Speeches

August 12, 2017

Speaking at Laghu Udyog Bharti, Maharashtra, Mumbai

… नेतृत्व अपने आपको डाउनप्ले करता है और दूसरों को आगे आने का मौका देता है, मैं आपका नमन करता हूँ प्रकाश जी, श्री ओम प्रकाश मित्तल जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, लघु उद्योग भारती, श्री जितेन्द्र जी गुप्ता, महामंत्री, श्री भूषण वैद्य जी, उपाध्यक्ष श्री रविंद्र सोनवणे जी, महाराष्ट्र के महामंत्री, श्री भूषण मर्डे जी, …. हम सब यहाँ पर एक प्रकार से सभी एक दूसरे से परिचित हैं, तो सभी महानुभाओं को नमन करते हुए आप सभी को आज के इस पूरे दिवसीय कार्यक्रम में भाग लेने के लिए वास्तव में मैं धन्यवाद करता हूँ| क्योंकि जितनी ज्यादा ऐसे गोष्ठी होगी, चर्चाएं होंगी उसमें से ही नए मार्ग निकलेंगे, नए रास्ते, नए विचार आएंगे|

प्रधानमंत्री जी ने अभी-अभी कुछ दिन पहले 9 अगस्त को संकल्प से सिद्धि की कल्पना रखी, उस कल्पना के पीछे इसी प्रकार का मंथन हम करें अलग-अलग विषयों का अलग-अलग क्षेत्रों में और उसमें से आगे का एक नया रास्ता बनाएं जिससे नए भारत की जो कल्पना है, एक भारत जिसमें गरीबी मुक्त हो, एक भारत जिसमें हर एक व्यक्ति को सामान्य अवसर मिले, एक भारत जहाँ पर किसी को भी बिना घर के, बिना शौच के, बिना बिजली के न रहना पड़े, एक भारत जहाँ हर विद्यार्थी को मौका मिले अच्छी शिक्षा पाने का, अच्छा कौशल विकास, स्वास्थ्य सेवाएं सुधरें| और उस प्रकार की जब भारत की कल्पना करते हैं तो यह मात्र सरकार या राजनीतिज्ञ अपने आप में अकेले नहीं कर पाएंगे, यह इसमें समाज की और जनता की जनभागीदारी से ही यह सफल हो पायेगा|

और मैं समझता हूँ लघु उद्योग भारती की इस प्रकार की देश भर में संगोष्ठी जो होती है उसका लाभ हम सबको मिलता है, हमारे समय-समय पर चर्चाएं होती हैं| जो अभी-अभी मान्य ओम प्रकाश जी ने बताया, लगातार संपर्क होने से, विचारों का आदान-प्रदान होने से हमको भी लाभ मिलता है कि किस प्रकार का सुधार करने की आवश्यकता है| और इसी में से मुझे लगता है लघु उद्योग का भी आगे विकास और तेज़ गति से हो पायेगा|

वास्तव में अगर सबसे बड़ी एक कमी रही है इस देश में तो वह हम सब छोटे, small and medium, tiny-small, medium enterprises कभी संगठित नहीं हो पाए, मैंने स्वयं लघु उद्योग से ही अपना काम शुरू किया था| मैं लगभग बारहवीं कक्षा में था, 17 वर्ष का था तब, टेक्निकली तो इल्लीगल शुरुआत की मैंने| बारहवीं कक्षा में था, पिताजी निवृत्त हुए थे, बड़ा भाई विदेश में था तो लगता था कि कुछ शुरू किया जाये जिससे वह भी वापिस आये, मैंने भी चार्टर्ड एकाउंटेंसी का निर्णय किया था आगे जाकर फाइनेंस क्षेत्र में रहूँगा|

और सबसे पहला तभी हमने लेसन सीखा कि किस प्रकार की कठिनाईयां   लघु उद्योग लगाने, चलाने में आती हैं| वास्तव में मुझे याद है जब पापा मुकुंद से निवृत्त हो रहे थे, उनके 30 वर्ष पूरे हो रहे थे और मुझे लगता है हमने कम से कम 30-35 अलग-अलग प्रोजेक्ट स्टडी किये होंगे कि क्या काम किया जाये| और उस टाइम पर, यह मैं 1980 की बात कर रहा हूँ, ‘80-81 की, उस टाइम पर इतना ज्यादा प्रेशर था पापा पर, मैं तो छोटा था, कि ‘गोयल साहब आप यह छोटी स्माल स्केल इंडस्ट्री क्यों लगा रहे हो, आप जनरल मेनेजर रिटायर हो रहे हो मुकुंद के,’ उस समय देश का बहुत प्रमुख उद्योग था, ‘आपको तो कुछ बड़ा प्रोजेक्ट लगाना चाहिए?

पापा ने कहा मेरे पास Provident Fund है, superannuation का जो पैसा मिलता है उसको मैं commute कर रहा हूँ जिससे थोड़ा और कैपिटल बन जाये तो pension forego करके you can commute your superannuation, gratuity और कुछ shares वगैरा हैं| मुझे अभी तक याद है मैं Siemens के share value देखता हूँ तो मुझे याद आता है हमने Siemens के share बेचे थे 1980 में अपना छोटी यूनिट को कैपिटल डालने के लिए| और लोग मजाक उड़ाते थे कि अरे, आप क्या बात कर रहे हो, थोड़े ही कोई अपना पैसा लगता है फैक्ट्री लगाने के लिए, पैसा तो Banks देती हैं| पापा ने कहा, ‘पर प्रमोटर का भी तो पैसा लगता है’| So you know, with a smirk people used to look at Papa, कि इतने…I don’t know, I shouldn’t be using a word… पापा अब हैं नहीं, पर व्यंग करते थे उनका कि अपना पैसा लगाके कौन इंडस्ट्री लगाता है|

