Speeches

November 19, 2018

Interaction with CII, in Bhopal

I am indeed delighted to be amongst all of you to discuss how the development priorities of both the central and the state government have helped change the mindset of Indian business and industry. I recall my last visit on the 6th of July earlier this year when I had extensive interaction and discussions with members of the business fraternity, both trade and industry on several issues.

I think almost 40 people spoke that day and I think in large measure most of the good suggestions that came up that day have been acted upon, in a big way we have been able to bring about modifications in different aspects of business and the law so that trade and industry can become simpler, so that tax collection is less cumbersome and all of us can focus on our business rather than on procedures.

वास्तव में उस दिन भी जब चर्चा हुई थी तो विशेषकर GST को लेकर काफ़ी व्यापक चर्चा हुई थी और मुझे याद है कि कई प्रकार के सुझाव आए थे जिसमें एक जो सबसे बड़ा सुझाव था वह रिटर्न्स के संबंध में था। छोटे उद्योग को क्वाटर्ली रिटर्न देने की सहूलियत मिल जाए तो आसानी होगी यह विषय रखा गया था, कई लोगों ने रखा था। और सुझाव था कि 1.5 करोड़ रुपये तक का जिनका टर्नओवर है उनको तीन महीने में एक बार रिटर्न देने की सहूलियत दी जाए।

आपको ध्यान होगा सबकी सहमति से जब GST Council बैठी तो काउंसिल ने विश्वास करते हुए हिम्मत की कि हमारे व्यापारी वर्ग, हमारे उद्यमियों को सुविधा देकर देश को लाभ होगा, व्यापार को लाभ होगा और 1.5 करोड़ जो माँग थी उसके बदले 5 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर को क्वाटरली रिटर्न देने की सहूलियत दे दी। किसी की कल्पना में भी नहीं था यह। मुझे याद है उसके बाद कई इंटरैक्शन बाद में भी हुए पर अधिकांश लोगों ने यही रखा कि जो हमने अपेक्षा की थी उससे ज़्यादा अपने कर कर दिया है।

इसी प्रकार से कई सारे प्रोसीजरल इश्यूज़ पर भी चर्चा हुई थी। GST Council ने उस पर भी कई सारे निर्णय लिए। फिर एक स्पेशल मीटिंग रखी लघु और मध्यम वर्गीय उद्योग को कैसे प्रोत्साहन देना, उनके बिजनेस प्रॉस्पेक्टस कैसे सुधारना और मुझे ख़ुशी होती है कि लगभग जितने पेन प्वाइंट्स अगर कुछ मात्रा में बोलें उभरे थे या ध्यान में आए थे लगभग उन सब को रिज़ॉल्व करने में GST Council सफल हुई थी।

इसी प्रकार से एक विशेष उस बैठक में आया था कि छोटी-छोटी गलतियों की वजह से NCLT में जाना पड़ता है, कंपनीज़ लॉ के प्रावधान काफ़ी सख़्त हैं। सख़्त प्रावधान तो आवश्यक हैं जब कोई अपराध ज़्यादा तीव्र हो बहुत सीरियस प्रॉब्लम हो लेकिन छोटी गलती हो जाए, कुछ दिन का विलंब हो जाए रिटर्न फ़ाइल करने में, कुछ छोटे-मोटे गलतियाँ रह जाएं उसके लिए सुविधाजनक तरीक़ा हो, नॉन-डिस्क्रिशनरी तरीक़ा हो जिससे दुरुस्त किया जा सके।

यह अभी-अभी माननीय प्रधानमंत्री ने जो 12 पॉइंट पीछे MSME सेक्टर के लिए अनाउंस किए उसमें यह भी क़ानून में बदलाव किया गया ऑर्डिनेंस द्वारा कि छोटी-मोटी जो गलतियाँ रह जाती है कंपनी लॉ में उसको व्यक्ति स्वयं से ठीक कर सकते हैं, स्वयं से उसको एक मोनेटरी फ़ाइन देकर और वह फ़ाइन भी नॉन-डिस्क्रिशनरी रखा है जिससे ट्रांसपेरेंसी रहे, कोई किसी प्रकार का ग़लत काम न आ सके।

तो मैं समझता हूँ मैं यह इसलिए दो तीन चीज़ें उदाहरण के लिए दे रहा था कि एक रिस्पॉन्सिव गवर्मेंट जो समस्या को समझना, समस्या का रूट कॉज एनालिसिस करना, उस रूट कॉज एनालिसिस के बेसिस पर एक लॉन्ग टर्म सस्टेनेबल सलूशन समस्या का निकालना समाधान निकालना, पारदर्शिता बढ़ाना जिसमें सभी को जानकारियां भी अच्छी पूरी तरीक़े से मिलें, किसी के साथ ग़लत व्यवहार न हो और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की तरफ़ equal opportunity सभी को मिले व्यापार करने की, इस उद्देश्य से इस सरकार ने बहुत सारे क़दम उठाए।

अगर उसके अलग-अलग मापदंड देखें तो ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस एक सीधा मापदंड है। जहाँ पर कहाँ हम 140 के ऊपर रैंक था हमारा विश्व में अब 77 हो गया है पिछले वर्ष चार वर्ष पूरे होने के बाद। इतनी बड़ी छलांग विश्व में कोई और देश में नहीं हुई है चार वर्ष के भीतर और हमें विश्वास है कि जब हमारे पाँच साल पूरे होंगे मार्च-अप्रैल अगले साल और उसकी जब रैंकिंग्स आएंगी अगस्त-सितम्बर या अक्टूबर नेक्स्ट ईयर हम विश्व में top 50 में होंगे in ease of doing business।

इंफ्रास्ट्रक्चर एक ऐसा क्षेत्र रहा है जिसमें जितनी देश की ज़रूरतें हैं वह पूरे तरीक़े से प्लैन नहीं करी गई, उसके लिए पर्याप्त मात्रा में निवेश नहीं हुआ और उसके कारण कई चीज़ों में इन्फ्रास्ट्रक्चर पीछे रह गया। वैसे तो मध्य प्रदेश भी दो दशक पहले 15 वर्ष पहले बीमारू स्टेट माना जाता था। सड़क की समस्या थी, पानी की समस्या थी, बिजली की समस्या थी। अब जब हम देखते हैं यहाँ की परिस्थिति रोड्स अच्छी बन गई हैं, बिजली की समस्या ग़ायब है 24 घंटे बिजली मिलती है, किसानों को भी जो लगभग 8-9 घंटे बिजली मिले तो पर्याप्त रहता है खेत के लिए उससे अधिक बिजली किसानों को भी मिलती है।

