Speeches

March 29, 2019

Speaking at Intellectuals Meet: Vision for New India, in New Delhi

नरूला जी, बहन एडवोकेट मुक्ता गोयल जी, और सभी उपस्थित प्रोफेशनल भाइयों और बहनों। क्या इंगलिश में बोलना है, हिंदी क्या पसंद है? मैं  माफ़ी चाहूंगा थोड़ा विलंब हो गया। मैं एक ही दिन के लिए आज दिल्ली में हूँ, तीन दिन तामिलनाडु में था। आजकल मेरा ज़रा टेस्ट हो रहा है, पार्टी द्वारा। तमिलनाडु की ज़िम्मेदारी दी है और जब मैं पहली बार पहुँचा था तब लगभग साधारणतः सबका मानना था कि  we are at zero because डीएमके-कांग्रेस एलायन्स बन गया था, हम अकेले रह गए थे|

पर अब कोशिश है कि उसको अच्छी मात्रा में विजय में टर्न करेंगे| तो समय ज़्यादा वहां भी जा रहा है, साथ में चुनावी काम दिल्ली में और कल से वापस मैं बाहर हूँ तो एक दिन में I have to catch up with a lot of things. I really apologize for being late. But thank you also for organizing this, giving me this opportunity to meet with our professional friends. मैं भी कुछ सीखकर ही जाऊँगा यहाँ से hopefully.

विजन क्या होता है, विजन में बेसिकली हम एक प्रकार से देखें तो अपने eyesight को भी विजन ही कहा जाता है| और 6/6 जब होती है, तो we say it’s perfect vision. और इसी तरीके से सरकार को भी अगर सही विजन रहे और उस विजन के साथ-साथ लीडरशिप मिले तो मैं समझता हूँ दुनिया का कोई ऐसा काम नहीं है जो असंभव हो, जो किया ना जा सके| और वास्तव में अगर आप इसको अन्यथा ना लें या ऐसा ना समझें कि क्योंकि मैं मोदी जी की टीम में काम करता हूँ इसलिए कह रहा हूँ| या कोई मुंबई में तो इसको चापलूसी बोलते हैं| मुझे वास्तव में अब चापलूसी करने की ज़रूरत नहीं है, शायद उसके आगे चला गया हूँ|

But वास्तव में मोदी जी के  साथ जो पाँच साल काम किया, मैंने अपने आप को reorient होते हुए देखा कि management principles जो तीस साल से मैं सीखता था, समझता था और काम करता था, मैंने अपने आप को देखा चेंज होते हुए की management principles किताबों में और हमारे courses में जो सिखाते हैं, जो शायद मैंने सीए पढ़ते हुए सीखा है या जब-जब कोई मैनेजमेंट कोर्स किया उसमें सीखा – उसमें और एक सरकार चलाना, एक देश की नीति बनाना, देश को आगे बढ़ाने के बीच में जो फासला है वह बहुत बड़ा अंतर है उसमें| और एक प्रकार से – I felt I have been able to evolve as a professional working with Prime Minister Modi – truly, a remarkable leader to work with.

और उनकी मैंने बजट के दिन भी आपने अगर किसी ने सुनी हो तो एक 10 point vision देश के समक्ष रखा था| वह जो दस डायमेंशन थे वह पूर्ण रूप से मोदी जी ने जो गाइडेंस दी उसके हिसाब से और जो उनकी कलपना है आगे दस वर्ष की, उसके हिसाब से वह 10 point vision रखा गया था| और मैंने कई फोरमस पर छोटे-छोटे मेरे अनुभव पेश किये हैं, बताए हैं जिससे सीखा कि वास्तव में इस टाइप के बड़े विजन को अगर अचीव करना है तो क्या-क्या तरीके पर फोकस करना पड़ेगा|

मैं उन सबको वापस नहीं दोहराऊँगा पर वास्तव में सरकार चलाने का जो उनका ढ़ंग है, वह अपने आप में अद्भुत है एक अलग ही प्रकार से कैसे लोगों को जवाबदेही बनाना, कैसे कार्यक्रमों को सफल करने के उनपर निगरानी रखना| इसको हम अपने मोनीटरिंग या एकाउंटेबिलिटी टेक्सट बुक्स में सीखते हैं लेकिन हमारे हिसाब से मोनीटरिंग होते है कि वर्कर काम कर रहा है, उसके ऊपर एक फोरमैन है, फोरमैन के ऊपर एक सुपरवाईजर है, सुपरवाईजर के ऊपर शायद और 6-8 लेयर के बाद चेयरमैन रहता है| यहाँ तो टॉयलेट भी टाइम पर बन रहे हैं कि नहीं, उसपर भी जब प्रधानमंत्री की नज़र रहती है जो आप समझिए क्या इम्पैक्ट होता है उस प्रोग्राम को सफल बनाने में| नहीं तो कल्पना करिए 10 करोड़ टॉयलेट गांव-गांव तक गरीब के घर तक बनाना यह वास्तव में एक असाधारण आदमी ही कर सकता है| यह कोई नॉर्मल व्यक्ति के बस की बात नहीं है| और वही व्यवस्था है, कोई व्यवस्था नयी नहीं है| सालों-साल से जो चल रही है सरकारी व्यवस्था, उसी व्यवस्था ने ही किया है|

आखिर अगर वह व्यवस्था नॉर्मल कोर्स में कर सकती तो ऐसा क्यों था कि तीन में से दो महिलाओं को sunrise से sunset के बीच टॉयलेट की फैसिलिटी नहीं थी इस देश में| We had only 34% coverage of toilets. और मात्र चार-साढ़े चार वर्ष में उसको 99% ले जाना यह असाधारण बात है, it’s not a normal achievement.

देश में आज़ादी के बाद 13 करोड़ के करीब एलपीजी कनेक्शन दिए जाते हैं और मुझे तो याद है| On a lighter note, एक डॉक्टर एसएच अडवाणी बहुत फेमस oncologist हैं मुंबई में, पता नहीं आप में से किसी ने शायद ना सुना हो| कोई मुंबई से वाकिफ हो तो उसको पता होगा – he is the top oncologist of Mumbai. पहले टाटा मेमोरियल के चीफ थे, फिर अब अपनी खुद की प्रैक्टिस में हैं, प्राइवेट हॉस्पिटल्स के साथ जुड़े हुए हैं|जब वह टाटा मेमोरियल में थे और मैं यह आज से 15 साल पहले की बात कर रहा हूँ लगभग| उनकी appointment मिलना मतलब कि आप तीन-चार-छह महीने की बात कर रहे हो| और कैंसर जब किसी को होता है तो you are literally anxious कि कल कैसे मिलूं|

खैर मेरे फादर भी एमपी थे तो उस वजह से किसी को फ़ोन वगैरा करकर appointment तो मिल गया| और जब appointment लेकर हम लोग गए, मेरे brother-in-law को कैंसर हो गया था तो जब हम वेट कर रहे थे और हाँ, appointment  के बाद भी दो-तीन घंटे वेट करना पड़े आप कितने भी बड़े व्यक्ति हो वह बहुत साधारण था| तो उनका जो appointment सेक्रेटरी था, जो appointments वगैरा देता था, उसमें मेरी पत्नी गयी थी वहाँ पर, मैं नहीं जा पाया था – पत्नी को पूछा कि आपके father-in-law तो एमपी हैं| उसने कहा – हाँ| तो आप मुझे एलपीजी गैस का वह कनेक्शन का कूपन दे सकती हैं क्या?

