Speeches

March 16, 2019

इंडिया टीवी के कार्यक्रम ‘वंदे मातरम – एक संवाद आतंकवाद के खिलाफ’ कार्यक्रम में प्रश्नों के उत्तर देते हुए

एंकर: आप सब लोगों का बहुत-बहुत स्वागत है और वंदे मातरम में आज दिन भर हम बात कर रहे हैं आतंक को कैसा जवाब मिलना चाहिए। मोदी सरकार ने एक जवाब देने की कोशिश की यह जवाब ऐसा था जिसकी गूँज सिर्फ पाकिस्तान में उस आतंकी अड्डे के तबाह होने के बाद वहीँ सुनाई दी ऐसा नहीं है। पूरी दुनिया ने महसूस किया कि यह एक नई इच्छाशक्ति का भारत है जो कठिन फैसले ले सकता है, जिसकी फौज के दमखम पर क्षमता पर सवाल कभी नहीं था, लेकिन इस बार उस फौज को एक बार अगर कोई लक्ष्य दे दिया जाये तो वह उसको पूरा करके बिलकुल बाल बांका हुए बगैर वापस लौट सकती है यह क्षमता भी भारत की वायु सेना ने दिखा दी। इसके बाद से ही एक सवाल लोगों के मन में गूंजने लगा और भारतीय जनता पार्टी ने इसको आने वाले चुनाओं का एक स्लोगन, एक नारा भी बनाया है कि ‘मोदी है तो मुमकिन है’।

अब इस नारे में कितना दम है और यह नारा कितना आगे लेकर जाएगा इस सरकार को भारतीय जनता पार्टी को इसपर भी हम आगे बात करेंगे, और राष्ट्रीय सुरक्षा के परिप्रेक्ष्य में इसके क्या मायने हैं, स्वागत कीजिये केंद्रीय कैबिनेट मिनिस्टर रेल मंत्री पीयूष गोयल जी का। पीयूष जी, पहले तो धन्यवाद आज आप आये, मोदी है तो मुमकिन है यह चुनावी नारा लग रहा है लेकिन मैं उससे पहले, इलेक्शन वगैरा की बात, पॉलिटिक्स की बात आज हम कम करेंगे। नेशनल सिक्योरिटी से अगर इस नारे को जोड़ा जाये तो कैसे आप इसको जाइज़, वाजिब ठहराते हैं?

उत्तर: सबसे पहले तो मैं आपको बधाई दूंगा कि आपने इतने महत्वपूर्ण विषय को आज एक घोष्टि के नाते जनता के समक्ष अलग-अलग विचारों को रखने की कोशिश की, वास्तव में यह बड़ा ज्वलंत विषय है। और आपका टाइटल देखकर बड़ा अच्छा लगा – वन्दे मातरम, वास्तव में आज परिस्थितियां ऐसी बन गयी हैं कि कुछ लोग तो शायद वन्दे मातरम बोलने में भी झिझकते हैं। अभी-अभी मैं सोशल मीडिया में देख रहा तह शायद वन्दे मातरम का गीत गाया जा रहा था लेकिन उसमें भी पार्टिसिपेट करने में एक हिचक थी, एक हैसिटेशन थी, और बड़ा दुःख होता है जब इस प्रकार की चीज़ बड़े-बड़े नेताओं के साथ देकर जाती है कि वह वन्दे मातरम पर भी एक प्रकार से राजनीति करने जाते हैं।

रही बात आज के दिन की एक और मैं आपके टेलीविज़न शो के माध्यम से अपनी संवेदना प्रकट करना चाहूंगा उन सभी न्यूजीलैंड में जो लोगों के साथ आपत्ति हुई, जिन लोगों के ऊपर इतनी बड़ी आपदा आई है, जिस प्रकार से वहां पर शूटिंग हुई है और बहुत सारे लोगों ने अपना जीवन त्याग दिया, कई सारे लोग घायल हैं। बहुत दुःख की बात है मैं अपनी संवेदना उन सभी को देना चाहूंगा, उसमें बताया जा रहा है कुछ भारतीय मूल के कुछ लोग हैं। और वास्तव में यह चेहरा जो आतंकवाद का है भयानक है, पूरे विश्व को आज चिंता है आतंकवाद की, पूरा विश्व इससे झूझ रहा है, इससे लड़ाई लड़ने में एक है।

