Speeches

July 7, 2017

Speaking at GST Programme in Pune

अनिल शिरोले जी, हमारे यहाँ के लोकप्रिय सांसद, माधुरितई मिसाल, सब   हमारे मंत्री कामले साहब, बाकी सभी वरिष्ठ नेता यहाँ उपस्थित हैं, जीतो के सभी वरिष्ठ नेता उपस्थित हैं – विजय भाई भंडारी, अजीतजी सेठिया, कृष्ण कुमार जी, राजेंद्रजी, सूर्यकांत जी, बृजमोहन जी, बालचंद जी, सबके विचार भी हमने सुने, सही बात है सोहनलाल जी और हितेश के कारण ही मैं यहाँ पर आया हूँ आज | लेकिन यह भी आप ध्यान दें कि मैंने स्वयं को self-invite किया है, आपने मुझे कोई न्योता नहीं दिया था आने के लिए |

मुझे लगा कि मैं पूना आ रहा हूँ तो अच्छा रहेगा कि आप सबसे भी मिलना हो जाये, थोड़ी वार्तालाप हो, कुछ मन में संदेह है तो मुझे भी सुनने का मौका मिले | और स्वाभाविक है जब इतना बड़ा परिवर्तन होता है, हम तो अपना अपना व्यापार करते हैं, आप एक दुकान को ही बदल लो, एक दुकान से दूसरी दुकान में बदल के नयी दुकान खोलो, तो सौ प्रकार की परेशानी आती है | साधारण नहीं होता है बदलाव करना | और अपने जीवन के आप कोई भी पहलू में देख लीजिये |

कल मेरा टेलर आया था कपड़े का नाप लेने के लिए, वह भी तीन बार आ चुका है लेकिन वह नाप ठीक से नहीं हो रहा है उसे | जिसने भी यहाँ पर arrangement किये उसने भी अपनी तरफ से बहुत परफेक्ट, अच्छी तरीके से सब व्यवस्था की होगी, लेकिन व्यवस्था करने में बहुत मेहनत लगी होगी | आप सबको invite करने के लिए किसी ने फ़ोन किये होंगे, चिट्ठी लिखी होगी, सबने मेहनत की होगी | हो सकता है दो-चार लोगों को शायद न्योता नहीं भी पहुंचा होगा, बाद में नाराज़ भी हो सकते हैं हमको नहीं बुलाया, और अपने समाज में तो नाराज़ होने में बहुत देर नहीं लगती है, बहुत फटाफट नाराज़ हो जाते हैं |

तो यह बदलाव और परिवर्तन के साथ जब एडजस्ट करो, जब चेंज होता है उसमें थोड़ा बहुत तो समय लगता ही है | और बदलाव शुरू में थोड़ा बहुत, यह तो इतना बड़ा बदलाव है जो मेरे ख़याल से विश्व में आजतक इतने बड़े मुल्क ने कभी नहीं की, कोई देश ने नहीं, इतने बड़े देश ने की | जितना बड़ा बदलाव, जितना बड़ा परिवर्तन, स्वाभाविक है उतनी थोड़ी बहुत कठिनाइयाँ भी आएँगी, थोड़ा सोचने-समझने में समय भी लगेगा | और यह उस प्रकार से एक ट्रांजीशन पीरियड है, लेकिन इस ट्रांजीशन पीरियड में हम सब जनप्रतिनिधि, चाहे किसी भी पार्टी के हों, हम सब आपके साथ जुड़े हुए हैं, हम सब आपके साथ लगातार संपर्क में रहेंगे, अधिकारी संपर्क में रहेंगे | क्योंकि यह कोई मोदी जी ने नहीं किया, कुछ वक्ताओं ने, पूर्व वक्ताओं ने यह कहने की कोशिश की कि मोदी जी का निर्णय है और आपने तारीफ भी करी उसकी |

मैं समझता हूँ अगर आप 30 तारीख की रात के भाषण देखें तो यह सांझी विरासत है, यह कोई एक पार्टी या मोदी जी ने कर लिया, ऐसा बदलाव या परिवर्तन नहीं है, चाहते हुए भी मोदी जी यह नहीं कर सकते थे जब तक सबकी आम सहमति नहीं बनती | आखिर आप सोचिये इस देश को आज़ाद हुए 70 वर्ष हो गए हैं, आप याद करिए, constitutional amendment भी बहुत हुए हैं इस देश में, कई चीज़ों में हमने परिवर्तन किया है अलग-अलग क्षेत्रों में | शायद भारत के इतिहास में यह इसलिए सबसे बड़ा परिवर्तन है क्योंकि इस परिवर्तन में सभी पार्टियों ने सर्वसम्मति से इसको पारित किया लोक सभा में, राज्य सभा में, देश भर की हर असेंबली में और अब आखिरी जो जम्मू कश्मीर थी वह भी कल पारित होने से यह वास्तव में One nation, One tax, One market और एक federal structure, संघीय ढांचा कैसे collaborative होना चाहिए, कैसे cooperation से centre और state चलने चाहिए, कैसे जब सब मिलजुल कर सभी सरकारें देशहित और जनहित में काम करेंगी उसकी यह एक जीता-जागता मिसाल है |

और मैं समझता हूँ इसके लिए वास्तव में सभी पार्टियों ने मिलकर इसको पारित करने से एक बहुत बड़ा संकेत देश को और पूरे विश्व को दिया है कि जब देशहित और जनहित की बात होती है तो हम अपने पोलिटिकल, राजनीतिक मतभेद दबा के भी, ऊपर उठके, मतभेद से ऊपर उठ के देशहित की बात कर सकते हैं | तो एक प्रकार से इसकी अगर तारीफ की जाये, इस बदलाव के लिए अगर धन्यवाद किया जाये तो सभी दलों का धन्यवाद होगा, सभी पार्टियों का धन्यवाद होगा | आखिर इस बदलाव को शुरू हुए करीब-करीब 14 वर्ष हो गए हैं, 14 वर्ष पहले का वनवास इस वर्ष पूरा हुआ है, 2003 में जब प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार थी तब जसवंत सिंह जी ने इसकी कल्पना सबसे पहले देश के समक्ष रखी थी |

एक विजय केलकर जी जो आपके पुणेकर ही हैं, उनकी अध्यक्षता में जो committee बनी उसने यह Goods and Services Tax की पहले कल्पना बनाई, 2003-2004 में यह रिपोर्ट दी गयी| 2006-07 के बजट में उस समय के वित्त मंत्री चिदंबरम साहब ने इसको बजट में announce किया कि कांग्रेस की सरकार और UPA की सरकार Goods and Services Tax लाना चाहती है | जब महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुख़र्जी जी वित्त मंत्री थे तब 2011 के बजट में उन्होंने GST का कानून देश के समक्ष रखा था | फिर स्टैंडिंग कमिटी के सामने गया जिसमें सभी पार्टी के सदस्य थे, सबने मिलकर कुछ recommendations दीं, जब तक वह recommendations कांग्रेस की सरकार लागू कर सकती थी, समझ सकती थी वह चुनाव हार गए | फिर बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार आई और तीन साल से लगातार दिन और रात के प्रयत्नों और विचार-विमर्श करने के बाद और सभी पार्टियों में कांग्रेस भी हैं, सभी पार्टियों में कम्युनिस्ट भी हैं, सभी पार्टियों में तृणमूल कांग्रेस भी है, तृणमूल कांग्रेस के सदस्य तो पार्लियामेंट में अनिल जी बताएँगे सबसे अग्रसर रहते थे कि जीएसटी का पालन करो, जीएसटी को पारित करो | बाकी सब छोड़ो आम आदमी पार्टी भी इसके पक्ष में है |

अब जब इतनी सर्वसम्मति से कोई चीज़ हुई है जिसमें हर पार्टी ने सहयोग दिया है, कोई पार्टी जिसकी राज्य सरकार न भी हो एक मिनट के लिए ऐसी भी कई पार्टीज़ हैं जिनका राज्य सरकार में योगदान नहीं है, केंद्र में भी नहीं है, उन्होंने भी अपनी अपनी असेंबली में या अगर लोक सभा, राज्य सभा में उनके कोई सदस्य हों उनके माध्यम से उन्होंने भी इसका समर्थन किया | यह अलग बात है कि कभी कभी जब दिखता है कि कोई बदलाव अच्छा हो रहा है, जनता खुश है, देश में इसकी ख़ुशी मनाई जा रही है तो कई बार राजनीतिक दल दुविधा में हो जाते हैं और फिर छोटा-मोटा राजनीतिक मतभेद फिर शुरू हो जाता है | तो अब कुछ नेताओं ने कहा कि इसका जश्न रात को बारह बजे क्यों मनाया जा रहा है, अगर दोपहर को बारह बजे मनाओगे तो हम शामिल होंगे, रात को मनाया इसलिए हम शामिल नहीं हो रहे हैं, यह छोटे-मोटे मतभेद आते रहते हैं राजनीति में |