आपको याद होगा MPs को 25 कूपन मिलते थे हर तीन महीने में| And it was like a gold mine. जिसको आपने वह oblige कर दिया तो समझो उसका तो जीवन उद्धार हो गया, जिस आदमी को वह कूपन मिल गया| तो राशन किया जाता था कूपन – राशन| तो हमारे यहाँ तो ऐसा कुछ – my father being in Rajya Sabha – ऐसा कुछ प्रेशर नहीं था| She said, हाँ पड़े रहते हैं घर पर मैं भिजवा दूँगी| तो जब appointment खत्म हुई वह कूपन पत्नी ने भेजा होगा, अगले दिन| तो मैं 15 साल पहले की बात कर रहा हूँ, उसकी वैल्यू यह थी कि 15 साल तक आज तक हमें जब appointment चाहिए – we are a walk-in patients. और खुदके लिए नहीं किसी के लिए भी appointment चाहिए हो तो डॉक्टर अडवाणी के यहाँ होर्ड लगती है, आज तक है और आपको कभी appointment की हमें तकलीफ नहीं हुई|

अब क्या यह अच्छा था? Is it something to be proud of as a nation or is it something to be embarrassed about. और मोदी जी ने जो गत पाँच वर्षों में बदलाव लाया है वह यही बदलाव लाया है कि discrimination खत्म करकर कैसे देश में हर एक व्यक्ति को सामान्य सुविधाएँ मिलें, सामान्य एक मूलभूत जीवन की जो छोटी-छोटी रोजमर्रा की जो चीज़ें हैं उसके लिए किसी का मोहताज ना होना पड़े| मैं समझता हूँ अगर इस चीज़ को आप सोचें तो शायद इससे बड़ा विजन कुछ नहीं हो सकता है कि गरीब आदमी को, हर व्यक्ति को अपना घर मिल जाए, उसको 24 घंटे बिजली मिल जाए, बिना रिश्वत दिए फ्री में कनेक्शन मिल जाए बिजली का, पानी की व्यवस्था उसको मिल जाए, स्वास्थ्य सेवाएँ आज 50 करोड़ लोगों को मुफ्त में देना, लगभग आपने सुनिश्चित कर दिया है देश में बिना स्वास्थ्य सेवा कोई व्यक्ति रहेगा नहीं, कोई व्यक्ति हॉस्पिटल के बिल के अभाव में अपने जीवन के प्राण, अपने कोई नज़दीकी परिवार वाले के जीवन का प्राण ना देना पड़े| लगभग आपने सुनिश्चित कर दिया है यह छोटे ही कार्यकाल में|

बिजली तो लगभग आज कोई विषय रहा ही नहीं है| मैं तो एक दिन किसी को कह रहा था कि शायद हमने बहुत जल्दी पहुंचा दी बिजली| थोड़ा आज कल में पहुंचाते तो लोगों को याद तो रहता| अब तो लोग भूल ही गए हैं कि वह दिन क्या थे, DG-Set और आपको तो दिल्ली में inverters ये वह| कभी आजकल यूज़ करना पड़ता है क्या? I don’t think inverters or DG-sets दिल्ली में बिकते होंगे आजकल… I hope not, पर वास्तव में… the country is surplus power today. हर घर को… और अच्छा आपको डर कैसे रखना पड़ता है देखिए| Normal course में हम क्या कहते हैं कि सबको बिजली उपलब्ध करवा देंगे और इसका अगर एक  side remark दे दूँ तो मैं पीछे मैनिफेस्टोस देख रहा था| यह न्याय-व्याय की बात जब होती है तो थोड़ा हम भी research करते हैं कि भाई वास्तव में न्याय  मिलेगा कि नहीं जनता को| तो मैंने देखा सोनिया गांधी जी ने 2004 में बड़ी announcement की थी कि हम 2008 तक देश में सबको 100% उनका जो रहता था, ‘Power for all’ – 100% पहुँचा देंगे|

खैर वह तो होना नहीं था, हुआ भी नहीं| 2009 के मैनिफेस्टो में  फिर लिखा है – Power for all in next four years और उनके कुछ statements भी मैंने कलेक्ट किये हैं – 2013 तक हर व्यक्ति के घर तक बिजली पहुँच जाएगी| हम जब आए तो लगभग साढ़े चार करोड़ लोगों के घरों में बिजली मिली थी, four and a half crore घर| यानी 15-20 करोड़ लोग| Of course, उनके कैलकुलेशन से जाएँ तो शायद 24 करोड़ लोग| वह तो assume करते हैं हर एक के घर में पाँच हैं| यहाँ पर कितनों के घर में पाँच होंगे| I suspect बहुत ज़्यादा नहीं होंगे| पर खैर 20 हो, 22 हो, 18 हो, जो भी हो|

आज़ादी के 65-70 साल बाद अगर आपके देश में 18-20 करोड़ लोगों के घर में बिजली ही ना हो तो साधारणतः 7-8 करोड़ बच्चे बिना बिजली के, आज भी kerosene lamp में या स्ट्रीट लाइट में पढ़नें जाते हों, तो कैसे वह compete कर सकते हैं आपके और मेरे बच्चे के साथ, it’s impossible. Even my father had to study under street lights in the 40s. Modi Ji has studied with a kerosene lamp. पता नहीं आपने ‘चलो जीते हैं’ देखी है कि नहीं किसी ने| नहीं देखी है तो…I would urge you घर जाकर Youtube पर ‘चलो जीते हैं’ – 30 मिनट की एक छोटी सी फिल्म है, ज़रूर देखिए| आपको ध्यान में आएगा कि इस व्यक्ति का चरित्र कैसे डिफाइन हुआ, यह जो compassion या empathy जिसको कहते हैं| यह compassion का मूल जड़ क्या है| वह जड़ उनकी खुद की गरीबी, उनके खुद का बचपना जो उन्होंने गरीबी में बिताया, उनकी माँ भी लकड़ी के या कोयले के चूल्हे पर खाना बना रही है| वह खुद एक kerosene lamp जिसकी wick में लाइट कम होते जा रही है उसमें पढ़ रहे हैं| स्कूल जाते हैं तो एक दलित बच्चे को स्कूल में एन्ट्री नहीं है क्योंकि उसके पास uniform नहीं है| कोई बच्चा बीमार है तो उसका इलाज नहीं हो रहा है| मैं दवा-दारू बोलने लगा था, पर मुझे लगा जनकपुरी में हूँ, अधिकांश पंजाबी क्षेत्र है – गलतफहमी ना हो जाए| No offence to any Punjabi, मैं भी पंजाबी हूँ or whatever हरियाणवी-पंजाबी उस समय तो सब एक ही थे हम|

