Speeches

August 3, 2018

Speaking at Chalo Jeete Hain Special Screening for Professionals & Intellectuals, in New Delhi

इसमें फॉर्मेलिटी लगी ही नहीं, इन्होंने कहा आ जाओ| मैंने कहा कौन है? इन्होंने कहा सब अपने intellectuals हैं, chartered accountants हैं, professionals हैं| अच्छा, CAs को intellectuals की श्रेणी में आप गिनते हो? तो मैं भी CA हूँ भाई| तो फिर मुझे कोई hesitation नहीं था, मैंने कहा इसमें कोई फॉर्मेलिटी नहीं है, यहाँ तो कभी भी मैं आ सकता हूँ| और वास्तव में राजेश ने कुछ गलत नहीं कहा, बहुत अहम भूमिका रही है हमारे प्रोफेशन की| आज शायद देश की अर्थव्यवस्था नहीं चल पाए अगर हम सब अपनी पूरी ज़िम्मेदारी से काम नहीं कर रहे होते| इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था world’s fastest growing large economy.

He was right, कुछ black sheep हो सकते हैं पर उसका यह मतलब नहीं होता है कि कोई पूरे प्रोफेशन के ऊपर कोई टिप्पणी हो रही है| वास्तव में यह आज जो फिल्म देखी आपने मुझे भी सौभाग्य मिला पिछले हफ्ते इस फिल्म को देखने का| एक eye opener के रूप में प्रस्तुत किया है महावीर जैन और उनकी टीम ने कि कैसे जीवन में कम आयु के कुछ अनुभव, कुछ हमारे साथ जो बीतता है उससे हमारा व्यक्तित्व कैसे define होता है, how does our own sensitivity, our own future get defined by our small experiences, particularly, when we are young.

अब वह नरू जो लड़के के साथ पेश की गयी एक कहानी है, और छोटी सी है, कुछ 32 मिनट की कुल फिल्म है और प्रधानमंत्री के जीवन में से एक बहुत छोटा सा अंश इसमें प्रस्तुत किया गया है| शायद पूरा पीरियड देखें तो दो हफ्ते के पीरियड का रेंडिशन है यह| पर एक छोटी कहानी में मैं समझता हूँ सैंकड़ों कहानियाँ, अगर आप गहराई से सोचें इसके बारे में तो आपको सैंकड़ों विषय सामने आयेंगे जिन्होंने शेप किया है प्रधानमंत्री जी की सोच को|

यह जो ‘पीला फूल’ नाटक भी इस फिल्म में दिखाया गया है यह भी एक्चुअल स्टोरी है, प्रधानमंत्री जी ने काफी साहित्य लिखा है| पर उसमें जो शुरू-शुरू में बचपन में पहली कोई शॉर्ट स्टोरी या शॉर्ट प्ले लिखा था वह पीला फूल is a true story. It’s not कि as if it’s a creation of the director or the writer of this script.

और आप नोटिस करिए कैसे छोटी-छोटी चीज़ें, राजेश जी ठीक कह रहे थे, मैं भी जैसा यह कह रहे थे सोच रहा था कि उनकी माँ के ऊपर क्या बीती उसमें से शायद उज्ज्वला योजना निकली| और आपने 4 करोड़ का अंश बताया, आज ही के दिन धर्मेन्द्र प्रधान जी मुझे बता रहे थे और अभी-अभी उसका सेलिब्रेशन हुआ था पार्लियामेंट पर, 5 करोड़ महिलाओं को मुफ्त में एलपीजी सिलिंडर पहुंचा है| आज शुभ अवसर है आपने यह कार्यक्रम रखा उसी दिन 5 करोड़ का आंकड़ा क्रॉस हुआ है, ओरिजिनल फिगर इस स्कीम का 5 करोड़ था 2019 तक करने का, अब हमने उसको बढ़ाकर 5 करोड़ को 8 करोड़ कर दिया है|

और धर्मेन्द्र जी बता रहे थे कि देश में एक भी परिवार ऐसा नहीं छोड़ेंगे जिसके घर पर एलपीजी सिलिंडर न हो| Either LPG cylinder या piped gas, दिल्ली वगैरा में piped gas आप लोगों को देंगे| बिजली की आपने बात की, कई बार कुछ मित्र बोलते हैं भाई 18,500 गावों में आपने बिजली पहुंचाई उसमें क्या बड़ी बात है, 6 लाख गावों हैं देश में, 97% तो हमने कर दिया था| लेकिन वह भूल गए इसके दो और पहलू हैं|

