामने है, कांग्रेस के मित्रों ने आंकड़े देने की कोशिश की कि सिर्फ एनपीए क्या बढ़ा लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया देश को कि इसमें से एक भी अकाउंट ऐसा नहीं है जो हमारी पार्टी की सरकार, बीजेपी, एनडीए की सरकार आने के बाद प्रोजेक्ट लगा हो या नया अकाउंट खुला हो जो आज एनपीए बना है|

यह सभी अकाउंट जो आज एनपीए बने हैं जिसको हमने सही मायने में उसका असलियत सामने पर्दाफाश किया है, यह सब लोन कांग्रेस के ज़माने में दिए गए लोन हैं या उसके ऊपर जो ब्याज छुपाया जाता था नया लोन देकर या रिस्ट्रक्चरिंग करके उसके ऊपर का ब्याज है| लेकिन पूरी तरीके से कांग्रेस इसके लिए ज़िम्मेदार है|

दूसरी बात आप सब जानते हैं कि कई मामले सामने आते थे कि बैंकों में लोन लेने के लिए लोगों को दिल्ली से नॉर्थ ब्लॉक से फ़ोन करवाना पड़ता था बैंक चेयरमैन को कि फलाने को लोन दो – फलाने को लोन मत दो| और इसकी कई जानकारियां हाल में बाहर आई हैं, ई-मेल आये हैं, आप लोगों ने देखा होगा रेकॉर्ड्स सामने आये हैं कैसे पॉलिसी चेंज करी जाती थी कंपनियों को लोन देने के लिए, कंपनियों को फेवर करने के लिए, कंपनियों के अकाउंट को रिस्ट्रक्चर करने के लिए पॉलिसी बनती थी एक-एक उद्योगपति की सुविधा के अनुसार|

दूसरी बात, जो बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के घोटाले किये कांग्रेस की सरकार ने चाहे वह टेलिकॉम का घोटाला हो, चाहे वह कोयले का घोटाला हो, इन सब घोटालों में जो लोग परेशान हुए, पकड़े गए हमारी सरकार द्वारा वह सब एकाउंट्स भी आज एनपीए बनकर देश के समक्ष हैं| जिसको गलत रूप से कोयले का ब्लॉक आवंटन किया गया सुप्रीम कोर्ट ने उसको कैंसिल किया तो वह प्रोजेक्ट स्वाभाविक है कि तकलीफ में आएगा क्योंकि कांग्रेस के समय के भ्रष्टाचार का भुगतान आज उस प्रोजेक्ट को करनी पड़ रही है, और indirectly देश को करने पड़ रही है क्योंकि बैंक के ऊपर वह बोझ जा रहा है|

तो कांग्रेस को जवाब देना पड़ेगा कि क्या उनके भ्रष्टाचार के कारण आज इस देश में बैंकों की स्थिति नाज़ुक हुई या नहीं हुई| और आपको याद होगा कल ही मैंने कुछ ई-मेल आपके समक्ष रखे थे जो बताते थे कि कैसे पर्यावरण में उस समय की पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन जी को सीधा-सीधा कांग्रेस पार्टी के उस समय के महामंत्री, राहुल गाँधी जी, के ऑफिस से अथवा स्वयं उनसे निर्देश दिए जाते थे कि किस कंपनी के प्रोजेक्ट को एल्लव करो, किस कंपनी के प्रोजेक्ट को एल्लव मत करो| तो क्या यह पर्यावरण की परमिशन्ज़, भ्रष्टाचार से दिए गए स्पेक्ट्रम और कोयले के ब्लॉक्स, अन्य-अन्य परमिशन्ज़ जो एक कोई भी उद्योग लगाने के लिए लगती हैं इस सबमें जो भ्रष्टाचार कांग्रेस करती थी क्या सीधा-सीधा वह कारण नहीं है कि आज वह एकाउंट्स और वह लोन्स, कई लोन्स उसमें से आज तकलीफ में आये हैं|