हमीं ने अपने देश को बाँट-बाँट-बाँट-बाँटके अपने आप को एक बुरी तरीके से बाँट दिया है कि अब समय आ गया है हम सबको यह सब बदलकर एक होना पड़ेगा जैसे आज तीनों institute एक हो गए हैं| पर मैं बता रहा था कि यह झूठे वादे, झूठे प्रॉमिसेस और जस्ट गोल पोस्टस, डेटस चेंज करते जाना| 2009 में बोला ’14 तक नहीं किया| मुझे तो प्रधानमंत्री जी ने एक प्रकार से टेस्ट किया| उस दिन 15 अगस्त को ऐसे announce कर दिया कि जितनी villages बाकी हैं 1000 दिन में हो जाएगा| मुझे तो मालूम ही नहीं था| मैं तो वहाँ ताली बजा रहा था| मेरी wife ने कहा, अरे ,तुम्हारे लिए है यह टारगेट|

पर एक बार मोदी जी ने कहा तो मॉनिटर भी करते हैं, हम सबको जवाबदेही भी बनाते हैं और काम करकर रहते हैं| 1000 दिन में हर गांव तक पहुंची और उनका लॉजिक सिम्पल था, गांव नहीं पहुंचेगी तो मजला, ढाणी, टोली वहां तक कैसे पहुंचेगी| Hamlets तक कैसे पहुंचेगी| और वहां नहीं पहुंचेगी तो गरीब के घर कैसे पहुंचेगी| और mind you, 18452 villages लगते कम होंगे पर यह सबसे worst villages थे| आसान होते तो अब तक हो गये होते| कोई पहाड़ के ऊपर था,  कोई घने जंगलों में था – झारखण्ड या छत्तीसगढ़ में, अरुणाचल में 400 गांव थे – एकदम बोर्डर में – चीन बोर्डर पर|

और फिर उसी के साथ-साथ फोकस किया कि हर हैमलेट तक पहुंचे, फिर सौभाग्य लाए – हर घर तक पंहुचा| और आज में ख़ुशी के साथ कह सकता हूँ – Every willing consumer in this country has electricity.  अगर  किसी के पास नहीं है तो वह अप्लाई करे, सात दिन में गारंटीड़ उसको electricity मिल जाएगी| उसके लिए हमने states को कहा भाई – ओनरशिप भी मत मांगो document की कोई इल्लीगल भी रहता हो तो यह लिख दो कि भाई ‘This is not a proof of ownership’ but बिजली दे दो तो I hope दिल्ली में slums में भी सबको मिल गयी होगी अभी तक| हमने आदेश दिया था कि भाई इसको ओनरशिप मत मानो| इससे किसी को यह मत मांगो प्रूव करो ओनरशिप| फिर slums में कटिया कनेक्शन और यह सब चले| पर मैं जो बोलने जा रहा था, हमको डर कैसे संभालना पड़ता है| एक प्रकार से मैं भी पाँच साल में ट्रेन हो गया हूँ ब्यूरोक्रेटस की तरह सोचने के लिए| तो  मैंने वर्ड्स यूज़ किये – यह स्कीम जब बनी थी तब मैं पावर देखता था – तो हमने यह वर्ड यूज़ नहीं किया – every consumer या everybody. हमने कहा ‘every willing consumer.’ भैया अगर कोई व्यक्ति अप्लाई ही नहीं करेगा तो ठूसकर तो electricity उसके घर पर नहीं पंहुचा सकते|

नहीं तो एक मीडिया एंकर – मैं वैसे कई बार टिप्पणी करता हूँ, मेरा मित्र है, कहीं नाराज़ ना हो जाए| पर चलो होगा तो होगा पर Madison Square में जैसे जाकर माइक ठूस रहा था सबके मुँह में याद है न्यूयॉर्क में, कि आपतो बड़े दुखी होंगे, आप तो बड़े दुखी होंगे मोदी जी से | मैंने कहा वह जाकर सब जगह बोलेगा, आपके घर में तो बिजली नहीं आ रही है ना| और यह भी नहीं पूछेगा कि आपने बिल पे किया है कि नहीं पिछले महीने का या अप्लाई किया है कि नहीं| और फिर एक घर मिल जाएगा, बोलेगा देखो देश में कहाँ है बिजली सबके पास|

खैर क्लैरिटी हो विजन की, आउटकम ओरिएंटेड विजन हो कि मुझे यह अचीव करना है, समय-सीमा में करना है and failure is not an option तब जाकर चीज़ें कार्यान्वित हो सकती हैं| आखिर 6000 रुपये हर साल का जो farmers के लिए पीएम किसान योजना – 1 फरवरी को announce की, 24 फरवरी को लॉन्च हो गयी और उस दिन एक करोड़ farmers के खाते में पैसा पंहुचा| 24 दिन के अंदर – यह होता है काम करने का तरीका| पर यह करने के लिए भी पूरा बजट का प्रावधान करकर किया| ऐसा नहीं कि शेख चिल्ली के पुलाव या शेख चिल्ली के सपने बनाए| वह क्या था वह एक मालगुडी डेज में आता था या कुछ – मुंगेरी लाल के सपने, हाँ |

अच्छा वैसे अच्छी बात है कि गरीबों को मिले पैसा उसमें किसी को आपत्ति नहीं है लेकिन मैं बैठा हुआ सोच रहा था कि सबसे पहले तो सूची कैसे बनेगी| आखिर जिसके पास provident  fund नंबर है या ESI number  है वहां तक तो मैं समझ सकता हूँ कि इनकम डिफाइंड है| बाकी उसके अलावा या इनकम टैक्स पेयर हो, उसके आलावा अब तो हम हर एक आदमी को बोलेंगे भाई तू गरीबी रेखा के नीचे जा| मुफ्त में घर बैठे 6000 रुपये हर महीने आने की एक सपना है| तो हमारे प्रोफेशनल CAs भी अब सोचेंगे कि कैश में लो अपनी इनकम 6000 रुपये से नीचे दिखाओ, आता है तो आने दो|