हमें सिर्फ कभी-कभी दुःख होता है कि शायद राजनीति भारत में लोगों के लिए इतनी महत्वपूर्ण हो गयी है कि वह इस प्रकार की घिनौनी हरकतों को भी राजनीतिक चश्मे से देख लेते हैं। और इसलिए हमारे लिए यह नारा और जो आपने घटना को जो बहुत  दुर्भाग्यपूर्ण भारत में आतंकवाद का अटैक हुआ फिर हमने उसको प्रीएम्प्ट करने के लिए जवाब दिया, उसका और इस नारे का कोई संबंध सीधा नहीं है। वास्तव में नामुमकिन को मुमकिन किया यह हमारी सरकार की विशेषता रही है पाँचों वर्ष, लेकिन आज पूरा देश देख रहा है कि अगर देश को सुरक्षित रखना है, अगर देश को एक रखना है देश में अमन शांति रखनी है तो वास्तव में एक मज़बूत नेतृत्व चाहिए, एक निडर नेतृत्व चाहिए, एक निर्णायक नेतृत्व चाहिए और वह आज देश में शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा कोई नहीं दे सकता है।

यह आम पूरे देश  में चर्चा का विषय है, पूरे देश में भावना देखने को मिलती है इसलिए शायद एक इनडायरेक्ट-डायरेक्ट कनेक्ट हो जाता है कि मोदी है तो मुमकिन है देश की सुरक्षा है, मोदी है तो देश का हर नागरिक अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है, हर एक व्यक्ति को लगता है मेरा देश एक रहेगा, मेरे देश की अखंडता पर कोई आंच नहीं लगेगी, मोदी है तो आतंकवादी डरेंगे, मोदी है तो लोगों को भारत की तरफ टेढ़ी आँख से देखने की हिम्मत नहीं होगी। यह ज़रूर आज देश में लोगों की, आम व्यक्ति के ज़हन में है कि मोदी है तो मुमकिन है देश की सुरक्षा, देश की अखंडता।

एंकर: पीयूष जी अभी आपने दो शब्द इस्तेमाल किये मोदी जी के लिए – मज़बूत और निडर। राहुल गाँधी जी ने दो दिन पहले उनके लिए दो शब्द इस्तेमाल किये ट्विटर पर – कमज़ोर और डरपोक – बिलकुल उलटे?

उत्तर: वैसे राहुल गाँधी जी तो इतने सारे शब्द इस्तेमाल करते हैं जिसका आर पार हमको तो कभी समझ में भी नहीं आता है। पीछे जन गण मन की एक रिकॉर्डिंग आ रही थी कोई चेन्नई में, मैं आज कल तमिल नाडु देख रहा हूँ, इस कार्यक्रम के बाद सीधा मदुरई के लिए निकलूंगा। चेन्नई में हमारी छोटी बहनों के साथ एक चर्चा के बाद या उसके पहले जन गण मन तक में वह पार्टिसिपेट नहीं कर पा रहे थे या क्या कह रहे थे किसी को समझ नहीं आ रहा था ऐसा मैंने ट्विटर पर देखा है। तो अगर ट्विटर पर हर एक चीज़ को हम देखने लग जाएं और उसपर चर्चा करने लग जाएं तो आगे का भविष्य कुछ रहेगा ही नहीं। और मोदी जी को अगर कोई – क्या आपने वर्ड यूज़ किया मैं तो समझ भी नहीं पाया – उस प्रकार का शब्द इस देश में कोई कहता हो तो वास्तव में एकदम ही नासमझ  व्यक्ति हो सकता है।

एंकर: नहीं श्री जिनपिंग के रिफरेन्स में वह कह रहे थे, उन्होंने कहा कमज़ोर प्रधानमंत्री और श्री जिनपिंग से डरते हैं तो इसलिए कमज़ोर हैं और डरपोक हैं।