मुझे लगता है इसका जवाब कांग्रेस को देना होगा कि अगर कोई व्यक्ति पर्यावरण परमिशन के लिए 2 साल, 3 साल, 4 साल अटका रहे क्योंकि कांग्रेस के महामंत्री के यहाँ से मेसेज नहीं गया है कि अब यह अकाउंट आप क्लियर करो और मेसेज जाने के बाद 2 दिन और 4 दिन और हफ्ते में क्लियर होते हैं तो क्या सीधा यह निशाना नहीं है कांग्रेस के ऊपर कि उनके भ्रष्टाचारी कारणों से आज इस देश के उद्योग की भी स्थिति ख़राब हुई है, आज इस देश के बैंकों की भी स्थिति ख़राब हुई है और आज इस देश की जनता के ऊपर इतना भारी बोझ कांग्रेस के करे हुए काम की वजह से आया है|

एक आखिरी बात बोलकर मैं अपनी बात को विराम दूंगा कि कल की बातचीत में कांग्रेस के प्रवक्ताओं के कुछ कहा कि प्रधानमंत्री जी बताएं कि willful defaulters के 1,88,000 करोड़ के लोन आपने waive कैसे किये? मुझे तो हैरानी होती है कि कांग्रेस ने 10 साल शासन कैसे किया? दो प्रवक्ताओं में एक तो मुख्यमंत्री था दूसरा राज्य सरकार में काम करता था, साथ में उनके पास बड़े-बड़े वकील हैं, अर्थशास्त्री हैं, अर्थशास्त्री तो प्रधानमंत्री भी थे, वित्त मंत्री भी थे| उनको यह नहीं फरक पता लोन के प्रोविजन और लोन के राइट-ऑफ के बीच का फरक इतने बड़े अर्थशास्त्रियों को नहीं पता है|

जब लोन एनपीए होता है, एक रिज़र्व बैंक की श्रृंखला है पहले साल, दूसरे साल, तीसरे साल provisioning करनी पड़ती है और उसके तहत हर बैंक ने अपनी provisioning बढ़ाई है| उसका यह मतलब नहीं है कि लोन माफ़ हो गया या राइट-ऑफ हो गया, यह लोन के अगेंस्ट एक प्रोविजन की जाती है, recognize करते हुए कि 2008 से 2014 के बीच जो गलत लोन दिए गए आज ध्यान में आ रहा है कि वह लोन वापिस मिलने ही नहीं वाले हैं तो उसके सामने बैंक एक प्रावधान बनाती है, प्रोविजन करती है और वह प्रोविजन हर वर्ष करते-करते एक समय यह भी आता है कि लोन पूरा शत-प्रतिशत प्रोवाइड हो जाता है| जैसे एनसीएलटी में केसेस गए वह शत-प्रतिशत उसके सामने प्रोविजन कर दी गयी है, वह कोई राइट-ऑफ नहीं हुआ है, provisioning की गयी है| और जैसे वह लोन्स अभी बेचे जायेंगे, फैक्ट्रियां बेचीं जाएँगी, अकाउंट बेचे जायेंगे, जब पैसा आ जाएगा तो यह लोन रिवर्स हो जायेगा, प्रोविजन रिवर्स हो जाएगी|

तो इतनी एलीमेंट्री बैंकिंग की डिटेल जो पार्टी 10 साल सरकार में थी अगर नहीं समझती है तो मैं समझता हूँ बहुत ही स्पष्ट है कि देश की जनता ने सही निर्णय लिया उस सरकार की समझ इसी लेवल की थी कि आज 10% से भी कम सीटें वह जीतकर लाये हैं और प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व पर सरकार बार-बार विश्वास प्रकट करती है, समर्थन देती है उनके ईमानदारी के काम को और लगातार सरकार के प्रयत्नों में हमें मीडिया के बंधुओं का, जनता का जो समर्थन मिलता है उसके लिए सरकार की तरफ से मैं धन्यवाद देना चाहूँगा क्योंकि चाहे कांग्रेस के प्रवक्ता कुछ भी गलत बयान दें मुझे विश्वास है कि देश की मीडिया और देश की जनता जो सही मायने में इकोनॉमिक्स, अर्थशास्त्र और बैंकिंग समझती है वह उस बात का पर्दाफाश करके जनता को सही बात सामने रखेगी|

