Speeches

October 30, 2017

Speaking at ​Amar​ ​Ujala:​ ​CSR​ ​Awards, in New Delhi

अग्निहोत्री जी , यहाँ पर कई सारे मित्र भी बैठे हैं, विनीत नारायण जी के साथ हमने उनसे बहुत सीखा है कैसे उन्होंने अपने आपको समर्पित किया देश की धरोहर को संभालने में, और कुंडों को पुनर्वास करके जिस प्रकार से उन्होंने मैं समझता हूँ समाज और देश का ही हित नहीं पर एक पूरे विश्व को मैसेज दिया कि भारत संवेदना रखता है अपने इतिहास के साथ, अपनी पूंजी के साथ| और पानी एक ऐसा विषय है जिसमें जितना काम करो मैं समझता हूँ कम रहेगा, ऐसा काम विनीत नारायण जी ने किया, आज़ाद जी यहाँ पर हैं, शर्मा जी ने मेरे साथ दोनों विभागों में काम किया, पहले Rural Electrification Corporation के CMD थे तब तेज़ गति से हमने गावों और घरों तक बिजली पहुँचाने का काम किया, अब Power Finance Corporation में शहरों को सेवा कर रहे हैं|

यहाँ पर GAIL के CMD भी हैं, त्रिपाठी जी, जिनके साथ मिलकर काफी gas-based projects को कैसे फिर से चलाना| एक हमारे पास legacy आई थी विरासत में Dabhol power project उसको किस तरीके से effectively solve करना| बहुत सारे मित्र यहाँ पर हैं| मैंने सुना आप Maruti का CSR का काम देखते हैं, आप सबको नमन करता हूँ, आप सबके काम को नमन करता हूँ|

और जैसा विजय जी ने कहा, अग्निहोत्री जी ने कहा वास्तव में भारत में CSR किसी को compulsory करना पड़े, किसी को सिखाना पड़े यह अपने आप में एक बड़ी विडंबना है हम सबके लिए| मुझे याद है जब यह Company Law Amendment में इसको लाया जा रहा था तब हमारी Standing Committee of Finance का मैं भी member था तो, of course, कोई oppose करने का तो सवाल नहीं है, CSR हो देश हित में है, जनता के हित में है| लेकिन मैंने उस समय भी रिपोर्ट में बनाते हुए यह कहा था कि हमने इसपर यह mention ज़रूर करना चाहिए कि वास्तव में भारत में किसी को CSR सिखाना-समझाना नहीं पड़े, यह तो एक परंपरागत हमारे लिए जैसा आपने कहा आदिकाल से ही शायद भारत में चल रहा है| और अगर हम याद करें तो विजय जी और मैं हम दोनों उसी धरोहर से आते हैं जब अग्रोहा में राजा अग्रसेन ने समाज बसाया था तब उन्होंने यह कल्पना रखी थी कि जो भी नया व्यक्ति अग्रोहा में आएगा, बसेगा, रहना चाहेगा, तो बाकी पूरा जो वहां का समाज है वह हर एक व्यक्ति एक ईंट और एक रुपया उस नए व्यक्ति को देगा अपने जीवन को स्थापित करने के लिए, अपने कारोबार को स्थापित करने के लिए|

कितनी बड़ी सोच थी शायद कुछ दशक पहले कि जब व्यक्ति नया आता है तो उसको एक छत चाहिए सर पर, उसको कुछ पूंजी चाहिए जिससे वह अपना काम शुरू कर सके, कुछ कारोबार शुरू कर सके, अपना घर चला सके शुरू के दिनों में, इज्ज़त का अपना जीवन व्यतीत कर सके| और मैं समझता हूँ वह सोच ऐसी रही है कि अगर आप अलग-अलग समाज को देखें तो जितना ज्यादा काम, और विजय जी ने ठीक कहा आज आप देश के कोई इलाके में चले जाओ, कोई कोने-कोने में चले जाओ, आपको स्कूल मिलेंगे, कॉलेज मिलेंगे, अस्पताल मिलेंगे, बसेरा होगा किधर न किधर, किसी ने रेलवे स्टेशन पर benches लगायी हुई होंगी, किसी ने crematorium को पुनर्वास किया होगा, किसी ने कुंडों के काम में अपना योगदान दिया होगा, कुंडों को फिर से जीवित करने में, किसी ने शौचालय बनाये होंगे|