हम समझ नहीं पा रहे थे कि वह जीएसटी के समर्थन में अभी भी हैं या नहीं हैं, फिर मालूम पड़ा नहीं, हम समर्थन में जीएसटी के हैं पर रात के बारह बजे के कार्यक्रम के समर्थन में नहीं है | चलिए ठीक है | आज के पेपर में मैं पढ़ रहा था, एक पूर्व वित्त मंत्री जिन्होंने जैसा मैंने पहले अभी बताया इसकी कल्पना हम लागू करेंगे ऐसा घोषित किया था 2006-07 में | उन्होंने कहा है यह जीएसटी अच्छा नहीं है, यह 18% से ज्यादा कोई भी चीज़ का रेट नहीं होना चाहिए था | मैं तो हैरान हो गया यह देखके, मैंने कहा जो लोग पूरे समय गरीब की बात एक ज़माने में करते थे उन्होंने गरीबों का दामन छोड़ दिया, किसानों का दामन छोड़ दिया, शोषित, वंचित, पीड़ितों का दामन छोड़ दिया, अब उनको चिंता हो रही है कि बीएमडब्ल्यू कार पर 28% टैक्स है, उसके ऊपर सेस भी लगेगा, अब उनकी बैटिंग करनी शुरू कर दी है | अभी लगा कि गरीब तो हमारे हाथ से गए, हमें आजकल वोट देते नहीं है, बहुत कम एमपी रह गए हैं कि हम लीडर ऑफ़ ओपोसिशन भी नहीं बन सकते, पता नहीं अगली बार सिंगल लार्जेस्ट ओपोसिशन पार्टी भी रह पाएंगे कि नहीं अगर इस प्रकार से कन्फ्यूज्ड स्टेट में रहेंगे, कन्फ्यूज्ड पार्टी रहने से कभी जनता का समर्थन नहीं मिलता है, अपना स्पष्ट विचारधारा होनी चाहिए |

लेकिन आप सोचिये, क्या इस देश में, विदेशों में ज़रूर कई देशों में ऐसा है कि एक रेट है टैक्स का, यहाँ पर तो आप 0 और 5% के विषय में मेरे साथ इतने सवाल-जवाब कर रहे हो, वह पार्टी कहती है कि रेट ही एक या दो होने चाहिए पूरे देश में | यानी सब चीज़ों के ऊपर 15% या 18% टैक्स लगना चाहिए, क्या ऐसे देश में स्वीकृति हो सकती है क्या जिस देश में आज भी 30-35% लोग ऐसे हैं जिनको दो वक़्त की रोटी नहीं मिलती है, क्या संभव है ऐसे देश में कि रबर की चप्पल के ऊपर भी जीएसटी और बीएमडब्ल्यू कार या मेर्सडीस कार पर भी जीएसटी एक हो सकता है इस देश में? क्या यह न्याय होगा गरीबों के साथ? क्या किसानों के साथ यह न्याय होगा?

तो मैं समझता हूँ कि मौजूदा देश की परिस्थिति को समझते हुए जो आज के दिन जीएसटी का कानून बना है और मैं पुनः आपको बताता हूँ, यह सर्वसम्मति से बना है, 17 मीटिंग हुई जीएसटी कौंसिल की | अच्छा आप सबने मुझे रिप्रजेंटेशन दिया पूरा फोल्डर मेरे पास है, मैं ज़रूर दिल्ली लेकर जाऊंगा, लेकिन इसमें मोदी जी या जेटली जी या कोई भी कुछ नहीं कर सकता है | हम एक सदस्य हैं जीएसटी कौंसिल में, कुल 30 सदस्य हैं, हर राज्य के वित्त मंत्री उसमें प्रतिनिधि के रूप में और केंद्र के वित्त मंत्री एक हैं |

वास्तव में आप ज़रा विचार करिए, ऐसा कौन सा पहले राजनीतिक नेता आया है या राजनीतिक पार्टी आई है या सरकार आई है इस देश में जो अपना टैक्स करने का पॉवर भी स्वयं होकर छोड़ने को तैयार है | आप विचार करिए, सर्विस टैक्स का पॉवर हमारे हाथ में था, एक्साइज का पॉवर हमारे हाथ में था और उस मात्रा में वैट के रेट्स भी पावर्स अलग-अलग स्टेट के हाथ में थे | सभी ने देशहित में यह निर्णय किया कि हम सब अपने पावर्स को छोड़ते हैं और एक जीएसटी कौंसिल जिसमें सभी राज्यों के प्रतिनिधि मिलकर देशहित, जनहित में फैसले लेगी, हम सब अपने पावर्स उनके समक्ष रखते हैं | आप सोचिये कितना बड़ा त्याग भी है, बलिदान भी है लेकिन जनता के हित में कितना बड़ा फैसला है |

क्योंकि इससे क्या होगा? पूरे देश में जब एक सामान्य टैक्स एक वस्तु के ऊपर लगेगा तो कम्पटीशन इस बात पर नहीं होगी कि मेरे यहाँ पर कुछ मुझे विशेष अधिकार मिलते हैं तो मेरा माल सस्ता है, दूसरे राज्य में वह विशेष अधिकार नहीं मिलते हैं तो उसका माल महंगा है इसलिए वहां का व्यापार बिज़नेस से बाहर हो गाया | दूर क्यों जाना, कितनी चीज़ें हैं जो महाराष्ट्र में बनती थी जो आज हमारे आजू-बाजू इर्द-गिर्द के स्टेट्स में चली गयीं हैं क्योंकि यहाँ का टैक्स ज्यादा था, बाजू में टैक्स कम था |

आप दवाइयाँ देख लो, जब उत्तराखंड, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पूर्वांचल, सिक्किम, अरुणाचल वगैरा, असम में कन्सेशन्ज़ दिए गए, तो कितने लोगों ने वहां पर अपना ऑपरेशन शिफ्ट कर दिया? उससे यहाँ पर नुकसान हुआ कि नहीं हुआ? व्यापार को भी नुकसान हुआ, उद्योग को भी नुकसान हुआ | इस सब को बदलाव करने के लिए जब देश में एक रेट, एक वस्तु के ऊपर पूरे देश में होगा उससे व्यापार करना कितना सरल होगा, व्यापार में गलत काम रोकना कितना सरल हो जायेगा इसका अहसास आप अगर विचार करें तो गेम-चेंजिंग डिफरेंस होगा हमारे व्यापार करने के ढंग में | और शुरुआत में थोड़ी चीज़ें समझने में हमें समय लग सकता है, इसके लिए पहला रिटर्न भी दो महीने तक नहीं फाइल करना पड़े, एक सिंपल रिटर्न अगस्त में फाइल करने से काम चल जाये उसकी व्यवस्था की गयी है | लेकिन यह स्पष्ट हो कि यह सब चीज़ों के ऊपर निर्णय करने का अधिकार अब किसी एक व्यक्ति या एक सरकार और चाहे वो प्रधानमंत्री क्यों न हो किसी का नहीं रहा | अब निर्णय तो सामूहिक ही होंगे, और सामूहिक निर्णय भी आज तक का ट्रैक रिकॉर्ड है सर्वसम्मति से हुआ है |

मुझे याद है कुछ विषयों पर अरुण जी और मेरी चर्चा हो रही थी, उनको और मुझे दोनों को जायज़ लगा कि हाँ यह इस प्रकार से होना चाहिए लेकिन जब राज्यों के समक्ष रखा जीएसटी कौंसिल में, राज्य नहीं माने और हम बदलाव नहीं कर पाए, हमें लग रहा था कि जेन्युइन है पर बदलाव नहीं कर पाए | और यह जीएसटी रेट्स कोई arbitrarily नहीं बने हैं, इसके पीछे पूरा साइंटिफिक सिस्टम गया है | एक फिटमेंट कमिटी बैठती थी, वह फिटमेंट कमिटी देश में अलग-अलग राज्यों में क्या टैक्स रेट्स हैं उसका पूरा स्टडी करती थी, स्टडी करके weighted average निकालती थी कि समझो महाराष्ट्र में 100 रुपये का व्यापार है और यहाँ 10% टैक्स है | और दूसरे प्रदेश में 900 रुपये का व्यापार है और वहां 20% टैक्स है तो दोनों का weighted average, 10 और 20 का average 15 नहीं, दोनों का weighted average कि 20% का 90% व्यापार अगर 20% टैक्स पर है तो वह 18 हो गया और 10% व्यापार 10% पर है तो एक, दोनों कुल मिलाकर weighted average 19 हो जाता है | और उसके सबसे नजदीक जो रेट है – 0, 5, 12, 18, 28 – इन सबके बीच जो सबसे नजदीक रेट है उसमें कुछ वस्तुओं में 1-2% बढ़ा, अधिकांश वस्तुओं में कुछ न कुछ घटा ही है, और जो कैस्केडिंग इफ़ेक्ट था टैक्स का, टैक्स के ऊपर टैक्स के ऊपर टैक्स जो रखता था, जो व्यापार में वापिस नहीं मिलता था, जो सिस्टम में लूज़ हो जाता था, उसका इफ़ेक्ट उपभोक्ताओं पर ना पड़े और उसका क्रेडिट भी मिले, उसकी वजह से यह जीएसटी की कल्पना सबसे पहले की गयी थी |