आपने जो गाँव तक बिजली पहुंचाई, उसके बाद और बिजली पहुंचाने की जो डेफिनिशन इतने वर्षों तक चलती आई है वह यह थी कि भाई पंचायत ऑफिस में बिजली पहुंचा है कनेक्शन, खम्बा खड़ा हो जाये कि गाँव तक बिजली पहुंची, पंचायत ऑफिस में गयी और 100 घर हैं तो 8-10 घरों में बिजली पहुँच गयी तो उसको एलेक्ट्रिफाइड विलेज मान लेते थे| और उसमें भी जो कठिन गाँव थे उधर तक तो पहुंचा ही नहीं, जो 18,452 गावों हमारे खाते में आये जब मैं बिजली मंत्री बना यह देश के सबसे कठिन गाँव थे – कोई माओवादी इलाके में, कोई पहाड़ की चोटी पर, कोई inaccessible ऐसी जगह थी कि जहाँ पर कन्धों पर poles और transformers लेकर हमारे लोगों को सब equipment लेकर जाना पड़ा बिजली पहुंचाने के लिए|

कुछ तो गावों ऐसे हैं जहाँ transmission network इतना दूर है कि renewable energy, solar और battery-based solar plants के माध्यम से बिजली पहुंचानी पड़ी| तो यह वह सबसे कठिन गावों थे, पर हम फिर इन गावों में बिजली पहुंचाने के बाद रुक नहीं गए, हमने सौभाग्य स्कीम के तहत हर घर तक बिजली पहुंचाने का बीड़ा उठाया – every home should have electricity.

और अगले 6-8-9 महीनों में इस देश में एक भी घर ऐसा नहीं रहेगा जहाँ बिजली नहीं पहुंची होगी, शत-प्रतिशत घरों तक बिजली पहुंचेगी| Of course, जब वह स्कीम बनाई गयी तो मैंने वह clause डाला था ‘willing consumer’, अगर राजेश शर्मा बिजली की एप्लीकेशन ही नहीं करें तो मैं ज़बरदस्ती उनके गले में बिजली नहीं डाल सकता| तो मुझे ध्यान में आया कि कुछ चैनल जो Madison Square तक पहुँच गए थे और लोगों को ‘भाई बोलो बहुत दुखी होना मोदी से?’ बहुत कोशिश की थी, आपने देखा होगा टीवी पर जब मोदी जी Madison Square New York में गए थे, कुछ anchors, कुछ channels गले में घुसा रहे थे माइक को कि बोलो भाई दुखी हो तुम| देखो इतनी भीड़ में आपको परेशानी हो रही है?

In fact, demonetization में नोटबंदी के समय भी लोग लाइनों में जाकर बड़ी ज़बरदस्ती करने की कोशिश करते थे कि बताओ बहुत दुखी हो, फिर भी लोग कहते थे कि नहीं मोदी ठीक कर रहा है| तो इसी प्रकार से मोदी जी का काम ऐसा नहीं रहता है कि भाई मैंने बिजली पहुंचा दी गाँव तक, 10% घर में बिजली पहुँच गयी तो मैं संतुष्ट हो गया| उनकी इच्छा है कि हर घर तक पहुंचे और वह उस कहानी में देखने को मिलता है जब वह दिखाते हैं कि लैंटर्न की लाइट में पढ़ रहे हैं, लैंटर्न की लाइट जब तेज़ होती है तो कैसे सोम भाई बोल रहे हैं या प्रहलाद भाई बोल रहे हैं कि भाई उसको बंद करो| और फिर उसमें से उनका जो मन से निकलता है कि यह ज्योति भी किसी के लिए जी रही है, जो ज्योति वह लैंटर्न में थी वह भी किसी के लिए जी रही है, तो हम किसके लिए जी रहे हैं?