अच्छा फिस्कल डेफिसिट का क्या होगा, महंगाई का क्या होगा उसकी को कभी चिंता पहले भी नहीं थी, आज भी नहीं है| मैंने बजट में कहा था आपको याद होगा| सितम्बर 1974 में तो 34% महंगाई पहुंच गयी थी इंदिरा गाँधी जी के ज़माने में| राजीव गाँधी के ज़माने में तो खुद ही कहते थे कि भाई क्या 100 रुपये हम देते हैं, 15 पैसे गरीब तक पहुंचते हैं, बाकी हम सब बटोर लेते हैं आपस में| कुछ दलाल ले जाते हैं, कुछ हम भ्रष्टाचार कर लेते हैं, कभी बोफोर्स का हो जाता है, कभी जीप कांड हो जाता है, कभी 2G हो जाता है, कभी एंट्रिक्स देवास हो जाता है| मैं तो तमिलनाडु जा रहा हूँ आजकल उनके तो सब कैंडिडेट्स पर कोई न कोई कांड का केस है| एक ने तो BSNL से कितनी 400-500 लाइनें लेकर अपना सन टीवी चला लिया|

There is a limit to innovation. मैं कोयला मंत्री भी हूँ और कई लोग मुझे बोलते हैं कि अरे वह अफसर बड़ा ईमानदार था जो उस समय का सेक्रेटरी था, मुझे कोई आपत्ति नहीं है होगा ईमानदार| पर आज ईमानदार  आदमी को भी अगर आप बोलो कि भाई तू एक forged document तूम्हें दे रहे हैं, इसके बेसिस पर तुम…. हम forged document दे रहे हैं और बता रहे हैं, incomplete document है, इसमें प्रॉपर प्रोसीजर फोलो नहीं किये गये हैं फिर भी आप यह काम कर दो और वह व्यक्ति कर दे तो  मैं समझता हूँ फिर उसके बाद तो there is no excuse. I don’t think कि उसके बाद आदमी बोल सकता है कि भाई मेरे ऊपर कार्यवाई ना हो| और वास्तव में आप लोग अगर RTI करें तो आप कोल मंत्रालय से document निकाल लें कि जो कोल ब्लॉक्स का जो स्कैंडल निकला है और जो कोल ब्लॉक्स जो अलॉट हुआ है ख़ासतौर पर 2007-08 के दौरान| मतलब  I shiver to think कि अगर यह एक मंत्रालय के एक साल की तीन मीटिंगों की फाइल की यह हालत है तो इन्होंने तो 55 साल राज किया, भगवान जाने क्या-क्या नहीं किया होगा|

यानी स्टील मिनिस्टरी, अगर आप संजय जी अगर बुरा नहीं माने तो आपका उदाहरण ले लेता हूँ| आप चाहते हो कोल ब्लॉक और मैं सरकार हूँ और यह administrative ministry आपकी है – यह कहती है कि नहीं संजय ineligible है, राजेश को दिया जाये| नरूला जी के स्टेट में कोल ब्लॉक स्थित है वह कह रहे हैं नहीं हमारे हिसाब से तो मंजू जी को देना चाहिए| तो मैं यहाँ तक भी समझ सकता था कि इन्होंने कहा फलाने उनको देना चाहिए, उन्होंने कहा फलाने को देना चाहिए – मैं दोनों को बुलाऊँ, समझूँ, बात करूँ, देखूं भाई eligibility किसकी ज़्यादा है| फिर documents स्टडी करूँ जो-जो सबमिट हुआ है मुझे कोल ब्लॉक एप्लीकेशन के साथ|

लेकिन वह सब छोड़कर उस समय के कांग्रेस के मंत्री या जो भी, उस समय एक और शब्द बड़ा फेमस था ‘compulsions of coalition politics.’ जो काम करते थे बोलते थे हम क्या करें – हमारा तो coalition है, इसलिए हमको करना पड़ेगा| हम क्या करें एक जर्नलिस्ट बोलती है फलाने को यह मंत्री बनाओ और मंत्रालय दो| हम  क्या करें ‘compulsions of coalition politics,’ ‘compulsions of media pressure.’ ऐसे सरकारेँ चलती हैं? तो ना administrative ministry की सुनो, ना स्टेट की सुनो, ना documents देखो कि documents क्या कहते हैं और तीसरे किसी को देदो कोल ब्लॉक| इस तरीके से अगर सरकार चलेंगी तो स्वाभाविक है देश का विश्वास उठ जाएगा और जो काम गरीबों के लिए, जो काम देश के लिए करने चाहिए थे उसको priority मिलेगी ही नहीं|

उस चीज़ को बदलने का बीड़ा लेकर यह सरकार आयी थी, आपने आशीर्वाद दिया absolute majority दी और मैं समझता हूँ – मैं मैनिफेस्टो को बहुत गहराई से देखता हूँ, जब बना था मैनिफेस्टो तब भी मैं involved था और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ, प्रधानमंत्री मोदी जी ने एक-एक चीज़ मैनिफेस्टो की की हैं, लागू की है| Most things are completed. कुछ चीज़ें ज़्यादा long-term perspective  की रहती हैं उसपर काम शुरू हुआ है| एक प्रकार से एक सरकार जिसने अपने विजन को एक रोडमैप के रूप में अपने मैनिफेस्टो में दिया, हर एक विषय पर काम किया| जो-जो चीज़ों को हाथ में लिया उसको अचीव किया| और साथ ही साथ एक ‘fragile five’ में से एक economy को उभारकर विश्व की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली economy बनाई| महंगाई को डबल डिजिट से घटाकर, पिछले महीने तो ढाई प्रतिशत थी – इतना घटाया| फिसकल डेफिसिट साढ़े चार-पाँच, पहले तो साढ़े छह तक गया था जब वो totally इन्होंने भंडार छोड़कर so-called खुदके साथ न्याय किया था|

और चुनाव ज़रूर जीत गये थे पर देश का …. कर दिया था| पर हमने किसी भी टाइम ना तो कोई चुनावी काम के हिसाब से देश में अन्याय किया और ना ही कभी भी फिसकल imprudent policies या schemes लायी| और इसलिए आज देश की अर्थव्यवस्था मज़बूत है और हम सब प्रोफेशनल्स तो भली भाँती जानते हैं कि महंगाई किसको सबसे ज़्यादा हर्ट करती है – गरीब को| अमीर की तो संपत्ति होती है, महंगाई में वह बढ़ती है| गरीब की पूंजी नहीं होती है| उसको तो जो कमाता है, वह खर्चना है लगभग| तो उसके खर्चे बढ़ते हैं तो वह तो गरीब होता जाता है और ज़्यादा| हम मिडल क्लास को भी गरीब बनाते हैं जब उसके लिए शिक्षा अच्छी नहीं हो, कौशल विकास अच्छा नहीं हो (skill development), उसको  स्वास्थ्य सेवाएं हम प्रोवाइड ना करें, मिडल क्लास को भी गरीब बना देते हैं|