उत्तर: मुझे लगता है हमारे भारत के सेना, हमारे भारत के सभी सेनाकर्मी भली भांति जानते हैं कि अगर कोई एक नेता है जिसने उनका हौसला बढ़ाया, जिन्होंने उनको हिम्मत दी आतंकवाद या हमारे देश को सुरक्षा रखने के लिए जो कदम उठाना पड़े आतंकवाद ख़त्म करने के लिए, उसके लिए जिस नेता ने उनका मनोबल बढ़ाया वह सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है।

आखिर कोई जवाब दे, कांग्रेस तो 2008 में भी थी क्यों उन्होंने हमारी सेना का बल नहीं दिया कि वह तभी अटैक करे, तभी सब टेररिस्ट कैम्प्स को अटैक करे, उनका ख़त्म करे? क्यों हम तीन दिन तक, मैं मुंबई से आता हूँ, मुम्बईकर कितना सफर किये तीन दिन, किस प्रकार से शायद 150-160 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, 70एक लोग की मृत्यु हुई, 200 लोग घायल हुए। यह सब चीज़ें जनता देखती है और उसमें इतना गुस्सा आता है लोगों को और जब देखते हैं उसके बाद सरकार कुछ करती नहीं है। तो स्वाभाविक रूप से मेरे ख्याल से प्रश्न चिन्ह उठता है कांग्रेस के नेतृत्व पर।

एंकर: उसका जवाब वह देते हैं वह कहते हैं कि 2008 के बाद हमने चौबीस घंटे के अंदर हाफिज सईद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करवा दिया था लेकिन आप नहीं करवा पाए मसूद अज़हर को?

उत्तर: मैं समझता हूँ कि कांग्रेस सरकार घोषणाओं में भी बिलीव करती है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक्शन में बिलीव करते हैं।

एंकर: आप बोल रहे थे मेरा सवाल रह गया लेकिन उसका जवाब दे दें, आपने वह ट्विटर के वीडियो का ज़िक्र किया था। सीरियसली, आपको लगता है राहुल गाँधी को जन मन गण नहीं आता होगा?

उत्तर: मुझे नहीं मालूम वह तो भारत की जनता तय करेगी देखकर, मैंने जो देखा मुझे तो बड़ा अटपटाका लगा कि किस प्रकार से लिप सिंक हो रहा था मुझे तो समझ नहीं आया।

एंकर: लेकिन, एयर स्ट्राइक के बाद, राहुल गाँधी हो या और पोलिटिकल पार्टीज के विपक्ष के नेता, उन्होंने यह कहा कि हम दो-तीन दिन कुछ सरकार से सवाल नहीं पूछेंगे, हम देश की सेना के साथ हैं, बड़ा गंभीर मामला है, सेंसिटिव माहौल है और हम सरकार के साथ खड़े हैं मोदी जी के साथ भी खड़े हैं। लेकिन इसके बाद ग्रेजुअली जो इस पूरे मामले का राजनीतिकरण आया वह आप पर इलज़ाम लगाते हैं, आप उनपर इलज़ाम लागते हैं?

उत्तर: मैं समझता हूँ हमने तो इसमें किसी प्रकार की राजनीतिकरण कभी की नहीं। भारतीय जनता पार्टी ने तो पूरी तरीके से सभी को आमंत्रित किया कि पूरा देश एक स्वर में आतंक के खिलाफ बात करे, आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब देने में पूरा देश एकजुट हो। और किसी भी प्रकार के आतंकवादी ताकतों को हमारे किसी बयान से बल न मिले यह अपील हमने सभी दलों से की थी, सभी राजनीतिक पार्टियों से की थी। दुर्भाग्य है कि आज कुछ पार्टियां प्रश्न चिन्ह उठा रही है हमारी सेना, हमारे एयर फ़ोर्स के वीरता के ऊपर, प्रश्न चिन्ह उठा रही है कि यह हमला हुआ भी कि नहीं हुआ। और वास्तव में इन नेताओं के बयान पाकिस्तान टीवी इस्तेमाल करे और भारत के ऊपर सवाल जवाब करे इससे ज़्यादा दुर्भाग्य की बात क्या हो सकती है।