और शायद वह प्रवृति थी 1980 में जो एक प्रकार से हमने अनुभव की जिसके कारण आज बैंकों की यह स्थिति है जो हम रोज़ देखते हैं| लोग अपना कैपिटल नहीं लगाते थे, बड़ी-बड़ी अपनी क्षमता के बाहर, बड़े-बड़े यूनिट्स लगा लेते थे, बैंकों से over-invoicing करना, बैंकों से पैसा अधिक लेकर, लोन अधिक लेकर फैक्ट्री लगाना, व्यापार करना| और अगर कोई कठिनाई आई तो हमको क्या चिंता है वह तो बैंक की मुसीबत है, हमारी तो मुसीबत है ही नहीं, पैसा वापिस देना ही नहीं पड़ेगा| एवरग्रीन होते रहेंगे लोन, कुछ समय बाद ज्यादा तकलीफ आएगी तो बैंक राइट-ऑफ करेंगे, वह भागेंगे हमारे पीछे, हमको तो कोई चिंता नहीं है|

मैं समझता हूँ पहली बार देश में मोदी जी के नेतृत्व में एक सरकार ऐसी आई है जिसने वास्तव में बैंकों को accountable बनाया, उनको पूछताछ की कि भाई आपने किस हिसाब से लोन दिए, क्या लोन जेन्युइन था, क्या लोन के पीछे कोलैटरल एनफ था, सिक्यूरिटी थी? और वास्तव में इसका सबसे बड़ा लाभ, इस प्रकार के कठोर कदम का सबसे बड़ा लाभ होगा तो वह हमारे छोटे ईमानदार उद्योग के लिए होगा जिनको फिर पैसा, ईमानदार पैसा मिलेगा, ईमानदार कम्पटीशन करने की क्षमता बढ़ेगी, बजाये कि वह पूरा पैसा बड़े-बड़े उद्योगपति गलत तरीके से ले जायें और हम सब बैंकों के धक्के खाते रहें जैसे कि मैंने खाए थे 1981-82 में|

मुझे अभी तक याद है, छोटा शायद 19,80,000 रुपये का प्रोजेक्ट हमने लगाया था, small scale industry का तब, क्योंकि यह पेंशन, यह सब मिलाकर 6-6.5 लाख रुपये collectively collect हुए थे| I am really telling you, today, I am getting back a lot of old memories, 100 visits तो मैंने MIDC Office, चकाला के किये होंगे, डोंबिवली MIDC में कुल 2930 square meter का एक प्लाट allot करवाने के लिए| मज्ज़ेदार बात यह है कि कल ही राष्ट्रपति भवन में वेंकैया नायडू जी का जब शपथ विधि हो रही थी तो जो उस समय के सीईओ थे MIDC के वह आज कल गवर्नर हैं किसी northeastern state के तो वह मुझे….. यहीं से हमारे महाराष्ट्र के ही हैं| और वह दिन भी नहीं भूला हूँ कि बैंक के मेनेजर के सामने यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया सायन ब्रांच, कभी दिमाग से वह जायेगा नहीं, cheque against clearing pass करने के लिए सुबह-सुबह बैठे रहना पड़ता था|

पर इस परिस्थिति के लिए आज मैं जब पीछे देखता हूँ कुछ मात्रा में हम सब भी ज़िम्मेदार हैं| यह अच्छी बात है जैसे मान्य ओम प्रकाश जी ने बताया कि कुछ क्षेत्रों को तकलीफ है जीएसटी के कारण, टेक्सटाइल का विशेष उल्लेख किया, और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जीएसटी काउंसिल और अब तो जीएसटी के निर्णय कोई मोदी जी या अरुण जेटली जी के हाथ में नहीं है, यह तो सामूहिक, unanimous, सर्वसम्मति के निर्णय हैं जितने जीएसटी काउंसिल के निर्णय लिए जाते हैं| आज 19 मीटिंग हो चुकी हैं, 19 मीटिंग में शत-प्रतिशत निर्णय सर्वसम्मति से हुए हैं, 29 राज्य, 7 यूनियन टेरिटरीज और केंद्र सरकार, सबने मिलकर एक प्रकार से सांझी विरासत दी है इस देश को, पूरे, सबकी सहमति से एक-एक चीज़ निर्णय लिए गए हैं और परिवर्तन भी सबकी सहमति से लिए जायेंगे|

यह अलग बात है कि कुछ लोगों ने बाद में realize किया कि भाई इतना स्मूथ रोल-आउट हो गया जीएसटी का, कोई परेशानी नहीं हुई, कोई कठिनाई नहीं हुई तो चिंता में आके फिर पहले तो निर्णय में शामिल होने के बाद फिर उन्ही निर्णयों को क्वेश्चन करने लग गए कुछ लोग| आखिर 6 सरकारें कांग्रेस की, 2 सरकारें कम्युनिस्ट की, एक तृणमूल कांग्रेस की, बाकी छोड़ो एक तो आम आदमी पार्टी की सरकार, सबने मिलकर यह सब निर्णय लिए, ऐसा नहीं है कोई हमने निर्णय लिया या केंद्र सरकार ने लिया| और निर्णय लेने की भी प्रक्रिया बड़ी साइंटिफिक थी, यह जो रेट्स आपने अभी-अभी बताया या प्रोसेस है, यह पहले भी वही थी, उसको फिटमेंट कमिटी ने पुराने रेट्स को सम्मिलित करके weighted average निकाला देश भर का, आखिर और कोई तरीका हो नहीं सकता है जब अलग-अलग टैक्सेज थे अलग-अलग जगह| तो कितना उत्पादन था या टर्नओवर था, क्या रेट ऑफ़ टैक्स था, एक-एक स्टेट का लिया गया, 29 स्टेट को weighted average निकाला गया और उसके हिसाब से nearest rate में फिट किया गया| कुछ सामान्य लोगों की वस्तुओं को कम किया गया, कुछ क्या, वास्तव में तो 80-82% items are below 18%. और ऐसा कोई भी आइटम लगभग जो सामान्य व्यक्ति के जीवन में ज़रूरत पड़ती है उसपर टैक्स रेट को अधिक रखने में लगभग सभी की सहमति थी कि अधिक नहीं रहना चाहिए, उसको लोअर स्लैब्स में डालना चाहिए|