मुझे याद है मैं स्वयं फैक्ट्री चलाता था जब बहुत छोटा था, चार-चार प्रकार के हमें रजिस्टर रखने पड़ते थे, एक्साइज अलग pay करना पड़ता था, सर्विस टैक्स अलग pay करना पड़ता था, वैट अलग pay करना पड़ता था | बाकी तो दुनिया भर के टैक्सेज अलग थे, 17 टैक्सेज और 23 सेस्सेज़, सब मिलाकर यह जीएसटी बना है – 17 टैक्स और 23 सेस | स्वाभाविक है हर एक को पूरे 40 के 40 नहीं लगते होंगे पर हम सबको अपने अपने व्यापार में कई टैक्सेज लगते थे, अलग-अलग सेस लगते थे | हम अलग-अलग राज्य में काम करते थे तो राज्यों में अलग टैक्स लगते थे, पूरे टाइम फॉर्म भरते रहना पड़ता था, ऍन-फॉर्म, फलाना-ढिमका | ज़रूरत पड़े और अगर आपको बाहर व्यापार करना है तो आपको डीपो खोलना पड़ता था, डीपो खोलना पड़े तो उसके लिए अलग खर्चा करना पड़ता था |

हम जितना टैक्सेज़ अलग-अलग वस्तुओं पर pay करते थे, उस सबका क्रेडिट नहीं ले पाते थे | उस सबको जब सम्मिलित करके जीएसटी की व्यवस्था बनाई जाती है तो जो जो टैक्स हर स्टेज पर लगता है वह टैक्स आपको पास-ऑन इनपुट क्रेडिट के माध्यम से मिले और सिर्फ जो वैल्यू ऐड है उसके ऊपर आपको एडिशनल टैक्स लगे, इस प्रकार की व्यवस्था साधारणतः जीएसटी को समझाती है |

अब ऐसी परिस्थिति को बनाने के लिए हजारों घंटे देश भर के सभी अधिकारियों ने मिलजुलकर यह व्यवस्था बनाई | आखिर सब राज्यों को अपनी-अपनी भी revenue का, अपनी-अपनी भी जो ज़रूरतें हैं उनको पूरा करने की आवश्यकता थी | लगभग 52,000 ऑफिसर इसकी स्टडी में लगे इस विषय में ट्रेन हुए देश भर में और उसके बाद जीएसटी का कानून 1 जुलाई को लागू किया गया – 52,000 ऑफिसर | लगभग 4,500 वर्कशॉप और मुझे पक्का विश्वास है पुणे में भी बहुत वर्कशॉपस हुई होंगी, इसकी पूरी जानकारी वेबसाइट पर available है | 4,500 से अधिक वर्कशॉप देश भर में की गयी जिसमें जीएसटी की जानकारियां लोगों तक पहुंचाई गयीं | अब यह सब जब करने से एक व्यवस्था जिसमें सब राज्य सरकारें, केंद्र सरकार ने मिलकर लागू किया, उसमें जो ट्रांजीशनल पीरियड है, उसमें स्वाभाविक है थोड़ा एक संदेह रहता है लगता है कि 37 रिटर्न है हमें समय लगेगा समझने में |

वास्तव में जब मैंने इसको स्टडी किया तो मैं तो हैरान हो गया कि यह 37 रिटर्न कौन आप लोगों को गाइड कर रहा है | वस्तुस्थिति तो यह है कि इसमें एक भी रिटर्न नहीं है, एक भी रिटर्न नहीं है और यह मैं बड़े दावे के साथ कह रहा हूँ | मुझे याद है हम बनाते थे एक सेल्स रजिस्टर वैट के लिए, एक सेल्स रजिस्टर एक्साइज के लिए, एक सेल्स रजिस्टर एंट्री टैक्स के लिए, सामने हम बनाते थे परचेस रजिस्टर हर अलग-अलग व्यवस्था के लिए | उसके बदले अब जो यह सिस्टम इन्होंने बनाया है, जीएसटी कौंसिल ने, और मैं दात दूंगा कि इन्होंने इतना सोच-समझकर यह जो ऑटोमेटेड सिस्टम बनाया है, इसमें हमें एक बार – एक ही बार हमारी सेल्स इनवॉइसिज़ डालके एक सेल्स रजिस्टर बनानी है, जैसे ही हम अपने ईमानदारी से सब सेल्स को डाल दें उसके बाद वास्तव में हमें कुछ नहीं करना है | जो परचेस रजिस्टर पहले बनती थी वह अब ऑटो-पॉप्युलेट होकर आएगी, मतलब सिस्टम से अपने आप जेनरेट होगी क्योंकि जिससे आप माल खरीदते हो जब वह सेल करेगा आपको और सेल रजिस्टर में उसके डालेगा तो आपके यहाँ पर अपने आप से वह परचेस के रूप में बनेगी |

कुछ purchases होंगी आप unregistered dealer से लेंगे या कोई bye chance गलती से किसी ने सेल रजिस्टर अपनी नहीं बनाई और डाला नहीं या गलत जीएसटी नंबर डाल दिया आपके वहां पर परचेस रजिस्टर नहीं आया, थोड़े समय तक यह समस्याएं आएँगी, आप फ़ोन करके उसको बोल सकते हैं कि भाई आपके सेल्स रजिस्टर में मेरा परचेस दिख नहीं रहा है, आप ज़रा उसको दुरुस्त कर दीजिये | अगर कोई व्यक्ति नहीं डालना चाहे सेल्स रजिस्टर, नंबर दो का धंदा करना चाहे और नहीं डाले तो आप अपने परचेस रजिस्टर में वह परचेस दिखा सकते हैं, वह अपने आप उनके सेल्स रजिस्टर में दिखेगा | और कंप्यूटर को ध्यान आएगा कि उन्होंने अपना सेल्स रजिस्टर ठीक से नहीं बनाया है, कुछ सेल छुपाने की कोशिश की है |

और यह थोड़े दिनों की बात है, आहिस्ते-आहिस्ते जब सरलता आ जाएगी तो सबको समझ में आ जायेगा कि अभी चोरी करने की कोई संभावना नहीं रही | पहले क्या था एक्साइज ऑफिस अलग था, वैट ऑफिस अलग था, एंट्री टैक्स अलग था, आगे चलकर क्या पता इनकम टैक्स भी इसमें जुड़ जाये तो उनको भी डेटा इसमें से सीधा मिल जायेगा | तो एक ऑफिसर आपको पकड़ ले और उससे आप सांठगांठ कर लो तो पहले तो छूट सकते थे, अब छूटने की संभावना ख़त्म सी हो गयी है क्योंकि पूरा डेटा एक ही सिस्टम में आ जायेगा, पूरी वैल्यू चेन में 10 जगह अगर माल move होता है – समझो कोई यार्न बेचता है, सिंस टेक्सटाइल की बड़ी तीव्र बात करना कोई चाह रहे थे सज्जन, कोई यार्न बेचता है और कपडा व्यापारी उसको अपने रिकॉर्ड के बगैर बना के बेचने की कोशिश करे तो कंप्यूटर में दिखेगा कि यार्न तो इतना सारा बेचा जा रहा है सोहनलाल जी को लेकिन उसके बाद क्या हो रहा है कुछ दिख ही नहीं रहा है कंप्यूटर में |

कुछ लोगों को तकलीफ इसमें अधिक इसलिए आ रही है क्योंकि इस नयी व्यवस्था का पहले ध्यान नहीं आया कि इस व्यवस्था में अब चोरी करने की संभावना लगभग ना के बराबर हो गयी है | यह पूरा ट्रैक करता है वैल्यू चेन में कहाँ-कहाँ माल जाता है जिससे हर एक व्यक्ति को ज़िम्मेदारी बढ़ जाएगी कि मुझे पूरा अपना व्यापार ईमानदार बनाना पड़ेगा, ईमानदार रखना पड़ेगा | मैं पूरी तरीके से सहमत हूँ जिस भाई ने कहा कि प्लीज आप सबको चोर मत समझिये, हम कैसे चोर समझ सकते हैं? मैं खुद व्यापारी रहा हूँ, हम कैसे आपको चोर समझ सकते हैं | और यह बात भी सच है हर व्यवस्था में कोई न कोई गलत काम करते हैं, तो क्या गलत काम को रोकना है कि कभी रोकना नहीं है? रोकना तो पड़ेगा ना कभी न कभी?