और यह देश भर में हमें देखने को मिलेगा, और अधिकांश भारत की परंपरा ऐसी रही है कि अधिकांश यह जो CSR का काम है इसमें कभी कोई अपना नाम भी नहीं चाहता है, anonymous काम करना चाहते हैं, गुप-चुप अपना नाम दिए बगैर| इस प्रकार के दानदाता इस देश में रहे हैं, आज भी हैं और मुझे पूरा विश्वास है आगे चलकर भी इस प्रकार से CSR का काम होते रहेगा इस देश में|

जैसा प्रधानमंत्री जी ने कहा था जब इस सरकार को जनता के आशीर्वाद से चुना गया मई 2014 में तो यह सरकार देश के गरीबों के लिए समर्पित रहेगी, देश के किसानों के लिए समर्पित रहेगी, जो शोषित, वंचित, पीड़ित वर्ग सालों साल इस देश में जो विकास की मुख्यधारा से पीछे रह गया है उनके लिए समर्पित रहेगी| और मैं समझता हूँ कि उसी कल्पना को लेकर हमने सरकार के काम को भी एक प्रकार से Social Responsibility का ही रूप दिया है जो भी काम सरकार करती है, इसमें भी किस प्रकार से हम सम्मिलित करें कि जो समाज में अंतिम छोर पर व्यक्ति खड़ा है, गरीब से गरीब व्यक्ति..|

शायद आपके हमारे परिवार तो विकास की धारा में ट्रेन चढ़कर आगे निकल गए हैं, लेकिन आज भी लाखों करोड़ों हमारे भाई बहन हैं जो गावों में रहते हैं जो खेत में काम करते हैं, जिनके घर में बिजली नहीं है, अच्छा घर नहीं है, पानी की व्यवस्था नहीं है, शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाएं कमज़ोर हैं, इन सबका भविष्य भी कैसे उज्ज्वल हो और उनके जीवन में कैसे उजाला आये यह काम वास्तव में सरकार ने एक बीड़ा के रूप में लिया है| और इसलिए सरकार का काम भी एक Social Responsibility है| यह नया रूप सरकारी काम को माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने दिया है, गरीबों को कैसे आर्थिक मुख्यधारा से जोड़ना, उनको कैसे जीवन में उनकी अपेक्षाएं, उनकी जो तमन्नाएं हैं उसको कैसे पूरा करना और भारत की प्रगति और विकास के साथ समाज का हर वर्ग कैसे जुड़े यह वास्तव में इस सरकार की प्राथमिकता रही है|

और अमर उजाला आप सबके अच्छे काम को अमर भी कर रहा है और उसको जनता तक पहुंचाकर मैं समझता हूँ हम सबके काम को भी उजाला देने का काम कर रहा है| तो CSR को अमर करना, CSR को recognize करके हम सबको भी और प्रेरित करना कि कैसे और तेज़ गति से अपने-अपने क्षेत्र में हम काम करें, अच्छा काम करें, जनता से जुड़ा हुआ काम करें|

तो मैं धन्यवाद दूंगा अमर उजाला का कि उन्होंने इस CSR Awards के माध्यम से अच्छे काम को प्रोत्साहित किया है, नए लोगों को अच्छा काम करने के लिए प्रेरित किया है और इन सब अच्छे कामों को अमर बनाकर इन कामों के पीछे जो एक संवेदना थी उस संवेदना को recognize किया, उस संवेदना को आज अवार्ड देकर आज सुशोभित किया है| यह जो परोपकार की पुरानी परंपरा, philanthropy, इस देश में सदियों से चले आ रही है इसको जितना हम तेज़ गति दे पाएंगे – आपने सही कहा संस्कृति से भी इसको जोड़ा जाये, खेलों से भी इसको जोड़ा जाये और शायद अपने दीनो-दिन के काम से भी हम इसको जोड़ सकते हैं|