ऐसी परिस्थिति में, और मैं आपको बताऊँ यह वास्तव में public disclose करने की बात नहीं है इसलिए नाम नहीं ले सकता और दिल्ली में बैठे रहो तो सबसे दोस्ती होती ही है पार्लियामेंट में सेंट्रल हॉल में तो सब पार्टी के लोग बैठते हैं, तो कुछ मित्र मुझे बताया करते थे विपक्ष के कि हम जीएसटी के विरोध में नहीं हैं, पास करेंगे, पर ज़रा 2019 का चुनाव आ जाये उसके नजदीक पास करेंगे| उनकी संभावना थी कि इससे पूरा व्यापार तसत-व्यस्त हो जायेगा, तकलीफ आएगी, इकॉनमी collapse होगी और आपको तकलीफ आएगी तो हमें वापिस आने का मौका मिलेगा|

पर उन्होंने एक चीज़ मिस कर दी कि इस देश में जो विश्वसनीयता प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रति है देश की और हम सबकी, शायद उसका आंकलन करने में वह चूक गए| और इस बात की भी उन्हें ग़लतफहमी हो गयी कि इस देश का जो बेसिक डीएनए है, इस देश की जो बेसिक सोच है, इस देश के हर व्यापारी का जो मूल भावना है वह एक ईमानदार, सरल व्यवस्था की भावना है और जब आप ईमानदारी से एक ईमानदार व्यवस्था को और प्रोत्साहित करोगे तो पूरा देश उसका समर्थन करेगा, शायद इस बात की चूक हो गयी हो उनकी सोच में|

और वास्तव में अभी-अभी मुझे कुछ पत्रकार मित्र बाहर पूछ रहीं थीं कि, और बड़ा अच्छा लगता है यह young girls, they are so enthusiastic in their questioning also, कि देश के भविष्य के ऊपर विश्वास और बढ़ जाता है| और जितने उत्साह से वह पूछ रहे थे यह क्या होगा, इसका क्या होगा, उसका क्या होगा, उससे ध्यान आता है कि वास्तव में जीएसटी में जो संभावनाएं थी कि इससे बहुत तकलीफ आएगी उसके बदले आज जो देखें इतना स्मूथ जो पिछले 45 days गए हैं यह कल्पना के बाहर था और वह इसलिए हुआ क्योंकि हम सबने इसको समर्थन दिया, हम सबने इसको अपनाया और हम सबने कठिनाई जो आएगी उसमें भी विश्वास रखा कि आहिस्ते-आहिस्ते चलकर यह कठिनाइयाँ भी दूर होंगी, और सरल होते जायेगा जहाँ-जहाँ practical difficulties आएँगी, यह विश्वास है इस देश का|

और मैं भी आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आखिर जो भी चीज़ें ली गयी, मैंने नोट भी किया कुछ-कुछ जो अभी ओम प्रकाश जी ने बताया कि business to consumer का जो link है अगर उसमें अभी भी कोई कमी दिखेगी तो मुझे पूरा विश्वास है जीएसटी काउंसिल उसपर पुनः विचार कर सकता है| आखिर टेक्सटाइल में भी कुछ चीज़ें सुधारी गयीं job/work वगैरा के संबंध में अभी, आगे और सुधार हो सकता है|

मान्य अध्यक्ष जी ने जो बात कही मैं ज़रा थोड़ा सा उसमें संशोधन कर दूं, यह 75 लाख की जो लिमिट है यह संवैधानिक लिमिट है, जीएसटी का जो कानून है उसमें 75 लाख की लिमिट है तो हम चाहते हुए भी उसको बढ़ा नहीं सकते हैं, और कोई रास्ता निकले रिफंड का, यह-वह, वह सोच सकते हैं| लेकिन, यह भी हम ग़लतफहमी में न रहें कि डेढ़ करोड़ की लिमिट हम सबको थी, ओम प्रकाश जी राजनीति और यह दावपेज तो हमने इतने साल राजनीति कर करके सीख लिया चीज़ को कैसे दोनों तरफ से देखा जा सकता है| विपक्ष में होते हैं तो हम फिर वह डेढ़ करोड़ की लिमिट देखते हैं, सरकार में आते हैं तो हम साथ में यह भी बोलते हैं कि नहीं वैट तो आपको 10-15 लाख से ही लग जाता था, ओक्ट्रोई चेक पोस्ट में तो कोई आपको लिमिट नहीं थी, पहले रुपये से ही लग जाती थी|

और ऐसे अन्य-अन्य जब 17 टैक्स लगते थे, 23 सेस लगते थे तो हम एक-डेढ़ करोड़ की एक्साइज की लिमिट पकड़कर बैठ जायें और 17 टैक्स और 23 सेस्सेस उसी में सम्मिलित करके डेढ़ करोड़ की लिमिट बात करें तो ज़रा अनफेयर हो जायेगा| खैर वाद-विवाद में नहीं पड़ रहा हूँ, मैं सिर्फ सोचा कि clarify कर दूं कि हमें परिप्रेक्ष्य पूरा रखना चाहिए अपने सामने| और जहाँ तक रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म की आपने बात छेड़ी यह वास्तव में हम सबके हित में है और मैं संक्षेप में बता दूं कि वह क्यों हम सबके हित में है|

एक 20 लाख तक की छूट दी गयी है कि कोई टैक्स नहीं लगेगा, 75 लाख तक कम्पोजीशन स्कीम लायी गयी है और अधिकांश लघु उद्योग उसमें कवर हो जाता है|  कुछ आंकलन निकाला तो पता चला कि लगभग 80-85% यूनिट्स 75 लाख के अन्दर ही आती हैं, शायद यह फिगर उससे भी अधिक हो सकता है अगर 5 करोड़ का फिगर करेक्ट है तो| वास्तव में वह फिगर कहाँ से आता है मुझे आज तक नहीं मालूम है पर हम सब ख़ुशी से एक्सेप्ट कर लेते हैं क्योंकि आप कहते हो 5 करोड़ लघु उद्योग हैं, 11 करोड़ एम्प्लॉयमेंट देती है, agricultural में इतनी एम्प्लॉयमेंट है, टेक्सटाइल वाले कहते हैं हम, टेक्सटाइल तो उससे भी ज्यादा कोई मीटिंग में 15 करोड़, किसी में 10 करोड़, अलग-अलग फिगर आते हैं, jewellery वाले कहते हैं हम 3 करोड़, 5 करोड़ लोगों को देते हैं| मुझे तो अभी लगने लगा है कि इस देश में under employment या unemployment नहीं, over-employment है जिस प्रकार के फिगर्स सब जगह आते हैं|