पर यह एक सरकार रही है जिसने – अगर मैं मुख्य रूप से तीन चार पहलू कहूं बिना डिटेल में जाये तो देश की सुरक्षा बढ़ायी, देश को आत्मनिर्भर बनाने के कदम उठाये| आज डिफेन्स में जिस प्रकार की हालत थी कोई निर्णय नहीं होते थे| दस साल तक, दस साल के records देखें तो कोई निर्णय ही नहीं| हर चीज़ में – मुझे याद है एक बार एंटनी साहब ने parliament में कहा था – when I receive any complaint, even if it is an anonymous complaint – I put an enquiry. और मैं तब विपक्ष में था| विपक्ष वालों को तो बहुत खुश होना चाहिए कि अच्छा है फिर तो हर एक चीज़ में एक anonymous complaint डालो – कुछ काम ही नहीं कर पायेगी सरकार| मैंने फिर भी खड़े होकर कहा कि साहब ऐसा मत करिए anonymous complaint पर आप ऐसा करोगे तो कोई निर्णय नहीं ले पाओगे| कांग्रेस वालों ने मुझे हूट डाउन कर दिया| उनकी संख्या ज़्यादा होने के कारण मुझे चुप करवा दिया| और मैं बोलता रहा मैं आपके हित की बात कर रहा हूँ| क्योंकि उसमें मैं देश हित समझता हूँ कि anonymous complaints पर जब सरकारें अगर डरने लग जाएँगी तो कभी कोई काम नहीं कर पाएंगी|

पर लगभग एक comatose सरकार 10 साल चली, निर्णय वहां लेते थे जहाँ पर कुछ extraneous benefit या कुछ extra purpose था लेकिन देश हित के निर्णय लेने में हिचकिचाते थे। और कई बार तो देश हित के निर्णय को purposely defer करते थे क्योंकि शायद उसमें उनका देश हित, उनके स्वयं का हित compromise होता था। और मुझे तो लगता है यह राफेल के सिलसिले में भी आज कल जो न्यूज़ सब सर्कस हो रही है उसमें लग रहा है कि कोई डिफेन्स डीलर्स के साथ फर्स्ट फॅमिली का कुछ कनेक्शन था जिसका फुलफिलमेंट नहीं हो रहा था जिसके कारण इसको भी वह डिले करते जा रहे थे। और यह सब चीज़ें अब निकल रही हैं एक-एक करके।

और चिंता की बात है – environment clearances – जब तक आप टैक्स नहीं पे करो, हम तो समझते थे वह जयंती टैक्स था। पर फिर मिस जयंती ने तो खुलासा किया कि नहीं भैया मैं तो किसी से ऑर्डर लेकर करती थी क्लीयरेंस। तो Jayanti Tax is now shown to prove to be a Gandhi Tax by Ms Jayanti Natarajan.

अब यह रिकॉर्डिंग हो रहा है तो कहना तो ठीक नहीं है, वैसे बाद में जब हम चाय पिएंगे मुझे याद दिलाना इसमें कुछ मुझे चुटकुला याद आया पर सामूहिक रूप से नहीं बोल पाउँगा। पर सब प्रोफेशनल्स अगर मुंबई में कभी, मुंबई में एक्चुअली सब प्रोफेशनल्स उसको जानते हैं एक ज़माने में हम कहा करते थे पर यहाँ नहीं बोलता हूँ, बाद में बताऊंगा। एक लाइन बोल सकता हूँ? उससे समझ जाना, ज़्यादा खुलासा मत करवाना।

आप सब जानते हो एक ज़माने में, पर हम सब प्रोफेशनल्स तो भुक्तभोगी भी थे अब कुछ आहिस्ते-आहिस्ते भुक्तभोगी से बनकर एक्सपर्ट्स बन गए पर उन एक्सपर्ट्स को अब सबको बंद करवाना है और देश को ईमानदार रास्ते पर लेकर जाने का बीड़ा हम सबको उठाना है। पर एक ज़माने में बड़ी फेमस कहावत थी – मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी, याद है? और वह किस सिलसिले में यूज़ होती थी? हमने उसको बंद किया और आज कोई पांच साल में एक व्यक्ति बोल दे कि केंद्र सरकार में, भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में इस प्रकार के कारनामे करने में वह सफल हुए हों मैं चैलेंज करता हूँ। हाँ, अभी हमें नीचे जाकर पूरे देश में व्यवस्थाएं नीचे तक, स्वाभाविक है स्टेट्स को भी इन्वॉल्व करना है, लोकल बॉडीज को, पंचायतों को, पर वह तभी हो सकता है जब जनभागीदारी हो इस कार्यक्रम में क्योंकि आखिर जब तक देने वाला है तब तक लेने वाला रहेगा। जिस दिन देने वाले बंद हो जायेंगे यह समस्या से पूरी तरीके से निजात मिल जाएगी इस देश को, पूरी तरीके से मुक्त हो जायेंगे।

और मैं तो कई बार आप सब प्रोफेशनल्स से …. विनम्र रिक्वेस्ट करता हूँ कि अगर आप सब तय कर लो हम सब तय कर लें कि हम देंगे नहीं तब देश की पूरी व्यवस्था बदल सकती है, देश एक अलग ही गोल्डन एरा में जा सकता है, स्ट्रांग विल्ल्ड हमें सबको बनाना पड़ेगा। और उसके लिए राजनीतिक शुद्धता भी लानी पड़ेगी, हमने इलेक्टोरल बॉन्ड्स जो लाये हैं, we are trying कि electoral politics भी शुद्ध हो। उस सबमें भी हमने मेहनत की तो उसमें भी कोई न कोई अड़ंगे डालने की कोशिश लगातार लगी रहती है। पर इलेक्टोरल बॉन्ड्स तो सिंपल लॉजिक है, लोग डरते हैं कि भाई एक चेक लिख लेंगे कोई और दूसरी पार्टी को नहीं दिया वह तंग करे वगैरा-वगैरा। इलेक्टोरल बॉन्ड्स तो एक्चुअली विपक्ष को ज़्यादा स्वागत करना चाहिए, मैं तो ऑलवेज विपक्ष में था तो कहता था कोई तरीका निकालना पड़ेगा क्योंकि हमको लोग देने से डरते थे और आज का विपक्ष उसी को ऑपोस कर रहा है जो सबसे ज़्यादा उनको लाभ मिल सकता है।