आपको याद होगा अब तो मैं बिजली मंत्री नहीं हूँ, पर जब विद्युत मंत्रालय संभालता था मेरी एक प्रमुख योजना का नाम ही उजाला था – उन्नत ज्योति – इस नाम से हमने एक कार्यक्रम किया था| Unnat Jyoti Affordable Lighting for All (UJALA), और उसके माध्यम से हमने क्या किया? माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के जिसको कहते है ना उनके लिए एक article of faith है, उनके दिल में बसा हुआ है कि इस देश में जलवायु परिवर्तन जो क्लाइमेट चेंज की समस्या है, जो प्रदूषण की समस्या है इसको हमने address करना है, इस चैलेंज को मीट करना है|

साथ ही साथ उनकी इच्छा यह भी रहती है कि जो भी हम काम करें वह sustainable benefit दे, सालों साल और आगे के लिए जनता को इसका लाभ लम्बे समय तक मिले ऐसे कार्यक्रम सरकार ने बनाने चाहिए और उसको जनता तक पहुंचाना चाहिए| उस कड़ी में यह LED lighting का प्रोग्राम लेकर विद्युत मंत्रालय चला था| मुझे याद है 2015 में जब यह लॉन्च हुआ तब हमारी कल्पना थी कि 4 साल में हम इस देश में 77 करोड़, और तब एक अनुमान था कि 77 करोड़ bulbs इस देश में होंगे जिससे यह देश की लाइटिंग होती है, सबके घरों में offices में लाइटिंग होती है, यह एक अनुमान ही हो सकता है इसका कोई census figure या कोई specific आंकड़ा तो किधर है नहीं|

तो हमने कहा था 4 साल में हम 77 करोड़ LED bulbs जनता को बेचेंगे, देंगे, और हमारी सरकार आने के पहले यह 7 W का LED bulb 310 रुपये और उसके ऊपर टैक्स वगैरा जुड़ते थे, marketing cost, distribution cost जुड़ता था, ऐसे ख़रीदा जाता था| 310 रुपये उसकी purchase price थी, सालाना, हर साल सरकारी कंपनी मात्र 6 लाख बल्ब बेचती थी और वह भी 100 रुपये की सब्सिडी लेकर सरकार से| तो 500-550 का एक बल्ब पड़ता था सरकारी कंपनी को सब tax और distribution मिलाकर, 100 रुपये सब्सिडी सरकार देती थी और सब्सिडी क्या है? आपका मेरा टैक्स पे किया हुआ पैसा है और कुछ नहीं है| सरकार की जब सब्सिडी आप लगाते हो एक प्रकार से जनता का ही पैसा है जो जनता को वापिस दिया जा रहा है|

और उस प्रकार से साल में 6 लाख बल्ब बेचती थी| हमने लक्ष्य रखा 4 साल में जहाँ 6 लाख बल्ब बिकते थे सालाना, वहां 4 साल में 77 करोड़ बल्ब बेचने का, 77 crores! छलांग देखिए! और इसके पीछे एक social responsibility का भाव था और वह भाव इसलिए था कि यह 77 करोड़ बल्ब जब पुराने ज़माने के जो लट्टू होते थे जिसमें 60 W, 90 W की खपत होती थी बिजली की या उसके बाद जो CFL भी आये जिसमें लगभग 15 से 20 W की खपत होती थी उसके निस्बत यह 7 या 9 W के बल्ब, सिर्फ बिजली की खपत जो कम होती है वह गिने तो 77 करोड़ बल्ब के पीछे अनुमानित बचत 11,200 करोड़ बिजली के यूनिट की बचत अनुमानित थी जिसका सीधा लाभ जनता के बिजली के बिलों में सालाना 40,000 करोड़ रुपये, सालाना 40,000 करोड़ रुपये बिजली के बिलों में कमी आएगी|