एंकर: वह कहते हैं कि मोदी जी ने इस एयर स्ट्राइक का राजनीतिक लाभ लेने के लिए जब आपका और पाकिस्तान के बीच तनाव था, वायु सेनाएं भी आमने सामने थी अगले दिन तक, वह पब्लिक फंक्शन कर रहे थे, रैलियों में पीछे पुलवामा के शहीदों की तसवीरें लगाई जाती है, आपके जो पोलिटिकल कार्यकर्ता हैं वह बैनर पोस्टर लगा रहे हैं जिसमें अभिनन्दन की तसवीरें हैं?

उत्तर: ऐसा है जहाँ तक हमारे शहीद जवानों को सम्मान देने की बात है, उनको श्रद्धांजलि देने की बात है अगर उसमें उनको कुछ राजनीतिकरण दिखता है और वह चाहते हैं कि हम अपने शहीदों को भी श्रद्धांजलि न दे तो मैं समझता हूँ इस देश की जनता उसको कदा भी स्वीकार नहीं करेगी। मैं समझता हूँ हम सबका कर्तव्य है और हम सब उन शहीदों के प्रति श्रद्धांजलि दें, प्रधानमंत्री स्वयं उनको श्रद्धांजलि दें यह तो बहुत स्वाभाविक किसी का भी रिएक्शन होगा। श्रद्धांजलि कोई न दे और अगर कांग्रेस पार्टी के नेता नहीं दे रहे हैं तो मुझे लगता है जनता तो उनसे सवाल पूछेगी कि आपको क्या इतनी भी कोई उनके प्रति संवेदना नहीं है कि जवानों को श्रद्धांजलि देने को आपने सोचा – पहली बात।

Of course, टीवी पर तो हमने और भी ख़राब दृश्य देखा कि सब श्रद्धांजलि के लिए जब वहां पर हमारे जवानों को श्रद्धांजलि दे रहे थे कोई तो फ़ोन के ऊपर बातचीत कर रहा था या फ़ोन के ऊपर कुछ मैसेज पढ़ रहा था। मैं समझता हूँ इससे ज़्यादा शर्मिंदगी की बात और कोई हो नहीं सकती है, पालम टेक्निकल एयरपोर्ट। पता नहीं मुझे, मैंने तो टीवी पर देखा था आप ज़्यादा जानकारी रखते हैं।

पर हम ज़रूर श्रद्धांजलि देंगे और इस देश के कभी वीरों के साथ किसी प्रकार की दुर्घटना होने नहीं देंगे, दुर्भाग्य से होती है तो हम उसका पूरा मुंहतोड़ जवाब देने के लिए यह सरकार प्रतिबद्ध है। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आर्मी, नेवी, एयर फ़ोर्स को पूरी तरीके से छूट दी है, और हमारे सभी पैरामिलिटरी फोर्सेज को कि किसी प्रकार के आतंकवादी ताकतों को पनपने न दिया जाये, उनका मुंहतोड़ जवाब दिया जाये। पडोसी देश को भी यह चेतावनी दी गयी है कि किसी प्रकार की अगर आतंकवाद को वह पनपने देंगे तो भारत हिचकेगा नहीं पूरा उसपर एक्शन लेगा उसका एक नमूना उन्होंने आलरेडी देख भी लिया है।

और मैं समझता हूँ कि बहुत ही दुःख की बात है कि कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता जिस प्रकार के बयान दे रहे हैं और एक इक्विवैलन्स लाने की कोशिश कर रहे हैं भारत और पाकिस्तान के बीच। एक पूर्व प्रधानमंत्री ने तो यहाँ तक कह दिया और I would to quote क्योंकि मुझे वास्तव में वह बहुत ही आपत्तिजनक लगा  कि इतने सीनियर पूर्व प्रधानमंत्री, and I quote – “Mad rush of mutual self-destruction by the two nations.” वह बड़े disturbed थे, बड़े चिंतित थे बड़े दुखी थे with the “Mad rush of mutual self-destruction by the two nations.”