बहुत-बहुत धन्यवाद|

प्रश्न-उत्तर

A: Well, for the first time in the history of India, now we have a time-bound recovery process. Some people even went to court to try and stall the recovery process, we are grateful to the judiciary for having supported this effort to clean-up the NPAs and clean-up the banking sector from all this old legacy that we have inherited. And I do believe that the time is running out on all these companies and their promoters who have defaulted in loans. They will be now, the 12 accounts are already under NCLT amounting to 1,75,000 crores of loans. Preliminary indications are that many of them have a lot of investor interest and we are quite confident that we will finally be able to get the banks the true value of the loans that were sanctioned between 2008 and 2014 and which have in the first place caused this (inaudible) for the nation.

प्रश्न: सर जिस तरीके से एनपीए पर बातचीत हो रही है तो यह मामला आर्थिक से चलकर राजनीतिक तक आ चुका है, तो क्या आपकी सरकार इस सत्र में या फिर आने वाले दिनों में एनपीए के मुद्दे पर कोई श्वेत पत्र यानी वाइट पेपर लाने पर विचार करेगी? और दूसरी बात कि एनपीए पर आप लोगों की सख्ती की वजह से जो क्रेडिट लेंडिंग, लेंडिंग ग्रोथ है वह काफी हद तक कम हुआ है तो यह कितना बड़ा कंसर्न है सरकार के लिए?

उत्तर: मेरे हिसाब से इसमें श्वेत पत्र तो पूरे देश और दुनिया के सामने है, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने एसेट क्वालिटी रिव्यु करके सब पर्दाफाश किया है इन पुराने लोनों का, और साथ ही साथ उन्होंने अब बैंकों को मजबूर किया है कि अगर कोई डिविएशन है उनके ऑडिट में और एसेट क्वालिटी रिव्यु रिज़र्व बैंक के वह भी जानकारी जनता को दें| तो बैंकों को अब रेस्पोंसिबल बनाया, ज़िम्मेदार ठहराया कि उनको सही पिक्चर सामने लानी पड़ेगी, अब वह छुपा नहीं सकेंगे – पहली बात|

दूसरी बात, लेंडिंग जो कम हुआ है वह स्वाभाविक है कि अगर बैंकों की इतनी नाज़ुक हालत बना दी कि अनाप शनाप लोगों को बेईमानी से लोन दिया जिनको लोन मिलना ही नहीं चाहिए था उससे स्वाभाविक है कि बैंक भी अभी थोड़ा अच्छी तरीके से छानबीन करके लोन दे रहे हैं| हमारी सरकार की विशेषता यही रही है कि हमने कभी कोई बैंक के लोन में दखलंदाज़ नहीं दिया, कभी केंद्र सरकार या कोई सरकारी अफसर ने लोन किसको दिया जाये, नहीं दिया जाये, अकाउंट के साथ क्या किया जाये उसमें दखलंदाज़ी नहीं की| और मैं समझता हूँ वह बैंकों के ऊपर छोड़ा है कि जो सही मायने में अच्छे बोऱोवर हैं, जो बोऱोवर अपना लोन रिपे करने की क्षमता रखते हैं उनको वह लोन दें, साथ ही साथ रिकवरी ड्राइव बड़े रूप में हुई है, लोगों के जो बैड लोन्स थे उनको बेचकर पैसा रिकवर किया गया है|

तो उसके कारण गत 3 वर्षों में लोन ग्रोथ तो सिर्फ 6 लाख करोड़ हुई है लेकिन लोन सैंक्शन और डिस्बर्समेंट उससे काफी अधिक हुई है लेकिन हमने रिकवरी पर जोर देकर रिकवरी बढ़ाई है| और साथ ही साथ मनी इंस्ट्रूमेंट्स जिसको कमर्शियल पेपर कहते हैं या इन्वेस्टमेंट इक्विटी के रूप में विदेश से फॉरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेंट के रूप में वह इतनी बड़ी मात्रा में गत 3 वर्षों में आई है कि उसकी वजह से भी अर्थव्यवस्था भी मज़बूत हुई है और बैंकों को भी लोन चाहे कम देने को मौका मिला हो लेकिन अर्थव्यवस्था में पैसे की कोई कमी नहीं है जो आरबीआई ने बार-बार बताया कि liquidity is not a problem in this system.

