Speeches

December 15, 2018

Speaking at National Rail & Transportation Institute, in Vadodara, Gujarat

वडोदरा की सांसद बहन, श्रीमती रंजन बेन भट्ट, श्री योगेश पटेल, विधायक; श्रीमती मनीषा बेन वकील, विधायका; मेरे साथ रेलवे बोर्ड में मेंबर स्टाफ श्री एसएन अग्रवाल जी; श्री एके गुप्ता जनरल मैनेजर वेस्टर्न रेलवे; श्री प्रदीप कुमार, डायरेक्टर जनरल नायर; हमारे बीच उपस्थित हैं श्री प्रमथ सिन्हा जो हमारे एडवाइजर भी हैं इस पूरी यूनिवर्सिटी को बनाने में जिन्होंने पूरा परिश्रम करके समय सीमा में इस यूनिवर्सिटी को शुरू करने में बहुत अहम भूमिका निभाई और आरटीआई के गवर्निंग बोर्ड पर भी हैं प्रमथ जी। 103 विद्यार्थियों वाली यह यूनिवर्सिटी के सभी विद्यार्थी, स्टूडेंट्स जो देश भर में एक पारदर्शी कॉम्पिटिटिव एग्जाम से चुनकर यहाँ पर चयनित हुए, जिन्होंने यहाँ पर एडमिशन ली और उपस्थित भाईयों और बहनों।

वास्तव में हर्ष की बात है कि जो सपना, जो कल्पना माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने एक रेल यूनिवर्सिटी हो भारत में जो एक साल नहीं, दस साल नहीं लेकिन सदियों तक आगे आने वाले रेलवे के विकास के लिए, आगे आने वाले रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए विद्यार्थी तैयार करे, टैलेंट को देश भर में भेजने के लिए, देश भर में टैलेंट रेलवे की सेवा कर सके इस कल्पना से जो उन्होंने रेल यूनिवर्सिटी का काम सौंपा था रेलवे विभाग को, वह टीचर्स डे पर इस यूनिवर्सिटी का शुभारंभ हुआ।

जैसा बताया एक ट्राइमेस्टर अब ख़त्म हुआ है और हमें लगा कि आज सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्यतिथि के दिन हम माननीय मुख्यमंत्री जी के करकमलों द्वारा इसका देश को समर्पित करने के कार्यक्रम को संपन्न करें। और मैं तहे दिल से धन्यवाद दूंगा विजय भाई का कि उन्होंने हमारे आग्रह को स्वीकार किया और आज इस रेल यूनिवर्सिटी को देश को समर्पित करने का कार्यक्रम हम सब उपस्थित हो पाए।

मेरा दूसरा प्रोग्राम है, मैं पहले भी वडोदरा आया था सितम्बर 2017 में जब महामना एक्सप्रेस भी फ्लैग-ऑफ की थी तब नायर भी विजिट किया था। और वास्तव में इस कॉम्प्लेक्स को देखकर विश्वास जगा क्योंकि मैं स्वयं मानता हूँ कि जितनी ज़्यादा कंटीन्यूअस ट्रेनिंग का काम रेलवे में हम करेंगे उतना ज़्यादा मॉडर्नाइजेशन उतना ज़्यादा सुधार भी रेलवे में हम ला पाएंगे। और मुझे लेटेस्ट स्टेटिस्टिक पता नहीं पर मुझे विश्वास दिलाया गया था कि हर एक व्यक्ति जो रेलवे में काम करता है और आज हमारे पास लगभग 13 लाख लोग विश्व के सबसे बड़े एम्प्लॉयर के रूप में भारतीय रेल काम कर रही है। और मेरा निर्देश था कि हर एक को, हर एक एम्प्लॉई को इन 13 लाख हर एक एम्प्लॉई को कंटीन्यूअस ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत हर वर्ष कम से कम एक हफ्ते की ट्रेनिंग और उसमें आरपीएफ में जो काम करते हैं, जो सिक्योरिटी सर्विसेज में उनको कम से कम दो हफ्ते की ट्रेनिंग हमने सुनिश्चित करनी चाहिए।