पीछे एक पेंट इंडस्ट्री की, और मेरा वैसे रोल नहीं है पर, I don’t know, I get stuck into the most awkward situations. वेंकैया जी जैसे कहते हैं ना….छोड़ो उसमें नहीं जायेंगे नहीं तो फिर अलग दिशा में चले जायेंगे, लेकिन यह जो किया गया रिवर्स मैकेनिज्म का इसका इसलिए हम सबके लिए सबसे बड़ा लाभ है कि अगर हम क्लेम करें कि हम 75 लाख के नीचे हैं, सरकार को कैसे मालूम पड़ेगा? तो उसकी चेकिंग की कुछ तो व्यवस्था करनी पड़ेगी ना, नहीं तो मैं तो 5 करोड़ का टर्नओवर करके क्लेम कर सकता हूँ मैं 75 लाख के नीचे हूँ या 20 लाख के नीचे हूँ| तो सरकार क्या करेगी? आपके दफ्तर आएगी, आपके ऑफिस आएगी, आपके फैक्ट्री में आएगी, आपके रिकॉर्ड चेक करेगी|

मुझे अभी तक याद है जब मैं फैक्ट्री पहुँचता था, डोंबिवली या बाद में फिर नवी मुंबई, सुबह आप तैयार-वैयार होकर एकदम फ्रेश होकर पूजा-पाठ करके अपनी फैक्ट्री पहुँचो और गेट के बाहर अगर एक सफ़ेद एम्बेसडर खड़ी हो, मर गए| और दुर्भाग्य से अगर उस सफ़ेद एम्बेसडर पर लिखा हो – Central Board of Excise and Customs – फिर तो सोचते थे कि रात को घर जायेंगे कि नहीं जायेंगे| तो यह जो रिवर्स मैकेनिज्म है इसका purpose क्या है, इसका purpose यह है कि जो भी आप purchase करते हो, unregistered dealer जो 20 लाख से नीचे हैं या composition scheme में, उसका data भी capture हो सिस्टम के अन्दर और वह जब डेटा कैप्चर होगा, क्योंकि आप उसपर टैक्स करोगे जीएसटी और तुरंत उसका क्रेडिट भी ले लोगे, आपको तो एक रुपये का कोई उसमें नुकसान नहीं होने वाला है| 100% प्रोविजन है, मैं आपको बोल रहा हूँ, publicly बोल रहा हूँ, पीटीआई के कोई रिपोर्टर्स भी बैठे हैं यहाँ पर| जैसे ही आप उसका पे करोगे जीएसटी, साथ ही साथ उसका क्रेडिट अपने क्रेडिट रजिस्टर में आपको उसका उतना ही अमाउंट का क्रेडिट मिल जायेगा|

और यह purpose इसका यह है कि अगर पीयूष गोयल क्लेम करे कि मेरी सेल 20 लाख से नीचे है तो सरकार को मेरे यहाँ कहीं अफसर नहीं भेजने पड़ें चेक करने के लिए| मैं आपको सेल करूँगा, मैं ओम प्रकाश जी को करूँगा, मैं वैदया जी को करूँगा, आप में से कुछ लोगों को करूँगा, किसी को दो लाख, किसी को एक लाख, किसी को 5 लाख, तो सिस्टम अपने आप रेड फ्लैग करेगा कि यह पीयूष गोयल क्लेम तो कर रहा है 20 लाख से नीचे है लेकिन 25 जगह उसकी सेल्स जोड़ो तो यह तो 50 लाख हो जाती है| क्योंकि आप सब उसको purchase register में दिखाओगे, आज ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, आज आपकी purchase register में आपने क्या दिखाया और मैंने अपनी sales register में क्या दिखाया उसकी कोई मैचिंग की व्यवस्था सिस्टम में है ही नहीं| कोई हमें एक्साइज ऑफिसर कुछ गलत रिकॉर्ड पकड़ ले तो ….. करके निकल सकते हो, वैट वाले को कभी मालूम ही नहीं पड़ेगा, ओक्ट्रोई में चोरी कर लो, किसी और को मालूम ही नहीं पड़ेगा|

हम सब यहाँ बैठे हैं, हम सब अवगत हैं व्यापार में क्या-क्या होता था, यह किसी से छुपा नहीं है| और आपके लिए दुर्भाग्य की बात है कि मुझे बना दिया मंत्री केंद्र सरकार में मोदी जी ने, तो मैं उनको बता सकता हूँ कि जब ट्रक मुंबई से निकलता है…. और बताने की ज़रूरत नहीं है| तो ऐसी परिस्थिति में जीएसटी का लाभ इसलिए हम सबके लिए होगा कि हमें निजात मिलेगी bureaucracy से, inspection raaj से, tax terrorism से बशर्ते हम ईमानदारी से लिखें अपना sales register. यह भी एक भ्रम फैलाया गया 37 रिटर्न, यह वह, एक अवार्ड वापसी की तरह भ्रम था यह| आपको याद है बिहार चुनाव ख़त्म हुआ उसके बाद सब अवार्ड वापसी ख़त्म हो गया, पता नहीं वह अवार्ड वापसी, अभी-अभी किसी व्यक्ति ने, बड़े उच्च स्तरीय व्यक्ति ने कहा कि एक विशेष वर्ग के साथ अन्याय हो रहा है, अगर इतना ज्यादा अन्याय की चिंता थी तो रिजाइन करके उस विषय को लेके जनता के बीच में जाना चाहिए था| अगर अवार्ड वापसी हो सकता है तो पद वापसी भी हो सकती है|