और मुझे आज तक, ढाई साल हो गए हैं उस कार्यक्रम को, एक भी व्यक्ति नहीं मिला है और अगर सबसे बड़ी कोई मेरे ऊपर मॉनिटर या ऑडिट करने के लिए काम करती है तो वह मेरी धर्म पत्नी है| जो भी मैं कार्यक्रम लाता हूँ वह पहले उसको नकारात्मक बोलती है, नहीं इसमें यह तकलीफ आयेगी, यह आएगी, यह आएगी, एक प्रकार से मेरा ऑडिट करते रहती है| और उनको यह विचार आता था कि ज़रूर इस प्रोजेक्ट से तुम जो 40,000 करोड़ की बात कर रहे हो इतना फायदा नहीं हो सकता है| पर जब उन्होंने अपने घर में, मेरी पत्नी ने मुंबई में मैं रहता हूँ, हमारे घर में बिजली के सब bulbs बदलकर LED लगाये और जब बिजली का बिल आया तो she herself was flabbergasted. She said मेरे भी अनुमान से ज्यादा बिजली के बिल में कमी हुई|

और आपको जानकर ख़ुशी होगी पहले सवा दो साल में ही निजी क्षेत्र और सरकारी कंपनी ने मिलकर 70 करोड़ से अधिक बल्ब देश में बदल दिए, सवा दो साल में| और इसका सीधा लाभ जनता को मिलता है और लाभ सालों-साल मिलेगा| It is sustainable benefit. दाम का तो विनीत जी आप शायद एक PIL कर दोगे तो पूरा सच बाहर आएगा कि पहले क्या होता था|

तो बल्ब 310 रुपये में 7 W का बल्ब होता था – 7 Watts, वह लगभग एक-सवा साल में ईमानदार खरीद से, transparent, पारदर्शिता से खरीदने से latest technology, ऐसे specification जो विश्व में सबसे सख्त थे, ऐसे specifications लाकर और 7 W के बदले 9 W का बल्ब खरीदने लगे जिससे रोशनी की तेज भी बढे, ज्यादा lumination आये| वह 9 W का बल्ब हम मात्र एक-सवा साल के अन्दर खरीद में और सफलतापूर्वक खरीदते-खरीदते 310 के बल्ब को 38 रुपये पर ले आये| 87% बिजली के बल्ब की कीमत में कमी कर पाए हम – 87% reduction, मुझे लगता है शायद ही कोई और प्रोग्राम रहा होगा और कई बार GDP growth और यह और वह की जब बात होती है तो मैं अपने मन में सोचता हूँ कि शायद 310 रुपये में यह बल्ब ख़रीदे होते, और 70 करोड़ बल्ब ख़रीदे होते तो 22-23,000 करोड़ रुपये में यह बल्ब आता| हमने यह सस्ते करके, सस्ते करके यही 70 करोड़ बल्ब सिर्फ 3000 करोड़ रुपये में खरीद लिए, तो वह जो 19,000 करोड़ रुपये बचे, और विनीत जी यह आपके लिए एक रिसर्च का मुद्दा दे दिया है मैंने आज, यह अगर 19,000 करोड़ हम देश का नहीं बचाते, जनता का नहीं बचाते तो लोगों को जीडीपी में 20,000 करोड़ और अधिक दिखता तो वाह-वाह होती कि हाँ देखो 20,000 करोड़ के बल्ब इस सरकार ने बेच दिए लेकिन उसका सीधा बोझ आपके ऊपर आता|