आखिर यह टैक्स जो pay होता है, यह टैक्स कहाँ जाता है? अगर कोई कटिया मारकर बिजली लेता है और किसी को रिश्वत देता है और असली बिजली का बिल नहीं भरता है तो वह ऐसा नहीं है कि वह बिजली का बिल किसी से रिकवर नहीं होगा, वह ईमानदार आदमी के ऊपर उस बिजली का भर जाता है जो चोरी की बिजली होती है | एक बाज़ार में अगर दस व्यापारी हैं अगर यह सभी लोग इस स्टेज पर बैठे ईमानदार व्यापार करना चाहें और मैं टैक्स की चोरी करूँ | तो आप सब उपभोक्ता तो मेरे यहाँ पर आओगे, मेरा माल सस्ता होगा, मेरा तो व्यापार फ्लरिश करेगा, बहुत अच्छा चलेगा | फिर यह सब भाई-बहन क्या करेंगे? या तो इनको अपना व्यापार बंद करना पड़ेगा और या इनको भी चोरी करनी शुरू करनी पड़ेगी | और आप्शन क्या है? कम्पटीशन फेयर कैसे होगा? या तो यह भी टैक्स की चोरी करें और या धंधा बंद करके कुछ और धंधा ढूँढें |

और मैंने जितनी जगह यह प्रश्न पूछा मेरे व्यापारी और उद्योग के भाई-बहनों से उसमें सबसे ज्यादा अगर इस बात का समर्थन मिला है तो वह युवा पीढ़ी से मिला है, युवा पीढ़ी सबसे खुश होती है हमको रात को चैन की नींद चाहिए, बाप-दादा की तरह टेंशन नहीं चाहिए | हमको दो-दो बहीखाते नहीं रखने हैं – क्या भाई बिल बनाओ, बिल नहीं बनाओ | बिल बनाना है तो इधर लिखेंगे, बिल नहीं बनाना है तो इधर लिखेंगे | क्या हम यह करना चाहते हैं क्या? चैन की नींद सोयेंगे, रात को अपना नाटक-वाटक देखने जायेंगे – अभी कौन सी पिक्चर आ रही है? जग्गा जासूस | रात को वह पिक्चर देखने जायेंगे, अगले दिन सुबह फैक्ट्री पहुंचे या दुकान पहुंचे, अगर bye chance और मुझे याद है मेरे फैक्ट्री के दिन जब मैं फैक्ट्री चलाता था | सुबह अगर आप फैक्ट्री पहुँचो और गेट के बाहर एक सफ़ेद एम्बेसडर खड़ी हो |

अच्छा और अगर सफ़ेद एम्बेसडर पर – माफ़ करिएगा भाई साहब आप, मुझे मालूम नहीं आप कौनसे डिपार्टमेंट से आते हैं – लेकिन अगर उसपर लिखा हो – सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ कस्टम्स एंड एक्साइज – फिर तो चलो आज रात को घर जायेंगे कि नहीं वो ही नहीं मालूम | था कि नहीं यह बात? अच्छा क्यों करना पड़ता था कोई ऐसा नहीं कि हर एक आदमी को चोरी करने में कुछ मज़ा आता था | चोरी के ना तीन कारण मेरे ध्यान में आते हैं | या तो अधिकारी और राजनीतिक नेताओं को आपको पैसा रिश्वत देना पड़ता था, या जैसे मैंने बताया कम्पटीशन में खड़े रहने के लिए चोरी करनी पड़ती थी, हाँ एक तीसरा कारण यह है कि किसी के खून में ही चोरी रहती है वह अलग बात है, उसको तो कोई कुछ कर नहीं सकता है | कुछ लोगों को तो चोरी नहीं करी तो तकलीफ होती है|

मुझे याद है एकाद जगह तो मुझे किसी ने खड़े होकर बोला कि हमें यह बताओ मैं टैक्स क्यों भरूं? मैं बड़ा हैरान हुआ | और भाईयो बहनों मैं आपको बताऊंगा टैक्स क्यों भरना चाहिए | आप ज़रा सोचिये जब आप टैक्स की चोरी करते हैं, हो सकता है कि यह जो टैक्स आप भर रहे हो, इससे किसी गरीब के घर में दूसरे वक्त की रोटी पहुंचेगी, हो सकता है जो आप टैक्स भर रहे हो उससे किसी विद्यार्थी को गाँव में शायद शिक्षा मिलेगी जिससे आपके और मेरे बच्चों की तरह वह भी समाज में अपना स्थान ले सकेगा, एक आत्मनिर्भर जीवन जी सकेगा, हो सकता है जो आपने टीवी में देखा कि ओडिशा में एक किसान को अपनी बूढी माँ को घंटों अपने कंधे पर उठा के अस्पताल ले के जाना पड़ा, क्योंकि गाँव में अस्पताल नहीं था, गाँव में सुविधा नहीं थी, हो सकता है उसको ही ना करना पड़े | हो सकता है कि आपने जो टैक्स की चोरी नहीं की उससे किसी गरीब महिला के घर में सस्ती एलपीजी पहुँच जाये जिससे उसको 400 सिगरेट जितना धुआं नहीं लेना पड़ेगा अपने बच्चों को खाना बना के देने के लिए | क्या यह enough reason नहीं है टैक्स pay करने का?

हम भी आखिर कभी न कभी मूलतः गाँव से आये हैं, मैं अभी सुन रहा था आप सब मारवाड़ी में बात कर रहे थे, ज़रा जा के राजस्थान के गावों की हालत तो देखिए, गुजरात में जा के कोई गरीब की झोपडी में जा के देखिए | ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, इन सब इलाकों में नक्सलवाद, माओवादी तंत्र क्यों फैलते जा रहे हैं | क्या उनको यह नहीं दिखता है कि ऐसे आलिशान घरों में एक समाज का वर्ग बैठा है और उनके जीवन में क्या हालत है| आखिर demonetization, जब विमुद्रीकरण हुआ, क्यों इस देश का हर एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री मोदी जी का समर्थन किया, क्यों उसके बाद पूरे देश में गरीबों में, किसानों में, जो वंचित, पीड़ित रहे हैं इतने वर्षों में उनमें उत्साह आया क्योंकि उनको दिखा कि कोई एक व्यक्ति है जो गरीबों की चिंता करता है, जो चिंता करता है कि यह जो कई बार नंगा नाच होता है काले धन का उसपर कभी न कभी रोक आनी पड़ेगी |

मेरे को एक दिन एक बड़ा उद्योगपति घर पर समझा रहा था यह विमुद्रीकरण के ही दिन थे, मैंने कहा कि समझ नहीं आ रहा है कि यह इतना ज्यादा कोई आदमी लाइन में खड़ा है, क्यू में खड़ा है, 3 घंटे से परेशान है धूप है, उसको भी वह टेलीविज़न का एंकर, मैं नाम नहीं लूँगा आप सब समझदार लोग हैं, वह जाकर उसके मुंह में माइक घुसा रहा है कि तुम तो बहुत परेशान होगे ना विमुद्रीकरण से? फिर भी बोलता है नहीं नहीं मैं परेशान नहीं हूँ, मोदी जी ने बहुत अच्छा किया | बहुत सारे TV anchors आते थे सब जगह ‘कुछ तो बोलो बोलो ना बहुत मोदी के खिलाफ कुछ तो बोलो’|