अब आप किस प्रकार का moral equivalence create कर रहे हैं? हम तो sufferer हैं, we are the victim of terror, they are the perpetrator of terror. आप कैसे भारत और पाकिस्तान को equate कर सकते हो? और मैं समझता हूँ इसी प्रकार की कमज़ोर नीतियों ने और कमज़ोर नेतृत्व ने भारत के ऊपर यह समस्याओं ….

एंकर: यह डॉक्टर मनमोहन सिंह का बयान है जो आपाने अभी कोट किया था, लेकिन आज की कांग्रेस पार्टी राहुल गाँधी की अध्यक्षता में उनका कहना यह है कि हम अगर कोई सवाल पूछ लें तो हमें देशद्रोही साबित करने का आप क्यों तुल जाते हैं? प्रधानमंत्री ने कहा यह टुकड़े-टुकड़े गैंग हैं?

उत्तर: स्वाभाविक है, क्योंकि सवाल किस प्रकार के पूछे जा रहे हैं? क्या वह चाहते थे कि हमारे एयर फ़ोर्स के वीर सिपाही, एयर फ़ोर्स के पायलट्स वहां पर शूटिंग करने के बाद, बालाकोट कैंप को ध्वस्त करने के बाद पैराशूट करके नीचे जाकर काउंट करते बॉडीज? यह सब चीज़ें तो इंटेलिजेंस इनपुट्स पर निर्भर करती हैं। यहाँ कई बड़े सीनियर अधिकारी, रिटायर्ड अफसर यहाँ पर इस कार्यक्रम में भी दिख रहे हैं मुझे, सभी जानते हैं कि यह तो इंटेलिजेंस के ऊपर यह सब निर्णय लिए जाते हैं और यह ऑपरेशनल निर्णय आर्म्ड फोर्सेज लेते हैं। राजनीतिक संकल्प, राजनीतिक दृढ़ता उसमें है कि वह छूट दे, राजनीतिक नेतृत्व परमिशन देता है, लेकिन एक्शन क्या करना, कैसे करना, किधर करना, उसका परिणाम क्या है वह तो आर्म्ड फोर्सेज की ज़िम्मेदारी भी रहती है और पूरा अधिकार भी रहता है। तो मैं समझता हूँ इस प्रकार से demoralize किया जाये अगर हमारे देश के सेना बलों को तो स्वाभाविक है कि हम उस पर आपत्ति उठाएंगे।

एंकर: देखिये, यह भी दरअसल एक इलज़ाम ही हैं उनकक कि सेना तो पहले भी सक्षम थी, सेना के पराक्रम पर पहले भी किसी को शक नहीं था, मोदी के आने से पहले भी सेना में उतनी ही ताकत थी, इस बार ऐसा क्या बदल गया?

उत्तर: शायद कांग्रेस के नेता यह भूल रहे हैं कि भारत की जो सेना है वह एक डोमोक्रेटिक फ्रेमवर्क में काम करती है, जो सेना के एक्शन का निर्णय है वह राजनीतिक नेतृत्व लेता है, एक्शन सेना बल लेते हैं, पर वह एक्शन करना नहीं करना वह राजनीतिक नेतृत्व लेता है। और वह राजनीतिक नेतृत्व प्रधानमंत्री मोदी जी के अलावा शायद इतने वर्षों में इस देश में इतना संकल्प, इतनी वीरता, राजनीतिक वीरता, राजनीतिक नेतृत्व में हिम्मत निर्णय लेने की हमने कांग्रेस के दिनों देखा नहीं।