यह इस देश का फैशन है, 37 रिटर्न पकड़कर हमने पता नहीं इतना बड़ा हंगामा देश भर में मचा दिया, मैं वैसे इसमें involved नहीं था और मैं आपको दावे के साथ कह सकता हूँ कि यह इतना अच्छा सरल सिस्टम जीएसटी का बना है और सबकी भागीदारी से, केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सबके अधिकारियों ने, महाराष्ट्र के सरकारी अधिकारियों ने उतना ही योगदान दिया जितना डॉ. हंसमुख अधिया और उनकी टीम ने दिया, सबने मिलकर किया है| मैं आपको ईमानदारी से, दिल पर हाथ रखकर बोल रहा हूँ, मैं 100 जनम ले लूं मैं इतना अच्छा सिस्टम मैं नहीं बना सकता था, इतना अच्छा सिस्टम और मैं अपने आपको सोचता हूँ मेरी समझ काफी है इन चीज़ों के बारे में| But the system they have created is truly remarkable. एक भी रिटर्न नहीं है इसमें|

मुझे याद है registers लिखते थे हम एक्साइज का अलग, वैट का अलग, हमारे यहाँ नवी मुंबई में एंट्री टैक्स होता था उसका अलग, सबको अलग फॉर्मेट, सबको अलग डेटा चाहिए| सब अपने-अपने हिसाब से कैलकुलेट करते थे, एक्साइज बेसिक वैल्यू पर होता था लेकिन दुनिया भर के deemed provision थे, deeming provisions, वैट लगता था एक्साइज लगने के बाद तो उसकी अलग वह बनती थी स्टेटमेंट और रिटर्न, उन दोनों के ऊपर एंट्री टैक्स लगती थी नवी मुंबई में, after all these costs तो यह सब करने के बाद अलग register बनता था, अलग रिटर्न बनता था उसके लिए| हम तो सब experts थे इतने सारे, hundreds of rates समझने में, अलग-अलग रिटर्न भरने में, यहाँ तो वास्तव में 0 रिटर्न हैं, एक भी रिटर्न नहीं है|

इन्होंने मेरे से थोड़ी सलाह ली होती तो मैं बोलता आप बोलो zero return, one statement, जो reality है, आपको सिर्फ sales register रखनी है वह भी एक| अलग-अलग कानून के अलग-अलग रजिस्टर नहीं चाहिए| एक ईमानदारी से सेल्स रजिस्टर रखो, हर एक चीज़ जो बेच रहे हैं वह उसमें दिखा दो, जो भी खरीद रहे हैं उसके बुक्स में वह अपने आप परचेस रजिस्टर के रूप में auto-populate हो जाएगी या auto-generate हो जाएगी| आपने कोई गलती की, कोई सेल्स नहीं दिखाया तो आपको फ़ोन करके बोलेगा भाई सेल्स दिखाओ नहीं तो मेरे यहाँ पर परचेस नहीं आ रही है| मैं फिर भी ठीट बनूँ और नहीं डालूँ तो वह परचेस रजिस्टर डाल सकता है तो मेरे यहाँ सेल्स में खड़ी हो जाएगी| जिससे अधिकारियों को आपके पास नहीं आना पड़ेगा, आटोमेटिक डेटा generate होकर, डेटा माइन होकर रेड फ्लैग अलर्ट सिस्टम में ही आ जायेंगे कि कौन अपना व्यापार ईमानदारी से नहीं कर रहा है और ईमानदार आदमी को इसलिए चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि ईमानदार आदमी फिर खड़े होकर सवाल पूछ सकता है|

कल मैं कुछ मीडिया के बंधुओं के साथ बात कर रहा था तो एक newspaper ने एक डायरी आइटम बनाई है, और पीछे भी सोशल मीडिया में मैंने सुना बहुत चल रहा था| मैंने इग्नोर किया पर कल मेरा थोड़ा दिमाग ख़राब हुआ, गुस्सा आया, कि Piyush Goyal owns shares worth 38 crores, हमारे मित्र ही हैं, हमारे राज्य सभा के सांसद हैं आर.के. सिन्हा जी, प्रामाणिक स्वयंसेवक बंधू हैं, उनकी कंपनी का अभी-अभी IPO हुआ तो उसका एक Diary item बना दिया Piyush Goyal owns shares worth 38 crores in SIS Industries तो आज बड़े दुखी होंगे क्योंकि share value कुछ कम ज्यादा हो गयी है| पहले सोशल मीडिया में चला, मेरे ऑफिस ने कहा, मैंने कहा ignore it, यह मूर्ख लोग हैं इनको मालूम नहीं देश में 500 पीयूष गोयल हो सकते हैं|

और हमारे तो राजनीतिज्ञों की हालत ऐसी है कि हर एक चीज़ ब्लैक एंड वाइट में हमारे को हर साल प्रधानमंत्री को देनी पड़ती है जो वेबसाइट पर अपलोड हो जाती है, तो all shares-wares सब details public domain में आ जाती हैं, खैर वह आ गया फिर newspaper में आया और मैं ऐसे ही चर्चा, गप-शप मार रहा था newspaper वालों के साथ तो मैं इस विषय को तो नहीं चर्चा कर रहा था, मैं कह रहा था भाई कुछ भी लिखते हो, कुछ भी बोलते हो, थोड़ा रिसर्च करो, थोड़ा समझो विषय को| यह ब्रेकिंग न्यूज़ के आड़ में कि मैं दूसरों से पहले था उस आड़ में कुछ भी अनाप-शनाप मत छाप दो, कुछ भी अनाप-शनाप मत लिखो| तो मैं तो उसके बारे में चर्चा कर रहा था तो ध्यान आ गया कि यह आर्टिकल पर भी एक बार उस newspaper वाले को सुना दो अपनी ….|

वैसे ही यह 37 रिटर्न्स वाला मामला है, बिना समझे, बिना दिमाग लगाये, बिना देखे कि क्या व्यवस्था बनी है अलग-अलग प्रकार की अफवाहें फैलाना एक डिमांड suddenly एक बड़े ही विद्वान व्यक्ति ने जो क्लेम करते हैं कि कैंब्रिज और हार्वर्ड से पढ़े हुए हैं, दोनों institutes बोलते हैं भाई हमारे यहाँ नहीं पढ़े हुए हैं, उनको शर्म आती है कि भाई कल हमारे इंस्टिट्यूट का नाम न ख़राब हो जाये| आखिर उनकी विश्व में एक इमेज है, एक reputation है, they have to protect that reputation.