मुझे बताया जा रहा है कि पहला राउंड सक्षम का पूरा हो गया है और मैं बहुत-बहुत धन्यवाद दूंगा और उसमें मुझे विश्वास है नायर का भी बहुत बड़ा योगदान रहा होगा इस ट्रेनिंग को सफल बनाने के लिए। और वास्तव में जब तक हम कंटीन्यूअस लर्निंग प्रोग्राम और जब तक हम सब मंत्री से रेलवे बोर्ड से लेकर सभी कर्मचारी तक यह विषय को नहीं पहुंचा पाएं कि हम सबको भी सुधार करते रहना पड़ेगा।

Let us not rest on our laurels. Let us not think we know everything. मैं नहीं समझता हूँ हम में से कोई भी यह दावा कर सकता है कि रेलवे को पूरी तरीके से या विषय इतने सारे हमारे संज्ञान में आते हैं, इतने सारे विषयों पर निर्णय लेना पड़ता है, हम यह नहीं सोच सकते कि पूरी तरीके से जानकारी, पूरी तरीके से समझ एक ज़िन्दगी के अंदर हम पा पाएंगे। और इसलिए जितना ज़्यादा हम  ट्रेनिंग पर बल देंगे उतना ज़्यादा इस रेलवे का भी विस्तार होगा, सुधार होगा और मुझे लगता है इस यूनिवर्सिटी की शुरुआत से जिस प्रकार से एकेडमिक रिगर रखा गया है इसमें, जिस प्रकार से करिकुलम को डिज़ाइन किया गया है मुझे पूरा विश्वास है कि यह यूनिवर्सिटी जिन बच्चों को तैयार करेगी वह भी आगे चलकर अगर भारतीय रेल में सेवा करते हैं तो हमें रेलवे में और चार कदम आगे जाने के लिए बहुत-बहुत लाभ होगा, बहुत-बहुत उसका फायदा मिलेगा।

कई बार वडोदरा का विषय इसलिए भी आता है क्योंकि लगभग यहाँ पर रेलवे का काम डेढ़ सौ वर्ष पहले शुरू हुआ था। It’s one of the oldest establishments of the Indian Railways. और पहली नैरो गेज लाइन 1862 में 33 किलोमीटर की दभोई से मियां गाऊँ में, दभोई से मियां गाऊँ की महाराजा गायकवाड़ ने बनवाई थी वडोदरा में। वास्तव में कई बार तो मुझे काम करते हुए लगता है कि कुछ विषयों में तो रेलवे अभी भी डेढ़ सौ साल पहले के हिसाब से ही चल रही है। लेकिन बदलाव आ रहा है, बदलाव तेज़ गति से आ रहा है। यह भी बदल गया कि…. और शायद सरदार वल्लभ भाई पटेल नहीं होते तो यहाँ भी हम वीज़ा लेकर आ रहे होते वडोदरा भी और रंजन बेन आप भी सांसद नहीं होती यहाँ पर।

पर जिस प्रकार से जितना बदलाव रेलवे में समय-समय पर आना चाहिए था मैं समझता हूँ हम उसमें पीछे पड़ गए। मुझे बताया जाता है जब पहली बार राजधानी का प्रस्ताव मंज़ूर हुआ लगभग आज से 50 साल पहले तबके रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने राजधानी नहीं लानी चाहिए ऐसा कहा था और उसको ऑपोस किया था कि राजधानी की क्या ज़रूरत है।  इसी प्रकार से जब प्रधानमंत्री जी ने विषय रखा कि अब रेलवे को हम और तेज़ गति दें हाई स्पीड रेल, सेमी हाई स्पीड रेल का जाल बिछाएं और पहली मंज़ूरी दी गयी मुंबई से अहमदाबाद के बीच जिसमें वडोदरा भी स्टॉपेज होगा, वडोदरा से होते हुए, गुज़रते हुए जाएगी बुलेट ट्रेन। उस समय भी हमें अलग-अलग प्रकार से उसका भी विरोध किया गया, उसके ऊपर भी टिप्पणियां हर प्रकार की सुनने को मिली।