और वास्तव में मैं समझता हूँ खासतौर पर जो युवा-युवती आज यहाँ पर हैं उनके लिए तो एक इस उम्र में बहुत ही deep-rooted film देखने का मौका मिला और ऐसे ही छोटे-छोटे अनुभव, ऐसे ही छोटे-छोटे प्रसंग जब हमारे जीवन में आते हैं वह शेप करते हैं हमारे भविष्य को, हमारे फ्यूचर को| मैं समझता हूँ मूलतः कोई भी पैदा नहीं होता है बेईमान बनने के लिए, कोई पैदा नहीं होता है गलत काम करने के लिए| जब बच्चा पैदा होता है उसमें तो भय भी नहीं होता है, आखिर आप छोटे बच्चे को ऊपर उछालते हो और फिर पकड़ते हो वह तो हँसता है उसको कोई डर नहीं है, क्योंकि उसको डर हम बिठाते हैं, हमारे अनुभवों से या हमारी ट्रेनिंग से जिस प्रकार से माँ बोलती है अरे, यह मत करो, चोट लग जाएगी! मैं मांओं को कुछ गलत नहीं बोल रहा हूँ! या जब हमारा नया चार्टर्ड अकाउंटेंट पहली बार कोई विभाग में जाता है असेसमेंट कराने और उसको सामना करना पड़ता है अलग-अलग प्रकार के प्रसंगों का – मैं उसकी गहराई में नहीं जाता हूँ|

तो आखिर कोई दुकान में भी चले जाओ मैं नहीं समझता हूँ कोई मूलतः कोई दुकानदार या कोई छोटा व्यापारी या छोटा उद्योगपति गलत काम करना चाहता है| Basic human tendency और खासतौर पर भारत का अगर देखें तो एक भारत के नागरिक की, एक भारत के ज़िम्मेदार व्यक्ति की basic tendency ईमानदारी की होती है, always. कई बार हालात गलत रास्ते पर ले जाते हैं, लेकिन जब हम ‘चलो जीते हैं’ जैसे अनुभव करते हैं इस टाइप की…

अब आप देख लीजिये पैडमैन, आपमें से कई लोगों ने पैडमैन देखी होगी वह एक कमर्शियल फिल्म थी, लेकिन कितना गहरा मैसेज था उसमें| और जब हमने सेनेटरी पैड्स का जीएसटी जीरो किया तो अक्षय कुमार का फ़ोन लंदन से आया to thank and to offer his services कि अगर आप कुछ भी करना चाहते हो, और मेरी तो दिल की इच्छा है और अगर रेलवेज और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स सब मिल जायें और हमारे स्टूडेंट, साढ़े बारह लाख स्टूडेंट, ढाई लाख चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और मेरी रेलवे की पूरी व्यवस्था मैं खोलने को तैयार हूँ| अगर हम इसको एक मिशन मोड में ले लें तो मेरा मानना है भारत की एक भी महिला को इससे वंचित रहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी|

और जैसे हमने एलईडी में economies of scale, ईमानदार व्यवस्था लायी और उससे 87% cost घट गया तो मेरा तो मानना है कि हमने टारगेट करना चाहिए अच्छा, hygienic, good quality sanitary pad, एक रुपये प्रति पैड में, एक महिला को साल में लगभग 90-100 लगते हैं, 100 रुपये खर्चे में इस देश की हर गरीब महिला को एक sanitary pad पहुंचा सकें इस काम पर हम सबको लगना चाहिए|

आखिर हमने सबने भी कुछ तय करना पड़ेगा ना हम किसके लिए जीते हैं? हमारा व्यापार, हमारा प्रोफेशन, वह सब तो अच्छा है और उसमें भी हम सेवा कर रहे हैं वह गलत लोगों को छोड़ दो, हर जगह कुछ bad eggs होंगे, राजनीति में कम हैं क्या? तो वह उनको छोड़ दो उनको अपनी-अपनी जगह पहुँचने को टाइम आ जायेगा उनको जो कानूनी व्यवस्था है इस देश की, as they say the law will catch up with them. जिस प्रोफेशन में, जिस फील्ड में कुछ लोग गलत काम करते हैं the law will catch up with them, वह हमारा काम नहीं है|

हमको ईमानदार व्यवस्थाओं को आगे बढ़ाना है, हम सबको डिफाइन करना है कि हम किसके लिए जीने वाले हैं, हमारा उद्देश्य क्या रहेगा जीवन का| Certainly, professional practice, business, trade जो भी हम करते हैं उसको पूरे जी एंड जान से करें, ईमानदारी से करें, उसमें पूरा अपना फोकस रहे, लेकिन there has to be a element going beyond our routine जिसको कह सकते हैं duty-plus. There has to be some plus factor to our life.