तो its really sad but मैं समझता हूँ कि क्लीन मनी पॉलिटिक्स को भी फंड करे और रिश्वतों को ख़त्म करना हम सबको तय करना ही पड़ेगा और मैं आप सबका आशीर्वाद चाहता हूँ आप सबका सहयोग, जनभागीदारी चाहता हूँ कि आप सब लोग प्लेज लें और यह राजेश जी पहली बार नहीं बोल रहा हूँ, मैं 7-8 साल से हर फोरम में यह बात करता हूँ प्रोफेशनल्स के सामने कि हम सब CAs, company secretaries तय कर लें हम shell company का ऑडिट रिपोर्ट नहीं sign करेंगे, हम shell company को CA certificate नहीं देंगे। जिस दिन हम सबने तय कर लिया believe me यह देश का भविष्य ही बदल जाएगा।

तो एक ईमानदार रास्ते पर भारत जाए, देश की सुरक्षा मज़बूत हो। सर्जिकल स्ट्राइक करने का साहस मैं नहीं समझता हूँ मोदी जी के अलावा आज कोई पार्टी के नेता में इस देश में वह साहस है, और लाइन ऑफ़ कंट्रोल क्रॉस करना तो 50 साल बाद मोदी जी जैसा ही नेता कर सकता है, साधारण नेता नहीं कर सकता।

और equitable growth – आज 150 डिस्ट्रिक्ट माओइस्ट गतिविधियों से प्रभावित हैं, यह बड़ा डेंजरस ट्रेंड है हम यह न सोचे कि दिल्ली-मुंबई में बैठे हम उस चीज़ से दूर हैं। हमें डेवलपमेंट गांव-गांव तक, घर-घर तक पहुंचाना पड़ेगा। और मुझे याद है मुझे कुछ दिनों पहले कार्यक्रम में जाना था बिहार में जो इलाका था वह माओवादी इलाका था तो दो दिन पहले मेरा स्टाफ आया कि साहब इसको आप वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग से कर दो कार्यक्रम को, चिराग पासवान जी की कोंस्टीटूएंसी थी, पासवान जी के लड़के। जमुई! बड़ा अच्छा है बिहार के भी लोग आये हैं। तो जमुई तो फिर आप जानते भी होंगे। तो मैंने कहा कि यार मैं मंत्री हूँ देश का अगर मैं डर जाऊंगा तो कैसे सरकार चलेगी फिर अफसर कैसे काम करेगा वहां और जनता कैसे रहेगी। अगर हैं वहां पर नक्सलवाद या माओवादी काम तो फिर तो मुझे पक्का जाना है, वहां पर मैसेज कैसे जाएगा कि we are with you. And I made it a point to go there and do the programme.

पर हमें सबको equitable growth देश का बनाना पड़ेगा खासतौर पर उत्तर पूर्व और पूर्वी भारत – ईस्टर्न यूपी, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, यह कब तक वंचित रहेंगे विकास से? और अगर वंचित रहेंगे तो बड़ी मात्रा में या तो conversions होंगे, देश का मूल character बदलेगा या बड़ी मात्रा में माओवादी ताकतें पनपेंगी वहां पर और वह पनपें वह इस देश के लिए अच्छा नहीं है। तो मोदी जी का एक इम्पोर्टेन्ट विज़न यह है कि जो अंत्योदय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने लिखा था आज से लगभग 50 वर्ष पहले कि देश की जो संपत्ति है, our natural resources, उसपर पहले अधिकार गरीबों का होना पड़ेगा। और इसलिए गरीब को बिजली मिले, गरीब के यहाँ टॉयलेट हो, गरीब को मुफ्त में स्वास्थ्य सेवाएं मिलें और वास्तव में अब तो हमने पांच लाख रुपये तक टैक्स-फ्री कर दिया पांच लाख तक जिसकी आय है, और हम सब प्रोफेशनल जानते हैं कि 7-8 लाख रुपये तक भी लगभग कोई टैक्स नहीं है। छोटे व्यापारी का टर्नओवर अगर नॉन-डिजिटल भी हो तो 60 लाख रुपये तक 8% गिना जाता है तो 60 लाख रुपये तक तो 95% शायद व्यापारी निकल गए इनकम टैक्स से, 8% presumptive tax है। डिजिटल करे तो 6% है। जीएसटी भी अब 40 लाख रुपये तक फ्री कर दिया, हम तो 75 करना चाह रहे थे, कुछ स्टेट्स जो गैर-बीजेपी हैं उन्होंने ऑपोस किया इसलिए कर नहीं पाए नहीं तो हम चाह रहे थे 75 लाख तक टैक्स टोटली माफ़ करें।

अब यह इंटरिम बजट था तो मेरे भी हाथ बंधे हुए थे पर चुनाव के बाद मैं समझता हूँ हम प्रोफेशनल्स की भी अब presumptive tax की स्कीम को और थोड़ा लिबरल किया जा सकता है, जीएसटी के लिमिट्स को भी बढ़ाया जा सकता है। मुझे याद है डिमांड थी डेढ़ करोड़ तक क्वार्टरली रिटर्न, हमने सीधा पांच करोड़ तक क्वार्टरली रिटर्न कर दिया, 95% GST payers अब quarterly return भरेंगे। पता नहीं प्रोफेशनल्स के सामने ऐसा कहना चाहिए कि नहीं आप तो इसको शायद कहीं ऑपोस न कर रहे हों। नहीं भैया, यह देशहित के काम हैं, इसमें कभी हमने व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं देखना चाहिए इसमें देश के सामान्य जनता को सुविधाएं पहुंचे यह हमारा हेतु रहना चाहिए।

और वास्तव में जो पूरी कोशिश रही है कि भाई थोड़ा जिसकी पास संपत्ति है अमीर आदमी है उसने अगर थोड़ा बहुत टैक्स पे करा भी तो मैं समझता हूँ यह भी एक सेवा ही है, यह एक प्रकार से आपका कंट्रीब्यूशन है नेशन बिल्डिंग का। और इसके लिए मैंने तहे दिल से और चाहिए तो राजेश कभी आएगा मैंने वह पेपर बाद में मंगवाया क्योंकि जब फाइनल बजट स्पीच ड्राफ्ट हो रही थी तो एक दिन पहले ही प्रिंट होती है और टैक्स प्रोपोज़ल्स तो एकदम एन्ड में अंडरग्राउंड जाते हैं जहाँ प्रिंटिंग होती है। मैंने अपने हाथ से ही पूरा वह टैक्स वाला हिस्सा तो ज़्यादा मैं कर ही नहीं सकता था इंटरिम होने के कारण। और मैंने दिल से लिखा है वह जो धन्यवाद किया है, दिल से and I meant every word that I said. It is my government, my Prime Minister’s personal thank you to every taxpayer.