वह व्यक्ति अभी suddenly बोलते हैं कि सिर्फ 18% से नीचे हर एक रेट होना चाहिए, शायद आप में से भी किसी को, कुछ लोगों को यह बात अच्छी लगी होगी लेकिन यह तो हमारा मूल विरोध था जब कांग्रेस सरकार जीएसटी ला रही थी| मैंने स्वयं अर्नब गोस्वामी के शायद 50 show में इसके ऊपर विरोध किया होगा जीएसटी में कि एक रेट या दो रेट जीएसटी लाएंगे तो क्या इस देश में BMW car और रबर की चप्पल का रेट एक हो सकता है क्या, क्या BMW car जिसपर आज 50%-40% टैक्स लगता है उसका घटके 18% करना चाहिए और उसका बोझ – आखिर revenue तो चाहिये, सरकार चलेगी, सोशल वेलफेयर स्कीम होंगे – उसका बोझ क्या छोटे व्यापारी पर, छोटे उपभोक्ता पर डालना पड़ेगा? किस प्रकार की कल्पना है जो कहती है कि cigarette का रेट कम कर दो क्योंकि कोई भी रेट 18% से ज्यादा नहीं होना चाहिए|

मैं समझता हूँ हमने अगर 6 रेट रखे तो यह विशेषता है जीएसटी की कि जो गरीब आदमी की वस्तु है, जो किसानों की वस्तु है, जो महिलाएं इस्तेमाल करती हैं उन सब चीज़ों का एक-एक का स्टडी करके क्या करेक्ट रेट करना चाहिए जिससे उनको कोई तकलीफ नहीं हो, उनके ऊपर कोई बोझ न बने| और मैं समझता हूँ ख़ुशी की बात यह है कि देश की जनता समझती है, जैसे कहते हैं कुछ लोग तो नासमझ हैं, पर वह मैं गाना नहीं गा रहा हूँ कि ‘ना समझे वह’, वैसा मैं नहीं कह रहा हूँ, पर जनता शायद समझती है, वह अलग बात है|

Inter-state sales की आपने बात करी, तो reverse mechanism I hope you appreciate कि उसका purpose क्या है और जो आपने कहा अगर ज़रा भी आपको doubt है तो और एक FAQ निकाल देंगे, रोज़ FAQs आते हैं| 4-5 दिन पहले कुछ handicraft की महिलाएं मुझे FICCI के FLOW function में मिलीं तो कल मैं देख रहा था handicraft का भी एक पूरा FAQ सब आ गया है, तो continuously GST के Council के लोग public information में लगे हुए हैं| लेकिन आप भी समझये जो विश्व का सबसे बड़ा आर्थिक परिवर्तन करने की साहस जिस व्यवस्था ने की, विश्व का सबसे बड़ा आर्थिक परिवर्तन, उसमें ज़रूर जब तक सब लोग समझें और जब तक पूरा सिस्टम सेटल हो जाये थोड़ा तो समय लगेगा ना? आखिर भाई साहब को भी ध्यान नहीं आय कि मेरा स्वागत करना रह गया है|

अगर इतने से छोटे से कार्यक्रम में हमें तकलीफ आ सकती है, गलती हो सकती है, नहीं, मैं कोई बुरा नहीं मानता हूँ| Frankly, अभी तो मोदी जी ने कहा है कि यह स्वागत-वागत बंद करो, लेकिन मैं तो सिर्फ यूज़ कर रहा था अपने बेनिफिट के लिए जो मित्तल जी को बताना चाह रहा था पॉलिटिशियन के साथ वाद-विवाद नहीं, अब मैं वह छोटा उद्योगपति नहीं| पर मैं आपका ही हूँ, आपका ही रहूँगा, मेरा दिल आपके साथ ही है, और चौबीसों घंटे| मेरा नंबर तो मुझे लगता है आप सभी के पास होगा, प्रकाश जी, सभी के पास है, आपको चाहिए तो मैं publicly भी announce कर सकता हूँ मेरा मोबाइल नंबर, वह तो इन्टरनेट भी सर्च करो मिल जाता है|

और मैं इसका एक छोटा उदाहरण दे दूं, एक jewellers की स्ट्राइक हुई थी आपको याद होगा जब एक्साइज ड्यूटी आई last year, और वित्त मंत्री जी सबने कहा कि भाई यह जीएसटी आने वाली है आपको एक साल मिल जायेगा तैयार होने का, आदत पड़ जाएगी रिकार्ड्स रखने की, अभी से लग जाओ इस व्यवस्था में| माने नहीं, थोड़ी स्ट्राइक-वाइक की, थोड़ी तकलीफ दी, again, I don’t know मैं कैसे कूद गया उसके अन्दर मुझे अभी तक याद नहीं है किसी ने कहा नहीं था| पर अपनेपन में क्योंकि हम सब, मैंने भी व्यापारी जीवन ही शुरू किया है, मैं घुस गया उसमें बातचीत शुरू कर दी तो घंटों-घंटों हमारी चर्चा चलती थी| खैर, finally सब sort out हो गया, वह agree हो गए एक्साइज ड्यूटी के अंतर्गत आने में, हमने बैठके जो-जो सुविधाएं करनी थी, समय लगा और करके stabilize कर दिया|

तब मैंने अपना मोबाइल नंबर सार्वजानिक रूप से सबको दिया, सब associations को जितनी associations आती थी आप सबके behalf पर और कहा किसी को कोई harass करे| वह बार-बार कहते थे, टैक्स लगा लो लेकिन harassment का हमें डर होता है इसलिए हम यह टैक्स का विरोध करते हैं, देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है| तो मैंने अपने मोबाइल नंबर दिया, किसी को कोई तकलीफ होगी तो सीधा मुझे फ़ोन करना, I will sort it out. आपको जानकर ख़ुशी होगी पूरा साल हो गया अभी उस बात को, मई last year की बात है, सवा साल, एक भी फ़ोन नहीं आया सवा साल में| Of course, दामन साफ़ होना चाहिए फ़ोन करने के लिए|