आखिर उस नरू को प्रेरणा मिली कि मैं; उन्होंने वह देखा शायद होली का कुछ त्योहार या जो दिखाया है जिसमें लोग नाटक देख रहे हैं और शायद कुछ पैसा देते होंगे उससे inspiration लेकर एक वंचित परिवार, एक दलित परिवार जिसको शायद एक uniform के कारण उस बच्चे की education नहीं हो पा रही है| और बहुत टैलेंट छुपा हुआ है भारत के गावों में, भारत के इस वर्ग में जिसको मौका नहीं मिलता है, तो कैसे उनको inspiration मिली, कैसे उन्होंने नाटक लिखा, नाटक प्रस्तुत किया, उसमें से पैसा जो आया उससे सीएसआर किया| आखिर what is CSR?

और उस लड़के को यूनिफार्म दी, अच्छा टीचर की बात देखो गुरू ने क्या शिक्षा दी कि डिसिप्लिन कितना इम्पोर्टेन्ट है! गणवेश मात्र गणवेश नहीं है, यह आपको अनुशासन के एक प्रतीक के रूप में देखना पड़ेगा| आखिर आप सब यहाँ पर आये आज, ठीक से ढंग के कपड़े पहन के आये न? गणवेश ही, एक प्रकार से यह हमारी आज की गणवेश हैं कि हम सब प्रॉपर्ली ड्रेस-अप होकर आये हैं, कोई नाइट ड्रेस में तो एक भी व्यक्ति नहीं आया है, हैना? Of course, हर एक व्यक्ति कोई सूट-बूट में नहीं आता है|

परन्तु एस्पिरेशन तो रखनी पड़ेगी ना सबको! और मैं समझता हूँ शायद उस गुरू ने बहुत बड़ा काम किया जिन्होंने उस छोटे बालक नरू को inspire किया discipline के लिए भी और साथ में अपने colleagues के लिए कुछ करने के लिए प्रेरणा दी| और कई बार यह विषय उठता है कि, और मैं समझता हूँ professional bodies में कई बार यह विषय उठता है, कई लोग टिप्पणी भी करते हैं, कई बार लोग इस बात पर चर्चा भी करते हैं कि reservation क्यों है? मैं समझता हूँ इस फिल्म में यह भी बहुत अच्छी तरीके से दिखाया गया है कि reservation इस देश की आवश्यकता है, इस देश में रहना चाहिए|

आखिर पीढ़ियों तक, सदियों-पीढ़ियों तक एक वर्ग के साथ अन्याय हुआ है इस देश में, इस वर्ग के साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है इस देश में| इस वर्ग के लोगों को पानी तक पीने नहीं दिया जाता था जो कुआँ था गाँव में या जो तालाब था उसमें, उनको मंदिर में दर्शन करने नहीं दिया जाता था, आपने वह दृश्य देखा| क्योंकि नरू की जाति छोटी थी, आपने व्यवहार देखा| उस छोटे लड़के के साथ जो व्यवहार हो रहा था मंदिर में जो एक शोषित परिवार से था वह व्यवहार देखा|

जो सफाई की बात आज प्रधानमंत्री जी करते हैं वह कोई ऐसी ही उनके मन में नहीं आया है या शौचालय अपना-अपना हर घर में हो वह शायद ऐसे ही उन्होंने इतनी बड़ी योजना नहीं ली है| क्या एक वर्ग विशेष वह काम रहेगा? क्या वह ठीक है? क्या वह इस देश को शोभा देता है? क्या 70 वर्ष आज़ादी के बाद भी छोटी बालिकाएं, हमारी महिलाएं, बहनें-माताओं को मल उठाना पड़े अपने सिर पर यह किसी भी प्रकार से कोई सोसाइटी टॉलिरेट कर सकती है? आप सोचिये हमने 70 वर्ष तक टॉलिरेट किया है इसको|

It took a Narendra Modi to come into government, और आप ही लोग लाये हो, मुझे पूरा विश्वास है आपके सहयोग, आपके समर्थन, आपके आशीर्वाद से हम यहाँ बैठे हैं जहाँ हम बैठे हैं| लेकिन आपने इसी ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए बिठाया है ना कि कुछ अलग करें कुछ बदलाव हो, कुछ समाज में बदले, कुछ देश की अर्थव्यवस्था में बदले, कुछ देश की सोच बदले| और मैं समझता हूँ अगर मोदी जी ने कुछ भी किया है पिछले चार साल में उसके पीछे जो सबसे बड़ा हेतु था वह भारत और हम सबकी सोच बदलने का काम था| Sensitivity – should we not be sensitive to the lesser privileged sections of society? क्या अगर उस बच्चे को स्कूल में पढ़ाई नहीं मिली, यह लगभग 50s की स्टोरी है या 1960 में सेट है यह स्टोरी, 1960 की चित्र है यह, 1960-62 – 56 years ago.