और मैं तो हैरान हूँ जिस प्रकार से तेज़ गति से बिजली में प्रोग्रेस मध्य प्रदेश ने दिखाया है शत-प्रतिशत घरों तक बिजली पहुँच गई है, जहाँ दूर-दराज के इलाकों में ट्रांसमिशन लाइंस नहीं थी वहाँ पर रिन्यूएबल एनर्जी, सोलर सिस्टम वगैरा से बिजली दी गई है और लगभग 6गुना बिजली आज मध्य प्रदेश में साधन है, उत्पादन होता है और खपत होती है, 6गुना। लगभग 18 हज़ार मेगावॉट बिजली के साधन आज मध्य प्रदेश में हैं जो 15 वर्ष पहले 2500 के क़रीब थे।

ऐसे ही मैं रेलवे के आंकड़े निकाल रहा था। जो निवेश रेलवे में 2009 से ‘14 के बीच हुआ उससे लगभग 6गुना निवेश इस पाँच वर्षों में 2014-19 में हो रहा है। लगभग 632 करोड़ रुपये सालाना औसत (average) 2009-14 के बीच रेलवे के नए प्रोजेक्ट्स या रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर में मध्य प्रदेश में इन्वेस्ट होता था, तीन एक हज़ार करोड़, 3200 करोड़ पाँच वर्षों में। हमारी सरकार आने के बाद उसको इतनी तेज़ गति दी गई की लगभग 21,000 करोड़ पाँच वर्षों में सिर्फ़ मध्य प्रदेश के प्रोजेक्ट्स में लगाए गए हैं। इनफैक्ट यह वर्ष 2018-19 में तो 6 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा मध्य प्रदेश के अन्य-अन्य रेलवे प्रोजेक्ट्स के लिए बजट किए गए हैं।

और हम सबके लिए तो गर्व की बात है कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हबीबगंज स्टेशन अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ भारत का पहला मॉडर्न रेलवे स्टेशन बनने जा रहा है। काम की प्रगति भी अच्छी है, मैं पिछली विज़िट में देखकर भी आया और मुझे विश्वास है अगले कुछ महीनों में वह स्टेशन अपने नए स्वरूप में भोपाल की और मध्य प्रदेश की जनता की सेवा में आएगा।

और यह एक मिसाल बनेगा this would become a role model जो हम देश भर में अलग-अलग राजधानियों में, अलग-अलग प्रमुख स्टेशनों में जो स्टेशन की सुविधाओं को सुधार करना चाहते हैं। जो उसमें यात्रियों को भी लाभ हो और वहाँ की अर्थव्यवस्था को भी गति मिले उस इलाक़े की, दोनों को ध्यान में रखते हुए जो प्लानिंग हबीबगंज में हुई है और जो एक्सपीरियंस गेन हो रहा है इस बेसिस पर आगे हम देश भर में स्टेशन डेवलपमेंट का काम लगभग 1500 स्टेशन में करने का हम विचार रखते हैं।

जिसमें से लगभग 68 स्टेशन में तो कुछ-कुछ काम शुरू हो गया है, कई जगहों पर रीडेवलपमेंट स्टेशन की इस प्रकार से हो रही है कि उसमें होटल लगें, कमर्शियल कॉम्प्लेक्स लगें, फ़ूड कोर्ट्स लगें, एक पूरा इकोसिस्टम डेवलप हो रेलवे स्टेशन के इर्द-गिर्द जो डिफाइन करे कि इस इलाक़े की खासियत क्या है।

मैं वैसे एक और प्लान कर रहा हूँ जिसमें अभी तक अच्छी सफलता मिली है, अभी उसको और गति दे रहे हैं। आपको जानकर ख़ुशी होगी आज देश में 711 रेलवे स्टेशन हैं (seven hundred and eleven) जहाँ पर मुफ़्त में वाई-फ़ाई फ़ैसिलिटी यात्रियों को मिलती है। और यह वाई-फ़ाई फ़ैसिलिटी देश की सबसे फास्टेस्ट वाई-फ़ाई है, और कोई वाई-फ़ाई फ़ैसिलिटी कोई निजी क्षेत्र की कंपनी भी इतनी तेज़ स्पीड की वाई-फ़ाई नहीं देती है जो रेलवे स्टेशन पर रेलटेल दे रही है। लगभग 2-2.5 मिनट में आप पूरी पिक्चर 3 घंटे की फिर चाहे वह काला पत्थर क्यों न हो और या और वैसे तो गिनने जाए तो मुझे लगता है भारत में कोई बॉलीवुड की पिक्चर नहीं होगी जिसमें रेलवे का कुछ न कुछ जुड़ाव नहीं हो।

अभी भी सुबह कभी उठते हैं और TV चालू करते हैं और लगता है कि भाई न्यूज़ में एक कई बार बड़ी बोरिंग हो जाती है न्यूज़ वही चीज़ें दोहराते जाते हैं, बेबुनियाद बातें कभी-कभी आती हैं, एक ही चीज़ को घंटों तक देखते-देखते थक जाते हैं तो you switch over to the music channels। तो तब ध्यान में आता है कि यह जो रेलवे में एक ज़माने का सफ़र का स्वाद था अब उस स्वाद को कैसे वापस रेलवे में लाना उसके ऊपर ध्यान आकर्षित होता है। I have very fond memories of the cutlets and toast and tea in a thermos that used to be served in the Railways, 40 years ago, 50 years ago और उसको फिर वापस लाने के लिए क्या-क्या क़दम उठा सकते हैं उसमें हम सब जुट गए हैं।

और मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि मैं समझता हूँ कि जो सोच प्रधानमंत्री मोदी जी ने सरकार में आज दी है कि हर एक विषय का रूट कॉज एनालिसिस करो। जो भी समस्या आती है उसमें गहराई से देखो कि क्या चीज़ करने से यह अभी नहीं लेकिन आगे के लिए भी हम इस समस्या को ख़त्म कर सकते हैं। Prioritise करो क्या चीज़ें ज़्यादा ज़रूरी है करना जिससे देश को लाभ मिलेगा। और ऐसे अलग-अलग प्रिंसिपलस अच्छी सरकार, अच्छे कोई भी व्यवस्था आप अपने बिज़नेस में भी कुछ गवर्निंग प्रिंसिपलस, कुछ सिद्धांतों पर अपना बिज़नेस चलाते हैं ऐसे सरकार को भी सिद्धांतों पर चलना चाहिए यह मोदीजी की सोच रहती है।

दो चार उदाहरण मैं दे सकता हूँ। रूट कॉज एनालिसिस की बात हुई। जब मैं नया-नया मंत्री बना तो ध्यान में आया कि सेफ़्टी सबसे पैरामाउंट है, आज यात्री को लगना चाहिए कि मेरी यात्रा एकदम सुरक्षित रहेगी। तो जब डिटेल देखी तो दो समस्या एकदम सामने आयी जिसकी वजह से अधिकांश एक्सीडेंट होते हैं, एक अनमैनड़ लेवल क्रॉसिंग और एक पुरानी पटरी की रिप्लेसमेंट समय पर न करना।

आज एक पत्रकार मुझे इंदौर में पूछ रहे थे कि लालू जी के समय तो रेलवे ने बहुत अच्छा काम किया था। मैंने कहा तब मैं भी उस समय झाँसे में था कि बहुत अच्छा काम हो रहा है, अब समझ में आ रहा है वह अच्छा काम कितना भारी पड़ा देश को और रेलवे को। कि बीस-बीस टन की वैगन पर आप इतना ओवरलोड कर दो वैगंस को कि शॉर्ट टर्म में तो लगेगा कि बड़ा फ्रेट इनक्रीज़ हो गया, रेवेन्यू मिल जाएगा रेलवे को पर जो रेलवे की पटरी की क्षमता है उससे इतनी अधिक ज़्यादा क्षमता आप भर दो वैगन में कि पटरी भी ख़राब हो, डैमेज हो, सेफ्टी भी ख़राब हो और आगे चलकर जब उसको रिप्लेस करना पड़ता है तो उसकी वजह से रेल की सुविधाएँ भी तक़लीफ़ में आएं, punctuality ख़राब हो, ट्रैफ़िक ब्लॉक्स हों और अन्य-अन्य प्रकार की समस्यायें खड़ी हों।

और मैं जब आया तो इतने सालों का बैकलॉग,2015-16 में हमने काफ़ी कुछ कवर करने की कोशिश की फिर भी चलते जा रहा था तो मैंने निर्णय लिया कि जितना रेल मिलता है रेलवे को वह सब झोंक दें पूरी तरीक़े से रेल रिन्यूअल में और ऐसा करें कि जितना बैकलॉगहै एक बार ज़ीरो करें और फिर करंट रिन्यूअल हो जाए जब-जब कोई ख़राब हो तुरंत रिप्लेस हो। पिछले साल लगभग 4400 किलोमीटर रेल रिन्यूअल हुआ, इस साल 5000 से अधिक किलोमीटर कर रहे हैं, पुरानी पटरी जो डैमेज थी उसको रिप्लेस करना और मेरा मानना है कि अगले वर्ष तक पूरी बैकलॉगज़ीरो हो जाएगी रेलवे में।

इसी प्रकार से अनमैंड लेवल क्रॉसिंग्स थी कई सारी देश में। सालाना 1000-1200 अनमैंड लेवल क्रॉसिंग्स को कन्वर्ट करते थे कभी रोड ओवर-ब्रिज, कभी रोड अंडर-पास, कभी मैन कर कर बैरियर लगाकर उधर गेटमैन रखते थे और बंद करते थे अनमैंड के बदले मैंड लेवल क्रॉसिंग, 1000-1200 लगभग हर वर्ष होता था। मैंने कहा कि नहीं मुझे 30 सितंबर 2018 तक जो मेन लाइन्स हैं ब्रॉड गेज जिसको कहते हैं (भारत की जो अधिकांश रेलवे है वह ब्रॉड गेज सर्विसिज़ है) इसमें अनमैंड लेवल क्रॉसिंग को ज़ीरो करना है। तो मुझे लगा कि अधिकारियों ने ज़रूर मेरी पीठ के पीछे बहुत हंसी ली होगी। उनको लगा होगा यह कोई नया बच्चा मंत्री बन गया है इसको कुछ अकल-वकल है नहीं एक साल में पूरे जितने अनमैंड लेवल क्रॉसिंग हैं यह सब ख़त्म करना चाहता है।

ख़ैर हमने गति दी तो उन्होंने कहा अच्छा ऐसा करते हैं साहब कि हम जितने ABC category रूट्स हैं जहाँ अधिकांश ट्रैफ़िक होता है उसमें ख़त्म कर देंगे। मैंने स्वागत किया उस बात का मैंने कहा चलो प्रायोरिटी के हिसाब से यह ठीक है आपकी सोच कि ABC में पहले ख़त्म करो वहाँ ज़्यादा ट्रैफ़िक है पर हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि बाक़ी में भी ख़त्म करना है और यह वाद-विवाद चलता रहा। और अप्रैल में और अप्रैल 2018 की बात कर रहा हूँ जब मैंने रिव्यू किया तब 3479 अनमैंड लेवल क्रॉसिंगस थे अप्रैल में।

मैंने कहा 6 महीने में अब इसको ख़त्म करना है अब कोई और बहाने नहीं चाहिए मुझे भी मंत्री बने 6 महीने हो गए हैं अब यह पूरे के पूरे अगले 6 महीने में ख़त्म करना है। एकदम आश्चर्यचकित थे और सबका मानना था यह असंभव है लेकिन मोदी जी ने एक और मूल मंत्र दिया है जो काम लो उसको मॉनिटर करो अच्छे तरीक़े से और मॉनिटर करते-करते ज़िम्मेदारी ठहराओ कि यह आपकी ज़िम्मेदारी थी यह आपने नहीं किया, यह आपकी थी यह आपने नहीं किया। लोगों को एहसास हो कि यह काम भी देखा जा रहा है, अच्छे काम की सराहना हो रही है और जो काम अच्छा नहीं कर रहा है उस पर उसके ऊपर नज़र है। और आप याद रखिए रेलवे में 1000-1200 से ज़्यादा कभी अनमैंड लेवल क्रॉसिंग एक साल में 12 महीने में निकले नहीं थे।