उलटे आज जैसे मसूद अज़हर को अंतर्राष्ट्रीय टेररिस्ट घोषित करने में जो एक बाधा रह गई है वह चाइना की है। हम कोशिश कर रहे हैं, बातचीत कर रहे हैं उनको भी, we are trying to bring them on board कि वह भी समर्थन करे और इनको हम अंतर्राष्ट्रीय टेररिस्ट घोषित कर पाएं। लेकिन अगर इतिहास में जाएं तो कांग्रेस पार्टी और उनका उस समय का नेतृत्व पूरी तरीके से ज़िम्मेदार है कि आज भारत सिक्योरिटी कौंसिल में नहीं है, नहीं तो भारत में तभी मौका था सिक्योरिटी कौंसिल में होने का। वह भारत में तभी हिम्मत नहीं दिखाई और उस समय के कांग्रेस लीडरशिप ने कि आज हम सिक्योरिटी कौंसिल में नहीं है।

एंकर: वह यह भी पूछते हैं लेकिन आपसे, आप जैसे चले गए नेहरू जी के ज़माने में, वह ले जाते हैं आपको वाजपेयी के ज़माने में। मसूद अज़हर को छोड़ा किसने था?

उत्तर: स्वाभाविक है उस समय हमने सब पार्टियों के साथ चर्चा की थी, कांग्रेस ने बया दिया कि सरकार इस पर अंतिम निर्णय ले और 161 या 66 हमारे भारत के भाई बहन जब वहां पर कैप्टिव थे कंधार में और उनके परिवारों का जो दृश्य था, जो उनके परिवारों के साथ बीत रही थी उसमें मुझे लगता है इस देश के उस समय के 100 करोड़ लोगों की सभी के बीच में एक मत था कि हमें अपने सभी परिवारजनों को वापस लाना है। और उसके पहले कुछ इंस्टैंस हुए थे जब राजनीतिक नेताओं के बच्चों के लिए छोड़े गए थे टेररिस्ट छोड़े गए थे, आम जनता में यह सवाल था कि अगर राजनीतिक बच्चों के लिए तो हमारे 161 भारत के नागरिकों के लिए कैसे आप बेइंसाफी कर सकते हो?

और मैं समझता हूँ उस समय आल-पार्टी मीटिंग बुलाई गयी थी और यह निर्णय लिए गए थे। और मैं चाहूंगा कि कांग्रेस के नेता और राहुल गाँधी जी उन 160 से अधिक परिवारजनों को आज बुलाएं और उनके सामने यह बोलें कि मैं चाहता हूँ कि वह मसूद अज़हर को उस समय नहीं छोड़ना चाहिए था चाहे जो हो जाता आपके परिवारों को, यह हिम्मत करे राहुल गाँधी जी बोलने के लिए।

प्रश्न: मैं इंडिया टीवी का धन्यवाद करना चाहूंगा कि यह जो आतंकवाद का मुद्दा है उसपर आज एक ठंडे दिमाग से जो डिस्कशन हो रहा है इसका ज़रूर कोई न कोई हल आगे की तरफ बढ़ेगा जो एक बुखार था पहले ख़त्म हो गया था जो कि हमारे हिंदुस्तान में होता है बड़ी अच्छी बात है। दूसरी बात मैं यह कहना चाहूंगा कि मैं जब पाकिस्तानी टीवी देखता हूँ उनके अंदर एक बहुत डर है कि हिंदुस्तान उनको कभी भी अटैक कर सकता है और उनके अंदर चिंता है। लेकिन, जो अभी हमने आतंकवाद के ऊपर जो अटैक किया है वह सिर्फ उसकी पूँछ के ऊपर अटैक हुआ है, जो उसका अभी रीढ़ की हड्डी है और उसका फन बाकी है उसके लिए भी कुछ करना बहुत आवश्यक है। एक जवाब मैं यह भी देना चाहूंगा कि यह बिलकुल गलत है कि मोदी जी कोई चाइना से डरे, सबको यह ध्यान है कि डोकलाम के अंदर जो स्टैंड उस समय हमारे प्रधानमंत्री ने लिया उसका उदाहरण सबके सामने है कि बिलकुल भी टस से मस न होकर के और चाइना को उसके ऊपर जो है….