क्या हम अपनी छाती पर हाथ रखकर बोल सकते हैं कि हर दलित बच्चे को आज भी पढ़ाई मिल रही है? हम सब गाँव से किधर न किधर मूलतः हम सबका कनेक्शन कोई गाँव से है, क्या हमारे गाँव में जो पिछड़े वर्ग के लोग हैं उनके साथ न्याय हो रहा है आज भी? और गाँव तो दूर की बात है, आज भी अगर शहरों में हम झांककर देखें क्या स्थिति है और अगर किसी की मृत्यु होती है स्टारवेशन से शहर के अन्दर, मैं समझता हूँ उससे ज्यादा शर्म की बात हम सबके लिए और मैं यह सामूहिक रूप से, मैं भी अपने आपको आपकी तरह एक समाज का अंश ही पकड़ता हूँ|

यह हम सबको समाज को सोचना पड़ेगा कि क्या ऐसी स्थिति हम सबको शोभा देती है? क्या इतना disparity, इतनी inequality हम सब उसके भागीदार हैं? क्या हम इसको नज़रंदाज़ कर सकते हैं, आँख बंद कर सकते हैं? और फिर भी इतनी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद, इतनी कठिनाइयों के बावजूद राजेश जी अभी बता रहे थे कितनी नाज़ुक अर्थव्यवस्था 2014 में विरासत में मोदी जी और जेटली जी को मिली|

Actually, तब मैंने भी बहुत advocate किया था कि एक white paper निकालते हैं, असली बात लोगों को पता चले कि 1,30,000 करोड़ के तो oil bonds हमें विरासत में मिले, जो आपने अभी ज़िक्र किया| पेट्रोल-डीजल की कंपनियों की हालत इतनी खस्ता थी कि 100 रुपये लोन कोई देने को तैयार नहीं था| This is Naru really, youthfulness में यह ताकत होती है कि देखो बचा freely सोच सकता है, freely घूम सकता है| I honestly believe हम सबको अपने में नरू जगाना पड़ेगा| Let it be, हम उसको क्यों kill करें इसके initiative को, मुझे कोई disturbance नहीं हो रही है अगर आपको कोई disturbance नहीं हो रही है तो|

पर तब क्यों नहीं निकाला वाइट पेपर? क्योंकि पूरी दुनिया के सामने हमारे देश की असलियत उस समय बताते तो यह चार साल में जो भारत को विश्वास की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनाने का ख़िताब मिला है, जिस प्रकार से आज पूरे देश की साख बनी है पूरे विश्व में यह कभी नहीं बन पाती| और यह हम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से बेटर और कोई नहीं समझ सकता है| आखिर बैंकिंग व्यवस्था इतनी बिगड़ गयी थी… उसको अगर सुधारना था तो एक बार तो somebody had to bite the bullet. एक शीशा दिखाने की आवश्यकता थी कि यह है असलियत किस प्रकार से बैंक चले हैं पहले और यह है लोन्स की स्थिति क्या अच्छे हैं क्या बुरे हैं|

कई बार आज कल टिप्पणी में लोग हम से सवाल पूछते हैं कि यह भाग गया, वह भाग गया, पहले तो भागने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी क्योंकि कभी एक्शन ही नहीं होता था किसी के ऊपर| पीछे कोई एक स्टेटिस्टिक्स किसी ने निकाले कि इतने केस उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए तो क्राइम बढ़ गया है, मैंने कहा नहीं, पहले तो क्राइम के अगेंस्ट तुम कुछ केस फाइल करने जाओ तो पुलिस थाना केस ही नहीं फाइल करता था|

आज यह स्थिति आ गयी है कि सब चोर भागे हुए हैं और बोलते हैं हम को जेल में डाल दो हमको बाहर नहीं रहना है, उसका जो भी मतलब है वह आप समझ गए होंगे| बेल कैंसिल करा रहे हैं उत्तर प्रदेश में, यह होती है निर्णायक नेतृत्व और यह होती है एक नेतृत्व की साख|