क्यों नहीं लोग बोलते थे? उनको विश्वास था कि यह देशहित में किया है, हमारा फ़ायदा होगा उससे | और काला धन ख़त्म करने के यह एक कदम से यह नहीं होता है, यह पूरा एक प्रवाह होता है और पहले दिन से यह सरकार ने आ के एक के बाद एक कदम लिए हैं और साथ-साथ में छूट भी दी है | किसी ने कहा कि भाई कुछ शुरू में अगर गलती रह गयी है तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कोई harassment की किसी की कल्पना ही नहीं है | आपको कोई दो-तीन महीने कुछ गलती हो गयी, कुछ गलती सुधार करनी है, पूरी तरीके से सभी अधिकारी इसमें संवेदना के साथ आपकी मदद करेंगे, कोई आपको harass नहीं करेगा | और कोई harassment हुई तो एसोसिएशन के थ्रू सीधा जनप्रतिनिधियों को बताइये, अनिल को बताइये, मधुरितई को बताइये, मेरे तक लाइये | सीधा PMO भी आजतक तो आपके साथ सीधा जुड़ा हुआ है, नरेन्द्र मोदी ऐप्प पर जा के आप complain कर सकते हो, हाईएस्ट लेवल पर, प्रधानमंत्री के साथ आपका संवाद है, कोई harassment नहीं होने देंगे |

मुझे याद है जब jewellers स्ट्राइक पर थे तब मैं पूना भी आया था, और जीतो के ही कार्यक्रम में कुछ नोक-झोक भी हो गयी थी इस विषय में, स्ट्राइक भी की इन्होंने, सब कुछ हुआ, घंटों हमारी चर्चाएं हुईं | और मुझे याद है मैंने एसोसिएशन के लोगों को मेरे पर्सनल मोबाइल नंबर दिया था, किधर भी harassment होगा तो सीधा मुझे बोलना, हाँ अपना दामन साफ़ होना चाहिए, उसका भी उदाहरण बड़ा इंटरेस्टिंग है | वैसे एक साल में सोहनलाल जी एक फ़ोन नहीं आया, एक साल हो गया है एक्साइज ड्यूटी jewellery पर लगे, किसी एक का भी फ़ोन नहीं आया, मेरा पर्सनल नंबर दिया था सबको जितने एसोसिएशन के लोग मेरे साथ निगोशिएट करते थे, बात करते थे उस समय |

एक व्यक्ति ज़रूर हैदराबाद से मेरे पास आया, बोले साहब, हैदराबादी लहजे में बोले, मुझे बोलना आता नहीं है | बोले हमारे समाज के साथ बहुत अन्याय हो रहा है, मैंने कहा अरे विमुद्रीकरण और हमारे समाज का क्या संबंध है? बोले नहीं नहीं साहब हमारे ही समाज के साथ विमुद्रीकरण में बहुत अन्याय हुआ, मैंने कहा बताओ तो सही क्या है, तो उन्होंने मुझे कागज़ दिखाए, मैंने पढ़े | एक jeweller ने हैदराबाद में 8 नवंबर और 18 नवंबर के बीच 95 करोड़ रुपये कैश में डिपाजिट किये हैं, 95 करोड़ | बैंक ऑफ़ बड़ौदा  ने लेने से इंकार किया,  बोला इसका रीज़न बताओ, तो दूसरे निजी बैंक में, प्राइवेट बैंक में खाता खोलकर डिपाजिट किया | स्वाभाविक है आजकल तो डेटा मैनिंग सब कंप्यूटर पर होता है, किसी व्यक्ति को कुछ नहीं करना पड़ता है, फट करके ट्रिगर आ जाता है Financial Intelligence Unit के पास, पहुँच गए भैया अधिकारी वहां पर, बताओ ये 95 करोड़ कहाँ से आया?

बोला साहब क्या करें 5,000 लोग मेरी दुकान पर पहुँच गए विमुद्रीकरण के बाद, 8 बजे प्रधानमंत्री जी ने announce किया था, 8.30 बजे अंग्रेजी में, हैदराबाद का किस्सा है पर चलो समझो हिंदी भी समझ में आता है, 8 बजे का ही पकड़ लेते हैं | मुझे ही सवा सात बजे मालूम पड़ा जब कैबिनेट में बोला तो उसको तो positively या उसके 5,000 उपभोक्ताओं को तो नहीं मालूम था और 12 बजे डेडलाइन थी | बोलता है क्या करू 5,000 लोग आ गए, सबने मुझे 2-2 लाख रुपये दे दिए कि बाद में आप मुझे सोना बनाकर दे देना, जवाहरात बनाकर दे देना, क्योंकि स्टॉक तो था नहीं इतना उसके पास | तो 95 करोड़ का फ्यूचर सेल उसने 8 या जब भी उसको समझ में आया, जब भी उपभोक्ताओं को समझ में आया तब से 12 बजे तक 95 करोड़ आ गए, उसने ईमानदारी से बैंक में जमा कर दिया, ईमानदारी से | बोला अरे 5,000 लोग आये, तो इतना पैसा लेकर आये तो किसी ने बैठ के गिना तो होगा, बोला हाँ मेरे 8 लोगों ने गिना यह पैसा, बोला उनका नाम-नंबर ही बता दो, बोला मैं भूल गया हूँ उनका नाम और नंबर | यह सब इनकम टैक्स के पंचनामे में लिखा हुआ मैंने पढ़ा |

बोला इतने लोग आये तो भीड़ हो गयी होगी दुकान के बाहर तो कुछ व्यवस्था, कानून व्यवस्था, कोई पुलिस को बोला, क्या किया? बोला कि नहीं सिक्यूरिटी है मेरी, अच्छा सिक्यूरिटी गार्ड का ही नाम बता दो? बोला वह भाग गया |

एक केस आया है मेरे पास एक साल में jewellers का, इसके इलावा किसी ने मुझे आजतक contact नहीं किया harassment के लिए | अगर यह harassment मानी जाएगी व्यापारी की तो आप और हम सब कहाँ मुंह दिखाने रहेंगे और क्या फिर हमारे व्यापारी समाज का इज्ज़त रह जाएगी | और एक मौका है देखिए भाईयो-बहनों, एक मौका और है, भूल जायें पुराने रास्ते, भूल जायें कैसे व्यवस्था चलती थी, क्यों ना हम सब इस ईमानदार व्यवस्था के साथ जुडें | देखिए, अब रेट तो सबके लिए same है, कम्पटीशन अब फेयर होगी, चाहे यह हो, मैं हूँ, आंध्र प्रदेश में हूँ, हिमाचल में हूँ, या सिक्किम में हूँ | देश भर में एक वस्तु का रेट एक ही रहेगा, कम्पटीशन फेयर होगी, ऐसे में क्यों ना हम सब इस व्यवस्था के साथ जुड़ने की कोशिश करें | अगर सबने अपना सेल्स इनवॉइस ईमानदारी से डाल दिया, आपको कोई रिटर्न बनाने की ज़रूरत नहीं है, परचेस रिटर्न अपने आप बनेगा, दूसरों के सेल्स इनवॉइस से | दोनों का मैचिंग करके आपको तो सिर्फ check करना है कि कोई रह तो नहीं गया सेल्स इनवॉइस – कोई परचेस इनवॉइस रह तो नहीं गया, उसको बोलकर डलवा देना है | वह नहीं डाले, आप डाल सकते हो, आपने किसी का सेल्स इनवॉइस नहीं डाला, तो जिसको भी माल बेचोगे वह आपसे डलवा लेगा |

समझो दोनों ने मिलीभगत में नहीं डाला तो आगे चलकर किधर ना किधर अगर किसी ने भूल चूककर वह माल का डाल दिया तो ट्रेस हो जायेगा कि भाई यह माल तो बिका है पर इसके पीछे इसका कोई परचेस ही नहीं है, ज़रूर कुछ गड़बड़ है | और यह हमें नहीं करना पड़ेगा, अधिकारी तो बहुत चैन की नींद सोयेंगे, वह कंप्यूटर डेटा मैनिंग से हो जायेगा यह सब | तो जो कुछ लोगों को थोड़ी तकलीफ है वह यह ज़रूर समझ लें कि किसी हालत में कोई जीएसटी से निजात पा जायेगा, exemption पा जायेगा, वह उस ग़लतफहमी में ना रहे | स्ट्राइक करे, कितने भी दिन स्ट्राइक हो, कितना भी हल्ला हो और हमें वोट दे या ना दे, वैसे हमें नहीं देगा तो जिसको भी देगा वह भी जीएसटी में शामिल है वैसे | तो आपको none of the above वाला लेना पड़ेगा – NOTA !