आज परिस्थिति यह हो गयी है कि जब कोई व्यक्ति LED बल्ब लगाता है, बदलता है, तो दो-ढाई महीने में उसका पूरा खर्चा कमा लेता है, बचा लेता है| और कल ही माननीय प्रधानमंत्री जी कह रहे थे कि पहले का जो काम करने का ढंग था वह लटकाना, भटकाने वाला जो ढंग था उसको इस सरकार ने जो बदला है वह यह बदलाव है कि जहाँ 6 लाख बल्ब एक साल में सरकार बेचती थी आज वही सरकारी कंपनी अकेले 6 लाख बल्ब रोज़ बेचने की क्षमता रखती है| EESL का मुझे लगता है 25-26 करोड़ बल्ब हो गए हैं, एक सरकारी कंपनी जो 6 लाख बल्ब साल में बेचती थी, आज 6 लाख बल्ब रोज़ बेचती है| यह सरकारी कंपनियों की भी ताकत है, और मुझे ख़ुशी है आज के 7 विजेताओं में 5 विजेता सरकारी कंपनियां हैं जिन्होंने अद्भुत काम किया है CSR में|

मुझे याद है जब माननीय प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2014 को यह ऐलान किया कि देश के हर सरकारी स्कूल में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था हम 365 दिन में करेंगे, शायद ही कोई इस देश में होगा जिसको विश्वास था कि ऐसा संभव भी हो सकता है| और भाईयो बहनों बिना एक रुपये सरकार के खर्चे से, सपोर्ट से, सिर्फ CSR फंडिंग से और इसमें निजी क्षेत्र ने भी काम किया है सरकारी कंपनियों ने भी काम किया है| 4 लाख से अधिक टॉयलेट एक वर्ष के अन्दर और एक भी स्कूल ऐसा नहीं छोड़ा जिसमें लड़के और लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट नहीं हो| मुझे लगता है GAIL ने भी बहुत सारे टॉयलेट बनाये थे, आपकी रूरल REC और PFC दोनों ने बनाये थे| विद्युत और कोयला मंत्रालय ने मिलकर एक वर्ष में लगभग 1,21,000 टॉयलेट सिर्फ कोयला और विद्युत मंत्रालय की सरकारी कंपनियों ने बनाये, आपकी कंपनी ने भी शायद 6-7000 बनाये थे? 9000! अच्छा अभी की कंपनी ने 9000, तभी की कंपनी ने 13000, तो आप तो पूरे 22000 का श्रेय ले सकते हैं| GAIL ने भी हज़ारों की संख्या में बनाये थे – 6000!

तो यह प्रतिबद्धता होती है, जब अच्छा काम होना है उस अच्छे काम में कभी पीछे नहीं हटना और तेज़ गति से कैसे प्रोग्राम implement करना यह संभव है, यह किया जा सकता है| और यह बात तो मैं आज बता रहा हूँ, शायद ही आप में से किसी को यह जानकारी होगी क्योंकि यह सब काम चुप-चाप से किया गया| कोई इसका ढिंढोरा नहीं पीटा किसी भी कंपनी ने, कोई REC ने इश्तेहार नहीं दिए, कोई GAIL ने इश्तेहार नहीं दिए कि यह लो हमने इतने सारे टॉयलेट बना दिए, मुझे लगता है एक भी इश्तेहार नहीं दिया कहीं| कोई बड़े-बड़े उद्घाटन के कार्यक्रम नहीं किये क्योंकि यह संवेदना का विषय था, यह हमारी प्राथमिकता थी, यह हमारा कर्तव्य था और सिर्फ कर्तव्य का पालन किया, कोई किसी पर उपकार नहीं किया|

क्या हर बच्चे को एक अच्छा टॉयलेट मिले, अच्छा शौचालय मिले जब वह शिक्षा के लिए अपने स्कूल जाये यह उसका अधिकार नहीं है? और उस अधिकार को देने में मुझे लगता है हमने विलंभ कर दिया, आखिर क्यों लगे इस देश को 7 दशक स्वच्छता को महसूस करने में, स्वच्छता को प्राथमिकता देने में? क्यों लगे इस देश को 7 दशक कि कैसे हर घर में शौचालय बने इसको प्राथमिकता देने में?