आपको जानकर आनंद होगा अप्रैल से 30 सितंबर तक 6 महीने में 3002 अनमैंड़ लेवल क्रॉसिंगस को बंद किया गया है,6 महीने के अंदर। अफकोर्स मैं 477 रह गए थे उससे खुश नहीं था, उसके पीछे भी पड़े हैं और एक दो तीन महीने में वह भी ख़त्म हो जाएँगे। दूर-दराके के इलाक़े में है जहाँ पर बहुत कम ट्रैफ़िक है, दिन में एक गाड़ी दो गाड़ी कभी जाती है। पर आप जब ठान लो काम करना है और उसको आगे बढ़ाना है तो सब कुछ संभव होता है।

एक प्रश्न आया था और वैसे कई प्रश्न हैं कि आप एक शताब्दी भोपाल से अहमदाबाद क्यों नहीं करते हो, भोपाल से मुंबई क्यों नहीं बढ़ाते हो। एक आया कि क्यों नहीं रेल की सुविधाएँ और बढ़ायी जाती हैं, वायु सेवाएँ क्यों नहीं और बढ़ायी जाती हैं। यह चीज़ें इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट एक लम्बे अरसे का प्रॉसेस होता है। अगर मैं आपको आज शेयर करूँ कि यहाँ से दक्षिण की तरफ़ जाने वाली जो रेल की पटरियां हैं आज भी कुछ सेक्शन में सिंगल लाइन है। आप यहाँ से हैदराबाद, चेन्नई जाना चाहो कुछ सेक्शंस आज भी सिंगल लाइन के चलते हैं।

यह हमें विरासत में आज़ादी के बाद 65 साल बाद हमारी सरकार को मिली थी। हमने उसको मैप किया पूरे देश में कहाँ-कहाँ पर ज़्यादा डिमांड है, कहाँ-कहाँ पर डब्लिंग, ट्रिपलिंग, क्वाड्रप्लिंग करने की आवश्यकता है, कहाँ-कहाँ पर नई लाइनें बिछाने से यात्रियों को भी सुविधा मिलेगी, फ़्रेट भी बढ़ सकेगा। और आपको जानकर ख़ुशी होगी कि इस पाँच वर्ष के कार्यकाल में ऐसी कई लाइनें और कई गुना पहले के निसबत तेज़ गति से नई लाइनें लग रही हैं, डब्लिंग-ट्रिपलिंग हो रही है, गेज कन्वर्ज़न हो रहा है, विद्युतीकरण हो रहा है।

विद्युतीकरण पिछले वर्ष 4087 किलोमीटर, आज से पाँच साल पहले 680 किलोमीटर साल में हुआ करता था। पिछले साल हमने लगभग 4100 किलोमीटर किया, इस साल कोशिश कर रहे हैं उससे भी अधिक हो। यह सब संभव है भारत में और इस सब का लाभ सीधा उद्योग और व्यापार को मिलता है। आख़िर जब इतने बड़े पैमाने पर निवेश होगा रेलवे में, इतने बड़े पैमाने में उड़ान योजना से देश भर में एयरपोर्ट अपग्रेड होंगे, सड़कों की तो काया कल्प हो रही है देश में हाइवेज़, एक्सप्रेस वेज़, फ़्री वेज़ तो इतने बड़े पैमाने में बढ़ रहे हैं उसमें सीमेंट लगता है, स्टील लगता है, लोगों को काम करने का मौक़ा मिलता है, पूरा इकोसिस्टम को गति मिलती है।

छोटा सा हमारा LED बल्ब का प्रोजेक्ट आपको याद होगा, उजाला। मध्य प्रदेश अकेले में 1 करोड़ 68 लाख बल्बस सिर्फ़ मध्य प्रदेश में बिके हैं एक कंपनी द्वारा,EESL द्वारा, निजी क्षेत्र में जो चार-पाँच करोड़ अलग बेचे होंगे और दाम लगभग 80-85 प्रतिशत कम हो गया है पहले से। आज आप बल्ब चेंज कर कर एलईडी/LED लगाते हो तो दो तीन महीने में उसका ख़र्चा निकल आता है और फिर सालों साल आपको वह सेवा करता है।

लगभग 45,000 करोड़ की बिजली के बिलों में बचत सिर्फ़ एक LED बल्ब बदलने से देश भर में देश को लाभ मिला है, 45 हज़ार करोड़ रुपये और देश की जनता के बिल कम हुए हैं कोई सरकारी ख़ज़ाने में नहीं गया है सीधा आपके बिल में कमी हुई है। उसका उतना प्रभाव पर्यावरण में पड़ा है। तो जितनी बिजली खपत बढ़ती है उतना पर्यावरण ख़राब होता है।

आज 6 करोड़ के क़रीब घरों को, महिलाओं को मुफ़्त में उज्ज्वला योजना के तहत कुकिंग कनेक्शन मिला है कुकिंग गैस मुफ़्त में कनेक्शन मिला है। आख़िर वह महिलाएँ एक अनुमान है 400 सिगरेट जितना धुआँ रोज़ अपने शरीर में लेती थी, हमारी माता बहनों के साथ जो अन्याय वर्षों-वर्षों तक चला उसको ख़त्म करने का एक प्रयास है। अगले वर्ष तक 8 करोड़ घरों में यह पहुँच जाएगा और लगभग हमारी कोशिश है कि देश में कोई महिला को कभी वंचित न रहना पड़े कुकिंग गैस से, एलपीजीसे।