आखिर इतना बड़ा देश, 125 करोड़ लोगों का देश उसको बदलने का जो बीड़ा प्रधानमंत्री ने उठाया है उसकी एक झलक आपने देखी कि यह सोच कहाँ से पैदा हुई, यह चिंता कहाँ से पैदा हुई, यह विचार कहाँ से, नीव कहाँ से रखी गयी इन विचारों की| और मेरा तो मानना है वास्तव में ऐसी प्रेरणादायक जब चीज़ें हमारे सामने आती हैं तो हम सबको भी प्रेरणा देती हैं, हम सबको भी लगता है कि हमने भी कुछ करना है समाज के लिए, हमने भी कंट्रीब्यूट करना है to the lesser privileged. और हम सबको भी एक प्रकार से सोचने का मौका मिलता है कि हम किसके लिए जी रहे हैं – अपना परिवार है, परिवार की ज़रूरतें वह तो स्वाभाविक है| वह तो कौनसी मूवी का था न वह ‘यह जीना भी कोई जीना है’, वह तो हमारा रुटीन जीना है| That is like a 9 to 5 job.

पर अगर यह ग्रुप यहाँ बैठा हुआ या हमारे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की इंस्टीट्यूट और हम सब देश भर में बीड़ा उठा लेते हैं कि जितने अब घर बाक़ी रह गए हैं जिनको बिजली नहीं मिली हम सीएसबी पहल करेंगे, उनके पास जाएंगे, उनको बोलेंगे अप्लाई करो, बिजली लो जल्द से जल्द यह पहुँचे| आख़िर यूनाइटेड नेशंस ने मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स बनाए जिसको अभी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल के नाम से 2015 में फाइनलाइज़ किया कि विश्व में हर एक घर में 2030 तक बिजली पहुँचेगी, मोदी जी ने कहा 2030 क्यों भाई? एक-एक दिन जो जा रहा है हमारे गरीब बच्चों का दिन जा रहा है उनको पढ़ाई की व्यवस्था नहीं मिल रही है| आख़िर आपके मेरे बच्चे को इंटरनेट की व्यवस्था से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, क्या उस ग़रीब के बच्चे को इंटरनेट, बिजली, अच्छी शिक्षा, कनेक्टिविटी नहीं होनी चाहिए?

वही पैडमैन को आप याद करो, कैसे उसको ध्यान में आता है कि यह पैड्स सस्ते बन सकते हैं जब किसी के यहाँ वह नौकरी करता है, वह बच्चा इंटरनेट खोलता है और इंटरनेट पर दिखाता है मुरुगनाथम तमिलनाडु वाले मुरुगनाथम को, कैसे उसने वह पैड बनाने वाली मशीन तैयार की है, सस्ती मशीन में अच्छी क्वालिटी पैड बनाके गाँव और ग़रीब को पैड पहुँचा रहा है।

आप सोचिए ऐसे इंटरनेट जब गाँव-गाँव में घर-घर तक पहुँचेगा जिसके लिए तेज़ गति से भारत सरकार काम कर रही है। बिजली हर घर में पहुँचेगी, शौचालय हर घर में पहुँचेगा, सस्ते ब्याज पर हर ग़रीब को लोन मिलेगा 20 साल के लिए जिससे 2022 तक हर व्यक्ति के घर पर छत होगी, साधारणतः हर व्यक्ति अपने घर का मकान मालिक बनेगा। जब शौचालय सब घर तक पहुँच जाएंगे और open defecation-free भारत बनेगा|

आख़िर I don’t know if you are aware, सैनिटेशन कवरेज 2014 में मात्र 38 प्रतिशत थी, मई 2018 तक वह 38 ट्रांसपोज़ होकर 83% बन गया था चार वर्षों में और अभी-अभी रीसेंट आंकड़ा जुलाई का, July end का जो आया है 89%। 7.5 करोड़ से अधिक टॉयलेट मात्र चार वर्ष में बने हैं, जो 65 वर्ष में जितना काम हुआ था टॉयलेट बनाने का चार वर्ष में किया गया है। लगभग 30 करोड़ लोग वंचित थे बिजली से उनको इस कार्यकाल में, पहले कार्यकाल में – मैं आख़िरी वर्ष सरकार का नहीं कह रहा हूँ, पहले कार्यकाल.. मुझे पूरा विश्वास है इस देश की जनता बेवक़ूफ़ नहीं है सब समझती है, इस देश की जनता में इतनी समझ है कि महाराष्ट्र में आज, आज के दिन रिज़ल्ट आया है महाराष्ट्र में, आप रोज़ पेपर में पढ़ते होंगे, देखते होंगे कि यह agitation हो रहा है पूरा सुना दिया कि farmer agitation हो रहा है महाराष्ट्र में|