तो वास्तव में एक व्यवस्था ऐसी बनाई गयी है कि पूरी वैल्यू चेन एक बार सिस्टम में आ जाये, हर एक व्यक्ति ईमानदार व्यवस्था से जुड़े, पहले जैसे होता था, ट्रक निकलता था पुणे से, जाता था बेंगलुरु, बिल्टी बनती थी, इनवॉइस बनता था | अगर बीच में चेक पोस्ट पर पकड़ा गया तो तो एन्टर हो जाता था सेल, अगर बिना चेक पोस्ट पर पकडे गए या 100, 500, 1000 पता नहीं क्या रेट चल रहा है आजकल, उसपर निपट गया तो वहां पहुँचने के बाद फ़ोन होता था, फाड़ के फ़ेंक दो इनवॉइस नंबर फ्री हो गया | कुछ गलत बोल रहा हूँ भाईयों बहनों? हम सब एक ही..वह सब अब बड़ा मुश्किल हो जायेगा क्योंकि कंप्यूटर बोलेगा यह ट्रक ऊपर नीचे जा रहा है पर कुछ माल नहीं लेकर जा रहा है, गड़बड़ क्या है? आखिर उसको शौक है क्या Diesel भरा के ट्रक ऊपर नीचे खाली कराने का?

तो परेशानी की नस अगर कोई है, तो वह यह बात है | शायद जो लोग पहले बड़े उत्साह से बोलते थे जीएसटी-जीएसटी-जीएसटी, उनको बाद में अब ध्यान आ रहा है कि यह जीएसटी तो ईमानदार व्यवस्था है, इस ईमानदार व्यवस्था से जुड़ना पड़ेगा | ज़रूर कुछ न कुछ जाइज़ चीज़ें आएँगी, कपडा बाज़ार की भी कुछ जाइज़ चीज़ें हो सकती हैं, पर अगर कोई समझे कि बन्दूक रखकर कोई व्यवस्था में सुधार होगा, वैसे कभी सुधार नहीं होता है, वार्तालाप और बातचीत से ही सुधार होता है | और सुधार के लिए बात जाइज़ होनी चाहिए, अब मेरे पास कुछ लोगों का फ़ोन आया, महाराष्ट्र के नहीं थे, दूसरे राज्य के थे, बोले हमको बाकी सब कुछ मंज़ूर है, कपडा व्यापार के ही थे भाई साहब, by the way, उन्होंने कहा हमें बाकी सब कुछ मंज़ूर है, हमको सिर्फ प्रॉब्लम यह है कि बहुत सारा माल पड़ा है जो नंबर दो में लिया था उसका कोई रास्ता निकाल दो बाकी हम जीएसटी में जुड़ने को तैयार हैं |

अब मैं समझ नहीं पा रहा हूँ इसका रास्ता क्या निकाल सकते हैं वह नहीं मेरी समझ आ रहा, कुछ बातें जाइज़ भी हैं | अगर किसी विषय में जीएसटी कम रखा गया है और उसमें हमें डर है कि इम्पोर्ट हो सकता है ज्यादा गुड्स का और कपडे व्यापार में भी कुछ लोगों ने मुझे यह बात कही | उसका सलूशन तो आसानी से निकल सकता है, पर वह सलूशन बातचीत से निकलेगा या और व्यवस्था से निकलेगा, और और व्यवस्था को हम तूल दें तो फिर तो जितने व्यापारी भाई बैठे हैं यहाँ सब अपना टर्न बय टर्न यही करते रहेंगे | एक अच्छी व्यवस्था लाने की समूची कोशिश है, सबकी मिलकर कोशिश है, उस अच्छी व्यवस्था में सब लोग जुडें, ईमानदारी से इनपुट क्रेडिट का लाभ उपभोक्ता को दें | आखिर कई लोग कहते हैं यह एंटी-प्रोफीटेरिंग क्यों लाया गया, एंटी-प्रोफीटेरिंग इसलिए लाया गया कि अगर पहले की व्यवस्था और अभी की आप compare करो, पहले एक्साइज, एंट्री टैक्स, यह सब पहले लग जाता था, एंड में सिर्फ वैट लगता था consumer को | अब जो पहले टैक्सेज़ लगते थे वह जोड़  के जीएसटी लगता है, पर इस सबका क्रेडिट तो आपको लेना पड़ेगा ना?

ऐसा तो नहीं हो सकता है मैं 1 तारीख को बाल कटाने गया था, अब बाल कटा के निकला तो मैंने लड़के को पूछा पहले और अब में रेट में कोई फरक है क्या, बोला नहीं है! मैंने कहा यह तो गलत है | आखिर अगर जीएसटी का रेट 18% हुआ है, पहले 15 था और कुछ वक्ताओं ने उसका भी ज़िक्र किया तो उसके सामने इनपुट क्रेडिट भी तो मिल रहा है ना? आपके दुकान के भाड़े पर जो जीएसटी लगेगा उसका इनपुट क्रेडिट मिलेगा, आप जो सामान खरीदेंगे उसका इनपुट क्रेडिट मिलेगा, आप हाउस-कीपिंग सर्विस लगायेंगे, सिक्यूरिटी सर्विस लगायेंगे उसका जीएसटी क्रेडिट मिलेगा | तो हम सबको अपनी कॉस्टिंग भी देखनी पड़ेगी, कॉस्टिंग में जो क्रेडिट मिल रहा है उसको कम करना पड़ेगा और जो कम होकर जो सेल प्राइस आती है उसपर जीएसटी लगा के जिससे उपभोक्ताओं के ऊपर महंगाई का बोझ न पड़े और अधिकांश वस्तुओं में तो यह मल्टीप्ल टैक्सेज और कैस्केडिंग इफ़ेक्ट ऑफ़ टैक्सेज नहीं होने के कारण अगर व्यापारी वर्ग, उद्योग वर्ग ने पूरा इनपुट क्रेडिट ईमानदारी से पास-ऑन किया तो अधिकांश वस्तुओं के दाम कम होंगे क्योंकि जो revenue आएगा वह भ्रष्ट्राचार मुक्त भारत से revenue आएगा, टैक्स का बर्डन बढ़ाके revenue नहीं आएगा |

और यह व्यवस्था एक्सपोर्ट में भी हमें लाभ देगी क्योंकि पहले मैं भी एक्सपोर्ट करता था मुझे एंट्री टैक्स का कभी रिफंड मिलता नहीं था, ओक्ट्रोई कोई मुंबई में pay करता था उसका कोई पैसा वापिस नहीं मिलता था | कई चीज़ें जो छोटी-छोटी खरीदते थे या सर्विसेज़ लेते थे उसका बोझ हमारे ऊपर रहता था, इन सब चीज़ों से भी अब एक्सपोर्ट को राहत मिलेगी, जिसको कहते है ना ‘You export goods and services, you don’t export local taxes.’ वास्तव में जीएसटी आने के बाद यह परिस्थिति बनेगी कि हम टैक्स एक्सपोर्ट करना बंद करेंगे, सामान और अपनी सेवाएं एक्सपोर्ट कर पाएंगे | और जैसे ब्रांडेड गुड्स का कई लोगों ने ज़िक्र किया, किसानों के ऊपर जीएसटी का बर्डन नहीं लगे, किसानों को exempt category में रखा गया है |

जब उसको पैकेजिंग करते हैं तो स्वाभाविक है कि कुछ न कुछ प्रोसेस हो रहा है ना, उसमें प्लास्टिक लगता है, प्लास्टिक के ऊपर आपको जीएसटी लग के आता है उसका आपको क्रेडिट मिल जायेगा, कोई वेयरहाउस या गोडाउन में आप रखते हो, ब्रांडिंग करते हो, पैकेजिंग करते हो, उसपर जो जीएसटी लगता है उसका क्रेडिट मिल जायेगा | तो अगर आप कहने की कोशिश करो कि बस 5% सब बढ़ गया तो यह गलत है, विचार करिए, आपके जितने खर्चे हो रहे हैं, उस सबका इनपुट क्रेडिट आप लीजिये फिर उसके बाद कुछ विषयों पर थोड़ा कम होगा, कुछ में थोड़ा ज्यादा होगा | Average जो एक व्यक्ति का बजट है, उपभोक्ता का बजट है, वह लगभग बैलेंस आउट हो जायेगा ऐसी व्यवस्था इस जीएसटी कौंसिल ने की है | और आप आखिर सोचिये यह व्यवस्था कोई 4 या 8 लोगों ने नहीं किया है, देश भर के अधिकारी और देश भर के राजनीतिक नेता, एक प्रकार से जो जीएसटी कौंसिल में जिनको आप लोगों ने ही चुन के भेजा है उन सबने मिलकर, उन सबकी यह सांझी विरासत है, ऐसा नहीं है एक पार्टी ने या दो पार्टी ने तय किया है | और इसमें मेरी तो राय यह रहेगी कि एक बार जुड़िये, खुले मन से जुड़िये, सीखिए समझये, आपकी आधी कठिनाई है तो शायद ग़लतफहमियों के कारण है, अभी अभी उन्होंने clarify किया कि सांगली में अगर किसी ने वह कहा है तो वह गलत है | उसकी कई सारी helplines हैं, कई सारे offices, कई सारे क्या हर एक वैट, एक्साइज, सर्विस टैक्स ऑफिस में, मुफ्त की हेल्प डेस्क है, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने सवा सौ हेल्प डेस्क मुफ्त में खोली हैं जहाँ पर उनके लोग आपको गाइड करने के लिए तैयार है | कोई डाउट आये तो आप ई-मेल भेजिए, फ़ोन करिए, आजकल तो फ़ोन भी फ्री हो गया है लगभग, फ़ोन करके पूछ लीजिये आपको क्या समस्या है, लिखित भेजेंगे तो लिखित जवाब आ जायेगा |