Q: Sir, out here if I could ask a question. I had two questions, one regarding this NPA issue. Surjewalaji from the congress he basically said that during, जब मोदी जी पॉवर में आये तब public sector banks का NPA 2.27 lakh crore था, और 42 months later it was 7.33 crore. I just want the facts, your version of the facts on that. And a second….?

A: But I just gave that.

Q: I know. I just want to understand that how can he say this and you say something different, what is it that we are supposed to believe in terms of clarity, what are the facts in this matter?

A: I just gave you the facts.

Q: That’s your version of the facts.

A: No, it is the official version. It is the actual version. 2,27,000 crores was recognized as NPA by the banks, as on March, 2014, but they were hiding the true NPAs under the carpet. So, they would restructure an account, and though an account was truly supposed to be in NPA they would hide that, call it a restructured account and not recognize it as an NPA.

Simultaneously, they would give a fresh loan which would then be used to repay whatever was due and keep everygreening – this is called Evergreening or rolling over of accounts – which is evident from the fact that while the NPA was only 4.7%, the stressed assets which were, by and large, everybody accepted they are NPAs, but were being hidden by restructuring, was 7.2% even at that time.

So almost twice this amount – 4 lakh crores – was stressed assets which they were hiding under the carpet, and beyond that there were several lakh crores which were being evergreened by giving a fresh loan and not showing that either as NPA or as stressed loan. So, that legacy, that reality we are now through the RBI and Asset Quality Review actually recognized as an NPA, because of which though the NPA figure has gone up to 733, it is the inheritance of the lending of 2008 to 2014. Not one rupee out of that is of an account which we have sanctioned, or is a fresh disbursement in our period to a new project. These are all projects between 2008 and 2014.

प्रश्न: सर मेरा सवाल यह है कि प्रधानमंत्री ने कहा कि 2G, CWG, coal से भी बड़ा स्कैम यह लोन का स्कैम है, लेकिन इसको recognise करने में आपको सर साढ़े तीन साल का वक्त क्यों लग गया, आपको जानकारी भी थी कि इन तमाम …..?

उत्तर: यह process-driven होता है भाई साहब, क्योंकि यह बैंकों के लोन होते हैं तो सरकार इसमें सीधा दखलंदाज़ नहीं देती है| सरकार और रिज़र्व बैंक, यह रिज़र्व बैंक रेगुलेटर के रूप में निगरानी रखती है बैंकों के ऊपर, रिज़र्व बैंक की ज़िम्मेदारी होती है कि बैंक्स के जो ऑडिटेड एकाउंट्स हैं उसके ऊपर रिज़र्व बैंक चेक करती है ठीक है नहीं है क्या है और accordingly Reserve Bank ने हमारी सरकार आने के बाद यह Asset Quality Review के माध्यम से बैंकों के सब लोन एकाउंट्स रिव्यु किये और देखा कि यह वास्तव में अच्छे अकाउंट हैं जिसमें पैसा वापिस आएगा या यह अकाउंट में प्रश्न चिन्ह है क्योंकि इसमें पहले restructuring हुआ है, evergreening हुआ है, नया लोन देके छुपाया गया है कि यह ठीक नहीं है, वह करने से यह असलियत सामने आई जो हमने फिर बैंकों को फ़ोर्स किया कि वह उसको एनपीए के रूप में दिखाए|

Q: Sir, Richa here. I had 3 related questions, very basic ones. When you are talking about corporate and lending and everything, banks were equally involved. So, what is the screening process which is being undertaken for the banks, because bank recap is one way of it, bond issue is one way of it. But any tasks or any responsibilities have been fixed by the government on that front, and the second sir, if we can get the latest recovery numbers, if any recovery numbers have come in besides the 12 cases which have gone into insolvency?

A: Well, first of all as regards the first item, you are well aware that on many cases action has been initiated, wherever instances have come to our knowledge, investigations are going on. And, to my mind, all these loans that have been sanctioned during this period are now under the regulator’s watchful eye being seen or being probed for their regularity.  As regards the second question on recovery, you are well aware that very large corporate groups which we all know were under stress, whose loan amounts in some cases going up to 50,000 crores, or 100,000 crores, in which case in the past this comment what I just said that the large borrowers is the liability of the banking system, the small borrower is his liability to repay. This has been turned on its head.