पता नहीं आप में से कितने लोगों ने वह पिक्चर देखी अभी-अभी आई थी ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’| वास्तव में जब मैंने वह पिक्चर देखी तब मैं रेल मंत्री नहीं था, उसके बाद रेल मंत्री बना तो ध्यान आया कि रेलवे में शायद यह भी एक responsibility है और मैंने ऑर्डर दिया है कि जितने 8,500 रेलवे स्टेशन हैं उन सबमें महिलाओं के लिए और पुरुषों के लिए एक अच्छा टॉयलेट बने, यह हम अगले 12 महीने में सुनिश्चित करेंगे| अच्छा टॉयलेट, टॉयलेट तो शायद सब जगह होगा पर अच्छी लाइटिंग हो, अच्छी टैलिंग हो, अच्छी व्यवस्था हो, पानी हो, पानी की टंकी हो ऊपर|

बायो-टॉयलेट्स हम रेलवेज में लगा रहे हैं जिससे गन्दगी, मल ट्रैक्स के ऊपर न जाये, प्रदूषण भी उससे भी पैदा होता है| तो बायो-टॉयलेट्स का भी मैंने कहा है कि हो सके तो अगले 15-16 महीने में एक भी ट्रेन ऐसी नहीं रहे जिसमें बायो-टॉयलेट न फिट हो, एक भी ट्रेन का कोच ऐसा नहीं रहे जिसमें डस्टबिन की व्यवस्था नहीं हो|

आखिर जब हम स्वच्छता करें या हम शौचालय की बात करें आपको उसके root cause में भी जाना पड़ेगा| स्वच्छता की बात करें और डस्टबिन अधिक न हो, पर्याप्त मात्रा में देश भर में नहीं हो तो स्वच्छता नहीं पायेगी| मैं आजकल रेल गाड़ियों से सफ़र करना शुरू कर रहा हूँ ज्यादा तो देखता हूँ कितने बड़े पैमाने पर कचरे के ढेर के ढेर पड़े हैं, अब उसको सिर्फ हटाना मेरा काम नहीं होगा, हटा दूंगा तो फिर आ जायेगा| तो मैं local corporations, पंचायत सबके साथ चर्चा करवा रहा हूँ कि हटाना आगे के लिए व्यवस्था बनाना कि गन्दगी या कचरा कहाँ डाला जायेगा, और उसका evacuation, कैसे उसको dispose किया जाये|

और मुझे बताते हुए ख़ुशी होती है जब माननीय प्रधानमंत्री जी ने मुझे कहा कि यह बनारस में स्वच्छता के पीछे थोड़ी चिंता करो, देखो क्यों बनारस में पूरी लाख कोशिश कर ली, पूरा ज़ोर लगा दिया क्यों हम स्वच्छता में सफल नहीं हो पा रहे हैं? तो जब मैंने वहां जाकर स्टडी किया तो ध्यान में आया कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि जब कचरा.. निर्माण तो कचरा होगा, आखिर 12-14 लाख लोग रहते हैं तो कचरा तो निर्माण होगा ही, उत्पादन होगा कचरे का, उसका कोई disposal के लिए जगह नहीं है| जो एक dumping ground था वह भर गया था पूरा, दूसरी जगह पर एक प्लांट लगा to process the waste पर वह 5 साल से बंद पड़ा था, पिछली सरकार ने कुछ झगडा कर दिया contractor के साथ, 4-5 साल से वह बंद पड़ा था| यहाँ तक कि जब मैं वहां गया देखने तो जैसे कोई खँडहर में जा रहा हो ऐसे वातावरण था पूरा| सब मशीनरी टूटी-फूटी, आखिर लोगों ने शायद चोरी-चारी कर लिए होगा, कोई सिक्यूरिटी नहीं थी, 150 गाड़ियाँ खड़ी थी जिसमें किसी में टायर नहीं था, इंजन नहीं था, बैटरी नहीं थी, सिर्फ एक ढांचा था, लाखों करोड़ों रुपये जनता का इस्तेमाल होकर एक व्यवस्था पड़ी हुई थी|