लगभग 9 करोड़ अखिर शौचालय अगर बने हैं देश में स्वच्छ भारत अभियान के तहत और जहाँ सैनिटेशन कवरेज 39% था अब बढ़कर 92-93% हो गया है। यह मुझे लगता है हम सब की कल्पना के बाहर था लेकिन क्या महिलाओं की डिगनिटी इस देश में वैल्यू रखती है कि नहीं रखती है और क्या ज़िम्मेदारी नहीं रही पहले की सरकारों की भी कि वह इसको बल दें और इसको तेज़ गति से घर-घर तक पहुँचाएँ।

और इन सब को पिरोकर जो माला बनती है विकास की फिर चाहे वह जन धन योजना हो, चाहे अलग-अलग प्रकार के सोशल सिक्योरिटी स्कीमस हों, चाहे हर एक के सर पर छत हो अपना घर बने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत देश में हर व्यक्ति को अपना घर मिले, उस घर में 24 घंटे बिजली हो,पेयजल अच्छा मिले, डिजिटल कनेक्टिविटी मिले, शौचालय हो घर में, अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य की सेवाएँ नज़दीक में मिलें।

यह जो नए भारत की कल्पना लेकर आज डबल इंजन के रूप में केंद्र सरकार, राज्य सरकार मिलकर काम कर रही हैं मैं समझता हूँ उसी का परिणाम है कि मध्य प्रदेश जैसा प्रदेश भी आज डबल डिजिट ग्रोथ दिखा रहा है। नेशनल एवरेज से ज़्यादा तेज़ गति से प्रगति कर रहा है। एग्रीकल्चर में तो ऐतिहासिक प्रगति है लगभग 18%-20% ग्रोथ है। उत्पादन 2.5 गुना हो गया है। सिंचाई करी हुई ज़मीन जो 7.5 लाख हेक्टेयर थी आज शायद 40 लाख हेक्टेयर से ज़्यादा हो गई है।

समाज के हर वर्ग को सुविधाएँ पहुँचती हैं तो उनकी पर्चेज़िंग पावर बढ़ती है, उनका स्वास्थ्य सेवाएँ सुधरती हैं तो उनकी काम करने की क्षमता बढ़ती है और यह सब डिमांड में कन्वर्ट होकर देश की अर्थव्यवस्था को, देश के व्यापार को, देश के उद्योग को बल देता है। आख़िर जब करोड़ों घर देश में बन रहे हैं (मध्यप्रदेश अकेले में 14 लाख घर) प्रधानमंत्री आवास योजना में तो स्टील बिकता है, सीमेंट बिकती है, अलग-अलग और पदार्थ बिकते हैं। आख़िर यह सब देश की अर्थव्यवस्था को ही एक गति देने का काम करती है।

साथ ही साथ टैक्सेशन सिस्टम को सिम्पलीफाई करना, टैक्सेशन सिस्टम को पारदर्शी बनाना, आख़िर GST आने के बाद 40 इंस्पेक्टर के बदले अब एक ही रिटर्न जाएगा। नहीं तो पहले आप एक्साइज़ का अलग रिटर्न भरो, सर्विस टैक्स का अलग भरो, वैट का अलग भरो, एंट्री टैक्स का अलग भरो या ऑक्ट्रॉय जो भी है, अलग-अलग cesses लगते थे, 23प्रकार के अलग-अलग सैस थे। इन सब को ख़त्म कर कर एक बनाने से आज उपभोक्ता को भी मालूम है कि मेरे वस्तु के ऊपर कुल टैक्स केंद्र और राज्य को कितना मिलता है।

पहले तो छुपा रहता था, एक्साइज़ फ़ैक्ट्री पर पे हुआ, ऑक्ट्रॉय नाका पर पे हुआ, पे हुआ कि नहीं हुआ वह ही नहीं मालूम पड़ता था, अलग-अलग प्रकार की कहानियां उसकी हम सब अच्छे तरह से वाक़िफ़ हैं।  घंटों ट्रक खड़े हैं ऑक्ट्राय नाका पर, घंटो चैक पोस्ट पर खड़े हैं ट्रक, माल ढोने का ख़र्चा बढ़ता जा रहा था। इन सब से छुटकारा पाकर आज व्यापार भी सुगम हुआ है, सरल हुआ है। जैसे-जैसे रेवेन्यू कलेक्शन बढ़ रही है हम टैक्स के रेट्स में कमी करने में सफल हो रहे हैं। 350 से अधिक वस्तुओं पर जो पहले की टैक्स स्ट्रक्चर में जो टैक्स रेट था पर वह छुपा हुआ था, अलग-अलग खांचों में था, उसको जब जोड़कर जो रेट आता था उससे कम रेट इस एक वर्ष के भीतर GST में कम किया गया है।

60 से अधिक सेवाओं में टैक्स का रेट कम किया गया है। जैसे-जैसे रेवेन्यू बढ़ेगा इसको और आगे बढ़ाएंगे इस बात को, और रेट्स को कम करने में सफल होंगे। जो भारत की अर्थव्यवस्था एक फ्रेजाइल फ़ाइव मानी जाती थी 2013 में भारत को एक बड़ी नाज़ुक अर्थव्यवस्था मानती थी दुनिया|we were in a very precarious position, कभी भी लुढ़क सकती थी। डबल डिजिट इंफ्लेशन था, वित्तीय घाटा (फिस्कल डेफिसिट) 5% के क़रीब था उसके पहले तो 6.5% तक गया था, करंट अकाउंट डेफिसिट 4.5 प्रतिशत था, ब्याज के दर आसमान छू रहे थे।

उन सब परिस्थितियों से जूझते हुए गत चार वर्षों में शायद भारत के इतिहास में पहली बार आज 4.5 वर्ष होगे इस सरकार को ब्याज के दर कम हुए हैं, फिस्कल डेफिसिट कम हुआ है इस वर्ष 3.3% होगा, करंट अकाउंट डेफिसिट कम हुआ है, महँगाई तो 4% के आस-पास इतने लम्बे समय के लिए शायद ही कभी इतिहास में हुई होगी, four years of continuous low inflation। और ऐसी एक मज़बूत अर्थव्यवस्था और 125 करोड़ लोगों की आशा अपेक्षाओं को देखते हुए ही आज विश्व भारत की तरफ़ देख रहा है, the fastest growing economy in the world today amongst the large economies. विश्व की सभी कंपनियां देख रही हैं कि आज मार्केट है किधर, बड़ी मार्केट है तो वह भारत में है, वह आकर यहाँ व्यापार करना चाहते हैं।