Today, the largest and large borrowers are all being made responsible for repaying the banking system and, therefore, for the first time, there is heat on borrowers who have defaulted to sell assets. You are aware of sales which have been some of the largest sales of assets in the country. There is a sale of a 80,000 crore rupee asset, which has happened under pressure of recovery on the banking system. There has been sale of several power plants, contracts, road assets, real estate assets that we are all been reading about in the papers, which earlier were all restructured and hidden but are now under pressure to recover and pay for the first time in the history of India.

प्रश्न: सर प्रकाश हूँ ज़ी बिज़नेस से, सर मेरा सवाल है कि कौन-कौन से ऐसे सेक्टर्स हैं जहाँ पर एनपीए की रिकवरी बेहतर हुई है और कौन-कौन से ऐसे सेक्टर्स हैं जो अभी भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है सरकार के लिए?

उत्तर: मुझे लगता है जो अब प्रोसेस चल रहा है तो इसपर अभी कुछ कहना थोड़ा प्रिमैचुअर होगा, लेकिन जो मैंने अभी उदाहरण बताया जैसे ऑइल एंड गैस सेक्टर में तो लगभग एनपीए की समस्या बहुत मात्रा में रिसोल्व हो गयी है और बैंकों को अपना पैसा वापिस मिल गया है| रोड सेक्टर में भी काफी बड़ी मात्रा में इश्यूज रिसोल्व हो गए हैं कुछ कॉन्ट्रैक्टिंग कम्पनीज अभी रह गयी हैं जो कुछ एनसीएलटी में है, कुछ शायद आगे जो एकाउंट्स को डेडलाइन दिया था रिज़र्व बैंक ने उसमें हैं|

पॉवर में भी शक्ति स्कीम लाने से कोयले के ब्लॉक्स का आवंटन नीलामी से करने से या शक्ति के तहत लिंकेजिस की नीलामी करने से कई प्रोजेक्ट्स को रिसोल्व किया जा रहा है, लेकिन अभी भी पॉवर में कुछ प्रोजेक्ट्स हैं जिसमें एनपीए हैं या एनपीए होने की संभावना है| और स्टील में काफी बड़े एनपीए हैं जिसकी जानकारी सभी को है उसमें अधिकांश केसेस इन्सोल्वेंसी में चले गए हैं और आज की स्टील मार्किट को मद्देनज़र रखते हुए हमें लगता है कि अच्छी रिकवरी स्टील में होने की संभावना है|

सीमेंट में जितने एनपीए थे उसमें सीमेंट की डिमांड अच्छी होने के कारण लगभग वह सब पूरी तरीके से रिकवर हो जायेगा, ऐसा संभावना है कि सीमेंट में कोई एनपीए का बोझ नहीं आएगा| तो यह सब जैसे-जैसे एनसीएलटी के तहत रिसोल्व होंगे तो यह प्रोविजन्स में राइट-बैक होगा और बैंकों के लिए और कैपिटल अवेलेबल हो जायेगा|

Q: Sir, Anoop from Cogencis Information, my question is, are the present set of rules and regulations enough to bring the defaulters to justice, or should we expect some more regulations or toughen the present regulations?

A: The government has worked very closely with Reserve Bank of India, and basis their recommendations and continuous discussions and consultations, the Insolvency and Bankruptcy Code has been brought in. We have also notified the rules on the Benami Properties Act, so that if there are any Benami properties held by promoters that can also be brought in for recovery of bank loans and to curb misuse, and black money.

We have also started this process of AQR and now the next stage has been done where we are asking banks to show the deviation between their balance sheet, audited balance sheet and the AQR numbers, which has put pressure on the banks to show the correct picture and not do the evergreening which was happening prior to 2014. And lastly, I think the fact that there is no more political interference in the lending process restructuring or any of these resolution processes. We are finally finding expeditious recovery, people paying back loans and the heat and pressure on borrowers to really come forward and clear their irregular accounts.

Thank you.

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