प्रश्न: मेरा प्रश्न यह है कि बार-बार हम देखते हैं, यह चौथी बार यूएनएससी में ब्लॉक किया गया चाइना के द्वारा। आईसीजे में रूल ऑफ़ मेजोरिटी चलता है, सुप्रीम  कोर्ट ऑफ़ इंडिया में रूल ऑफ़ मेजोरिटी चलता है, five judges bench में तीन में से किसी ने कह दिया हाँ तो वह हाँ होता है। यह कैसा प्रोसीजर है यूएनएससी में पांचों की रज़ामंदी चाहिए, क्यों नहीं हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं कि वहां का जो फंक्शनिंग का तरीका है वह बदला जाये। स्पेशल सेशन बुलाइये और नो कॉन्फिडेंस मोशन पास कीजिये चाइना के खिलाफ, यह रोग कंट्री यूएनएससी का परमानेंट सदस्य होने के लायक नहीं है – पहला क्वेश्चन। दूसरा – सीसीआईटी में थोड़ा सा प्रोग्रेस करने की ज़रूरत है ताकि Comprehensive Convention on International Terrorism जोकि आज 17 साल हो गए और जिस दिशा से हमको बढ़ना चाहिए था उसमें बढ़ने की ज़रूरत है?

उत्तर: दोनों बातें आपकी बहुत महत्वपूर्ण हैं। सही बात है कि एक प्रकार से इतना महत्वपूर्ण विषय जिसमें भारत ने पहली बार पूरे विश्व को एकजुट किया, पूरे विश्व ने कंडेमन किया जिस प्रकार से भारत में पडोसी देश आतंकवाद को पनपने दे रहा है और मसूद अज़हर को टेररिस्ट घोषित नहीं होने दे रहा है। और हम पूरी कोशिश में हैं कि चाइना से भी बातचीत करके इसका हल निकाला जाये। And we will use every possible means जो United Nations के framework में है to ensure that action is taken against Masood Azhar.

जहाँ तक आपकी सीसीआईटी की बात है वह भी सही बात है उसमें भी वर्षों से चर्चा चल रही है, भारत ने उसमें बहुत एग्रेसिव स्टैंड लिया है, कोशिश की है कि इसको जल्द से जल्द अंतर्राष्ट्रीय सहमति मिले। और इस कार्यक्रम के माध्यम से मैं वास्तव में चाहूंगा कि इस दश में भी यह जागरूकता आए कि यह देश के सभी नागरिक और जो हमारे लोग विश्व भर में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग देश में रहते हैं, इस बात का दबाव पूरे विश्व में बनाएं कि इसपर जल्द से जल्द निर्णय लेना चाहिए और जल्द से जल्द इसको कार्यान्वित किया जाये।

प्रश्न: सर आपके विचार इस मुद्दे पर, अगर पाकिस्तान को देखें तो भारत के हित में क्या है – एक मज़बूत लोकतान्त्रिक पाकिस्तान (a strong and vibrant democratic Pakistan) वैसे वह नामुमकिन नज़दीक अरसे में दिखता है वह अलग बात है – या एक balkanised Pakistan, एक पांच-सात टुकड़ों में विभाजित पाकिस्तान, आपके विचार?

उत्तर: देखिये भारत एक ऐसा देश है कभी किसी और मुल्क के ऊपर हमन गलत नज़रों से नहीं देखा। स्वाभाविक है कि सभी चाहेंगे कि हर देश पूरे विश्व के हर देश में अमन शांति रहे, राजनीतिक स्थिरता रहे, डेमोक्रेसी प्रिवेल करे, लोकतंत्र मज़बूत हो लेकिन वह तो उनका अंदरूनी मामला है, हम कोई उनके अंदरूनी राजनीति के अंदर भारत दख़लअंदाज़ नहीं दे रही है। लेकिन जो हमने गत वर्षों में देखा है मैं समझता हूँ वहां की जो राजनीतिक प्रणाली है और वहां की जो सेना बलों की ताकत है उसके बीच में बहुत ज़्यादा तालमेल होने के कारण शायद कई वर्षों से उस प्रकार की लोकतान्त्रिक सुप्रीमेसी पाकिस्तान में देखने को मिली नहीं है। लेकिन भारत उसमें कोई रोल प्ले करे ऐसा मैं नहीं समझता हूँ।