किसी ने यह भी प्रश्न पूछा कि क्या यह वॉलमार्ट और ऐसी कंपनियां आकर हमारे खुदरा व्यापार को तो नहीं नुक़सान पहुंचाएंगी। मुझे नहीं लगता यह हमें नुक़सान पहुँचा पाएंगी क्योंकि हमारा जो कनेक्ट हमारे कंज्यूमर्स के साथ है वह डायरेक्ट कनेक्ट इनका कभी नहीं बन सकता पर हम इनको wish away भी नहीं कर सकते क्योंकि यह आज आधुनिक वर्ग में हैं, यह विश्व में किधर से भी यह सर्विसेज प्रोवाइड कर सकते हैं। पर हम ज़रूर इनके साथ जुड़कर अपना बिज़नेस कैसे और तेज़ गति से बढ़े, हमारा सामान कैसे देश भर तक पहुँच सके इसकी अगर अच्छी तरीक़े से प्लानिंग करें तो आज हर एक छोटे, मध्यम वर्गीय उद्योग को भी मौक़ा मिलेगा बड़ा होने का क्योंकि टेक्नोलॉजी से कनेक्ट कर कर वह देश और विदेश तक पहुँच पाएगा।

और इनको भी जो सामान पहुँचाना है लोगों के घर तक इनको अल्टिमेटली तो हमारे थ्रू ही पहुँचाना पड़ेगा। यह कोई इंटरनेट के थ्रू सामान तो नहीं पहुँचेगा, इंटरनेट के थ्रू तो सिर्फ़ ऑर्डर हो सकता है। सामान तो सोर्स फिर भी हमारी कंपनियों से ही होगा, सामान तो पहुँचाने का काम फिर भी उद्योग या सेवा वर्ग से ही होगा। तो हमें देखना पड़ेगा कि इसको कैसे यूज़ कर कर अपना-अपना व्यापार हम और तेज़ गति से बढ़ा सकें। उलटे कई कम्पनियां तो जुड़ रही हैं रिटेलर्स के साथ फॉर लास्ट माइल कनेक्टिविटी जिसमें उनकी भी क्षमता बढ़ती है अच्छे प्रोडक्टस देने का, अच्छी सर्विस देने का, आमदनी बढ़ाने का।

कुछ एक दो सवाल बड़े स्पेसिफिक हैं, कोल ऑक्शन में और शक्ति के तहत और जल्दी किया जाए। मैं देखूँगा पर मुझे जहाँ तक ज्ञान है लगभग सभी की रिक्वायरमेंट्स पूरी हो गई थी पर अगर अभी भी कुछ किसी कंपनीज़ की रिक्वायरमेंट्स हैं तो हम शक्ति के तहत तो कोल ऑक्शन हम कभी भी कर सकते हैं। उल्टे यही पारदर्शिता ट्रांस्पेरेन्सी लाकर हमने देश को भ्रष्टाचार मुक्त मार्ग दिखाया है। आख़िर पहले कोयले की खदानें अपने चहीतों को, रिश्तेदारों को, पार्टी के MPs को मुफ़्त में दी जाती थी अब सब पारदर्शी तरीक़े से जिसमें सब को सामान्य अवसर मिलता है उस प्रकार से दी जाती है।

पहले लिंकेज सरकार अपने हिसाब से देती थी। किसी का प्लांट के नज़दीक लिंकेज देने का अपना एक टैक्स लगता था। किसी को अच्छी खदान से लिंकेज चाहिए तो उसको अलग-अलग प्रकार से क्या कहते थे ब्लेस्सिंग्स लेनी पड़ती थी यह शब्द से तो हम सब बहुत वाक़िफ़ हैं। अब किसी को दिल्ली नहीं जाना पड़ता है रादर वेलकम ही नहीं है कोई आना दिल्ली क्योंकि हमने सब कुछ ट्रांसपेरेंट कर दिया है।

अभी लिंकेज भी ऑक्शन होती है तो मैं चाहूँ भी तो खरे साहब को लिंकेज उनके पसंद की नहीं दे सकता हूँ। उनको बिड करना पड़ेगा और बिड में जीतना पड़ेगा वह लिंकेज को ऑक्शन के माध्यम से। तो शक्ति में हम और भी लिंकेज की ऑक्शन करने के लिए कभी भी तैयार हैं। जो व्यक्ति ने नाम नहीं लिखा है पर I can assure you मैं जाकर देख भी लूंगा अगर कोई ऐसी डिमांड है तो हम फिर एक ऑक्शन विंडो खोल देंगे।

एक कुछ बहुत स्पेसिफिक सुझाव मनोज मोदी जी का है कि शायद कुछ जो सब्सिडीज़ आती हैं उसके ऊपर सर्विस टैक्स इम्पोज़ हो रहा है। यह टेक्निकल विषय है देखना पड़ेगा क्योंकि मेरे हिसाब से सब्सिडी पर कभी सर्विस टैक्स होने का कोई संभावना मुझे तो prima facie लगती नहीं है पर अगर कोई आप पत्र लिख दें फ़ाइनेंस मिनिस्ट्री में तो मुझे विश्वास है कि वह लोग उसको क्लेरीफ़ाई कर सकेंगे क्योंकि सब्सिडी तो इन्सेंटिव दी जाती है आपको उद्योग या व्यापार को प्रोत्साहन देने के लिए।

उन्होंने यह भी लिखा है कि सोलर पर अभी सब्सिडी नहीं मिलती है। वास्तव में सोलर की बिजली अब इतनी सस्ती कर दी है और वह भी पारदर्शिता के कारण। आज भ्रष्टाचार मुक्त तरीक़े से सोलर की बिजली ख़रीदी जाती है जिससे बिजली के दाम एक तिहाई रह गए हैं। पहले मैं यह विभाग देखता था इससे मुझे उसकी जानकारी। आज शायद 2.5 रुपये के आस-पास सोलर की बिजली मिल जाती है तो सब्सिडी की कोई आवश्यकता ही नहीं रही है और इंडिरेक्टली एक सब्सिडी मिलती है कि इंटरस्टेट ट्रांसमिशन के चार्जिस हमने वेव कर रखे हैं। हाँ, कोई घर पर रूफ टॉप लगाना चाहे तो उसके लिए तो अभी भी सब्सिडी है, जो छोटे इंस्टॉलेशनस घर पर लगते हैं।