तो समस्याओं से हमें डरने की आवश्यकता नहीं है, जिसको कहते हैं ना ‘a problem is a problem only till a solution is found. We have to find solutions. और हम सब जब मिलकर इसको अपनाएंगे confidence से, positivity से, नकारात्मक सोच को निकालना पड़ेगा, सकारात्मक होना पड़ेगा, positivity, that will pay in the long run. और आप सोचिये, यहाँ पर अधिकांश लोग मेरे ख़याल से दूसरी पीढ़ी के हैं, आप ज़रा सोचिये क्या आप अपने बच्चों को भी उसी प्रकार की व्यवस्था में व्यापार करने को छोड़ना चाहते हैं या उनके लिए एक सरल व्यवस्था कितना माल आया उस सबपर इतना क्रेडिट, कितना माल बेचा उसपर इतना टैक्स, दोनों को नेट करके सिस्टम बताएगा कितना टैक्स भरना वह तीसरा रिटर्न | तो सेल्स आप भरोगे, परचेस कोई भरना नहीं आपको, आटोमेटिक सिस्टम से निकलेगा, तीसरा रिटर्न आपको कुछ नहीं बनाना यह एक्चुअली गलती आप लोग, अधिकारियों की है और हमारी भी है एक तरीके से, यह रिटर्न ही नहीं है, यह तो आपने रिटर्न नाम देकर आपने लोगों को डरा दिया, यह स्टेटमेंट बोलते तो कोई प्रॉब्लम नहीं होती| सेल्स स्टेटमेंट बचपन से हम देते आ रहे हैं, परचेस स्टेटमेंट बचपन से हम देते आ रहे हैं | और तीसरा तो इनको कुछ देना ही नहीं है वह तो कंप्यूटर में अपने आप कैलकुलेट होगा कि इतना क्रेडिट मिला, इतना डेबिट हुआ, नेट इतना भरना है या इतना रिफंड आना है, स्वाभाविक है इतना सिंपल चीज़ कर दिया है |

तो मेहरबानी करके ज़रा ग़लतफ़हमियों से हम थोड़ा ऊपर उठें | कुछ चीज़ें जो बताई गयीं एक उसमें प्रमुख विषय यह था कि कोई व्यक्ति ने जीएसटी नहीं भरा तो उसका बोझ मेरे ऊपर क्यों? बहुत अच्छा सवाल है, मैं भी, शुरू में जब मैंने सुना मैं भी थोड़ा उत्तेजित हुआ था | मुझे भी लगा था कि भाई वह सामने नहीं भरा मैं क्यों उसका कष्ट उठाऊँ | इसपर बहुत विचार-मंथन हुआ पूरे जीएसटी कौंसिल में ऐसा मुझे बाद में बताया गया, मैं तो उस कौंसिल में नहीं हूँ| आज, और यह भी हम सब अपने अंतर्गह में देख के सोचें, आज एक बहुत बड़ी बीमारी है, यह जो ब्रीफकेस पर चलने वाले, फर्जी बिल काटने वाले लोग हैं, सच बोल रहा हूँ कि झूठ बोल रहा हूँ? आप लोग याद करिए कितने लोग आते हैं ब्रीफकेस पर बिल बुक ले के जिससे हम दो टक्का, चार टक्का में बिल लेते हैं, एंट्री करते हैं, क्रेडिट ले लेते हैं| यह व्यापार भी कभी बंद करना है कि नहीं करना है और व्यक्ति किधर भाग के जा नहीं सकेगा, हाँ जिसने जीएसटी नंबर लिया, आजकल तो आधार कार्ड, पैन कार्ड, एड्रेस, दुनिया भर की डेटा सब एक साथ हो जाएगी, अब हम इनकम टैक्स में, कस्टम्स में, सब जगह वही एड्रेस वही नंबर commonalise कर देंगे |

तो जो व्यापारी आपसे टैक्स चार्ज करके आपको कुछ माल बेचता है वह एक महीने तक भाग सकता है, एक महीने से ज्यादा नहीं भाग सकता | एक बार आपको नुकसान पहुंचा सकता है, एक बार, उसके बाद उसको धंधा करना इम्पॉसिबल हो जायेगा पूरे देश में, ब्लैकलिस्ट में आ जायेगा, सीधा वह किधर भी माल बेचेगा तो पॉप-अप हो जायेगा उसका नाम कि यह ब्लैकलिस्टेड है इसने वहां पर टैक्स नहीं भरा | तो आपतो चिंता कर रहे हो कि आपने किसी एक व्यापारी से माल ख़रीदा और उसने टैक्स नहीं भरा तो आपको थोड़ा नुकसान होगा, आप दूसरी तरफ देखो, कितने फर्जी व्यापारी आपको कुछ गलत बेच के चले जायेंगे ऐसे कितने लोगों से आपको बचने का राहत मिलेगी इससे| एक बार आप फंस सकते हो, लेकिन 50 बार फंसने से बचोगे आगे, जबकि कोई और आपको. अच्छा टैक्स डिपार्टमेंट कोई आज की व्यवस्था में जब हम यह फर्जी बिल और यह वह आते हैं जिसमें टैक्स एक्चुअली pay नहीं होता है तो हम लोगों को छोड़ते हैं क्या वह लोग? आजकल शैल कम्पनीज कलकत्ता की सब पकड़ी जा रहीं हैं एक के बाद एक, आपके पास भी कोई व्यापार है तो ज़रा ध्यान रखना | वह शैल कम्पनीज जैसे जैसे पकड़ी जा रहीं हैं तो क्या शैल कंपनी को पूछते हैं या हमारे घर पर आते हैं? आप बताइये?

तो हम आपको बचाने के लिए यह प्रावधान लाये हैं कि आप ऐसे लोगों से बचोगे आगे चलकर जब लिस्ट बन जाएगी, ब्लैकलिस्ट हो जायेंगे यह लोग जो इस प्रकार का व्यापार करते थे | इसी प्रकार से किसी ने कहा ग्राहक को बंधन होना चाहिए व्यापारी को कि एक प्राइस डाले, कई विषयों पर एमआरपी रहता है, दवाइयों पर रहता है, कई विषयों पर रहता है, हो सकता है आगे चल के कुछ और विषयों पर भी एमआरपी लगाने की व्यवस्था बन सकती है | लेकिन कोई पूरे देश में प्राइस कंट्रोल लाने की हमारी कल्पना नहीं  है, यह कल्पना नहीं है कि पूरे देश में हर एक व्यापार, हर एक उद्योग के ऊपर एक अधिकारी बैठ के उसका कॉस्ट ऑफ़ प्रोडक्शन निकालेगा और उसके ऊपर व्यापार होगा, व्यापार कम्पटीशन में होगा |

जितना कोई भी चीज़ में अगर मुनाफाखोरी ज्यादा होती है, तो चार नए व्यापारी खड़े हो जाते हैं | Competition will take care of excess profiteering. आखिर एक ज़माने में बिजली के दाम बहुत ज्यादा थे, अब इतने बिजली के फैक्ट्रीज आ गयीं हैं कि आज बिजली बिकती नहीं है| Competition takes care of the balance. और किसी ने यह भी पूछा कि एमआरपी से ज्यादा हम क्यों नहीं बेच सकते, एमआरपी का मतलब ही यह होता है कि inclusive of tax, आप इससे ज्यादा नहीं बेच सकते |

तो यह ज़रा आप सब ध्यान रखिए कोई एमआरपी से महंगा बेचता हो और जैसा किसी ने सही कहा आप व्यापारी या उद्योगपति भी हैं, आप उपभोक्ता भी हैं, तो ना तो आप किसी को एमआरपी से ज्यादा बेचिए और अगर आप उपभोक्ता के रूप में कुछ खरीद रहे हैं, कोई एमआरपी से ज्यादा बेचता है तो तुरंत complain करिए | और देखिए वही मिसाल मैं लूँगा 10 लोगों में 8 लोग अगर ईमानदार हैं और एक आदमी चोरी करता है तो इसका रास्ता एक ही है कि वह 8 लोगों को मिलकर उस चोर के बारे में सरकार को, अधिकारियों को बताना पड़ेगा, जिसको whistleblower बोलते हैं |