और राजनीतिक टिप्पणियां जहाँ तक हैं उसकी मैं इतनी चिंता नहीं करता हूँ, कई समझदार लोगों ने भी इसकी टिप्पणी की। कई लोग जो विश्व में जाते हैं और हाई स्पीड रेलवे का लाभ लेते हैं उन्होंने भी टिप्पणी की कि भारत को क्या ज़रूरत है। पर मैं समझता हूँ प्रधानमंत्री जी की जो विज़न है भारत को एक विश्व शक्ति बनाने की, जो उनकी इच्छा है कि भारत को हम तैयार करें और भारत के नागरिक को सेकंड क्लास फैसिलिटीज के बदले मोस्ट मॉडर्न फैसिलिटीज, जो आज विश्व में सामान्य रूप में मिलती हैं वैसी फैसिलिटीज भारत में लक्ज़री नहीं लेकिन हर सामान्य व्यक्ति को मिलें वह जो कल्पना लेकर प्रधानमंत्री जी ने देश भर में इंफ्रास्ट्रक्चर को बल दिया है, इंफ्रास्ट्रक्चर को मॉडर्नाइज़ किया है।

आधारभूत सुविधाएं जिस देश की नहीं होंगी वह देश कभी प्रगति नहीं कर सकता और उस कल्पना को लेते हुए जिस प्रकार से तेज़ गति से निवेश हो रहा है, इन्वेस्टमेंट हो रहा है भारतीय रेलवे में, जिस प्रकार से भारतीय रेलवे में मॉडर्नाइजेशन की कड़ी तेज़ होते जा रही है मुझे पूरा विश्वास है कि आगे आने वाले दिनों में आप सबके सहयोग से, आप सबके प्रयासों से हम भारतीय रेल को विश्व की सबसे अच्छी रेल बनाने में सफल होंगे। Most modern technologies will be introduced in India, most modern equipment will be introduced in India.

और उस समय यह जो सब विद्यार्थी हैं तब इनकी समर्थ की, इनकी जो विद्या है जो इनकी शिक्षा होगी यहाँ पर उसका मैं समझता हूँ सही मायने में देश को लाभ भी मिलेगा, देश उसको पहचान सकेगा। और शायद इस यूनिवर्सिटी का जो आज पहला वर्ष है इस वर्ष में हमने अपने आपको डेडिकेट करना चाहिए और जितने इस कैंपस से निकलते हैं उन सबके मन में यह कल्पना होकर निकले कि हम बदलेंगे इस रेलवे को, इस रेलवे को विश्वस्तरीय बनाएंगे, इस रेलवे को second to none – the best in class railway बनाने की I think we should have that fire in the belly that we want to make a difference. We want to do something which was unprecedented, something which was never thought of before and take the railway to new and higher levels of progress, greater success in the years to come.

And I am quite confident that just like Prime Minister Modi has made an effort that across the country we develop infrastructure, most modern infrastructure, connect India whether it’s by railways, whether it’s by highways and roadways, whether it’s by airlines, seaways. I think this connection, this integration of India, very similar to the integration of India that SardarVallabhbhai Patel did, very similar to the unifying of all the princely states into one nation. I think very similar to that the railways has a role to play that we unify the length and breadth of the country with the most modern network, with the safest network serving the passengers, serving freight and becoming hubs of economic activity in the years to come.

टीचर्स डे पर इस यूनिवर्सिटी की शुरुआत हुई वह अपने आपमें एक अहम दिन रहता है और मैं समझता हूँ कि एक प्रकार से दुर्भाग्य है कि जिस प्रकार का सम्मान टीचर्स को मिलना चाहिए उसमें अभी तक शायद हम उतने सक्षम नहीं रहे हैं। कई बार बात होती है पोस्टिंग, ऑफिसर्स की पोस्टिंग में तो ट्रेनिंग कैंपसिस को ट्रेनिंग प्रोग्राम्स के लिए बहुत अच्छे ऑफिसर्स सेलेक्ट नहीं होते हैं यह एक प्रकार से गिना जाता है कि जो रह गए उसको ट्रेनिंग के प्रोग्राम में फिट कर दो।