किसी ने प्रश्न उठाया है कि NSIC बेनिफिट रेलवे टेंडरस में मिलना चाहिए। मुझे लगता है यह जहाँ तक मेरी जानकारी है कि छोटे लघु उद्योग को यह बेनिफिट मिलता है लेकिन अगर कोई मिस्टर जॉन स्पेसिफिक प्वाइंट मुझे लिखकर एक पत्र भेज दें तो मैं ज़रूर इसको भी देख पाऊँगा कि क्यों MSME को नहीं मिलता है। अभी-अभी माननीय प्रधानमंत्री जी ने भी आदेश दिया है कि जहाँ तक हो सके जो प्रोडक्ट MSME बना सकते हैं अब 20% के बदले 25% MSME से ख़रीदने का उन्होंने निर्णय लिया है।

और मैं समझता हूँ जो छोटा लघु उद्योग है, मध्यमवर्गीय उद्योग है वह इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। अनुमानित है कि 40-45% देश का जो उत्पादन है वह छोटे व्यापारी, छोटे उद्योग से आता है। करोड़ों लोगों को रोज़गार का अवसर भी इस सेक्टर से मिलता है और कई बार वह अवसर दिखता नहीं है, वह रिकॉर्ड नहीं होता है। लोगों को ध्यान में नहीं आता है कि बड़े पावर प्लांट में काम करना तो रोज़गार माना जाता है पर सोलर प्लांट में काम करना किसी गिनती में नहीं आता है क्योंकि वह डिस्ट्रीब्यूटिड होता है पूरे व्यवस्था डिस्ट्रीब्यूटिड व्यवस्था होती है। जबकि एक यूनिट बिजली के पीछे जितनी नौकरी उत्पादन होती है थर्मल प्लांट में उससे 10 गुणा ज़्यादा लोगों को काम करने का अवसर मिलता है रिन्यूएबल एनर्जी में, नवीकरणीय ऊर्जा में।

तो इस सरकार ने अपने अलग-अलग जो योजनाएँ हैं उसमें यह कोशिश की है कि कैसे पर्यावरण का भी ध्यान रखा जाए, कैसे आर्थिक विकास को सस्टेनेबल बनाया जाए की लम्बे अरसे तक देश लगातार आर्थिक विकास की तरफ़ जाए, कैसे बैंकों को और मज़बूत किया जाए तो अच्छी कंपनियों को सस्ते ब्याज पर लोन मिलने की सुविधा मिले, कैसे पारदर्शिता को बढ़ाया जाए जिससे आज जो भ्रष्टाचार मुक्त माहौल बना है व्यापार में, उद्योग में उसको और कैसे आगे बढ़ाया जाए।

आगे चलकर तो आपने देखा होगा इस वर्ष इनकम टैक्स रिफंडस आपको किधर जाना नहीं पड़ा कुछ नहीं पहले ही 4 महीने में जून-जुलाई तक सब के इनकम टैक्स रिफंड आपकी रिटर्न के अनुसार आपके हाथ में पहुँच गए बिना किसी को पूछे। आगे चलकर असेसमेंट भी फ़ेस टू फ़ेस असेसमेंट नहीं होगा, उसका पूरा सॉफ़्टवेयर तैयार हो रहा है, पूरी व्यवस्था बन रही है। पहली बात तो असेसमेंट अब किसका होगा यह कंप्यूटर तय करता है कोई व्यक्ति नहीं तय करता है।

एक ज़माना था मुझे याद है लोग आकर डराते थे कि तुम्हारे यहाँ पर हम असेसमेंट में ले रहे हैं (क्या 143 1 पता नहीं कौन कौन से सेक्शन थे), स्क्रूटनी हम स्क्रूटनी मे ले रहे हैं पर मैं रुकवा सकता हूँ। आज कोई रुकवा नहीं  सकता है। वह ज़माना ख़त्म हो गया है। आज कंप्यूटर तय करता है कौन स्क्रूटिनी में आएगा और स्क्रूटिनी में कितने केस आते हैं कोई अंदाज़ा ले यहाँ पर। हमने कहा था, आदेश दिया था 1% होना चाहिए less than 1%, वास्तव में 0.33% (only 0.33%)।

और यह भी इसकी भी व्यवस्था ऐसी बन रही है कि आगे चलकर यह भी ऐसे किया जाएगा कि SSE को कैमोफ्लॉज करेंगे, अस्सेस्सिंग ऑफ़िसर को कैमोफ्लॉज करेंगे और टेक्नोलॉजी के माध्यम से प्रश्न उठाए जाएंगे, टेक्नोलॉजी के माध्यम से उत्तर कोई और देखेगा। मैं प्रश्न उठाऊँगा, कंपनी या SSE उत्तर देगी, प्रश्न और उत्तर दोनों एक तीसरे ऑफ़िसर के पास जाएँगे, उसको पता नहीं मैं कौन हूँ आप कौन हैं, वह उसमें मेरिट के ऊपर अपना निर्णय लेकर अपने उच्च अधिकारी से अप्रूव करवाकर सिस्टम में डाल देगा और ऑटोमैटिक सिस्टम से आपके पास ऑर्डर पहुँचेगा।

Without human interface or intervention जिससे हर एक चीज़ इस देश में आहिस्ता-आहिस्ता पूरी तरीक़े से भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगी। और यह जो काम आज केंद्र सरकार से शुरू हुआ है, राज्य सरकार से शुरू हुआ है यह नीचे की ज़मीन तक हर काम में पहुँचे और पहुँच रहा है। इसका अगर देखें तो वास्तव में पूरी दुनिया ने आज एकनॉलेज किया है कि India is the preferred destination क्योंकि इतनी बड़ी संख्या में लोग एक अच्छा जीवन बिताना चाहते हैं, इतनी बड़ी देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर का डिमांड है तो हमारा सामान भी बिकेगा, इतने बड़े देश में आधुनिक टेक्नोलॉजी लाई जा रही है तो स्वाभाविक है कि इससे अर्थव्यवस्था तेज़ गति से बढ़ेगी।