एंकर: लेकिन इमरान खान जो अभी उनके नए प्राइम मिनिस्टर हैं उन्होंने इस पूरे एपिसोड में एक बहुत बड़ा दिल दिखाने की कोशिश की, posturing की उन्होंने दुनिया के सामने कि मैं तो शांति चाहता हूँ, मोदी जी को मैंने फ़ोन भी किया वह मेरा फ़ोन नहीं उठा रहे, मुझसे बात नहीं कर रहे। और आइये टेबल पर बैठकर बात करते हैं कौनसा मुद्दा हल नहीं हो सकता है?

उत्तर: मैं समझता हूँ माननीय सुषमा जी ने इसका सही जवाब एक ही सेंटेंस में दिया कि terror and talks cannot coexist. स्वाभाविक है कि उनको अपने एक्शन्स पहले दिखाने पड़ेंगे, credentials prove करने पड़ेंगे नहीं तो उनकी विश्वसनीयता कहाँ है, क्या बातचीत की जाये? वही बात जो मैंने शुरू में कही यह जो moral equivalence कुछ लोगों ने और कुछ दुर्भाग्य से कुछ मीडिया और जर्नलिस्ट्स ने भी जिस प्रकार से moral equivalence और यह कोशिश की बताने की कि अभिनन्दन को यहाँ पर छोड़ दिया है उसके कारण कोई बहुत बड़ा पुण्य का काम कर दिया पाकिस्तान के नेतृत्व ने, यह दुर्भाग्य है। वह तो भारत ने दबाव डालकर अभिनन्दन को छुड़ाया और जिनेवा कन्वेंशन के तहत वह वापस आये। वह कोई उनकी उदारता नहीं थी वह तो कमज़ोर नेतृत्व है जो अल्लॉव कर रहा है इस प्रकार की ताकतों को वहां पर काम करना और आतंक को पनपने देना। और मैं समझता हूँ धिक्कार है उस प्रकार है उस प्रकार के नेतृत्व को।

प्रश्न: मुद्दा है मोदी है तो मुमकिन है, माननीय मंत्री जी मोदी जी सशक्त हैं और आप भी सशक्त हैं। धारा 370 ख़त्म करने में क्या दिक्कत आ रही है सरकार को?

उत्तर: भारतीय जनता पार्टी ने शुरू से ही धारा 370 ख़त्म होनी चाहिए और मेरे ख्याल से देश में हर इलाके में सामान्य अधिकार सबको मिले यह हमारा स्टैंड शुरू से रहा है, उलटे हमारे जो फाउंडर थे, श्यामा प्रसाद मुख़र्जी, उन्होंने अपना जीवन का बलिदान दे दिया भारत की एकता और अखंडता के लिए। और कश्मीर में जो एक प्रकार से पास लगता, परमिट सिस्टम था उसको ख़त्म करने के लिए। लेकिन इसके लिए जब तक राजनीतिक कंसेंसस नहीं बनता है और वहां की एक सरकार की भी सहमति नहीं आती है उसमें पूरी तरीके से गंभीरता से हमने करना पड़ेगा जब भी फैसला लेना है उसमें सबको साथ मिलना पड़ेगा। और मैं समझता हूँ भारत में इसमें आम सहमति बने नहीं तो एक विषय से दूसरा विषय और बिगाड़े देश की राजनीतिक स्थिति को वह मेरे ख्याल से देश के हित में नहीं होगा। तो इसलिए एक बैलेंस्ड व्यू लेकर इस विषय पर गंभीरता से और सोच समझकर निर्णय सही समय पर लेना पड़ेगा।

एंकर: पीयूष जी, आपने हमें समय दिया बहुत-बहुत धन्यवाद। ज़रा तालियों के साथ मैं चाहूंगा हम लोग विदा करें पीयूष गोयल जी को।

Subscribe to Newsletter

Podcasts