इसको जैसे कल प्रधानमंत्री ने कहा मैं फिर दोहरा रहा हूँ ‘टालना, लटकाना, भटकाना,’ यही काम चलता था और इसका जवाब जनता देती है| इसकी सराहना भी जनता करती है इसका जवाब भी जनता देती है| तो root cause में गए तो ध्यान में आया कि जब तक आप dispose नहीं करोगे, कचरे से तब तक बनारस साफ़ हो ही नहीं सकता है| तो हमने NTPC को काम दिया, NTPC के अधिकारी बड़े अस्वस्थ हुए, उन्होंने कहा साहब हम बिजली निर्माण करते हैं यह कचरे के प्लांट को हम क्या करेंगे? मैंने कहा यह हमारा कर्तव्य है, यह हमारी responsibility है| आखिर आप सब engineers हैं, engineers machinery को समझ सकते हैं| हमारे पास कोई drawing नहीं थी, कुछ पेपर नहीं था, सिर्फ एक टूटी-फूटी व्यवस्था वहां पर पड़ी थी|

आपको जानकर ख़ुशी होगी शायद 3 या 4 महीने के अन्दर, और वह जो smell थी भाईयो बहनों मैं जब गया मैं खुद वहां पर खड़ा नहीं हो पा रहा था| उस विपरीत परिस्थिति में उन engineers ने दिन और रात काम किया, अपनी सेहत को जोखिम में डालकर काम किया, पूरे उस प्लांट को पुनः स्थापित किया| रिपेयर किया, जहाँ-जहाँ shortage थी वह shortage पूरी की, जो-जो चोरी हो गया था उसको डिजाईन भी खुद किया, ला के लगाया|

और वास्तव में यह एक केस स्टडी हो सकती है आपके संवारदाता को वहां भेजिए | It will truly be a case study probably for Harvard Business School to study, कि कैसे दिन-रात काम करके उन्होंने उस प्लांट को फिर चलाया जिससे बनारस का कचरा वहां जाकर आज वहां रोज़ 600 टन कचरा जो बनारस में बनता है, या निकलता है, वह 600 टन कचरा आज वहां जाकर पूरा प्रोसेस होता है, प्रोसेस होकर उससे organic खाद निकलता है| थोड़ा बहुत residual जो कचरा निकलता है बस उतना ही dumping ground पर जाना पड़ता है| और एक जब root cause analysis की, मूलतः समस्या का समाधान किया तब जाकर हम बनारस की जो रैंकिंग है, जो स्वच्छ्ता रैंकिंग हर साल क्वालिटी कौंसिल करता है, उस रैंकिंग में कहाँ लगभग शायद 350 या कुछ अंश था बनारस का 400 या 500 शहरों में जो रैंकिंग थी, वह मुझे याद नहीं है 350 थी या 400 थी, अगर कोई गूगल करे तो तुरंत मिल जायेगा| वह रैंकिंग वहां से सुधरकर शायद 30 या 32 पर आ गयी – From 350 to 32!

यह सुधार संभव है अगर दिल में जब काम करे… और यह NTPC ने अपने CSR fund से किया| जब दिल में तड़प हो, इच्छा शक्ति पक्की हो, ईमानदार व्यवस्था हो और गरीब आदमी के प्रति संवेदना हो| क्या फिगर है? 418 था, और गिर के कितना हो गया? 32 ना? 418 था रैंकिंग 2 वर्ष पहले और पिछले वर्ष 32 – इतना छलांग! ज़रूर उसमें सब बाकी लोगों ने मेहनत की, सफाई के कार्यक्रम हुए, जनता ने समर्थन दिया, door to door collection किया, वह सब तो पूरी… It was not just one thing, it was a combined effort जो इसके पीछे गया लेकिन मूल root cause जो था कि कचरा जब तक dispose नहीं होगा तब तक यह solution आ ही नहीं सकता है|