तो equitable growth हो, backward areas जिसको हम aspirational districts कहते हैं वहां तक विकास पहुंचे, हर एक की basic amenities ensure हो, तो आज food security पर 1,80,000 करोड़ रुपये – सामान्य बात नहीं है, 80 करोड़ लोगों को सस्ते में अनाज दिया जाता है। अब कपिल सिब्बल जी का कहना तो बड़ा आसान है, या जयराम रमेश बड़ी आसानी से कह देते हैं कि हम बाकी सब्सिडीज बंद करके यह कर देंगे। क्या 80 करोड़ लोगों को जिनको हमने ensure किया है कि इस देश में कोई भूखा पेट न सोये उसकी फ़ूड सिक्योरिटी को आप ख़त्म करोगे? क्या गरीबों की ओबीसी की शेड्यूल कास्ट/शेड्यूल ट्राइब की स्कॉलरशिप ख़त्म कर दोगे? क्या किसानों का फ़र्टिलाइज़र पांच गुना दाम हो जायेगा अभी? या बिजली के दाम घरों में डबल हो जायेंगे? क्या करना चाहती है कांग्रेस?

मैं समझता हूँ देश को गरीबी के अंदर डालने का जो सिलसिला कांग्रेस ने 70 वर्ष तक चालू रखा यह एक और कदम लोगों को गरीबी की तरफ डालने का और गरीबी में जीने को मजबूर करने का शायद एक बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और यह गरीबों के साथ अन्याय होगा ऐसा मेरा मानना है। देश के साथ तो अन्याय होगा ही पर गरीबों के साथ भी अन्याय होगा। मैं समझता हूँ देश को उनको उठाना पड़ेगा, देश को उनको कौशल विकास से लाभ देना होगा, देश को उनकी शिक्षा सेवाएं सुधारनी पड़ेगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखो लेकिन साथ में एक मुफ्त में अच्छा घर दो, पक्का घर दो, उसके लिए पैसा खर्चा कर दो उनको लाचार अवस्था में मत रखो, अच्छा घर दो बिजली दो सस्ते में बिजली दो उसमें दिक्कत है।

और मेरा मानना है कि काम दो, और यह जॉब्स की डिबेट तो एकदम ही एक प्रकार से uneducated debate चल रही है। जॉब की परिभाषा में हम सब कोई भी नहीं आता है, हम सब प्रोफेशनल्स जॉब की परिभाषा में नहीं आते हैं। हमारे यहाँ जो काम कर रहे हैं हमारे छोटे ऑफिसेस हैं दो-चार-छः लोग वह जॉब्स की काउंटिंग में कभी आते ही नहीं हैं। I don’t think आपमें से किसी का मतलब अधिकांश लोगों का कोई पीएफ नंबर होगा आप उस केटेगरी में आते ही नहीं हो। आज देश में तीन-चार लाख चार्टर्ड अकाउंटेंट, 80,000 या कितने कॉस्ट अकाउंटेंट, 50-55,000 CSE अकेले, 6 लाख डॉक्टर, वकील तो पता नहीं – 23 लाख।

अगर यही सब मिला लें तो आज हम 30-40 लाख प्रोफेशनल्स और हम सबके साथ जुड़े हुए जो लोग हैं अगर गिनें तो 3-4-5 करोड़ परिवार हमारे ऊपर निर्भर करते हैं। अब यह कोई जॉब की केटेगरी में नहीं आएगा। हाँ, रेलवे की जब जॉब निकलेगी तो आपके यहाँ भी जो लोग काम कर रहे हैं वह अप्लाई करेंगे क्योंकि उसमें कंडीशन 8th pass है, मिनिमम कंडीशन। अब स्वाभाविक है हर एक व्यक्ति को एक सरकारी जॉब, गाड़ी घोडा घर मिल जाता है, पेंशन मिल जाती है, काम करो नहीं करो सेफ हो, नहीं करो ज़्यादा सेफ हो। विजिलेंस केस भी नहीं आएगा कोई प्रश्न भी नहीं पूछा जाएगा।

तो उसमें तो अगर एक करोड़ लोग अप्लाई कर दें वह कोई मापदंड नहीं है कि जॉब्स नहीं हैं पर महिलाओं को पूछो जब व्यक्ति चाहिए उनको किधर काम करने के लिए तो आज मिलता है क्या? कोई अच्छा कौशल वाला ड्राइवर ढूंढने जाएं तो बताओ कितना तकलीफ होती है, ऑफिस में जब हम स्टाफ ढूंढते हैं तो क्वालिटी स्टाफ नहीं मिलता है। और आप और ज़्यादा डोल्स पर लोगों को लाचार बनाते रहो तो फिर कहीं यह परिस्थिति न बन जाए कि विदेश से लोग आकर हमारे यहाँ काम करना शुरू करें। मतलब I am taking a very serious view of this kind of populism, हमने कोई populism नहीं किया और जब किसानों का भी किया तो आप देखो मापदंड के साथ किया। लघु और सीमांत किसान जिसके पांच एकड़ से कम हैं, अब पांच एकड़ से कम जिसके हैं आप को ही गांव में किधर न किधर किसान होंगे देखो हालत क्या है, किस तरह से जीवन बिता रहे हैं। और वह एक डिफाइंड केटेगरी है, इनकम की तो कोई डेफिनिशन या कैलकुलेशन या रिकॉर्ड है ही नहीं देश का, मुझे उस समय पूछा गया था कई टीवी चैनल्स ने और पत्रकारों ने भाई आपने पांच एकड़ से कम वालों को दिया लैंडलेस लेबर का क्या? उसपर बहुत विचार किया था यह स्कीम लाते हुए, तब ध्यान आया लैंडलेस लेबर एक केटेगरी जैसी डिफाइंड है ही नहीं। ज़रूर कुछ करना चाहिए और हम करेंगे लेकिन पहले उसको डिफाइन करना पड़ेगा उसका रिकॉर्ड बनना पड़ेगा। आज कोई 7/12 में या जो भी वह एक्सट्रेक्ट होता है वहां सिलिसिला ख़त्म  गया एक ज़माने में लिखा जाता था टेनेंट फार्मर कौन है, 30-40 साल में वह लिखा ही नहीं गया। तो आज कौन टेनेंट फार्मर है यह डेफिनिशन जब तक नहीं बनेगा, रिकॉर्ड नहीं बनेगा तब तक तो फिर भ्रष्टाचार और करप्शन का एक और माध्यम बन जाएगा।