अभी कोशिश की गयी है रेलवे में और मैंने तो आपको कहा भी है कि the best officers should be posted in the training facilities that the railways have. Becauseमेरा मानना है कि अगर हमारे ट्रेनर्स अच्छे होते हैं और वह ट्रेनर्स हमको अच्छी शिक्षा आगे पास-ऑन करते हैं तभी जाकर हम रेलवे को तैयार कर पाएंगे आगे के भविष्य के लिए, एक उज्जवल भविष्य के लिए। और मुझे पूरा विश्वास है कि इस यूनिवर्सिटी में भी जिस प्रकार से फैकल्टी को लिया जायेगा, जिस प्रकार से आगे  और बढ़ाया जायेगा उसमें हम इस चीज़ का पूरा ध्यान रखें, अच्छे लोग इस यूनिवर्सिटी के साथ जुड़ें, नया कैंपस, नयी बिल्डिंग वगैरा जो बननी है लगभग 421करोड़ का बजट निर्धारित किया गया इस यूनिवर्सिटी के लिए अगले 4-5 वर्षों के लिए उसमें भी हम जिस प्रकार से नायर ने एक एम्बियंस, बड़ा कंड्यूसिव एजुकेशन, खासतौर पर architecturally देखें या जो खुला पना यहाँ पर देखने को मिलता है अपने आपमें एक कल्चर क्रिएट करता है, एक इच्छा जागृत करता है पढ़ाई की तरफ।

मुझे लगता है नए कैंपस को भी इसके साथ ही इंटीग्रेटेड रखते हुए क्योंकि ज़मीन वहां कम है लेकिन नायर भी उसका एक, नायर और वह नया कैंपस एक साथ जुड़कर काम करे जिसमें वह पढ़ाई का वास्तव में फीलिंग आये वह अंदर से मज़ा आना चाहिए पढ़ाई करते हुए और वह लक्ष्य हम ध्यान में रखें जब भी आर्किटेक्चरल डिज़ाइन वगैरा तैयार हों।

जहाँ तक यहाँ के विद्यार्थियों का सवाल है कई बार थोड़ी पेसिमिस्म आ जाती है हमारे बच्चों में, हमारी अगली पीढ़ी में, जो हमने सुना है जिस प्रकार से पिछले दिनों में, दिनों मतलब I am not talking of days, but over the last few years the kind of atmosphere that we see around the country it sometimes leads to despondency.

और मेरा मानना है कि अब वह चेंज जो पूरे भारत में देखने को मिल रहा है, जिस प्रकार से देश की सोच बदल रही है, जिस प्रकार से पूरे देश में एक नए रूप से, नए ढंग से काम करने की जो पहल मोदी जी ने की है उस विश्वास को आप सबको आगे बढ़ाना है। फिर चाहे रेलवे हो, चाहे कोई और व्यवस्था हो इस सब में इस नयी सोच को जब तक हम नहीं डाल पाएंगे, इस सोच में टेक्नोलॉजी का बहुत बड़ा रोल है, इस सोच में ईमानदारी का बहुत बड़ा रोल है, इस सोच में inquisitiveness का बहुत बड़ा रोल है।

The spirit of innovation, the spirit of research, the spirit of new ideas, यह जो बदलाव आज देश में करने की चेष्टा हो रही है वह भारतीय रेल में भी बड़े रूप से करने में हम सब कोशिश में लगे हैं, प्रयत्न कर रहे हैं। हमारा संकल्प दृढ है एकदम, इरादा एकदम नेक है, इरादा एकदम पक्का है, अगर इरादा का एक उदाहरण दूँ विजय भाई तो भारतीय रेल ने तय किया सितम्बर 2017 में कि हम unmanned level crossings को एक वर्ष के अंदर पूरी तरीके से ख़त्म करेंगे। अब साधारणतः unmanned level crossings एक एक्सीडेंट का स्कोप छोड़ता था कि लोग क्रॉस कर रहे हैं ट्रैक के ऊपर, गाड़ियां भी चल रही हैं पर कोई व्यक्ति गार्ड्स मैन नहीं है उसके कारण एक्सीडेंट होते थे, कई बार लोगों की मृत्यु भी होती थी।