एक व्यक्ति आये थे मेरे पास हैदराबाद से, कुछ लोगों ने वह किस्सा शायदा सुना होगा, मैं दो-तीन बार बोल चुका हूँ, सार्वजानिक रूप से| एक हैदराबाद से मित्र आये मेरे पास, वह jewellery trade से नहीं थे पर ऐसे ही एक समाज के कोई संघटना के बहुत प्रमुख व्यक्ति थे, ‘भैया हमारे समाज के साथ बहुत अन्याय हो रहा है’| मैंने कहा अरे, समाज के साथ क्या हो गया? ‘यह आपका जो इनकम टैक्स विभाग है’, demonetization के चंद दिनों बाद की बात है, शायद जनवरी इस साल की बात है, ‘आपके इनकम टैक्स वाले हमारे समाज के साथ बहुत वह कर रहे हैं’| मैंने कहा यार इनकम टैक्स का और समाज का क्या संबंध है और आपके समाज हमारे समाज में क्या प्रॉब्लम है इनकम टैक्स को लेकर, मुझे लगा कुछ चैरिटेबल ट्रस्ट पर टैक्स लग गया हो ऐसा कुछ चिंता हो रही होगी| तो बोलता है इनकम टैक्स वाले हमारे एक jeweller को बहुत तंग कर रहे हैं|

मैंने कहा क्या हुआ बताओ तो केस बताओ, केस तो मालूम नहीं था| एक इनकम टैक्स का जो पंचनामा होता है, वह लेकर आये थे और मेरे को दिया, मैंने पढ़ा| Rs 94 crores cash में deposit हुए 8 नवम्बर और 18 नवम्बर के बीच, चलो ठीक है हो सकता है हर एक के पास… ईमानदारी के साथ deposit किये होंगे, कुछ लोग कहते हैं demonetization fail हो गयी, सब पैसे आ गए, उनको ध्यान ही नहीं है, सबसे ज्यादा अधिक सक्सेस हो गयी क्योंकि पैसे नहीं आते तो वह तो एक बार का नुकसान होता, सब पैसे आ जाने से अब जो डेटा माइनिंग हो रहा है तो उससे आदमी पकड़ में आ रहा है तो permanently आगे के लिए tax revenue बढ़ रहा है| पर अब दुर्भाग्य है कि वह जो नासमझ है वह तो वैसे ही रहेगा|

बोलता है 94 crores, मैंने कहा डिपाजिट… मैं इनकम टैक्स का पढता गया, बैंक ऑफ़ बरोडा ने refuse किया उसमें पैसा लेने में कि भाई बताओ, सोर्स बताओ तो एक निजी बैंक में जाकर अकाउंट खोलकर डिपाजिट कर लिए, फिर इनकम टैक्स ने पूछा भाई यह पैसे कहाँ से आ गए 94 करोड़, कुछ स्टॉक है, क्या है, बेचा, क्या किया? स्टॉक तो था नहीं, छोटी सी दुकान थी कोई शायद, बोलता है नहीं वह 8 तारीख की रात को 5000 लोग आ गए, सबने दो-दो लाख रुपये दे दिए बोला कि आप बाद में jewellery दे देना| चलो बहुत अच्छी बात है, 5000 लोग आना क्या बड़ी बात है, हैदराबाद तो बहुत बड़ा शहर है| आ गए 5000 लोग दो-दो लाख रुपये लेकर सब exact, दो लाख से कम, क्योंकि पैन कार्ड लगता है दो लाख से ज्यादा| बोला भाई इतना पैसा लेके लोग आये तो गिना तो होगा ऐसे तो नहीं रखा होगा, बोलता है हाँ 8 लोगों ने बैठके गिने| तो उनका कुछ नाम-पता दे दो? यह सब लिखा हुआ था इनकम टैक्स के पंचनामे पर, बोलता है अब वह नाम-पता अभी याद नहीं है कौन लोग थे वह| चलो हो सकता है नाम कभी भूल जाते हैं, किसी को ढूंढ लाये होंगे 8 लोग हैं वह सब भूल गए होंगे कौन है या पेपर गम हो गया|

पर इतने 5000 लोग थे कोई पुलिस आई होगी, या कुछ… बोले नहीं हमारे प्राइवेट सिक्यूरिटी गार्ड्स हैं| मैंने कहा अच्छा, उन्ही का नाम-नंबर दे दो, बोलता है वह सब भाग गए| 5000 लोग आ गए, दो-दो लाख रुपये लेकर आ गए, 8 बजे तो announcement हुई, मुझे सवा साथ बजे मालूम पड़ी, 8 बजे announcement हुई, इंगलिश वाली 8.30 बजे हुई, पर चलो हैदराबाद में तो हिंदी भी चलती है तो 8 ही reference point ले लेते हैं| समझने-सुमझने में 8.30 तो बजे होंगे, 12 बजे का समय सीमा थी, उतनी देर में 5000 लोग आ गए, अब यह कौन विश्वास करने वाले हैं? हम में से कोई भी एक जना भी हाथ उठा ले जो इसको विश्वास कर सकता है?