ज़रूर हर एक की कुछ न कुछ पीड़ा, कुछ चिंता होती है, मराठा agitation हो रहा है स्वाभाविक है उनकी भी कुछ आशाएं हैं उपेक्षएं हैं| पर यह कोई चार साल में नहीं खड़ी हुई हैं यह सालों साल से 40-50 साल से उनकी यह डिमांड्स चल रही हैं। आप देखते होंगे पेपर में रोज़ महाराष्ट्र का चित्र दिखाया जाता है, बड़ा अस्वस्थ्य है महाराष्ट्र की राजनीति, दो कॉर्पोरेशन के चुनाव का निकाल आज आया है – जलगाँव और सांगली, दोनों में पूर्ण बहुमत से BJP जीत के आयी है और दोनों में आज के पहले कभी BJP नहीं जीती थी, यह दोनों कांग्रेस और एन.सी.पी. के stronghold थे, सांगली वेस्टर्न महाराष्ट्र का stronghold था शरद पवार जी और कांग्रेस का, जलगांव मराठवाड़ा का stronghold था, दोनों में BJP जीतके आयी है एब्सॉल्यूट मेजोरिटी से, क्यों? क्योंकि जनता को पता है कि हमारी समस्याओं का कोई सलूशन देगा, तो मोदी देगा और BJP की सरकार देगी।

बहुत-बहुत शुभकामनाएं अतुल जी, अच्छा मैसेज देके आप जनता को और अच्छी सीख दें ऐसी मेरी शुभकामना है| तो यह सिग्नल भी है राजेश से सिगनल भी देते हैं मैं बहुत बोल चुका हूँ| सबसे ज़्यादा ताली इस बात पर बजी है| सिर्फ़ मैं इतना मैसेज देना चाहूंगा हमें गर्व है हमारे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर, हमारा गर्व है हम सब जो कंट्रीब्यूट कर रहे हैं इस देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने में और इस देश को सुरक्षित बनाने में आप इस काम को ईमानदारी से पूरी ईमानदारी से चालू रखिए| आपको याद होगा मोदी जी ने एक साल पहले कहा था उनकी देशभक्ति और आपकी देशभक्ति में कोई फ़र्क नहीं है, जितनी उनकी है उतनी आप सबकी है|

और इस देशभक्ति का परिचय हम अपने ईमानदार काम से, ईमानदार व्यवस्था से दे सकते हैं और हम सब इसी सेंसिटिविटी से जो इस फ़िल्म में आपने देखी चिंता करें उन गरीबों की, उन वंचित शोषित परिवारों की जो शायद अब तक ट्रेन में चढ़के अपने जीवन को सुधार नहीं पाए, जीवन को बदल नहीं पाए हैं| एक कहावत हैना जो ट्रेन को बोर्ड कर देते हैं उनके सामने दो रास्ते होते हैं, या तो हाथ देकर दूसरे को भी ट्रेन में चढ़ने में हेल्प करें और या दरवाज़ा बंद कर दें कि भाई मैं तो ट्रेन में चढ़ गया अब तुम पीछे प्लैटफ़ॉर्म पर रह जाओ| हमें चूस करना है हमने कौन सा मार्ग लेना है| नरू ने अपना मार्ग तय कर लिया था उसने पूरा जीवन समर्पित किया देश के लिए, दूसरों के लिए अपना जीवन जिया| हम सब को तय करना है कि हम किसके लिए जियेंगे|

और एक मौक़ा है हम सब प्रधानमंत्री के हाथ मज़बूत करें, हम सब अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास करें, ज़िम्मेदारियों को समझें, ज़िम्मेदारियों को निभाएँ और मुझे पूरा विश्वास है कि हमारा प्रोफेशन कोई चुनौती आ जाए उसमें कभी पीछे नहीं रहेगा, पूरे जी और जान से देश को समर्पित रहेगा और एक अच्छा भविष्य इस देश के 125 करोड़ लोगों को मिले इस ज़िम्मेदारी का एहसास करते हुए हम सब अपना काम करेंगे|

आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं|

 

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