418 से 32 भाईयो बहनों, मैं समझता हूँ इससे अच्छा certificate उन engineers के लिए नहीं हो सकता है जिन्होंने इतने कठिन परिस्थितियों में वह काम किया| और इस प्रकार के हजारों example सरकारी व्यवस्था में, निजी क्षेत्र में हमें देखने को मिलते हैं| एक प्राइवेट कंपनी ने, शायद भारती एयरटेल ने पूरे Ludhiana district को ODF करने का बीड़ा उठाया| एक Piramal Enterprises ने पूरे बनारस और ब्रिज क्षेत्र और इन सब areas में कुंडों को साफ़ करने का बीड़ा उठाया| अलग-अलग कंपनियां, वेणु श्रीनिवासन, एक TVS Motors के मालिक हैं, उन्होंने अपना पूरा जीवन business world से अपने आप को withdraw कर दिया कि अब बच्चे देखेंगे| उनकी पत्नी और वह पूरा जीवन अब गावों में, rural India, भारत के गावों में सुधार लाने में अपने आप को समर्पित कर दिया|

और ऐसे आपको इतने उदाहरण.. मैं परसों हबिल खोराकीवाला, उनकी Wockhardt कंपनी के 50 वर्ष पूरे हुए और उनके जीवन के 75 वर्ष पूरे हुए, उनको सम्मानित करने के कार्यक्रम में गया था| उनके एक लड़के ने अपने जीवन को, और येल यूनिवर्सिटी से पढकर आया है, business tycoon family से business tycoon बन सकता था| एक लड़का अब business संभालता है, एक ने अपने आपको समर्पित कर दिया है सामाजिक कामों में|

और ऐसे लाखों उदाहरण देश में आपको मिलेंगे जिनके नाम कभी आते नहीं हैं, जो अपने नाम को कभी प्रचलित नहीं करते, लेकिन यह जो भारत की, जैसा अर्थशास्त्र में कहा था – सुखस्य मूलं धर्मः – उस भावना को लेकर जो नैतिक सिद्धांत इस देश के साथ जुड़े हुए हैं समाज सुधार के, समाज को अपने आपको जोड़ने के लिए, सामाजिक कामों से जोड़ने के लिए उस भावना को लेकर जो लोग, जो कंपनियां, जो व्यवस्थाएं जुडी हुई हैं उन सबको सम्मानित करके मैं समझता हूँ आपने बहुत ही सराहनीय काम किया है| मैं आप सभी का, आपके अमर उजाला के मैनेजमेंट का, मालिकों का, एडिटोरियल टीम का, सभी संवारदाताओं का जिन्होंने ढूंढ-ढूँढकर इन सब रत्नों को यहाँ पर आज recognize करने के लिए select किया मैं सभी का धन्यवाद करता हूँ|

सभी विजेताओं का तहे दिल से बधाई देता हूँ और मुबारकबाद देता हूँ और मुझे पूरा विश्वास है इस प्रकार से सम्मान के कार्यक्रमों से उनको भी आगे चलकर और, उनका भी मैं समझता हूँ प्रोत्साहन होगा और नए लोगों के लिए प्रेरणा बनेगी कि वह भी CSR का काम अच्छा करें, समाज के साथ जुडें, सामाजिक कामों के साथ अपने आपको जोडें| और इस प्रकार के कार्यक्रम हम सबको भी एक प्रकार से पुनः याद दिलाते रहते हैं कि हमारा दायित्व समाज के प्रति, गरीबों के प्रति, और उस वर्ग के प्रति जिसको हमने इतने दशकों से शोषित और वंचित रखा है, यह हमारे काम की प्राथमिकता रहेगी|

और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हम सब जो प्रधानमंत्री मोदी जी के साथ काम कर रहे हैं, विजय जी, मैं, और हमारी पूरी टीम, हम सबके लिए यह प्राथमिकता है, जीवन का लक्ष्य है आज के दिन और हम इस काम को सफल बनाने में समाज सेवा और गरीबों के उद्धार को करने में कभी कोई कमी नहीं छोड़ेंगे, कभी कोई गलत काम नहीं होने देंगे|

बहुत-बहुत धन्यवाद!

 

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