अभी भी हमने स्कीम में स्टेट से जो लिस्ट मांगी है कहा है पंचायत में लगाओ, जनता देख सके कोई रह गया है तो अपना नाम जोड़ ले, कोई झूठा नाम है तो कंप्लेन करो। तो जवाबदेही बनाया उस पंचायत के सरपंच को या ग्राम पंचायत को। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को इन्होने कितना ऑपोस किया, आधार के लिए तो हर लेवल पर सुप्रीम कोर्ट तक गए, अब बोलते हैं हम वह डीबीटी यूज़ करके यह पैसा देंगे। तो फिर भाई क्यों ऑपोस कर रहे थे यह आपके सब वकील हर लेवल पर कोर्ट केस कर रहे थे? क्योंकि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर देने में इनका भ्रष्टाचार पकड़ा जा रहा था। तो एक ईमानदार रास्ते पर चले एक गरीबों तक बेसिक एमेनिटीज पहुंचे। और यह देश अगर एस्पायर कर रहा है अच्छी लाइफ के लिए, कई बार यह विषय निकलता है लोग बोलते हैं कि जनता में अभी भी ख़ुशी नहीं है, लोग और विकास चाहते हैं। मैं तो बहुत खुश होता हूँ यह सुनकर, जिस दिन संतुष्ट हो जाये जनता I think that will be the worst day for me as a Minister. क्योंकि जनता में aspiration है, उसका एक प्रमाण यह है कि मेरे पर विश्वास है कि मैं डिलीवर कर सकता हूँ। तभी तो aspire कर रहे हो आप for more from me.

आप 2014 के पहले मनमोहन सिंह जी से तो कुछ मांगते ही नहीं थे, क्योंकि कुछ expectation ही नहीं थी कि कुछ अच्छा होगा। जब aspiration ही नहीं होगी, expectation भी नहीं होगी तो डिलीवरी भी नहीं होगी। और हाँ फिर compulsions of coalition politics बहाना बन जाता है। जब aspire करती है जनता तो सबसे पहले तो मेरे ऊपर विश्वास है कि I can deliver that is why you aspire for more from me, expectation तो उसी से हैना?

आखिर हम लोग कई सामाजिक संस्थाएं, आप सोशल एक्टिविस्ट हैं आप किसके पास जाते हैं चंदे के लिए? कोई देने वाला हो उसी के पास जाओगे? कोई खड़ूस आदमी हो तो उसके पास थोड़े ही आप जाओगे कुछ लेने जो देता ही नहीं कुछ। जो डिलीवर कर सकता है उसी से जनता की अपेक्षा होती है – पहली बात। और दूसरी बात आप अगर मुझे मोटिवेट ही नहीं करोगे, आपकी कुछ aspiration ही नहीं होगी तो मैं भी आराम से 6 महीने घर चले जाऊंगा, फिर मुझे इन लोगों की मीटिंग रात को 2 बजे क्यों करनी पड़ेगी, और इन लोगों के साथ मेरी मीटिंग एक-एक दो-दो बजे चली है आपके जो चुने हुए प्रतिनिधि हैं। Don’t worry कोई clandestine meeting नहीं होती है, सब भरी महफ़िल में मीटिंग होती है ऑफिस में होती है। पर समय वही मिलता है जब काम ख़त्म  होता है।

मैं समझता हूँ aspirational India – मैंने तो लिखा है मैं अभी नोट्स बना रहा था क्या बोलूंगा, वहां बैठा हुआ था। तो यही मैंने किया कि thank God it is an aspirational India, if it was not an aspirational India तो we would not perform also. तो ऐसी परिस्थिति है। विज़न पर मैं ज़्यादा डिटेल में नहीं जा रहा हूँ पर वह तो मैंने बजट में भी डिटेल में कहा था पर एक अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलोप हो देश में, अच्छी तरीके से स्किल डेवलपमेंट हो, एजुकेशन हो, हेल्थ, education is the next area जिसमें बहुत बड़ा बदलाव करने की आवश्यकता है। स्किल डेवलपमेंट को अपने नेक्स्ट लेवल पर लेकर जाना है।

और मैं समझता हूँ इस सबसे, आखिर जब इंफ्रास्ट्रक्चर में इतना पैसा खर्चा हो रहा है तो स्वाभाविक  है कि लोगों को काम मिल रहा है, हवा में से तो नहीं इंफ्रास्ट्रक्चर – रोड्स, रेलवेज, एयरपोर्ट्स – कोई दिव्य शक्ति तो नहीं आकर देश में बनाते जा रही है, ह्यूमन बींग्स ही बना रहे हैं। तो इन सब चीज़ों का, टेक्नोलॉजी इनोवेशन का प्रभाव देश में बढे, agriculture will be the next focus area along with education and skill development. कैसे वैल्यू ऐड करके एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट बढ़ाएं, एग्रीकल्चरिस्ट की इनकम बढ़ाएं, आज we are self-sufficient in almost everything. यह अलग बात है कुछ अमीर लोग फूल भी आज तक इम्पोर्ट करते हैं पर वह तो चलो अपनी अमीरी का शो ऑफ करने के लिए करते हैं।

पर देश आज self-sufficient है हर चीज़ में। आपको याद है डालें कितनी थी – 260 रुपये? हमें भी इम्पोर्ट करनी पड़ी 2014-15 में, पहले साल, दाम कम करने के लिए लेकिन हम रुट कॉज एनालिसिस भी करते हैं, हमने incentivise किया, प्रोडक्शन बढ़ाई, बफर स्टॉक बढ़ाया, अब पिछले तीन साल में 80-90-100 रुपये के नीचे ही रही होगी दाल। तो हमने मूलभूत परिवर्तन करके समस्या को जड़ से ख़त्म किया, ऐसे ही नहीं महंगाई ढाई परसेंट पर आयी, मेहनत की है उसके लिए और वह सब मेहनत को अगर विफल कर देना है और एक गैरज़िम्मेदार सरकार लानी है तो भाई हमें कोई दिक्कत नहीं है, मतलब I would say दुःख भी होगा कि देश के साथ क्या होगा लेकिन ख़ुशी-ख़ुशी I will be able to spend time with my children. नहीं तो 4 तारीख को मेरा लड़का आया था, आज शायद 27-28 है, कल मेरी वाइफ ने मुझे कहा कि चौबीस दिन में तुमने ध्रुव के साथ एक घंटा नहीं बिताया, एक घंटा के उसके साथ बैठकर बात करो।

बहुत-बहुत धन्यवाद।

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