और ऐसी परिस्थिति में मुझे पूरा विश्वास है कि जो व्यापार जगत से, जो उद्योग जगत से लोग जुड़े हैं उन्होंने महसूस किया है यह बदलाव। इस सरकार का पक्का मानना है कि व्यापारी और उद्योगपति या उद्यमी मूलतः ईमानदार होता है, ईमानदार व्यवस्था से काम करना चाहता है।  कोई ग़लत काम कोई टैक्स की चोरी करने में कोई व्यापारी कोई उद्योग में किसी को शोक नहीं होता है, किसी की इच्छा नहीं होती है। इक्के-दुक्के लोग हों तो उससे कोई पूरे समाज के ऊपर टिप्पणी नहीं हो सकती है।

और जितना-जितना सरकारें विश्वास करती हैं उद्योग जगत को, व्यापार जगत को उतना-उतना व्यापार जगत भी और उत्साह के साथ प्रगति करता है, उत्साह के साथ टैक्स पे करता है। जब हालात सुधरते हैं और भ्रष्टाचार मुक्त होते हैं तो व्यापारी का भी मनोबल बढ़ता है, व्यापारी की भी सोच बदलती है कि मैं भी अब ईमानदार व्यवस्था से काम कर सकता हूँ, रात को चैन की नींद सोऊंगा, अगले दिन फ़्रेश उठकर एक नया बिज़नेस के प्रति अपना अपने व्यापार के प्रति ध्यान दूँगा।

और मेरा मानना है कि जो इस देश की युवा पीढ़ी है सबसे अधिक कोई इस बात से प्रसन्न है, सबसे अधिक जो इस रास्ते से अपना जीवन बिताना चाहता है वह बहुत ही उत्साह के साथ इस ईमानदार व्यवस्था के साथ जुड़ने में तेज़ गति से लगा हुआ है। और आज केंद्र और राज्य में दोनों में जिस प्रकार से प्रगति की लहर चल रही है, जिस प्रकार से नए भारत की कल्पना लेकर काम हो रहा है इस काम में आपका जो सहयोग है, आपका जो समर्थन है, आपका जो आशीर्वाद है उसके बग़ैर सफलता असंभव होगी।

जैसे कहा जाता है कि जब तक सब मिल कर काम नहीं करें, अटल जी की वह बड़ी फ़ेमस कविता थी “क़दम मिलाकर चलना होगा”। सरकार को, व्यापारी, उद्यमी को और देश की जनता को सभी को क़दम मिलाकर चलना होगा इस देश को नई ऊंचाईयों तक पहुँचाने के लिए, इस देश को एक उज्जवल भविष्य देने के लिए, इस देश के हर बच्चे को अच्छी शिक्षा और सामान्य अवसर देने के लिए। इस देश में आर्थिक और सामाजिक संतुलन भी बना रहे और प्रगति और विकास तेज़ गति से दशकों तक चले जिससे फिर एक बार जो सोने की चिड़िया मानी जाती थी भारत वह फिर एक बार दुनिया में पहचानी जाए अपने सही क्षमता के लिए। और मुझे पूरा विश्वास है कि आप सबका इसमें पूरी तरीक़े से सहभाग्यता हमें भी मिलेगी, देश को भी मिलेगी।

दीपावली का अभी-अभी हमने पर्व मनाया है। आगे चलकर और बहुत सारे त्योहार आने जा रहे हैं। आपको और आपके परिवारों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत शुभेच्छा और नया आने वाला वर्ष और ज़्यादा सफलता दे आप सब को, और ज़्यादा तेज़ गति से आप सब का व्यापार ,आप सबका उद्योग प्रगति करे। इस शुभकामना के साथ मैं आपसे मैं अपनी बात को विराम करता हूँ।

बहुत-बहुत धन्यवाद।

 

Question and Answer

Q: We had a very wonderful conversation with Hon’ble Minister. As Bhopal is railway-based and lot of our entrepreneurs are from that background so I got couple of questions during a meeting where they were asking as to how railway can help us in exports in coming future, one and Metro is also coming in Bhopal so how the industry would get advantage of that situation and I am sure this is one of the few questions which I received after?

A: Well I think actually let me give you an anecdote, when the Rajdhani was introduced in 1969 the then chairman of the Railway Board also opposed the introduction of Rajdhani. He said why does this nation need Rajdhani, we don’t have the money to spend on Rajdhanis and today I suspect most of you would be naturally wanting to travel by a Rajdhani or a Shatabdi or a Tejas whenever you get an opportunity.

In the same way we believe that unless India brings the best of world-class technology to India we would never be able to give the kind of international experience to our passengers, safety, comfort, security, speed that today’s concerning customer demands of us. And therefore I think the coming advent of metros, the advent of bullet trains, the train sets that we are now manufacturing in India, all of these are going to bring in a better quality infrastructure for passengers, correspondingly also for freight in the days and years to come.

We are setting up dedicated freight corridors, we are going to expand into many more new corridors in the near future. All of these will give opportunities for business to become ancillary suppliers through these various […] manufacture rail, which manufacture Metro coaches, which manufacture rolling stock, which manufacturer locomotives.

We are going for 100% electrification of the railway. India will be the world’s first railway of this large size and dimension. 1,50,000 km track kilometres will be electrified in the Railways, already I think 40% has been done. All of that provides an opportunity for you in terms of supplying equipment. It will provide an opportunity for you as more and more electric locomotives come into play. It will provide opportunity for you when faster trains come in. It will provide mobility to our people to go from one place to the other. It will provide opportunity for research and development to see how we can do better […].

Ultimately the bullet train, the high-speed trains, the semi high-speed trains, the electric locomotives all are going to be made in India. So, we are bringing in all these technologies and I would urge all of you also to look at your areas of interest and connect with RDSO. RDSO is the Railway Design and Standards Organisation is appealing all over the country and partnership with CII we have had many interactive sessions asking you when does you register with the Railways and become suppliers. We want more competition, we want better quality of products.

 

Ends.

 

 

 

 

Next Speech

November 17, 2018 Speaking at ET Awards in Mumbai

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