मेरे ख्याल से पांच एक हज़ार unmanned level crossings थे एक वर्ष पहले और साधारणतः रेलवे में 1200 से अधिक कोई वर्ष में unmanned level crossings को man नहीं किया गया है या man करो या road over ब्रिज बनाओ या road under bridge बनाओ। साधारणतः 1000-1100, 1200 was the top, तो इससे ज़्यादा किसी वर्ष में unmanned level crossings को बंद करके manning करना या ROB/RUB बनाने का काम कभी नहीं हुआ था। और मुझे याद है जब यह लक्ष्य रखा गया कि एक वर्ष में हमको यह लगभग 5000 तो ख़त्म करना है, 4500-5000 थे, तब लगभग सबने कहा यह असंभव है और पहले 6 महीने में तो बहुत कम शायद 1000 के करीब unmanned level crossings कम हो पाए थे और लगभग एक फीलिंग थी कि भाई चलो 1200 नहीं 1500-2000 कर देंगे, ABC routes में कर देंगे जो ज़्यादा densely जो ज़्यादा utilization जिसकी ज़्यादा है, capacity utilization उन routes में कर देंगे। लेकिन यह विश्वास नहीं बन पा रहा था पूरी टीम का कि इसको हम ख़त्म करेंगे।

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जी का इरादा एकदम पक्का था कि इस बीमारी को हमको ख़त्म करना है, इसको एलिमिनेट करना है। और आपको जानकर ख़ुशी होगी अप्रैल के बाद जब और प्रेशर आया, जब ध्यान में आया कि यह तो कोई compromise accept नहीं होगा तो अप्रैल से सितम्बर के बीच 3000 level crossings मात्र 6 महीने के अंदर, unmanned level crossings eliminate हो गए। उसमें से सितम्बर 2018 में, एक ही महीने में, 1705 unmanned level crossings को ख़त्म किया गया, एक महीने में !

आज पूरे भारत में जो ब्रॉड गेज मेन लाइन है उसमें शायद गिनती के 100-200 होंगे मेरे ख्याल से unmanned level crossings बाकी हैं, कोई दूरदराज़ के इलाके में या कोई बचे हुए हैं, खासतौर पर जहाँ पर टेक्निकल या operational feasibility नहीं बन रही है, अब वह उतनी टेक्निकल डिटेल में नहीं जाऊंगा लेकिन अगर बहुत सारे लेवल क्रॉसिंग हो दो स्टेशन के बीच में तो एक टेक्निकल प्रॉब्लम आती है उसको ख़त्म करने के लिए उसका भी रास्ता निकाल रहे हैं।

लेकिन एक बार जब संकल्प ले लिया रेलवे ने तो वह करने की क्षमता अपने आपमें आएगी। और पहले ज़माने की तरह अब रेलवे नहीं चलती है कि पैसे नहीं है, डिज़ाइन तय करने में महीने निकाल दिए, काम धीमे-धीमे गति से हो रहा है, कॉन्ट्रैक्टर्स के ऊपर कोई निरंतर कोई अंकुश नहीं है, समय सीमा नहीं है। अब समय सीमा भी देखी जाती है, गुणवत्ता भी देखी जाती है क्वॉलिटी, पैसे की कमी नहीं होने दी जाती है।

लगभग पिछले पांच वर्षों में ढाई गुना निवेश भारतीय रेलवे में हुआ है, two and a half time investment in the Indian Railways. खासतौर पर सुरक्षा के लिए, सेफ्टी के लिए और इसी प्रकार से अलग-अलग जो प्रोजेक्ट्स को गति दी गयी है मैं समझता हूँ the best learning that all of you can take from this University will be that nothing is impossible. We can do it. We can be the change that we want to see in others. We can make a difference in our workplace, in our society, in our country.

And let’s all resolve that we will be the change. We will be the agents of change. We will bring about a new India, a new Indian railway, a new mindset. And we will ensure that every passenger who travels on the Indian railways – and I am sure you are all aware we have about 800 crore passengers, 8 billion passengers travelling every year in the Indian railways – and I am sure that with this collective commitment of all the rail employees and the budding future talent that is going to join the Indian railways, this railway will become the best in the world. It will be a railway that will become, as the Onida ad says – neighbour’s envy, owner’s pride.

Thank you.

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