और फिर ईमानदारी से सबका धंधा चलेगा, अब समय आ गया है इस देश में – व्यापार सेवा की गुणवत्ता पर, या हमारे सामान के गुणवत्ता पर, quality of service or quality of goods पर व्यापार होना चाहिए बजाये कि ability to evade taxes, ability to cheat, मैं कितने टैक्स की चोरी कर सकता हूँ उससे मेरे व्यापार की सफलता नहीं होनी चाहिए, मेरी सेवा अच्छी होनी चाहिए, मेरा सामान अच्छा होना चाहिए, तब मैं व्यापार में ईमानदारी से प्रॉफिट करूँ | यह कल की, भविष्य की, व्यापार और उद्योग की कल्पना इस देश की बनते जा रही है | मैंने जैसे पहले कहा कुछ लोगों को अधिकारियों से, राजनीतिक नेताओं से तकलीफ होती थी, उसके लिए हमने पोलिटिकल फंडिंग को भी अटैक किया है, इलेक्टोरल बांड्स introduce कर रहे हैं | आप ईमानदार पैसा, टैक्स-पेड ईमानदार पैसे से आप पोलिटिकल fund दोगे तो आपको पूरा 100% जितना आप डोनेशन दोगे उसपर इनकम टैक्स में exemption मिलेगा, 100% exemption. मतलब आपने एक लाख रुपये दिए, वैसे पुणे के लोग थोड़े कम ही देते हैं, कंजूसी ज्यादा दिखाते हैं |

मुझे example लेना लेना चाहिए अगर आप 10 करोड़ दोगे तो 3 करोड़ 33 लाख रुपये आपके इनकम टैक्स में छूट मिलेगी आपको, 33% टैक्स | और अगर आपको डर लगता है कि मैं कांग्रेस को दूं, मैं एनसीपी को दूं, मैं बीजेपी को दूं, तो कहीं मेरे ऊपर कोई और पार्टी तकलीफ नहीं दे तो इलेक्टोरल बांड्स में आपकी इनफार्मेशन भी गुप्त रहेगी कि आपने किसको दिया लेकिन ईमानदार पैसा राजनीति में आएगा, आपको काला धन बनाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी अगर आप किसी राजनीतिक दल को समर्थन करना चाहें, और वह तो आपकी इच्छा है कोई करना चाहता है कोई नहीं करना चाहता |

इसी तरीके से अब पूरा सिस्टम ड्रिवेन व्यवस्था होने से अधिकारियों को यह अधिकार नहीं रहेगा कि आपको आ के तंग कर सकें, अब जबतक कंप्यूटर में कोई ट्रिगर नहीं आता है कि कुछ गलत काम हुआ है तबतक आपके ऊपर कोई harassment नहीं हो सकेगा | और ताली तो दो हाथ से बजती है, अगर हम सब फैसला कर रहे हैं कि हम गलत काम नहीं करेंगे और फिर कोई हमें harass करेगा तो हम भ्रष्ट्राचार नहीं करेंगे | एक बार दो बार कोई तंग कर सकता है तीसरी बार बोलेगा यार इस दुकान में मत जाओ इधर कुछ आना जाना नहीं है, छोड़ दो इसको | और अगर हम सब सामूहिक रूप से यह तय कर लें कि हम भ्रष्ट्राचार ना करेंगे ना होने देंगे तभी इस देश में एक ईमानदार व्यवस्था पनप सकती है, तभी वह नए भारत की कल्पना जो हम सब चाहते हैं जुड़ना, जिसमें हर व्यापारी का, हर उद्योगपति का, हर गरीब का, हर किसान का, सबका सम्मान हो, सबके जीवन में उसकी अपेक्षाओं की पूर्ति हो | अगर इस प्रकार का भारत हमें बनाना है तो हम सबको उसमें योगदान देना पड़ेगा, यह जनभागीदारी से होगा, यह एक व्यक्ति नहीं कर सकता है |

ऐसे नए भारत की व्यवस्था के लिए मैं आप सबसे दरख्वास्त करूँगा, आप सब जुडें किसी ने कहा कि AC, non-AC restaurant, मैं खुद जाता हूँ हनुमान restaurant है, साइंस सर्किल अगर आप मुंबई जाते हो आप देखते हो, वहां ऊपर AC है, नीचे non-AC है, नीचे 12% लगता है, ऊपर 18% लगेगा, पार्सल ले के जाओगे तो 12% लगेगा | अगर कोई ज्यादा चार्ज कर रहा है तो आप complain करिए उसको कहिये, पार्सल पर 12%, AC सेक्शन में बैठो 18%, non-AC में बैठो 12% | पर आखिर जब आप AC सेक्शन में बैठते हो तो वही इडली का दाम 3 गुना होता है कि नहीं होता है?

शिरोले जी की है ना दुकानें? Restaurant हैं? तो AC का रेट अलग होता है, non-AC का अलग होता है तो अगर टैक्स जो AC में जा रहा है उसकी क्षमता भी थोड़ा टैक्स ज्यादा देने की है | अगर उसके टैक्स देने से अगर वही मेरी बात किसी के घर में उज्ज्वला आये तो ख़ुशी की बात होनी चाहिए ना| आखिर आप सबने और मुझे पूरा विश्वास है इस रूम में जितने लोग हैं आप सबने Give It Up के तहत अपनी एलपीजी सब्सिडी छोड़ी थी ना प्रधानमंत्री के एक आवाहन पर? अगर किसी ने नहीं छोड़ी है तो सोमवार को मेहरबानी करके छोड़ देना | लेकिन देखिए ख़ुशी आती है है कि नहीं, कि मैंने एलपीजी मेरी सब्सिडी छोड़ी तो एक गरीब के घर में हमारी कोई माँ या बहन को आज 400 सिगरेट का धुआं नहीं फुंकना पड़ेगा, उसको एक साफ़ ईंधन, कुकिंग गैस मिलेगी जिससे वह एक अच्छा स्वस्थ जीवन बिता पायेगी | यह हम सबके लिए समाधान है कि नहीं है? हमें टैक्स को भी उसी रूप से देखना पड़ेगा, रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म का आपने कहा कि कैश में pay करना पड़ता है क्रेडिट नहीं इस्तेमाल कर सकते हैं उसका मुझे भी इमीडियेट समझ नहीं आ रहा है कि उसके पीछे हेतु क्या है, ज़रूर कुछ न कुछ हेतु सोचा होगा,मैं पता करूँगा और बाद में इनको बताऊंगा कि यह आपको बता दें | लेकिन थोड़ा कैश फ्लो की प्रॉब्लम है, उसकी वजह से क्या हम बैठ के रूठके बैठ जायेंगे या व्यवस्था के साथ जुड़ेंगे और चर्चा से आगे का मार्ग सुधारने की कोशिश करेंगे | आखिर मैं तो नहीं चेंज कर सकता हूँ,  ना जेटली साहब कर सकते हैं ना मोदी जी कर सकते हैं | जीएसटी कौंसिल जब बैठेगा तो यह सब चीज़ों पर विचार करेगा, निर्णय लेगा और हम इतना तो समझ सकते हैं कि जब सामूहिक निर्णय सभी का होता है, तो जैसे हमारे कहते हैं न ‘पंचों की राय’ तो पंचों की राय के साथ तो समाज जाता ही है ना?

तो मुझे लगता है एक मौका है ईमानदार व्यवस्था के साथ जुड़ने का, हम सब इससे जुडें मैं आप सबको अपील करता हूँ, आवाहन करता हूँ | इसके साथ जुड़ के इसकी कुछ कठिनाइयाँ आएँगी, हमारे तक लायें हम उसको पूरी तरीके से संवेदना के साथ क्या सुधार कर सकते हैं वह जीएसटी कौंसिल के समक्ष रखके सुधार करने की पूरी कोशिश करेंगे | कुछ चीज़ों में असमर्थ रहेंगे तो उसमें  आपको थोडा 19-20 मदद करनी पड़ेगी, लेकिन मिलजुलकर सकारात्मक सोच रखते हुए, positive contribution to the transformation of India, इस भाव से अगर हम चलेंगे तो मुझे पूरा विश्वास है यह पूरी तरीके से, सफलता से जीएसटी लागू होगा और हम सबको एक गुड एंड सिंपल टैक्स का लाभ मिलेगा|

बहुत बहुत धन्यवाद|

 

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