तो दामन साफ़ हो कोई चिंता की बात नहीं, और जितना हम संघटित होंगे और संघटित रूप से ईमानदारी से आवाज़ उठाने की क्षमता रखेंगे| कोई राजनीतिज्ञ से डरने की ज़रूरत नहीं है, कोई अधिकारी से डरने की ज़रूरत नहीं है, हिम्मत से हम खड़े रह सकते हैं और कोई प्रकार के हमारे ऊपर, किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं आएगा, यह मैं आपको पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ| खासतौर पर लघु उद्योग के लिए विशेष चिंता रहती है सरकार में भी, मुझे विश्वास है महाराष्ट्र हो, केंद्र सरकार हो या अन्य सरकारें हो, सभी लोगों को फिर से चुनके आने की भी इक्षा ज़रूर होगी दिल में तो आपके साथ कोई पंगा नहीं लेगा, पंगा दिल्ली का शब्द है माफ़ करिए, आज कल दिल्ल्ली मूव हो गया हूँ मुंबई से| आपके साथ कोई अड़ीबाज़ी नहीं करेगा, आपके साथ कोई आपको नुकसान नहीं होने देगा|

हम अपनी शक्ति संघठित बनाएं, अपने काम का विस्तार करें, और लोगों को साथ में जोडें और जीएसटी के बारे में जितनी आपको संगोष्ठी करनी है किसी प्रकार का अधिकारियों की requirement है, अधिकारी आयें, समझाएं, clarification दें, आप अलग-अलग industry segment की मीटिंग्स करना चाहें उसके लिए अधिकारी आपके लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं जहाँ चाहिए, जिस समय चाहिए जितनी बार चाहिए| पर हम यह मौका लें एक पूरी व्यवस्था को ईमानदार, फॉर्मल इकॉनमी की तरफ मूव करें, जब सभी लोग अपना-अपना टैक्स भरेंगे और टैक्स बसे बढेगा, wider होगा, तो टैक्स के रेट्स भी कम करने की संभावनाएं बढेंगी| अधिक रूप में टैक्स कलेक्ट होगा तो देश की सामाजिक जो कमियां हैं, जो इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियां हैं उसको सुधारने का और मौका मिलेगा, फिर चाहे वह सीमा पर खड़े जवान को ठीक प्रकार से ammunition मिले, हथियार मिले, चाहे वह ओडिशा का गरीब आदमी हो जिसको अपनी माँ या पत्नी को कंधे पर ढोके मीलों चलना पड़ा इलाज के लिए, चाहो वह विद्यार्थी हो जिसको आज तक बिजली नहीं मिलती है और उससे वंचित होने के कारण आपके और मेरे साथ और आपके और मेरे बच्चों के साथ वह बेचारा compete नहीं कर पता है| आपने अभी-अभी पढ़ा होगा कि NEET exam में 97% विद्यार्थी वह पास हुए जिनकी अंग्रेजी में जिन्होंने exam दिया|

आखिर यह व्यवस्था तभी बदलेगी जब गाँव में अच्छी शिक्षा मिलेगी, अच्छा स्कूल बनेगा कि उसको भी वही सुविधाएं मिलें जो शहर के और संपन्न लोगों के बच्चों को मिलती है| और इस सबके लिए साधनों की ज़रूरत है, वह साधन ईमानदार व्यवस्था में बढ़ेंगे, जीएसटी का तो लगभग 80-85% पैसा सीधा राज्य सरकार को जाता है, पहले सर्विस टैक्स पूरा सेंटर रखती थी अब वह भी स्टेट को जाना शुरू हो जायेगा| तो आप 18% या 100 रुपये जीएसटी दें, 50 सेंटर, 50 स्टेट के पास हैं| 50 सेंटर में 42% यानी 21 रुपये फिर सीधा स्टेट को devolution of funds में आते हैं 14वी वित्त आयोग के हिसाब से, फिर centrally sponsored अन्य-अन्य scheme चलती हैं तो और 10-15% और स्टेट को जाता है, तो 100 में 80 से 85 रुपये तो सीधा राज्य सरकार को आता है, सीधा राज्य सरकार उसमें से सुविधाएं दे सके|

तो ऐसी परिस्थिति में मुझे लगता है यह देश नए ईमानदार, संगठित, फॉर्मल इकॉनमी में प्रवेश कर रहा है, मुझे पूरा विश्वास है हम सबका भी व्यापार थोड़े समय के लिए, यह adjustment period, transition period में कुछ कठिनाइयाँ आ सकती हैं जिसके लिए भी हम तट पर हैं क्या सुधार करने की आवश्यकता है| लेकिन इसका long term जो इस देश के लिए अच्छा इफ़ेक्ट होगा, पॉजिटिव इफ़ेक्ट होगा उससे पूरे व्यापार और सरल होगा, टैक्स की व्यवस्था सरल होगी, टैक्स के अधिकारी या बाबूड़ोम जिसको कहते हैं उस व्यवस्था से भी हमें निजात मिलेगी, छुटकारा मिलेगा, ईमानदार लोगों का सम्मान बढेगा| कम्पटीशन इस आधार पर नहीं होगी कि हम कौन ज्यादा टैक्स चोरी कर सकता है और उसका सामान सस्ता होता है और ज्यादा बिकता है उसके आधार पर कम्पटीशन नहीं होगी, कम्पटीशन होगी तो गुणवत्ता पर होगी, quality of goods,  quality of service.

और मुझे पूरा विश्वास है छोटे उद्योग को और कैसे बड़ा होना, और कैसे ग्रो करना उसके साधन बढ़ेंगे, बैंकों में ईमानदार व्यवस्था आने के कारण हमें financial ability बढ़ेगी banks की पैसा देने की, आज banks भी समझ रहे हैं वह हजारों करोड़ लोन देने से तो हम सब अच्छे हैं, छोटा लोन लेते हैं, मेहनत करते हैं और ईमानदारी से वापिस देने की चेष्टा करते हैं|

तो ऐसी परिस्थिति में मुझे पूरा विश्वास है लघु उद्योग छोटे उद्योग का, मध्यम उद्योग का भविष्य बहुत ही सुरक्षित है, बहुत ही ब्राइट है| ऐसे में लघु उद्योग भारती और ज्यादा ज़िम्मेदारी से लघु उद्योग को देश भर में संगठित करे, हम तक उनकी बात, उनकी कठिनाइयाँ पहुंचाने का सेतु बने और मैं आपका विश्वास दिलाता हूँ कि सरकार की तरफ से हम सब आपके पीछे खड़े हैं, हम सब आपके साथ खड़े हैं और जो भी आप विषय हमारे समक्ष रखेंगे उसका highest level पर पूरे maximum consideration जितनी दी जा सकती है उसके लिए हम सब वचनबद्ध हैं|

बहुत बहुत धन्यवाद, आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं|

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